Friday, December 27, 2013

जुदा होकर भी ना भूले, यह दोस्ती की जीत है

जुदा होकर भी ना भूले, यह दोस्ती की जीत है

दोस्ती सच्ची प्रीत है; जुदाई जिसकी रीत है; जुदा होकर भी ना भूले; यह दोस्ती की जीत है। इस बात को गूगल की भारत-पाक विभाजन के दौरान बिछड़े दो दोस्तों की कहानी पर आधारित ऑनलाइन पोस्ट ने साबित कर दिया है। यह विभाजन सिर्फ दो मुल्कों की सीमा का ही नहीं था, बल्कि यह वहां रहने वाले लोगों की भावनाओं का भी था। 


इस पोस्ट में दिखाया गया है कि बचपन के दो दोस्त जो कि रोजाना शाम को बाग में पतंग उड़ाते थे और फिर झझरिया चुरा कर खाते थे, एक दिन अचानक बंटवारे के चलते जुदा हो गए। एक भारत आ गया तो दूसरे को पाकिस्तान में ही रहना पड़। कई साल बीत जाने पर भी बचपन की वो यादें आज भी उन्हें वैसे ही गुदगुदाती हैं। बचपन के दोस्त की तस्वीर देखकर बूढ़ी आंखों में एक चमक आ जाती है, जैसे दोस्त को मिलने, उसे देखने की हसरत हो इन आंखों में।

मुंबई से आई अपनी पोती को अपने बचपन के दोस्त युसूफ के किस्से ऐसे सुनाते हैं, जैसे कोई बुजुर्ग सालों का सहेजा अपना खजाना अपने बच्चों को सौंपता है। दोस्त के लिए दादा की खुशी को देखते हुए वह पोती कैसे गूगल की मदद से उनके बचपन के दोस्त से उनकी मुलाकात करवाती है, यह इस विज्ञापन के माध्यम से बेहद भावुक ढंग से फिल्माया गया है।

विभाजन का दर्द कितना भयानक था यह वो ही शख्स जान सकता है जिसने इसे सहा है, जिसे इस बंटवारे में अपना घर बार छोड़ना पड़ा, अपने बचपन के दोस्तों से अलग होना पड़ा, लेकिन इस दर्द को तीन मिनट की फिल्म में इतने भावुक अंदाज में फिल्माया गया है कि देखने वालों की आंखों से भी आंसू बहने लगते हैं। जो शायद बरसों से बिछुड़े दो दोस्तों के मिलने की खुशी में होते हैं या फिर उस प्यार के लिए निकलते हैं जो बरसों बाद आज भी उनके दिलों में वैसे ही जिंदा है, या जिस दोस्ती के लिए जिसे दो मुल्कों की सीमाएं बांध नहीं सकीं, जिसे दो मुल्कों का बंटवारा बांट नहीं सका।

शनिवार को क्यों की जाती है पीपल की पूजा

शनिवार को क्यों की जाती है पीपल की पूजा?

शनिवार को पीपल पर जल व तेल चढ़ाना, दीप जलाना, पूजा करना या परिक्रमा करना अति शुभ होता है। इससे ईश्वर जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं और भक्त की इच्छापूर्ति करते हैं। इस मान्यता के पीछे एक पौराणिक कथा है।

समुद्र मंथन के वक्त लक्ष्मी जी से पहले उनकी बडी बहन अलक्ष्मी (ज्येष्ठा या दरिद्रा) का आगमन हुआ। लक्ष्मी जी ने श्री विष्णु से विवाह कर लिया। अलक्ष्मी जी लक्ष्मी जी से नाराज हो गई। उनको मनाने के लिए श्री विष्णु ने अलक्ष्मी को अपने प्रिय वृक्ष पीपल में रहने को कहा और उनको वचन दिया कि," मैं और लक्ष्मी जी प्रत्येक शनिवार तुमसे मिलने पीपल वृक्ष पर आया करेंगे।"

शनिवार को श्री विष्णु और लक्ष्मी जी पीपल वृक्ष के तने में निवास करते हैं इसलिए शनिवार को पीपल वृक्ष की पूजा, दीपदान, जल व तेल चढाने और परिक्रमा लगाने से पुण्य की प्राप्त होती है और लक्ष्मी नारायण भगवान व शनिदेव की प्रसन्नता होती है जिससे कष्ट कम होते हैं और धन-धान्य की वृद्धि होती है।

ऐसे करें शनिदेव को प्रसन्न

ऐसे करें शनिदेव को प्रसन्न


पौराणिक मान्यता है कि शनिदेव का जन्म अमावस्या तिथि की ही शुभ घड़ी में हुआ था। इसलिए हिन्दू पंचांग के हर माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर शनि भक्ति बड़ी संकटमोचक होती है। खासतौर पर उन लोगों के लिए जो शनि ढैय्या, साढ़े साती, महादशा या कुण्डली में बने शनि के बुरे असर दु:ख, दारिद्र, कष्ट, संताप, संकट से जूझ रहे हों।  शनि का शुभ प्रभाव अध्यात्म, राजनीति और कानून संबंधी विषयों में दक्ष बनाता है।

