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होली एक रंग अनेक
फाल्गुन
मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला रंगों का त्यौहार होली पारंपरिक रूप
से दो दिन मनाया जाता है। होली के एक दिन पहले लोग रात को होलिका जलाते हैं
जिसमें वैर और उत्पीडऩ की प्रतीक होलिका जलती है। उसके अगले दिन दुलेंडी
मनाई जाती है। दुलेंडी पर सभी एक-दूसरे पर गुलाल बरसाते हैं तथा पिचकारियों
से गीले रंग लगाते हैं। होली पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती
है हालांकि इसको मनाने के तरीके हर जगह अलग होते हैं, परन्तु उल्लास और
मस्ती की मूल भावना एक समान ही है। भारत की इस सम्मोहक परम्परा को अन्य
देशों ने भी अपने-अपने ढंग से सहेजने की कोशिश की है। वहां या तो होली से
मिलता-जुलता कोई त्यौहार मनाया जाता है या किसी अन्य अवसर पर रंग या सादे
पानी से खेलने की परंपरा है। होली एक ही है, लेकिन उसके रूप अवश्य अनेक
हैं...
वृंदावन में ‘फूलों की होली’
वृंदावन में एकादशी के साथ ही होली का त्यौहार शुरू हो जाता है। एकादशी के दूसरे दिन से ही कृष्ण और राधा से जुड़े सभी मंदिरों में फूलों की होली खेली जाती है। फूलों की होली में ढेर सारे फूल एकत्रित कर एक-दूसरे पर फैंके जाते हैं। राधे-राधे की गूंज के बीच आसमान से होली पर बरसते पुष्पों का नजारा द्वापर युग की याद दिला देता है। वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर की होली की छटा अनोखी होती है। बांके बिहारी जी की मूर्ति को मंदिर से बाहर रख दिया जाता है, मानो बिहारी जी स्वयं ही होली खेलने आ रहे हों। यहां होली सात दिनों तक चलती है। सबसे पहले फूलों से, इसके बाद गुलाल, सूखे रंगों और गीले रंगों से होली खेली जाती है। अपने आराध्य के साथ होली खेलने के लिए लोग कई घंटों तक लाईन में लगे रहते हैं।
बरसाने की ‘लट्ठमार होली’
ब्रज के बरसाना गांव की ‘‘लट्ठमार होली’ विश्व भर में प्रसिद्ध है। यह होली से कुछ दिन पहले खेली जाती है। यहां होली को श्री कृष्ण और राधा के प्रेम से जोड़ कर देखा जाता है। कहा जाता है कि श्री कृष्ण और उनके दोस्त राधा और उनकी सहेलियों को तंग करते थे जिस पर उन्हें मार पड़ती थी। इसीलिए यहां होली पर मुख्यत: नंद गांव के पुरुष और बरसाने की महिलाएं भाग लेती हैं, क्योंकि कृष्ण नंद गांव के थे और राधा बरसाने की थीं। नंद गांव की टोलियां जब पिचकारियां लिए बरसाना पहुंचती हैं तो ढोल की थाप पर बरसाने की महिलाएं पुरुषों को लाठियों से पीटती हैं। पुरुषों को इन लाठियों से बचना होता है और साथ ही महिलाओं को रंगों से भिगोना होता है। इस दौरान हजारों की संख्या में लोग उन पर रंग फैंकते हैं।
पंजाब का ‘होला महल्ला’
सिखों के पवित्र धर्मस्थान श्री आनन्दपुर साहिब में होली के अगले दिन से लगने वाले मेले को होला महल्ला कहते हैं। दशम गुरु गोबिन्द सिंह जी ने स्वयं इस मेले की परम्परा शुरू की थी। पंज प्यारे जुलूस का नेतृत्व करते हुए रंगों की बरसात करते हैं और निहंगों के अखाड़े नंगी तलवारों के करतब दिखा कर साहस, पौरुष और उल्लास का प्रदर्शन करते हैं। यह जुलूस हिमाचल प्रदेश की सीमा पर बहती एक छोटी नदी चरण गंगा के तट पर समाप्त होता है। होला महल्ला के पीछे ऐतिहासिक कहानी यह है कि मुगलों का सामना करने के लिए गुरु गोबिंद सिंह ने अपने लाडलों को युद्ध का प्रशिक्षण दिया था जिसमें वे बनावटी युद्ध कर हल्ला मचाते थे। इस प्रशिक्षण की शुरूआत होली के दिन ही हुई थी, इसलिए इसे होला महल्ला नाम दिया गया है।
हरियाणा की ‘धुलेंडी’
भारतीय संस्कृति में रिश्तों और कुदरत के बीच सामंजस्य का अनोखा मिश्रण हरियाणा की होली में देखने को मिलता है। हरियाणा में इसे अलग अंदाज में मनाया जाता है। यहां होली धुलेंडी के रूप में मनाई जाती है। वैसे तो हरियाणा की होली भी बरसाने की ल_मार होली जैसी ही होती है, लेकिन इसमें कुछ अंतर भी है। यहां इस दिन भाभियों को अपने देवरों को पीटने की पूरी छूट रहती है। इसी का फायदा उठाते हुए भाभियां अपने देवरों द्वारा उनके साथ की गई शरारतों का बदला लेती हैं। भाभियां देवरों को तरह-तरह से सताती हैं और देवर बेचारे चुपचाप झेलते हैं, क्योंकि यह दिन भाभियों के नाम जो रहता है। शाम को देवर अपनी प्यारी भाभी को मनाने और खुश करने के लिए उपहार लाता है और भाभी उसे आशीर्वाद देती है।
