शौक बन गया पैशन
1972 में असाम के एक छोटे
से गांव में जन्मी रीमा कागती बॉलीवुड में सफलता का पर्याय बन चुकी हैं। वह
लगभग अपने हर वेंचर में बेहद सफल रही हैं। कई सुपरहिट फिल्मों की पटकथा और
स्क्रीनप्ले लिख चुकी हैं और कई सुपर स्टार्स क निर्देशन कर चुकी हैं।
हिन्दी फिल्मों और विश्व सिनेमा से प्रभावित रीमा बचपन से ही दी फिल्मों की
बेहद शौकीन रही हैं। दिल्ली में आरके पुरम के डीपीएस स्कूल
में पढ़ते हुए देखी दो हिंदी फिल्मों ने रीमा के इस शौक को उसका पैशन बना
दिया। ये दो फिल्में थीं- मीरा नायर की फिल्म सलाम बॉम्बे और आमिर खान की
कयामत से कयामत तक। यह काम के प्रति रीमा का पैशन ही था कि वो तीन फिल्मों
में आमिर को डायरैक्ट कर चुकी हैं और मीरा नायर के साथ भी काम करने का सपना
पूरा कर चुकी हैं।
8 साल की उम्र में ही बन गई लेखिका
रीमा
बताती हैं कि लिखने का शौक उन्हें बचपन से ही था। कॉमिक्स पढ़ने की शौकीन
रीमा ने आठ साल की उम्र में टिंकल कॉमिक्स के लिए पहली बार लिखा, जिसके एवज
में उन्हें बतौर मेहनताना 15 रुपए मिले। रीमा बताती हैं, अपनी मेहनत और
शौक के बदले 15 रुपेए मेरे लिए किसी खजाने से कम नहीं थे। इसके बाद मैंने
लिखना जारी रखा, मैं नाटक लिखती, जिसमें आस-पड़ोस के बच्चों को कास्ट करती
और फिर उनकी टिकटें भी बेचती।
मेहनत को मिली परवाज़
रीमा के परिवार का
संबंध फिल्म इंडस्ट्री से नहीं है। किसी समय उनके दादा ने एक फिल्म का कुछ
भाग प्रॉड्यूस किया था, लेकिन रीमा के जन्म से पहले ही उनका देहांत हो चुका
था, इसलिए वो कभी उन्हें मिल नहीं पाईं। शायद यही कारण था जब रीमा ने अपने
पिता को बताया कि वो फिल्में बनाना चाहती हैं, तो वे गुस्सा हो गए। मेरे पिता खेती का काम करते थे। मेरा फिल्मों में काम करने का फैसला
उन्हें पसंद नहीं आया, पर मेरा दृढ़ फैसला देखकर उन्होंने मुझे मुंबई जाने
दिया। रीमा को इस बात पर गर्व है कि उनके पिता को कभी इस बात का अफसोस नहीं
हुआ कि उन्होंने रीमा को मुंबई में अकेले संघर्ष करने जाने देने की परमिशन
दी।
ऐसे मिला पहला ब्रेक
रीमा ने सोशल
कम्युनीकेशन मीडिया ज्वाइन किया। फिल्मों में काम करने का उनका फैसला इतना
पक्का था कि उन्होंने टेलिविजन प्रॉडक्शन हाउस की बजाय फिल्ममेकर के पास
इंटर्नशिप करने का फैसला किया। अपने किसी परिचित के माध्यम से वह रजत कपूर
से मिलीं। वह रीमा को लेने के लिए सहमत तो हो गए, पर उन्होंने एक शर्त भी
रख दी। वो शर्त यह थी कि रीमा एक महीने के लिए नहीं बल्कि एक पूरी फिल्म
में उनके साथ काम करेंगी। इस तरह रीमा को फिल्म में पहला ब्रेक मिला। इसके
बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। आशुतोष गोवारीकर की लगान ने इनकी
जिंदगी का रुख मोड़ दिया।
रीमा-जोया बनाम सलीम-जावेद
रीमा और ज़ोया
अख्तर दोनों में खूब दोस्ती है। दोनों ने मिलकर कई सफल फिल्मों की कहानी व
स्क्रीनप्ले लिखा है और डॉक्यूमेट्री फिल्में भी बनाई हैं। ज़ोया और फरहान
अख्तर के हर वेंचर में रीमा ने काम किया है। फिल्म की स्क्रिप्ट रीमा ने
अपनी दोस्त जोया अख्तर के साथ मिल कर लिखी है। वे कहती हैं, 'हमने काम के
लिए सिर नहीं खपाया हम अच्छे दोस्त हैं और हमने साथ काम करते हुए मजे किए।
हम दो और कहानियों पर काम कर रहे हैं, अगले कुछ महीनों में उम्मीद है इसका
कुछ नतीजा होगा।' ज़ोया और रीमा की सफल राइटर्स जोड़ी की तुलना लोग
सलीम-जावेद से करते हैं, लेकिन अपार सफलता हासिल करने के बावजूद भी बेहद
डाउन टू अर्थ रीमा ऐसा नहीं मानती, बतौर रीमा अभी तो कुछ ही सफल फिल्में
हमने एकसाथ की हैं, 25 हिट फिल्में देने के बाद भी सलीम-जावेद जी से तुलना