शास्त्रों पर गौर करें तो शनिदेव का चरित्र मात्र क्रूर या पीड़ादायी ही नहीं, बल्कि मुकद्दर संवारने वाले देवता के रूप में भी प्रकट होता है। शनिदेव कर्म व फल के स्वामी हैं। हिंदू धर्म ग्रंथों में शनिदेव को न्यायाधीश कहा गया है अर्थात अच्छे कर्म करने वाले को अच्छा तथा बुरे कर्म करने वाले को इसका दंड देने के लिए शनिदेव सदैव तत्पर रहते हैं। इसका निर्णय भी शनिदेव अन्य सभी देवों से जल्दी व त्वरित गति से करते हैं। यही कारण है कि गलत काम करने से लोग शनिदेव से डरते हैं।

कहते हैं शनि की कृपा राजा को रंक और रंक को राजा बना सकती है। लेकिन शनि देव इंसान के कर्मों के अनुसार ही फल देते हैं। शनि की अनुकंपा पानी हो तो अपना कर्म सुधारें, आपका जीवन अपने आप सुधर जायेगा। शनिदेव दुखदायक नहीं, सुखदायक हैं। अच्छा करने वालों की सुरक्षा भी शनिदेव करते हैं। शनिदेव का व्रत एवं पूजन करने से वह प्रसन्न हो जाते हैं। शनि देव की प्रसन्नता के बाद व्यक्ति को परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है और शनि की दशा के समय उनके भक्तों को कष्ट की अनुभूति नहीं होती है।

  • शनि मन्त्र ॐ शनैश्वराय नम का जाप करें।

  • शनिवार को पीपल पर जल व तेल चढ़ाना, दीप जलाना, पूजा करना या परिक्रमा करना अति शुभ होता है। इससे शनिदेव जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं और भक्त की इच्छापूर्ति करते हैं।

  • प्रत्येक शनिवार को हनुमान चालीसा का पाठ करने तथा शनिदेव के दर्शन कर तेल चढ़ाने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं।

  • शनिदेव को शांत करने के लिए दान का विधान है। शनि की प्रसन्नता के लिए काले रंग की वस्तुएं जैसे काला कपड़ा, काले तिल,  काली उड़द, लोहा, काले वस्त्र, काले कंबल, छाता का दान या चढ़ावा शुभ होता है।

  • शनिवार को अखंड नारियल नदी में प्रवाहित करने से शांति मिलती है। 

  • शनिदेव के मंदिर के बाहर पुराने जूते और वस्त्रों का त्याग करना भी फायदा देता है।

  • तेल से बने परांठे पर कोई मीठा पदार्थ रखकर गाय के बछड़े को खिलाएं। यह छोटा और बहुत ही कारगर उपाय है। 

  • किसी कुत्ते को तेल चुपड़ी हुई रोटी खिलाएं। कुत्ता शनिदेव का वाहन है और जो लोग कुत्ते को खाना खिलाते हैं उनसे शनि अति प्रसन्न होते हैं।

  • काली चींटियों को गु़ड़ एवं आटा खिलाएं।

  • शनिवार या शनिश्चरी अमावस्या के दिन सूर्यास्त के समय जो भोजन बने उसे पत्तल में लेकर उस पर काले तिल डालकर पीपल की पूजा करें और नैवेद्य लगाएं। यह भोजन काली गाय या काले कुत्ते को खिला दें।

  • काले रंग का वस्त्र धारण करें।

  • शनिदेव का व्रत रखने से भी शनि प्रसन्न होते हैं। अगर व्रत न कर सकें तो मांसाहार व मदिरापान नहीं करना चाहिए और संयमपूर्वक प्रभु स्मरण करना चाहिए।

  • शनि को अनुकूल करने के लिये नीलम रत्न धारण करना प्रभावी माना गया है।

  • काले घोड़े की नाल का छल्ला मध्यमा अंगुली में धारण करें।

Tuesday, December 24, 2013

सांता आया, खुशियां लाया

सांता आया, खुशियां लाया


सांता क्लॉज़ क्रिसमस से जुड़ा एक लोकप्रिय पौराणिक परंतु कल्पित पात्र हैं। सांता क्लॉज़ को सेंट निकोलस , फादर क्रिसमस, क्रिस क्रिंगल, और "सांता" के नाम से जाना जाता है। सांता क्लॉज़ को आम तौर पर एक मोटे, हंसमुख सफ़ेद दाढ़ी वाले आदमी के रूप में चित्रित किया जाता है, जो सफ़ेद कॉलर और कफ़ वाला लाल कोट पहनता है, इसके साथ वह चमड़े की काली बेल्ट और बूट पहनता है। माना जाता है कि फादर क्रिसमस का पात्र ब्रिटेन में 17 वीं शताब्दी में लोकप्रिय था। उनकी तस्वीरें उसी समय से मौजूद हैं। इन तस्वीरों में उन्हें एक हंसमुख, दाढ़ी वाले व्यक्ति के रूप में दिखाया गया, जिसने एक लम्बी, हरी, पूरे अस्तर वाली पोशाक पहनी है।