बिहार की ‘फागु पूर्णिमा’
फागु मतलब लाल रंग और पूर्णिमा यानी पूरा चांद। बिहार में होली के मौके पर गाए जाने वाले फगुआ की अपनी गायन शैली की अलग पहचान है। इसीलिए यहां होली को फगुआ नाम से भी जानते हैं। बिहार और इससे लगे उत्तरप्रदेश के कुछ हिस्सों में इसे हिंदी नववर्ष के उत्सव के रूप में मनाते हैं। यहां होली का त्यौहार तीन दिन तक मनाया जाता है। पहले दिन रात में होलिका दहन होता है। अगले दिन इससे निकली राख से होली खेली जाती है, जो धुलेठी कहलाती है और तीसरा दिन रंगों का होता है। होली के दिन लोग ढोलक की धुन पर नृत्य करते, लोकगीत गाते हुए एक-दूसरे को रंग से सराबोर करते हैं। राज्य में कई स्थानों पर कीचड़ से होली खेली जाती है तो कई स्थानों पर ‘कपड़ा फाड़’ होली खेलने की भी परंपरा है।
महाराष्ट्र की ‘रंग पंचमी’
महाराष्ट्र में होली को रंगपंचमी के नाम से भी जाना जाता है। होली में यहां लोग पांच दिन तक रंगों में सराबोर रहते हैं और पंचमी के दिन भी जमकर होली खेलते हैं। लोग होली पर एक-दूसरे से मिलने उनके घर जाते हैं और काफी समय मस्ती में बीतता है। गुजरात व महाराष्ट्र में इस मौके पर जगह-जगह पर दही-हांडी फोडऩे का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। ऊंची-ऊंची इमारतों के बीच दही की मटकियां लगाई जाती हैं। यह भगवान कृष्ण के गोपियों की मटकी फोडऩे से प्रेरित है। चारों ओर ‘गोविन्दा आला रे आला, जरा मटकी संभाल ब्रिज बाला’ की गूंज सुनाई देती है। मटकी नहीं फूटे इसलिए लड़कियां इन टोलियों पर रंगों की बौछार करती रहती हैं। जो युवक मटकी को फोड़ देता है, वह होली राजा बन जाता है।
वृंदावन में ‘फूलों की होली’
वृंदावन में एकादशी के साथ ही होली का त्यौहार शुरू हो जाता है। एकादशी के दूसरे दिन से ही कृष्ण और राधा से जुड़े सभी मंदिरों में फूलों की होली खेली जाती है। फूलों की होली में ढेर सारे फूल एकत्रित कर एक-दूसरे पर फैंके जाते हैं। राधे-राधे की गूंज के बीच आसमान से होली पर बरसते पुष्पों का नजारा द्वापर युग की याद दिला देता है। वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर की होली की छटा अनोखी होती है। बांके बिहारी जी की मूर्ति को मंदिर से बाहर रख दिया जाता है, मानो बिहारी जी स्वयं ही होली खेलने आ रहे हों। यहां होली सात दिनों तक चलती है। सबसे पहले फूलों से, इसके बाद गुलाल, सूखे रंगों और गीले रंगों से होली खेली जाती है। अपने आराध्य के साथ होली खेलने के लिए लोग कई घंटों तक लाईन में लगे रहते हैं।
बरसाने की ‘लट्ठमार होली’
ब्रज के बरसाना गांव की ‘‘लट्ठमार होली’ विश्व भर में प्रसिद्ध है। यह होली से कुछ दिन पहले खेली जाती है। यहां होली को श्री कृष्ण और राधा के प्रेम से जोड़ कर देखा जाता है। कहा जाता है कि श्री कृष्ण और उनके दोस्त राधा और उनकी सहेलियों को तंग करते थे जिस पर उन्हें मार पड़ती थी। इसीलिए यहां होली पर मुख्यत: नंद गांव के पुरुष और बरसाने की महिलाएं भाग लेती हैं, क्योंकि कृष्ण नंद गांव के थे और राधा बरसाने की थीं। नंद गांव की टोलियां जब पिचकारियां लिए बरसाना पहुंचती हैं तो ढोल की थाप पर बरसाने की महिलाएं पुरुषों को लाठियों से पीटती हैं। पुरुषों को इन लाठियों से बचना होता है और साथ ही महिलाओं को रंगों से भिगोना होता है। इस दौरान हजारों की संख्या में लोग उन पर रंग फैंकते हैं।
पंजाब का ‘होला महल्ला’
सिखों के पवित्र धर्मस्थान श्री आनन्दपुर साहिब में होली के अगले दिन से लगने वाले मेले को होला महल्ला कहते हैं। दशम गुरु गोबिन्द सिंह जी ने स्वयं इस मेले की परम्परा शुरू की थी। पंज प्यारे जुलूस का नेतृत्व करते हुए रंगों की बरसात करते हैं और निहंगों के अखाड़े नंगी तलवारों के करतब दिखा कर साहस, पौरुष और उल्लास का प्रदर्शन करते हैं। यह जुलूस हिमाचल प्रदेश की सीमा पर बहती एक छोटी नदी चरण गंगा के तट पर समाप्त होता है। होला महल्ला के पीछे ऐतिहासिक कहानी यह है कि मुगलों का सामना करने के लिए गुरु गोबिंद सिंह ने अपने लाडलों को युद्ध का प्रशिक्षण दिया था जिसमें वे बनावटी युद्ध कर हल्ला मचाते थे। इस प्रशिक्षण की शुरूआत होली के दिन ही हुई थी, इसलिए इसे होला महल्ला नाम दिया गया है।
