वाकई मददगार 5 स्मार्ट पेरेंटिंग टिप्स
माता-पिता की जिम्मेदारियां बहुत कठिन हैं क्योंकि उनके मन में हमेशा बच्चे को अच्छी परवरिश देने की टैंशन रहती है और साथ ही बच्चे के मन की बातें जानने के लिए कई तरह के जतन भी करने पड़ते हैं। कई बार पेरेंट्स के लिए यह काम बेहद मुश्किल साबित होता है। कारण होता है माता-पिता और बच्चों के बीच दोस्ताना रिश्ते न होना। लेकिन कई बार देखा गया है कि जब पेरेंट्स और बच्चे के बीच बहुत अच्छे संबंध होते हैं तब भी वह अपने मन की बात खुल कर अपने पेरेंट्स से नहीं कह पाता है।आज हम आपको कुछ पेरेंटिंग टिप्स बताएंगे जिससे आप अपने बच्चे के मन की बात को जान सकते हैं और उन्हें सही परवरिश देकर उन्हें इस सोसाइटी का एक अच्छा नागरिक बना सकते हैं। अगर आपने बचपन से ही अपने बच्चों पर ध्यान दिया तो आगे चल कर आपकी जिंदगी में सुकून और खुशियां भर जाएंगी।
1. बच्चों के व्यवहार पर नज़र रखें
बच्चों में इतनी समझ नहीं होती है कि वे यह जान सकें कि उनके साथ जो हो रहा है उसमें बुरा क्या है। अगर आपका बच्चा कई दिनों से शांत या खोया-खोया नजर आ रहा है तो पेरेंट होने के नाते आप तुरंत इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि आपके बच्चे के मन में कुछ हलचल चल रही है। आप समझ जाएं कि अब आपको उसके मन की व्यथा जानने के लिए उसके साथ बात करनी चाहिेए और इसके लिए सही वातावरण बनाना चाहिए ताकि वह अपने मन की बात खुल कर आपको बता सके।
2. बच्चे की टीचर से इनटच रहेंः आपका बच्चा स्कूल में काफी समय बिताता है। हो सकता है कि वह कुछ जरूरी बातें अपनी टीचर से शेयर करता हो और आपको ना बताता हो, लेकिन वो बातें आपके लिए जानना बहुत जरूरी है। इसलिए बेहतर यही होगा कि आप उसकी टीचर के साथ इनटच रहें और अपने बच्चे की प्रोग्रेस के बारे में जानती रहें। बच्चे की गलती पर कभी भी टीचर को दोषी ना ठहराएं बल्कि उसके साथ बात करके समस्या का समाधान निकालने की कोशिश करें।
3. बच्चे को सामाजिक बनाएंः अपने बच्चे को उसके दोस्तों या उसकी उम्र के आपकी कामवाली के बच्चों से मिलने से ना रोकें। अगर बच्चे के काफी दोस्त हैं तो उसे उनसे अलग ना करें। बच्चे अपने दोस्तों के साथ रहते हुए बहुत कुछ सीखते हैं, जो वे स्कूल या घर पर नहीं सीख सकते। बच्चे को पढाई के साथ-साथ सामाजिक गतिविधियों में भी हिस्सा लेने दें, इससे वह लोगों के साथ मेल-मिलाप और शेयर करना सीखेगा।
4. उसे स्वतंत्र बनाएंः बच्चे को इतनी आजादी जरूर दें कि वह कम से कम अपने छोटे-छोटे फैसले खुद कर सके। इससे उसमें आत्मविश्वास आएगा। हां, आप उसे गाइड कर सकती हैं, पर अपने फैसले उस पर न थोपें। अगर वो गलती करेगा तो अपनी गलती से सीखेगा और तब उसका आप पर विश्वास भी बढ़ेगा। याद रखें, बच्चे पर जितनी ज्यादा बंदिशें लगाएंगे बच्चा उतना ज्यादा बिगडे़गा।
5. तुलना न करेंः जाने-अनजाने हम बच्चों की उपस्थिति में ही उनकी कमियों-खूबियों की तुलना करने लगते हैं। इससे बचना चाहिए। यह एक नकारात्मक तरीका है। ऐसा करने से कमतर उपलब्धि हासिल करने वाले बच्चे के मन में हीन भावना आती है। उसका मनोबल गिरता है। मैं कभी औरों की बराबरी नहीं कर सकता जैसी धारणा उसके मन में सदा के लिए घर कर जाती है। इस तरह दिन-ब-दिन जटिलताएं बढ़ती जाती हैं।