नहीं कर सकती। वे बहुत महान लेखक हैं।
सफलता की उड़ान
रीमा. हनी ईरानी (अरमान), फरहान
अख्तर (दिल चाहता है, लक्ष्य), मीरा नायर (वैनेटी फेयर) और आशुतोष
गोवारीकर (लगान) जैसे निर्देशकों को असिस्ट भी कर चुकी हैं। ‘तलाश’ से पहले
रीमा ‘हनीमून ट्रैवल्स प्रा. लिमिटेड’ (2007) फिल्म का भी निर्देशन कर
चुकी है। इसके अलावा तलाश, जिंदगी न मिलेगी दोबारा और हनीमूड ट्रैवल्स
प्रा. लिमिटेड फिल्मों की वह लेखिका भी हैं। रॉक ऑन में उन्होंने अभिनय भी
किया है।
तलाश से है उम्मीदें
30 नवंबर को थ्रिलर
फ़िल्म ‘तलाश’ रिलीज होने जा रही है, जिसे रीमा कागती द्वारा लिखा व
निर्देशित किया गया है। इसमें मुख्य भूमिका आमिर खान, करिश्मा कपूर और रानी
मुखर्जी निभा रही है। आमिर की फिल्म 'लगान' और 'दिल चाहता है' में सहायक
निर्देशक के रूप में काम कर चुकी रीमा के लिए आमिर के साथ काम करना मजेदार
रहा। उन्होंने कहा, 'वे कठोर नहीं हैं। पहले भी दो फिल्मों में उनके साथ
काम करते हुए मैं उनको देख चुकी हूं। ईमानदारी से कहूं तो मैं बिल्कुल भी
चिंतित नहीं थी। उन्होंने हमेशा मेरे दृष्टिकोण को समझने की कोशिश की और
मेरी मद्द की।'
यह है दिली ख्वाहिश
रीमा की
दिली ख्वाहिश है कि वह एक दिन मेगा स्टार अमिताभ बच्चन को डायरेक्ट करें।
कागती ने बताया, 'जब मैं बच्ची थी तब मैं अमिताभ बच्चन को बेहद पंसद करती
थी और उनके जैसा बनना चाहती थीं। मैं उनकी नकल किया करती। मैं उनकी तरह बीच
से बाल बनाती थी और उनके फिल्मों के डायलॉग बोलने का प्रयास करती थी।' जब
उन्हें असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर अमिताभ बच्चन के साथ काम करने का
मौका मिला, उस समय वह काफी खुश थीं। रीमा ने बताया कि जब वह 'लक्ष्य' और
'अरमान' फिल्म में असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर काम कर रही थीं, तब
उन्होंने उनके साथ काम किया था। लेकिन रीमा को उनसे बात करने का और उन्हें
यह बताने का कभी समय नहीं मिला कि वह उनकी बहुत बड़ी फैन हैं।
पैसा कमाना नहीं है लक्ष्य
रीमा कहती हैं कि
बॉक्स ऑफिस पर पैसे कमाना किसी फिल्म की सफलता का सही पैमाना नहीं है। सही
पैमाना यह है कि कितने लोगों ने फिल्म को पसंद किया। निजी जीवन में भी
उन्हें पैसे से ज्यादा खुशी काम करने से मिलती है। रीमा कहती हैं कि वह
पैसा कमाने के लिए नहीं, बल्कि अपने पैशन के लिए काम करती हैं।
परिवार से जुड़ाव
रीमा की दो बहनें हैं।
बड़ी बहन बंग्लौर में है जो टैक्सटाइल डिजाइनर है। दूसरी बहन जर्नलिस्ट है
जो रीमा के ही साथ मुंबई में रहती है। पिता के देहांत के बाद ज्यादा वक्त
इनकी मां मुंबई में अपनी बेटियों के साथ ही व्यतीत करती हैं। खाने और पकाने
की शौकीन रीमा को पंजाबी खाना बहुत पसंद है। उन्हें फुर्सत के पलों में
खेलना और पढ़ना अच्छा लगता है। गोवा रीमा का फेवरिट डेस्केटिनेशन है। यहां
के खूबसूरत बीच पर समय बिताना रीमा को खुशी देता है।
भावुक मन उदास हो जाता है
उत्तर पूर्व के
राज्यों के साथ हो रहे भेदभाव पर रीमा कागती भावुक हो जाती हैं। वहां आए
दिन हो रही हिंसक घटनाओं, आगजनी और आतंकवाद से वह बेहद दुखी हैं और कहीं न
कहीं सरकार को इसके लिए दोषी भी मानती हैं। आंखों में ढेरों सवाल लिए वह
कहती है, युवाओं के हाथ में रोजगार नहीं है, लड़कियां भी हाथों में राइफल
थामे हुए हैं। प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर इन राज्यों में क्या कभी सबकुछ
ठीक हो पाएगा।
- मीनाक्षी गांधी
- मीनाक्षी गांधी
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