हरियाणा की ‘धुलेंडी’
भारतीय संस्कृति में रिश्तों और कुदरत के बीच सामंजस्य का अनोखा मिश्रण हरियाणा की होली में देखने को मिलता है। हरियाणा में इसे अलग अंदाज में मनाया जाता है। यहां होली धुलेंडी के रूप में मनाई जाती है। वैसे तो हरियाणा की होली भी बरसाने की ल_मार होली जैसी ही होती है, लेकिन इसमें कुछ अंतर भी है। यहां इस दिन भाभियों को अपने देवरों को पीटने की पूरी छूट रहती है। इसी का फायदा उठाते हुए भाभियां अपने देवरों द्वारा उनके साथ की गई शरारतों का बदला लेती हैं। भाभियां देवरों को तरह-तरह से सताती हैं और देवर बेचारे चुपचाप झेलते हैं, क्योंकि यह दिन भाभियों के नाम जो रहता है। शाम को देवर अपनी प्यारी भाभी को मनाने और खुश करने के लिए उपहार लाता है और भाभी उसे आशीर्वाद देती है।
बिहार की ‘फागु पूर्णिमा’
फागु मतलब लाल रंग और पूर्णिमा यानी पूरा चांद। बिहार में होली के मौके पर गाए जाने वाले फगुआ की अपनी गायन शैली की अलग पहचान है। इसीलिए यहां होली को फगुआ नाम से भी जानते हैं। बिहार और इससे लगे उत्तरप्रदेश के कुछ हिस्सों में इसे हिंदी नववर्ष के उत्सव के रूप में मनाते हैं। यहां होली का त्यौहार तीन दिन तक मनाया जाता है। पहले दिन रात में होलिका दहन होता है। अगले दिन इससे निकली राख से होली खेली जाती है, जो धुलेठी कहलाती है और तीसरा दिन रंगों का होता है। होली के दिन लोग ढोलक की धुन पर नृत्य करते, लोकगीत गाते हुए एक-दूसरे को रंग से सराबोर करते हैं। राज्य में कई स्थानों पर कीचड़ से होली खेली जाती है तो कई स्थानों पर ‘कपड़ा फाड़’ होली खेलने की भी परंपरा है।
महाराष्ट्र की ‘रंग पंचमी’
महाराष्ट्र में होली को रंगपंचमी के नाम से भी जाना जाता है। होली में यहां लोग पांच दिन तक रंगों में सराबोर रहते हैं और पंचमी के दिन भी जमकर होली खेलते हैं। लोग होली पर एक-दूसरे से मिलने उनके घर जाते हैं और काफी समय मस्ती में बीतता है। गुजरात व महाराष्ट्र में इस मौके पर जगह-जगह पर दही-हांडी फोडऩे का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। ऊंची-ऊंची इमारतों के बीच दही की मटकियां लगाई जाती हैं। यह भगवान कृष्ण के गोपियों की मटकी फोडऩे से प्रेरित है। चारों ओर ‘गोविन्दा आला रे आला, जरा मटकी संभाल ब्रिज बाला’ की गूंज सुनाई देती है। मटकी नहीं फूटे इसलिए लड़कियां इन टोलियों पर रंगों की बौछार करती रहती हैं। जो युवक मटकी को फोड़ देता है, वह होली राजा बन जाता है।
मध्य प्रदेश में 'भगौरिया'
मध्य प्रदेश के भील होली को भगौरिया कहते हैं। यहां के भील युवकों के लिए होली अपने लिए प्रेमिका को चुनकर भगा ले जाने का त्योहार है। होली से पहले हाट के अवसर पर हाथों में गुलाल लिए भील युवक ‘मांदल’ की थाप पर सामूहिक नृत्य करते हैं। नृत्य करते-करते जब युवक किसी युवती के मुंह पर गुलाल लगाता है और वह भी बदले में गुलाल लगा देती है तो मान लिया जाता है कि दोनों विवाह सूत्र में बंधने के लिए सहमत हैं। युवती द्वारा प्रत्युत्तर न देने पर युवक दूसरी लड़की की तलाश में जुट जाता है।
मध्य प्रदेश के भील होली को भगौरिया कहते हैं। यहां के भील युवकों के लिए होली अपने लिए प्रेमिका को चुनकर भगा ले जाने का त्योहार है। होली से पहले हाट के अवसर पर हाथों में गुलाल लिए भील युवक ‘मांदल’ की थाप पर सामूहिक नृत्य करते हैं। नृत्य करते-करते जब युवक किसी युवती के मुंह पर गुलाल लगाता है और वह भी बदले में गुलाल लगा देती है तो मान लिया जाता है कि दोनों विवाह सूत्र में बंधने के लिए सहमत हैं। युवती द्वारा प्रत्युत्तर न देने पर युवक दूसरी लड़की की तलाश में जुट जाता है।
राजस्थान की होली