सांता की आधुनिक छवि संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में 19 वीं सदी में लोकप्रिय हुई। इस छवि को लोकप्रिय बनाने में एक अमेरिकी कार्टूनिस्ट थॉमस नास्ट ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1863 में, नास्ट के द्वारा बनायी गयी सांता की एक तस्वीर हार्पर'स वीकली में प्रकाशित की गयी।  नास्ट की तस्वीरों के एक रंगीन संग्रह को 1869 में प्रकाशित किया गया, इसमें जोर्ज पी. वेबस्टर के द्वारा लिखी गयी एक कविता "सांता क्लॉज़ एंड हिस वर्क्स" भी थी। इसमें लिखा गया की सांता क्लॉज़ का घर "उत्तरी ध्रुव के पास, बर्फ में था"। यह कहानी 1870 के दशक तक काफी प्रसिद्ध हो गयी। गानों, रेडियो, टेलिविज़न, बच्चों की किताबों और फिल्मों के माध्यम से इस छवि को बनाये रखा गया है।

सांता क्लॉज़ की छवियां बाद में और अधिक लोकप्रिय हो गयीं जब हेद्दन संदब्लोम ने 1930 में कोका-कोला कम्पनी के क्रिसमस विज्ञापन के लिए उनका चित्रण किया। इस छवि की लोकप्रियता ने कुछ शहरी कथाओं को जन्म दिया कि सांता क्लॉज़ की खोज कोका कोला कंपनी के द्वारा की गयी है या यह कि सांता लाल और सफ़ेद रंग के कपड़े पहनता है क्योंकि इन रंगों का उपयोग कोका कोला ब्रांड को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है। हालांकि लाल और सफ़ेद रंग की पोशाक मूल रूप से थॉमस नास्ट के द्वारा दी गयी थी।

सांता का घर

अक्सर ऐसा कहा जाता है कि फादर क्रिसमस सांता क्लॉज़ फिनलैंड के लोपलैंड प्रान्त में कोरवातुन्तुरी के पहाड़ों में अपनी पत्नी श्रीमती क्लॉज़ के साथ रहते हैं। उनके साथ एक अनिर्दिष्ट परन्तु बड़ी संख्या में कल्पित बौने, और कम से कम आठ या नौ उड़ने वाले रेन्डियर रहते हैं। एक और लोककथा जो गीत "सांता क्लॉज़ इस कमिंग टू टाउन" में प्रचलित है, के अनुसार वह पूरी दुनिया के बच्चों की एक सूची बनाते हैं, उन्हें उनके व्यवहार ("शरारती" और "अच्छे") के अनुसार अलग अलग श्रेणियों में रखते हैं, और क्रिसमस की पूर्व संध्या वाली रात, दुनिया के सभी अच्छे लड़कों और लड़कियों को खिलौने, केंडी, और अन्य उपहार देते हैं, और कभी कभी शरारती बच्चों को कोयला देते हैं। इस काम के लिए वह अपने एक बौने की सहायता लेते हैं जो वर्कशॉप में उनके लिए खिलौने बनाता है।

कौन थे सांता

चर्च के इतिहास और लोक कथाओं से उपहार देने वाले पात्रों विशेष रूप से सेंट निकोलस और सिंटरक्लास के चित्रण को ब्रिटिश पात्र फादर क्रिसमस के साथ मिला दिय गया है, जिससे एक नया पात्र सामने आया है जिसे ब्रिटेन और अमेरिका के लोगों के द्वारा सांता क्लॉज़ के नाम से जाना जाता है। सेंट निकोलस चौथी सदी के एक ग्रीक ईसाई बिशप थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन ईसाई धर्म के लिए समर्पित कर दिया। निकोलस गरीब लोगों को उदार दिल से उपहार देने के लिए प्रसिद्द थे। उनका उद्देश्य था कि क्रिसमस और नववर्ष के दिन गरीब-अमीर सभी प्रसन्न रहें।  उनकी सद्भावना और दयालुता के किस्से लंबे अर्से तक कथा-कहानियों के रूप में चलते रहे। उन्होंने एक पवित्र ईसाई की तीन बेटियों के लिए दहेज़ दिया, ताकि उन्हें वेश्या बनने से रोका जा सके। एक कथा के अनुसार उन्होंने कोंस्टेटाइन प्रथम के स्वप्न में आकर तीन सैनिक अधिकारियों को मृत्यु दंड से बचाया था। सत्रहवीं सदी तक इस दयालु का नाम संत निकोलस के स्थान पर सांता क्लॉज हो गया। यूरोप में (विशेष रूप से नीदरलैंड्स, बेल्जियम, ऑस्ट्रिया और जर्मनी में) उन्हें आज भी ईसाई धर्म की पोशाक में एक दाढ़ी वाले बिशप के रूप में दर्शाया जाता है।