राजस्थान में होली के अवसर पर तमाशे की परंपरा है। इसमें किसी नुक्कड़ नाटक की शैली में मंच सज्जा के साथ कलाकार आते हैं और नृत्य और अभिनय से परिपूर्ण अपने पारंपरिक हुनर का प्रदर्शन करते हैं। तमाशा की विषय वस्तु पौराणिक कहानियों और चरित्रों के इर्दगिर्द घूमती हुई इन चरित्रों के माध्यम से सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पर भी व्यंग्य करती है।
कैलिफोर्निया का ‘ग्रेप स्टैम्प फैस्टिवल’
अमेरिका के कैलिफोर्निया प्रांत में अंगूर की अच्छी पैदावार की खुशी मनाने के लिए ‘ग्रेप स्टैम्प फैस्टिवल’ मनाया जाता है। यह हर साल सितम्बर माह के तीसरे वीकएंड में मनाया जाता है। इस त्यौहार के दौरान यहां पारिवारिक माहौल रहता है। यही कारण है कि सभी आयुवर्ग के लोग इसमें पूरी मस्ती से भाग लेते हैं। हंसते-गाते हुए बच्चे अपने पैरों से अंगूरों को मसलते हैं और उसका जूस निकालते हैं। इस जूस को बड़े-बड़े बर्तनों में इकट्ठा किया जाता है, यकीनन इस जूस को बाद में पिया नहीं जाता है। ऐसा सिर्फ फन और मस्ती के लिए ही किया जाता है। इस मौके पर इटैलियन म्यूजिक बजाया जाता है, डांस पार्टी होती है, प्ले कम्प्टीशन करवाए जाते हैं और कई प्रकार के व्यंजनों की भी व्यवस्था होती है।
अमरीका का ‘मेडफो’, ‘हैलोइन’ व ‘होबो’
अमरीका में ‘मेडफो’ नामक त्यौहार मनाने के लिए लोग नदी के किनारे एकत्र होते हैं और गोबर तथा कीचड़ से बने गोलों से एक-दूसरे पर आक्रमण करते हैं। अमेरिका में होली जैसा ही एक और मस्ती भरा त्यौहार मनाया जाता है, जिसका नाम है होबो। इस अवसर पर लोग मस्ती में झूमते हुए पागलों-सा व्यवहार करते हैं। जो सबसे ज्यादा बेहूदगी करता है, उसे विजेता मान कर ताज पहनाया जाता है। इस अवसर पर लोग अजब-गजब पोशाकें पहन कर आते हैं। चेहरे पर इस तरह रंग पोता जाता है कि घर वाले भी पहचान नहीं पाते। 31 अक्तूबर को रंगों का त्यौहार ‘हैलोइन’ मनाया जाता है। बच्चे और बड़े भूतहा वेशभूषा में नजर आते हैं तथा हर ओर दिखती है हाहाकारी भूतहा सजावट।
स्पेन का ‘ला टोमेटिना’
स्पेन में भी लाखों टन टमाटर एक-दूसरे को मार कर होली खेली जाती है। वेलेंसियन के कस्बे बुनोल में 1940 से यह त्यौहार हर साल अगस्त के अंतिम बुधवार को मनाया जाता है। कई ट्रक यहां टमाटर फैंकते हैं और फिर शुरू होता है टमाटर उत्सव। इस दौरान लोग खूब नाचते-गाते हैं। लोग घरों की छतों से पानी फैंकते हैं। इस त्यौहार को मनाने के कुछ नियम भी हैं-टमाटर से किसी को चोट न लगे इसलिए टमाटर को फैंकने से पहले मसलना या कुचलना जरूरी है। आप टमाटर के अलावा कुछ और नहीं फैंक सकते। आप अपनी शर्ट नहीं उतार सकते यानी कपड़ों समेत ही आपको टमाटरों की लड़ाई का मकाा लेना है। उत्सव खत्म होने के बाद आप टमाटर नहीं उछाल सकते। आपके हाथ में पकड़ा हुआ टमाटर भी आपको फैंकना पड़ता है।
थाईलैंड का ‘सॉनाक्रन’
थाईलैंड में हर साल 13 अप्रैल को ‘सॉनाक्रन’ मनाया जाता है। यह उत्सव तीन दिन तक चलता है। ‘सॉनाक्रन’ का मतलब स्थान बदलना होता है। दरअसल इसी दिन सूर्य अपनी स्थिति बदलता है। यह वाटर फैस्टिवल भी कहलाता है, क्योंकि यहां मान्यता है कि पानी बैड लक को धो देता है। इस दिन परिवार के सभी लोग एक जगह इकट्ठे होते हैं। माता-पिता व घर के बुजुर्गों के हाथों पर सुगंधित पानी छिड़का जाता है और उन्हें उपहार और नए वस्त्र दिए जाते हैं। बड़े-बुजुर्ग छोटों को आशीर्वाद देते हैं। दोपहर में लोग मठ में भगवान बुद्ध की मूॢत को स्नान करवाते हैं, भिक्षुओं को दान देते हैं और फिर सभी एक-दूसरे पर सुगंधित पानी फैंक कर खुशियां मनाते हैं। परस्पर हंसी-मजाक, चुहलबाजियां इस त्यौहार को एकदम होली की भांति संवार देती हैं।
घाना का ‘होमोवो’
अफ्रीकी देश घाना में होली की तरह होमोवो का त्यौहार मनाया जाता है। अन्यायी राजा को लोगों ने जिंदा जला डाला था। इस दिन उसका पुतला जला कर ड्रम की तेज आवाज पर रात में लोग खूब नाचते-गाते हैं। घाना की महत्वपूर्ण फसल शकरकंद और उबले अंडों से एक खास डिश तैयार की जाती है, जिसे लोग बड़े चाव से खाते हैं। इस दिन गांव के मुखिया से आशीर्वाद लिया जाता है। लोग चमकीले रंग का खास परिधान भी पहनते हैं। अफ्रीकी महाद्वीप के कुछ देशों में ‘ओमेना बोंगा’ नाम से उत्सव मनाया जाता है। इसमें हमारे देश की होली के समान ही एक जंगली देवता को जलाया जाता है। इस देवता को ‘प्रिन बोंगा’ कहते हैं। इसे जला कर नाच-गाकर नई फसल के स्वागत में खुशियां मनाई जाती हैं।