सांता, बच्चे और उपहार

क्रिसमस को अक्सर बच्चों के लिए तोहफे लाने के साथ जोड़ा जाता है। इसलिए बच्चों में इस पर्व को लेकर काफी उत्साह देखा जाता है। सांता क्लॉज़ बच्‍चों को प्‍यार करता है। माना जाता है कि क्रिसमस की रात सफेद रंग की बड़ी-बड़ी दाढ़ी-मूंछों वाले सांता क्लॉज रेंडियर पर चढ़कर किसी बर्फीले जगह से आते हैं यानी क्रिसमस फादर स्वर्ग से उतरकर चिमनियों के रास्ते घरों में प्रवेश करके सभी अच्छे बच्चों के लिए  उपहार छोड़ जाते हैं।

दुनिया भर के बच्चे सांता क्लॉज़ से उपहार पाने की उम्मीद में, उससे जुडी कई रस्में पूरी करते हैं। कुछ रस्में क्रिसमस के कुछ दिन या सप्ताह पहले पूरी की जाती हैं, जबकि कई अन्य रस्मों को क्रिसमस की पूर्व संध्या पर ही पूरा किया जाता है जैसे सांता के लिए विशेष नाश्ता बनाना। कुछ रस्में सदियों पुरानी हैं जैसे मोजा लटकाना, ताकि वह उपहारों से भर जाये। कुछ अन्य रस्में आधुनिक प्रकार की हैं जैसे क्रिसमस की पूर्व संध्या पर रात के आकाश में सांता की गाड़ी का नोराड के द्वारा पता लगाया जाना।

सांता को पत्र

सांता क्लॉज़ के लिए पत्र लिखना कई सालों से बच्चों में क्रिसमस की एक परम्परा रही है। इन पत्रों में बच्चे अक्सर खिलौनों की इच्छा जाहिर करते हैं और अच्छा व्यवहार करने का वादा करते हैं। मैक्सिको और अन्य लैटिन अमेरिकी देशों में, मेल के अलावा बच्चे कभी कभी अपने पत्र को एक छोटे से हीलियम के गुब्बारे में लपेट देते हैं, उसे हवा में छोड़ देते हैं। उन्हें लगता है कि जादू से यह पत्र सांता के पास पहुंच जाएगा। ब्रिटेन में कुछ लोगों में यह परंपरा है कि क्रिसमस के पत्रों को आग में जला दिया जाता है. ऐसा माना जाता है कि ये पत्र जादू से उत्तरी ध्रुव तक पहुंच जायेंगे. हालांकि इस प्रथा को सामान्य पोस्टल सेवा के उपयोग की तुलना में कम प्रभावी पाया गया है, और यह परंपरा आधुनिक समय में समाप्त होती जा रही है।

जीवन की निरंतरता का प्रतीक क्रिसमस ट्री

जीवन की निरंतरता का प्रतीक क्रिसमस ट्री

क्रिसमस के मौके पर क्रिसमस ट्री का विशेष महत्व है। क्रिसमस की पूर्व संध्या पर क्रिसमस ट्री दुल्हन की तरह सजाया जाता है। इस पर बिजली के रंगबिरंगे बल्ब जगमगाते रहते हैं। खूबसूरत फूल भी इसको महकाते हैं। इसे मिठाइयों, केक, रिबन और कलरफुल कागज लगाकर सजाया जाता है। लोग इस सदाबहार पेड़ को जीवन की निरंतरता का प्रतीक मानते हैं। उनका विश्वास है कि क्रिसमस ट्री को घरों में सजाने से बुरी आत्माएं दूर रहती हैं। अमेरिका के अरबपति क्रिसमस ट्री की विशेष सज्जा के लिए कीमती आभूषणों का प्रयोग करते हैं। हीरे-मोती से जड़े  आभूषण इसकी पतली-पतली टहनियों में पिरोए जाते हैं। बाद में इन आभूषणों को गरीबों में बांट दिया जाता है।

मॉडर्न क्रिसमस ट्री को सजाने की परंपरा जर्मनी में शुरू हुई। उस समय एडम और ईव के नाटक में स्टेज पर फर के पेड़ लगाए जाते थे। इस पर सेब लटके होते थे और स्टेज पर एक पिरामिड भी रखा जाता था। इस पिरामिड को हरे पत्तों और मबत्तियों से सजाया जाता था और सबसे ऊपर एक सितारा लगाया जाता था। बाद में 16वीं शताब्दी में फर का पेड़ और पिरामिड एक हो गए और इसका नाम हो गया क्रिसमस ट्री। उसके बाद जर्मनी के लोगों ने 24 दिसंबर को फर के पेड़ से अपने घर की सजावट करनी शुरू कर दी।

क्रिसमस ट्री को घर-घर पहुंचाने में मार्टिन लूथर का भी काफी हाथ रहा। कहते हैं कि क्रिसमस के दिन जब लूथर अपने घर लौट रहे थे, तब उन्हें आसमान में टिमटिमाते हुए तारे बहुत खूबसूरत लगे, जो पेड़ों पर लगे होने का आभास दे रहे थे। उन्हें यह दृश्य इतना भाया कि वह पेड़ की डाल तोड़कर घर ले जाए और उसे तारों से सजा दिया।