चीन में ‘मून फैस्टिवल’
चाइनीज कैलेंडर के अनुसार, आठवें महीने के 15वें दिन चीन में मून फैस्टिवल मनाया जाता है। चावल और गेहूं की अच्छी फसल होने की खुशी में यह त्यौहार मनाया जाता है। इस समय पूरा चंद्रमा दिखाई देता है। चीनी किंवदंती के अनुसार इस दिन चंद्रमा का जन्मदिन होता है। कथा के अनुसार चांग ओ नामक महिला उड़कर चंद्रमा तक पहुंच गई थी। वह आज भी वहीं है और पूरे चांद में दिखाई देती है। माना जाता है कि मून फैस्टिवल के दौरान आप उसे चंद्रमा पर नाचते हुए देख सकते हैं। इस दिन लोग पूरे परिवार के साथ फुल मून देखते हैं, जो अच्छे भाग्य और मधुर संबंधों का प्रतीक माना जाता है। परिवार के सभी लोग मिलकर केक खाते हैं और चंद्रमा की कविताएं सुनाते हैं।
राजस्थान में होली के अवसर पर तमाशे की परंपरा है। इसमें किसी नुक्कड़ नाटक की शैली में मंच सज्जा के साथ कलाकार आते हैं और नृत्य और अभिनय से परिपूर्ण अपने पारंपरिक हुनर का प्रदर्शन करते हैं। तमाशा की विषय वस्तु पौराणिक कहानियों और चरित्रों के इर्दगिर्द घूमती हुई इन चरित्रों के माध्यम से सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पर भी व्यंग्य करती है।
कैलिफोर्निया का ‘ग्रेप स्टैम्प फैस्टिवल’
अमेरिका के कैलिफोर्निया प्रांत में अंगूर की अच्छी पैदावार की खुशी मनाने के लिए ‘ग्रेप स्टैम्प फैस्टिवल’ मनाया जाता है। यह हर साल सितम्बर माह के तीसरे वीकएंड में मनाया जाता है। इस त्यौहार के दौरान यहां पारिवारिक माहौल रहता है। यही कारण है कि सभी आयुवर्ग के लोग इसमें पूरी मस्ती से भाग लेते हैं। हंसते-गाते हुए बच्चे अपने पैरों से अंगूरों को मसलते हैं और उसका जूस निकालते हैं। इस जूस को बड़े-बड़े बर्तनों में इकट्ठा किया जाता है, यकीनन इस जूस को बाद में पिया नहीं जाता है। ऐसा सिर्फ फन और मस्ती के लिए ही किया जाता है। इस मौके पर इटैलियन म्यूजिक बजाया जाता है, डांस पार्टी होती है, प्ले कम्प्टीशन करवाए जाते हैं और कई प्रकार के व्यंजनों की भी व्यवस्था होती है।
अमरीका का ‘मेडफो’, ‘हैलोइन’ व ‘होबो’
अमरीका में ‘मेडफो’ नामक त्यौहार मनाने के लिए लोग नदी के किनारे एकत्र होते हैं और गोबर तथा कीचड़ से बने गोलों से एक-दूसरे पर आक्रमण करते हैं। अमेरिका में होली जैसा ही एक और मस्ती भरा त्यौहार मनाया जाता है, जिसका नाम है होबो। इस अवसर पर लोग मस्ती में झूमते हुए पागलों-सा व्यवहार करते हैं। जो सबसे ज्यादा बेहूदगी करता है, उसे विजेता मान कर ताज पहनाया जाता है। इस अवसर पर लोग अजब-गजब पोशाकें पहन कर आते हैं। चेहरे पर इस तरह रंग पोता जाता है कि घर वाले भी पहचान नहीं पाते। 31 अक्तूबर को रंगों का त्यौहार ‘हैलोइन’ मनाया जाता है। बच्चे और बड़े भूतहा वेशभूषा में नजर आते हैं तथा हर ओर दिखती है हाहाकारी भूतहा सजावट।
स्पेन का ‘ला टोमेटिना’
स्पेन में भी लाखों टन टमाटर एक-दूसरे को मार कर होली खेली जाती है। वेलेंसियन के कस्बे बुनोल में 1940 से यह त्यौहार हर साल अगस्त के अंतिम बुधवार को मनाया जाता है। कई ट्रक यहां टमाटर फैंकते हैं और फिर शुरू होता है टमाटर उत्सव। इस दौरान लोग खूब नाचते-गाते हैं। लोग घरों की छतों से पानी फैंकते हैं। इस त्यौहार को मनाने के कुछ नियम भी हैं-टमाटर से किसी को चोट न लगे इसलिए टमाटर को फैंकने से पहले मसलना या कुचलना जरूरी है। आप टमाटर के अलावा कुछ और नहीं फैंक सकते। आप अपनी शर्ट नहीं उतार सकते यानी कपड़ों समेत ही आपको टमाटरों की लड़ाई का मकाा लेना है। उत्सव खत्म होने के बाद आप टमाटर नहीं उछाल सकते। आपके हाथ में पकड़ा हुआ टमाटर भी आपको फैंकना पड़ता है।
थाईलैंड का ‘सॉनाक्रन’