18वीं शताब्दी तक क्रिसमस ट्री बेहद पॉप्युलर हो चुका था। इंग्लैंड में 1841 में राजकुमार पिंटो एलबर्ट ने विंजर कासल में क्रिसमस ट्री को सजावाया था, जिसे नार्वे की महारीनी ने प्रिंस को उपहार स्वरूप दिया था। उसने पेड़ के ऊपर एक देवता की दोनों भुजाएं फैलाए हुए मूर्ति भी लगवाई, जिसे काफी सराहा गया। क्रिसमस ट्री पर प्रतिमा लगाने की शुरुआत तभी से हुई। 19वीं शताब्दी तक क्रिसमस ट्री उत्तरी अमेरिका तक जा पहुंचा और वहां से कुछ ही दिनों में इसने पूरी दुनिया में अपनी जगह बना ली। 

क्रिसमस ट्री की उत्पत्ति को लेकर कई किवदंतियां हैं। क्रिसमस ट्री की कथा है कि जब महापुरुष ईसा का जन्म हुआ तो उनके माता-पिता को बधाई देने आए देवताओं ने एक सदाबहार फर को सितारों से सजाया। कहा जाता है कि उसी दिन से हर साल सदाबहार फर के पेड़ को 'क्रिसमस ट्री' प्रतीक के रूप में सजाया जाता है। 

क्रिसमस ट्री लगाने की शुरुआत ब्रिटेन के संत बोनीफस ने सातवीं शताब्दी में की। उन्होंने त्रियक परमेश्वर पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा की प्रतीकात्मकता दर्शाने के लिये त्रिकोणीय लकड़ी को लोगों के सामने रखा। यह लकड़ी फर वृक्ष की थी। ऐसा माना जाता है कि संत बोनिफेस इंग्लैंड को छोड़कर जर्मनी चले गए। जहां उनका उद्देश्य जर्मन लोगों को ईसा मसीह का संदेश सुनाना था। इस दौरान उन्होंने पाया कि कुछ लोग ईश्वर को संतुष्ट करने हेतु ओक वृक्ष के नीचे एक छोटे बालक की बलि दे रहे थे। गुस्से में आकर संत बोनिफेस ने वह ओक वृक्ष कट‍वा डाला और उसकी जगह फर का नया पौधा लगवाया, जिसे संत बोनिफेस ने प्रभु यीशु मसीह के जन्म का प्रतीक माना और उनके अनुयायियों ने उस पौधे को मोमबत्तियों से सजाया। तभी से क्रिसमस पर क्रिसमस ट्री सजाने की परंपरा चली आ रही है।

इसके अलावा इससे जुड़ी एक और कहानी मशहूर है, वह यह कि एक बार क्रिसमस पूर्व की संध्या में कड़ाके की ठंड में एक छोटा बालक घूमते हुए खो जाता है। ठंड से बचने के लिए वह आसरे की तलाश करता है, तभी उसको एक झोपड़ी दिखाई देती है। उस झोपड़ी में एक लकड़हारा अपने परिवार के साथ आग ताप रहा होता है। लड़का इस उम्मीद के साथ दरवाजा खटखटाता है कि उसे यहां आसरा मिल जाएगा। लकड़हारा दरवाजा खोलता है और उस बालक को वहां खड़ा पाता है। उस बालक को ठंड में ठिठुरता देख लकड़हारा उसे अंदर बुला लेता है। उसकी बीवी उस बच्चे की सेवा करती है। उसे नहला कर, खाना खिलाकर अपने सबसे छोटे बेटे के साथ उसे सुला देती है। दरअसल, वह बच्चा एक फरिश्ता था। जब सुबह हुई, तो उस लड़के ने जंगल में लगे हुए फर के पेड़ से एक तिनका निकाला और लकड़हारे को दे दिया। बालक ने लकड़हारे से कहा कि वह इसे जमीन में दबा दे। अगले साल क्रिसमस पर इस पेड़ में फल आएंगे। लकड़हारे ने वैसा ही किया। एक साल बाद वह पेड़ पर सोने के सेब और चांदी के अखरोट से भर गया। यह था वो क्रिसमस ट्री, जिसे आज भी हम सभी सजाते हैं।

कहा जाता है, यूरोप में  पहले ‘यूल’ नामक पर्व मनाया जाता था, जो अब बड़ा दिन के उत्सव में घुल मिल गया है। इस त्योहार में पेड़ों को खूब सजाया जाता था। सम्भवत: इसी से क्रिसमस ट्री की प्रथा चल पड़ी।

कुछ लोगों का कहना है कि ईसा पूर्व से ही क्रिसमस ट्री की परम्परा कायम थी। सदाबहार फर वृक्ष के ईसा पूर्व भी पवित्र माना जाता था। मिस्र के लोग शरद ऋतु में सबसे छोटे दिन का त्योहार मनाते थे। इसदिन वे खजूर के पत्ते अपने घरों में लाते थे, जो जीवन का मृत्यु पर विजय का प्रतीक था। रोम के निवासी शनि त्योहार के दिन हरे पेड़ की शाखाओं को हाथ में लेकर ऊपर उठाते थे और त्योहार में शामिल होते थे।

आया खुशियों का त्यौहार ‘क्रिसमस’


आया खुशियों का त्यौहार ‘क्रिसमस’ 

क्रिसमस शब्‍द का जन्‍म क्राईस्‍टेस माइसे अथवा ‘क्राइस्‍टस् मास’ शब्‍द से हुआ है। क्रिसमस या बड़ा दिन प्रभु के पुत्र ईसा मसीह या यीशु के जन्म की खुशी में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है और आमतौर पर इस दिन लगभग पूरी दुनिया में छुट्टी रहती है। यूं तो 25 दिसंबर को यीशु का जन्मदिन होने का कोई तथ्यपूर्ण प्रमाण उपलब्ध नहीं है, लेकिन समूची दुनिया इसी तिथि को यह रोमन पर्व सदियों से मनाती चली आ रही है। ऐसा अनुमान है कि पहला क्रिसमस रोम में 336 ईस्वी में मनाया गया था।

परम्परागत रूप से क्रिसमस 12 दिन तक चलने वाला उत्सव है। प्रभु ईसा मसीह का जन्मदिन संपूर्ण विश्व में 
सभी समुदाय के लोग अपनी-अपनी परंपराओं एवं रीति-रिवाजों के अनुसार श्रद्धा, भक्ति, निष्ठा और उल्लास के साथ एक धर्मनिरपेक्ष, सांस्कृतिक उत्सव के रूप मे मनाते हैं। क्रिसमस की पूर्व संध्या यानि 24 दिसंबर को ही इससे जुड़े समारोह शुरु हो जाते हैं। गिरजाघरों को बिजली की लडिय़ों से आकर्षक ढंग से सजाया जाता है। यहां यीशु के जन्म से संबंधित झांकियां तैयार की जाती हैं। कैरोल (Carols) गाए जाते हैं।

क्रिसमस की पूर्व रात्रि, गि‍‍‍‍रिजाघरों में रात्रिकालीन प्रार्थना सभा की जाती है जो रात के 12 बजे तक चलती है क्योंकि 24 दिसंबर की आधी रात यीशु का जन्म होना माना जाता है। ठीक 12 बजे लोग अपने प्रियजनों को क्रिसमस की बधाइयां देते हैं, खुशियां मनाते हैं और एक-दूसरे को उपहार देते हैं। अगले दिन धूमधाम से त्योहार मनाया जाता है। क्रिसमस की सुबह गि‍‍‍‍रिजाघरों में विशेष प्रार्थना सभा होती है। क्रिसमस के दौरान प्रभु की प्रशंसा में लोग कैरोल गाते हैं। वे प्‍यार व भाई चारे का संदेश देते हुए घर-घर जाते हैं। क्रिसमस का विशेष व्यंजन केक है, केक बिना क्रिसमस अधूरा होता है। भगवान यीशु मसीह के जन्मोत्सव को सेलीब्रेट करने के लिए क्रिसमस केक भी गिरिजाघरों में सजाए जाते हैं।

व्यापक रूप से स्वीकार्य एक ईसाई पौराणिक कथा के अनुसार, प्रभु ने मेरी नामक एक कुंवारी लड़की के पास गैब्रियल नामक देवदूत को भेजा, जिसने मेरी को बताया कि वह प्रभु के पुत्र को जन्म देगी तथा बच्चे का नाम जीसस रखा जाएगा। वह बच्चा बड़ा होकर राजा बनेगा और उसके राज्य की कोई सीमा नहीं होगी।

देवदूत गैब्रियल, एक भक्त जोसफ के पास भी गया और उसे बताया कि मेरी एक बच्चे को जन्म देगी, तथा उसे (जोसफ को) मेरी की देखभाल करनी चाहिए। जिस रात जीसस का जन्म हुआ, उस समय नियमों के अनुसार अपने नाम पंजीकृत कराने के लिए मेरी और जोसफ बेथलेहम जाने के रास्ते में थे। उन्‍होंने एक अस्‍तबल में शरण ली, जहां मैरी ने आधी रात को जीसस को जन्‍म दिया तथा उसे एक नांद में लिटा दिया। इस प्रकार प्रभु के पुत्र जीसस का जन्‍म हुआ।

सच्चाई, ईमानदारी की राह पर चलने और दीन-दुखियों की भलाई की सीख देने वाले ईसा मसीह के विचार उस समय के क्रूर शासक पर नागवार गुजऱे और उसने प्रभु-पुत्र को सूली पर टांगकर हथेलियों में कीलें ठोंक दीं। इस यातना से यीशु के शरीर से प्राण निकल गए, मगर कुछ दिन बाद वह फिर जीवित हो उठे। ईसा के दोबारा ज़िन्दा हो जाने की खुशी में ईस्टर मनाया जाता है।


Friday, December 20, 2013

ऐसा करने से शनि का कोप शांत होता है

ऐसा करने से शनि का कोप शांत होता है

सूर्य पुत्र शनि देव का नाम सुनकर लोग सहम से जाते हैं। शनि की टेढ़ी चाल से किसे डर नहीं लगता, उनके क्रोध से देवता भी थर-थर कांपते हैं, कहते हैं शनि की कृपा राजा को रंक और रंक को राजा बना सकती है। लेकिन  शनि देव इंसान के कर्मों के अनुसार ही फल देते हैं। शनिदेव का व्रत एवं पूजन करने से वह प्रसन्न हो जाते हैं। शनि देव की प्रसन्नता के बाद व्यक्ति को परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है और शनि की दशा के समय उनके भक्तों को कष्ट की अनुभूति नहीं होती है।