थाईलैंड में हर साल 13 अप्रैल को ‘सॉनाक्रन’ मनाया जाता है। यह उत्सव तीन दिन तक चलता है। ‘सॉनाक्रन’ का मतलब स्थान बदलना होता है। दरअसल इसी दिन सूर्य अपनी स्थिति बदलता है। यह वाटर फैस्टिवल भी कहलाता है, क्योंकि यहां मान्यता है कि पानी बैड लक को धो देता है। इस दिन परिवार के सभी लोग एक जगह इकट्ठे होते हैं। माता-पिता व घर के बुजुर्गों के हाथों पर सुगंधित पानी छिड़का जाता है और उन्हें उपहार और नए वस्त्र दिए जाते हैं। बड़े-बुजुर्ग छोटों को आशीर्वाद देते हैं। दोपहर में लोग मठ में भगवान बुद्ध की मूॢत को स्नान करवाते हैं, भिक्षुओं को दान देते हैं और फिर सभी एक-दूसरे पर सुगंधित पानी फैंक कर खुशियां मनाते हैं। परस्पर हंसी-मजाक, चुहलबाजियां इस त्यौहार को एकदम होली की भांति संवार देती हैं।
घाना का ‘होमोवो’
अफ्रीकी देश घाना में होली की तरह होमोवो का त्यौहार मनाया जाता है। अन्यायी राजा को लोगों ने जिंदा जला डाला था। इस दिन उसका पुतला जला कर ड्रम की तेज आवाज पर रात में लोग खूब नाचते-गाते हैं। घाना की महत्वपूर्ण फसल शकरकंद और उबले अंडों से एक खास डिश तैयार की जाती है, जिसे लोग बड़े चाव से खाते हैं। इस दिन गांव के मुखिया से आशीर्वाद लिया जाता है। लोग चमकीले रंग का खास परिधान भी पहनते हैं। अफ्रीकी महाद्वीप के कुछ देशों में ‘ओमेना बोंगा’ नाम से उत्सव मनाया जाता है। इसमें हमारे देश की होली के समान ही एक जंगली देवता को जलाया जाता है। इस देवता को ‘प्रिन बोंगा’ कहते हैं। इसे जला कर नाच-गाकर नई फसल के स्वागत में खुशियां मनाई जाती हैं।
चीन में ‘मून फैस्टिवल’
चाइनीज कैलेंडर के अनुसार, आठवें महीने के 15वें दिन चीन में मून फैस्टिवल मनाया जाता है। चावल और गेहूं की अच्छी फसल होने की खुशी में यह त्यौहार मनाया जाता है। इस समय पूरा चंद्रमा दिखाई देता है। चीनी किंवदंती के अनुसार इस दिन चंद्रमा का जन्मदिन होता है। कथा के अनुसार चांग ओ नामक महिला उड़कर चंद्रमा तक पहुंच गई थी। वह आज भी वहीं है और पूरे चांद में दिखाई देती है। माना जाता है कि मून फैस्टिवल के दौरान आप उसे चंद्रमा पर नाचते हुए देख सकते हैं। इस दिन लोग पूरे परिवार के साथ फुल मून देखते हैं, जो अच्छे भाग्य और मधुर संबंधों का प्रतीक माना जाता है। परिवार के सभी लोग मिलकर केक खाते हैं और चंद्रमा की कविताएं सुनाते हैं।
पोलैंड का आर्सिना
पोलैंड के लोग होली की तरह आर्सिना नामक त्योहार मनाते हैं। इसमें लोग टोलियां बनाकर एक-दूसरे पर रंग और गुलाल मलते हैं और गले मिलते हैं। ये रंग फूलों से निर्मित होने के कारण काफी सुगंधित होता है। पुरानी दुश्मनी भुलाकर नए सिरे से दोस्ती स्थापित करने के लिए यह त्योहार मनाया जाता है।
पोलैंड के लोग होली की तरह आर्सिना नामक त्योहार मनाते हैं। इसमें लोग टोलियां बनाकर एक-दूसरे पर रंग और गुलाल मलते हैं और गले मिलते हैं। ये रंग फूलों से निर्मित होने के कारण काफी सुगंधित होता है। पुरानी दुश्मनी भुलाकर नए सिरे से दोस्ती स्थापित करने के लिए यह त्योहार मनाया जाता है।
चेकोस्लोवाकिया का बलिया कनौसे
चेकोस्लोवाकिया में ‘बलिया कनौसे’ नाम से एक त्योहार बिल्कुल की ही होली तरह मनाया जाता है। इस अवसर पर लोग एक-दूसरे पर रंग डालते है और नाचते-गाते हुए खुशियां मनाते हैं।
इटली का बेलियाकोनोन्स
अन्न की देवी को खुश करने और खेती की उन्नति के लिए इटली के लोग होली की ही तरह बेलियाकोनोन्स नामक त्योहार मनाते हैं। लोग शाम को ऊंचे स्थान पर लकडिय़ां जलाते हैं, अग्नि के आगे नाचते-गाते हैं और खुशियां मनाते हैं। इस अवसर पर आतिशबाजी भी की जाती है। यह उत्सव माह अप्रैल में पूरे सात दिनों तक मनाया जाता है। इस दिन छोटे-बड़े सभी एक-दूसरे पर सुगंधित जल छिड़कते हैं, एक दूसरे को गुलाल भी लगाते हैं और घास केबने आभूषण भेंट करते हैं।
अन्न की देवी को खुश करने और खेती की उन्नति के लिए इटली के लोग होली की ही तरह बेलियाकोनोन्स नामक त्योहार मनाते हैं। लोग शाम को ऊंचे स्थान पर लकडिय़ां जलाते हैं, अग्नि के आगे नाचते-गाते हैं और खुशियां मनाते हैं। इस अवसर पर आतिशबाजी भी की जाती है। यह उत्सव माह अप्रैल में पूरे सात दिनों तक मनाया जाता है। इस दिन छोटे-बड़े सभी एक-दूसरे पर सुगंधित जल छिड़कते हैं, एक दूसरे को गुलाल भी लगाते हैं और घास केबने आभूषण भेंट करते हैं।