* शनिवार के दिन  शनि देव को नीले लाजवंती का फूल, तिल, तेल, गु़ड़ अर्पण करें।

* पीपल में जल दें और पीपल की जड़ पर तिल या सरसों के तेल का दीपक जलाएं।

* शनि मन्त्र ॐ शनैश्वराय नम: का जाप करें।

* काली चींटियों को गु़ड़ एवं आटा खिलाएं।

* किसी कुत्ते को तेल चुपड़ी हुई रोटी खिलाएं। कुत्ता शनिदेव का वाहन है और जो लोग कुत्ते को खाना खिलाते हैं उनसे शनि अति प्रसन्न होते हैं।

* तिल और उड़द से बने पकवान शनिदेव को भोग लगाएं। शनिवार को साबुत उडद किसी भिखारी को दान करें या कौए को खिलाएं।

* काले रंग का वस्त्र धारण करें।

* शनिवार के दिन शनि भगवान का व्रत रखें। शनि चालीसा का पाठ, शनि मंत्रों का जाप एवं हनुमान चालीसा का पाठ करें।

* शनि की शांति के लिए नीलम भी पहन सकते हैं। काले घोड़े की नाल का छल्ला मध्यमा अंगुली में धारण करें।

* शनिवार को शनि ग्रह की वस्तुओं का दान करें, शनि ग्रह की वस्तुएं हैं –काला उड़द,चमड़े का जूता, नमक, सरसों तेल, तेल, नीलम, काले तिल, लोहे से बनी वस्तुएं, काला कपड़ा आदि।

Saturday, December 7, 2013

भाजपा में मतभेद हैं, पर मनभेद नहीं: विनीत जोशी

 भाजपा में मतभेद हैं, पर मनभेद नहीं: विनीत जोशी

भाजपा के नौजवान नेता और पंजाब सरकार के असिस्टेंट मीडिया एडवाइजर विनीत जोशी से आगामी लोकसभा चुनावों में भाजपा अकालीदल गठबंधन की  कारगुजारी, पार्टी में बढ़ती गुटबंदी, शहरियों पर बढ़े टैक्सों, पार्टी में महिलाओं की स्थिति पर मीनाक्षी गांधी ने उनसे बात की...

अगले साल लोकसभा के चुनाव हैं, आपके मुताबिक लोकसभा चुनाव में अकाली-भाजपा गठबंधन की क्या कारगुजारी रहेगी? इन चुनावों में पंजाब में कितनी लोकसभा सीटें हासिल करने में कामयाब रहेंगे?
— हमने विधानसभा चुनावों में भी सभी दांवों को गलत साबित कर दिया था और पूरे बहुमत के साथ दोबारा सरकार बनाई है। इस बार हमें पूरी उम्मीद है कि हम लोकसभा की सभी 13 सीटों पर विजयी रहेंगे। हमने विकास के काफी काम किए हैं, जनता हमें वोट जरूर देगी।

पंजाब की एक ही लोकसभा सीट भाजपा के पास है अमृतसर की... यहां नवजोत सिंह सिद्धु की सुखबीर बादल से नहीं बन रही। ऐसे में शहर के विकास के काम रुके पड़े हैं। शहरी वोटर जो आपका परम्पराग वोकबैंक है, वो आपको वोट क्यों देगा?
— सिद्धु जी की लड़ाई विकास को लेकर नहीं है। उनकी लड़ाई सांसद कोष को लेकर थी। वो भी अब सुलझ चुकी है।

जालंधर में मेयर और सीनियर डिप्टी मेयर में एक साल में पांच छह बार लड़ाई हो गई है और वो भी विकास को लेकर नहीं, आपसी अहम को लेकर. अभी भी वे एक दूसरे से खफा चल रहे हैं ऐसे में शहर का विकास कैसे होगा... सड़कें टूटी पड़ी हैं, जगह जगह कूड़े के ढेर लगे हैं... लोग नाराज हैं आपकी पार्टी से... नेताओं में भी गुटबाजी चल रही है...
— पार्टी में गुटबाजी नहीं है। मतभेद हैं पर मनभेद नहीं हैं। हमारी पार्टी में सभी वर्गों और तबकों के लोग हैं, ऐसे में विचारों की भिन्नता लाज़मी ही है। लेकिन इसके बावजूद सभी लोग मिलकर पार्टी और लोगों के हित के लिए काम कर रहे हैं।

अकाली भाजपा सरकार की कारगुजारी से भाजपा के वोटर बेहद हताश हैं। क्या आप सिर्फ 
नरेंद्र मोदी के नाम पर जीतने की उम्मीद कर रहे हैं?
— मोदी जी का नाम तो है ही, पर साथ ही हमारा काम भी है। पंजाब में हमारे मंत्री और विधायक लगातार लोगों की सेवा में लगे हए हैं। पहले भी वोटर ने हमें हमारे काम के लिए हमें वोट दिए और अब भी उम्मीद है कि वो हमें ही चुनेंगे।