यूनान का मेपोल
यूनान में मेपोल नामक त्योहार में एक खंभा गाड़कर उसके आसपास लकडिय़ां रख दी जाती हैं और उसमें आग लगा दी जाती है। लोग अपने देवता डायनोसिस की पूजा करते हैं और झूम-झूमकर नाचते-गाते हैं।
मिस्र का फालिका
मिस्र में भी होली की तरह ही नई फसल के स्वागत में खुशियां मनाई जाती हैं। इस त्योहार का नाम ‘फालिका’ है। इस अवसर पर पारस्परिक हंसी-मजाक के अलावा आकर्षक नृत्य एवं नाटक भी खेले जाते हैं।
यूनान में मेपोल नामक त्योहार में एक खंभा गाड़कर उसके आसपास लकडिय़ां रख दी जाती हैं और उसमें आग लगा दी जाती है। लोग अपने देवता डायनोसिस की पूजा करते हैं और झूम-झूमकर नाचते-गाते हैं।
मिस्र का फालिका
मिस्र में भी होली की तरह ही नई फसल के स्वागत में खुशियां मनाई जाती हैं। इस त्योहार का नाम ‘फालिका’ है। इस अवसर पर पारस्परिक हंसी-मजाक के अलावा आकर्षक नृत्य एवं नाटक भी खेले जाते हैं।
बर्मा का तिजान
अपने पड़ोसी देश बर्मा यानी म्यांमार मे इस त्योहार को ‘तिजान’ नाम से जाना जाता है। यह चार दिन तक मनाया जाता है। यहां भी भारतीय होली की ही तरह पानी के बड़े-बड़े ड्रम भर लिए जाते है और उसमें रंग तथा सुगंध घोलकर एक-दूसरे पर डालते है।
अपने पड़ोसी देश बर्मा यानी म्यांमार मे इस त्योहार को ‘तिजान’ नाम से जाना जाता है। यह चार दिन तक मनाया जाता है। यहां भी भारतीय होली की ही तरह पानी के बड़े-बड़े ड्रम भर लिए जाते है और उसमें रंग तथा सुगंध घोलकर एक-दूसरे पर डालते है।
कोरिया का चू सुक
कोरिया में नई फसल को सैलिब्रेट करने के लिए चू सुक मनाया जाता है। यह आठवें महीने के 15वें दिन मनाया जाता है। इस दिन लोग एक-दूसरे को मुबारकबाद देने के लिए विशेष भोज का आयोजन करते हैं। जिसमें परिजनों को चावल, तिल और अखरोट से बना केक परोसा जाता है। औरतें घेरा बनाकर नाचती-गाती हैं।
कोरिया में नई फसल को सैलिब्रेट करने के लिए चू सुक मनाया जाता है। यह आठवें महीने के 15वें दिन मनाया जाता है। इस दिन लोग एक-दूसरे को मुबारकबाद देने के लिए विशेष भोज का आयोजन करते हैं। जिसमें परिजनों को चावल, तिल और अखरोट से बना केक परोसा जाता है। औरतें घेरा बनाकर नाचती-गाती हैं।
कैरिबियाई देशों में फगुआ
कैरिबियाई देशों में बड़ी धूमधाम और मौज-मस्ती के साथ होली का त्योहार मनाया जाता है। यहां होली को फगुआ के नाम से जाना जाता है और लोग परंपरागत तरीके से इसे मनाते हैं। 19वीं सदी के अंत में और 20वीं सदी के शुरू में बड़ी संख्या में भारतीय लोग मजदूरी करने के लिए कैरिबियाई देशों (गुआना, सूरीनाम व ट्रिनीडाड) में जा बसे। भारतीयों के साथ उनके त्योहार और रस्मों-रिवाज भी इन देशों में पहुंचे। धीरे-धीरे फगुआ गुआना और सूरीनाम के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में एक हो गया। गुआना में होली के दिन राष्ट्रीय अवकाश रहता है। इस देश की कुल आबादी में हिंदू करीब 33 फीसदी हैं। यहाँ लोग रंगीन पाउडर और पानी के साथ होली खेलते हैं। गुआना में इस अवसर पर विशेष समारोहों का आयोजन किया जाता है। नृत्य, संगीत और सांस्कृतिक उत्सवों के जरिए फगुआ मनाया जाता है। ट्रिनीडाड एंड टोबैगो में होली का उत्सव लगभग भारत जैसा ही मनाया जाता है। विदेशी विश्वविद्यालयों में भी होली का आयोजन होता रहा है।
कैरिबियाई देशों में बड़ी धूमधाम और मौज-मस्ती के साथ होली का त्योहार मनाया जाता है। यहां होली को फगुआ के नाम से जाना जाता है और लोग परंपरागत तरीके से इसे मनाते हैं। 19वीं सदी के अंत में और 20वीं सदी के शुरू में बड़ी संख्या में भारतीय लोग मजदूरी करने के लिए कैरिबियाई देशों (गुआना, सूरीनाम व ट्रिनीडाड) में जा बसे। भारतीयों के साथ उनके त्योहार और रस्मों-रिवाज भी इन देशों में पहुंचे। धीरे-धीरे फगुआ गुआना और सूरीनाम के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में एक हो गया। गुआना में होली के दिन राष्ट्रीय अवकाश रहता है। इस देश की कुल आबादी में हिंदू करीब 33 फीसदी हैं। यहाँ लोग रंगीन पाउडर और पानी के साथ होली खेलते हैं। गुआना में इस अवसर पर विशेष समारोहों का आयोजन किया जाता है। नृत्य, संगीत और सांस्कृतिक उत्सवों के जरिए फगुआ मनाया जाता है। ट्रिनीडाड एंड टोबैगो में होली का उत्सव लगभग भारत जैसा ही मनाया जाता है। विदेशी विश्वविद्यालयों में भी होली का आयोजन होता रहा है।
अन्य देशों में होली
सूर्योदय के देश जापान में भी होली के रंगों की छटा देखते ही बनती है। नई फसल के स्वागत में यह त्योहार मनाया जाता है। मार्च के महीने में मनाए जाने वाले इस त्योहार में यहां के निवासी उत्साह से भाग लेते हैं और अपने नाच-गाने एवं आमोद-प्रमोद से वातावरण को खुशनुमा और मादक बना देते हैं। श्रीलंका में तो होली का त्योहार बिल्कुल अपने देश की तरह ही मनाया जाता है। आपसी मित्रता एवं हंसी-खुशी का यह त्योहार श्रीलंका मे अपनी गरिमा बनाए हुए है। यहां भी रंग-गुलाल और पिचकारियां सजती हैं। हवा में अबीर उडता है। लोग गिले-शिकवे भूलकर एक-दूसरे के गले मिलते हैं। जर्मनी में रैनलैंड नामक स्थान पर होली जैसा त्योहार पूरे सात दिन तक मनाया जाता है। इस अवसर पर यहां के निवासी ऊटपटांग पोषाक पहनते हैं और अटपटा सा व्यवहार करते हैं और एक दूसरे का मजाक उड़ाते हैं। मजाक और मस्ती में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई व्यक्ति छोटा है या बड़ा और न ही कोई इसे बुरा मानता है। बैल्जियम में भी होली जैसा त्योहार मनाए जाने का रिवाज है। लोग इसे मूर्ख दिवस के रूप में मनाते हैं। इस अवसर पर पुराने जूतों की होली जलाई जाती है और लोग आपस में हंसी-मजाक करते हैं। इस अवसर पर जुलूस भी निकालते हैं। जो व्यक्ति इस जुलूस में शामिल नहीं होता उसे गधा बनाकर उसका मुंह रंग दिया जाता है। साईबेरिया में घास-फूस और लकड़ी से होलिका दहन जैसी परिपाटी देखने में आती है। नार्वे और स्वीडन में सेंट जान का पवित्र दिन होली की तरह से मनाया जाता है। शाम को किसी पहाड़ी पर होलिका दहन की भांति लकड़ी जलाई जाती है और लोग आग के चारों ओर नाचते गाते परिक्रमा करते हैं। इंग्लैंड में मार्च के अंतिम दिनों में लोग अपने मित्रों और संबंधियों को रंग भेंट करते हैं ताकि उनके जीवन में रंगों की बहार आए।
सूर्योदय के देश जापान में भी होली के रंगों की छटा देखते ही बनती है। नई फसल के स्वागत में यह त्योहार मनाया जाता है। मार्च के महीने में मनाए जाने वाले इस त्योहार में यहां के निवासी उत्साह से भाग लेते हैं और अपने नाच-गाने एवं आमोद-प्रमोद से वातावरण को खुशनुमा और मादक बना देते हैं। श्रीलंका में तो होली का त्योहार बिल्कुल अपने देश की तरह ही मनाया जाता है। आपसी मित्रता एवं हंसी-खुशी का यह त्योहार श्रीलंका मे अपनी गरिमा बनाए हुए है। यहां भी रंग-गुलाल और पिचकारियां सजती हैं। हवा में अबीर उडता है। लोग गिले-शिकवे भूलकर एक-दूसरे के गले मिलते हैं। जर्मनी में रैनलैंड नामक स्थान पर होली जैसा त्योहार पूरे सात दिन तक मनाया जाता है। इस अवसर पर यहां के निवासी ऊटपटांग पोषाक पहनते हैं और अटपटा सा व्यवहार करते हैं और एक दूसरे का मजाक उड़ाते हैं। मजाक और मस्ती में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई व्यक्ति छोटा है या बड़ा और न ही कोई इसे बुरा मानता है। बैल्जियम में भी होली जैसा त्योहार मनाए जाने का रिवाज है। लोग इसे मूर्ख दिवस के रूप में मनाते हैं। इस अवसर पर पुराने जूतों की होली जलाई जाती है और लोग आपस में हंसी-मजाक करते हैं। इस अवसर पर जुलूस भी निकालते हैं। जो व्यक्ति इस जुलूस में शामिल नहीं होता उसे गधा बनाकर उसका मुंह रंग दिया जाता है। साईबेरिया में घास-फूस और लकड़ी से होलिका दहन जैसी परिपाटी देखने में आती है। नार्वे और स्वीडन में सेंट जान का पवित्र दिन होली की तरह से मनाया जाता है। शाम को किसी पहाड़ी पर होलिका दहन की भांति लकड़ी जलाई जाती है और लोग आग के चारों ओर नाचते गाते परिक्रमा करते हैं। इंग्लैंड में मार्च के अंतिम दिनों में लोग अपने मित्रों और संबंधियों को रंग भेंट करते हैं ताकि उनके जीवन में रंगों की बहार आए।