शहरी वोटर को आपने टैक्सों के बोझ के नीचे इस कदर दबा दिया है कि उसका सांस तक ले पाना मुश्किल हो रहा है। प्रॉपर्टी टैक्स से लोग परेशान हैं। शहर में लोगों को मूलभूत सुविधाएं तो मिल नहीं पा रहीं, ऐसे में टैक्सों का लगातार बढ़ता बोझ... आप सरकार में रहकर जिन शहरियों के हितों को अनदेखा कर रहे हैं क्या उनसे वोट पाने की उम्मीद आपको करनी चाहिए?
— हमारा वोटर शहरी भी है और ग्रामीण भी। पंजाब में हम 23 सीटों से चुनाव लड़ते हैं, इनमें से कुछेक सीटें ही ऐसी हैं जहां शहर वोटर ज्यादा है। बाकी पर ग्रामीण वोटर बहुसंख्या में हैं। यह आरोप सही नहीं है कि हम शहरी वोटर की अनदेखी कर रहे हैं। लोगों का पैसा लोगों के ही विकास पर खर्च होगा।

सुखबीर बादल कहते हैं कि पंजाब में बिजली सरप्लस हो जाएगी, पर अभी भी कट्स लगने बंद नहीं हुए हैं... मौजूदा इंडस्ट्री को देने के लिए सरकार के पास बिजली नहीं है, इंडस्ट्री राज्य से बाहर पलायन कर रही है। ऐसे में नई इंडस्ट्री राज्य में कैसे आ पाएगी और इंडस्ट्री की तरक्की के बगैर राज्य की उन्नति कैसे होगी?
— पंजाब में दिसंबर तक बिजली का आपूर्ति बढ़ जाएगी। इस बार गर्मियों में बिजली का कोई कट नहीं लगेगा। उद्योगों को राहत देने के लिए कई उपाय किए गए हैं। इसी के चलते कई बड़े उद्योगिक घराने पंजाब में नए उद्योग लगा रहे हैं। उनके यहां आने से राज्य का राजस्व भी बढ़ेगा और लोगों को रोजगार भी मिलेगा।

स्टील इंडस्ट्री पंजाब सरकार द्वारा पांच फीसदी एंट्री टैक्स लगाए जाने से नाराज है। पड़ोसी राज्य हरियाणा और यूपी में एक फीसदी एंट्री टैक्स है ऐसे में पंजाब की इंडस्ट्री इनके साथ प्रतिस्पर्धा कैसे कर पाएगी? 
— ई ट्रिप या एडवांस टैक्स कोई नया टैक्स नहीं है बल्कि टैक्स प्रणाली को बेहतर बनाने के लिए ये कदम उठाए गए हैं। ई ट्रिप लागू होने के बाद कारोबार में किसी तरह का नुकसान नहीं हो रहा। ई ट्रिप तो आनलाइन व्यवस्था है जिसके तहत व्यापारी ने अपने बेचे गए सामान की जानकारी देनी है। यह आसान है। एडवांस टैक्स, प्रापर्टी टैक्स और प्लाट रेगुलराइजेशन से आने वाली आमदनी से शहरी विकास किया जाएगा।

भाजपा लोकसभा और विधानसभा चुनावों में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण की बात तो करती है, लेकिन कभी भी महिलाओं को संगठन और चुनावों में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया। क्या आपको नहीं लगता कि पंजाब के मौजूदा मंत्रिमंडल में किसी महिला को भी जगह दी जानी चाहिए थी?
— हम चाहते हैं कि महिलाएं राजनीति में आगे आएं। संगठन में हर स्तर पर महिलाओं को पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया जा रहा है। यह सिर्फ भाजपा ही है जिसमें महिलाओं को संगठन में 33 फीसदी सीटें दी गई हैं।

क्या इस बार तीन में से एक सीट पर किसी महिला को टिकट दिया जाएगा? 
— जो भी डिसर्विंग कैंडिडेट होगा, टिकट उसे ही मिलेगी। अगर कोई महिला उम्मीदवार मिल जाए, तो टिकट उसे भी दिया जा सकता है।

क्या आपको नहीं लगता कि आपकी पार्टी के वरिष्ठ नेता महिलाओं को उचित सम्मान नहीं दे पाते। तहलका मामले को ही लें...एक महिला को हक दिलवाने के नाम पर दूसरी महिला के घर के बाहर प्रदर्शन करना और वो भी तब जब उस पर कोई दोष ना हो? 
— विजय जॉली जी कई एनजीओ के साथ जुड़े हैं। उनकी ओर से उन्होंने विरोध दर्ज करवाया है। यह बीजेपी का नज़रिया नहीं है। खुद बीजेपी ने भी इसकी निंदा की है। जॉली जी ने भी अपनी इस हरकत पर माफी मांग ली है। वैसे यह भी सच है कि शोमा चौधरी लगातार बलात्कार कांड में फंसे तरुण तेजपाल को बचाने की कोशिश कर रही हैं।

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