‘भाग मिल्खा भाग’ एक ऐसे नायक की कहानी है जिसे हम भुला चुके थे। इस
फिल्म की स्टार कास्ट भी बहुत बड़ी या प्रसिद्ध नहीं है, जिसे सफलता की
गारंटी माना जाता हो। राकेश ओम प्रकाश मेहरा के अनुसार इसे कई
डिस्ट्रीब्यूटर्स ने अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद वायाकॉम इस वेंचर का
हिस्सा बना और इसे स्पोर्ट किया।वायाकॉम के मार्किटिंग हैड रुद्ररूप
दत्त से जब पूछा गया कि उन्होंने क्या सोचकर
इस प्रोजैक्ट को स्वीकार किया, तो उन्होंने कहा, ‘हम एक ऐसा स्टूडियो हैं जो लकीर से हटकर काम करना पसंद करता है। हम जानते थे कि ‘भाग मिल्खा भाग’ एक बड़ा बदलाव साबित होगी। इसकी स्क्रिप्ट और कंसैप्ट बहुत बढिय़ा थे। इतनी बढिय़ा स्क्रिप्ट लिखने के लिए राकेश और प्रसून्न दोनों बधाई के पात्र हैं। हालांकि यह एक सच्चाई है कि यह कहानी भारत-पाक विभाजन के दौर की है, पर आज की पीढि़ में भी यह पूरी तरह प्रासंगिक है। इन सब बातों ने हमें यह कहानी लेने और इस पर फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया।’
जैसा कि रुद्ररूप दत्ता ने बताया कि ‘भाग मिल्खा भाग’ वाकई एक बड़ी गेम चेंजर साबित हुई है। आलोचकों ने भी इस फिल्म की काफी प्रशंसा की है और साथ ही दर्शकों को भी फरहान अख्तर की शानदार परर्फोमेंस बेहद पसंद आई है। यह फिल्म न सिर्फ एक बहुत बड़ी ब्लॉकबस्टर साबित हुई है, बल्कि देश के कई राज्यों में इसे मनोरंजन कर से मुक्त भी कर दिया गया।
एक एथलीट के कथानक पर आधारित इस बायोपिक में ऐसा क्या खास था कि यह साल की सबसे बेहतरीन फिल्म साबित हुई, इस बारे में पूछने पर स्पाइस पीआर के प्रभात चौधरी बताते हैं, ‘नि:संदेह फिल्म में कुछ बेहद आकर्षक कंटेंट है, कलाकारों की बढिय़ा परर्फोमेंस और पिचिंग तकनीक ने ‘भाग मिल्खा भाग’ की सफलता में बड़ा योगदान डाला है। हमने बॉलीवुड हंगामा में फिल्म की मार्किटिंग प्लानिंग का विश्लेषण किया, जिसके चलते दर्शकों और आलोचकों ने इसे भरपूर समर्थन दिया। हमारी मार्किटिंग टीम के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी एक ऐसे नायक को रिवाइव करना जो पिछले कई दशकों से मीडिया के सामने नहीं आया था। मिल्खा सिंह मार्किटिंग के मकैनिज़्म और पीआर के महत्व को समझते थे, इसलिए ज्यादा परेशानी नहीं हुई। उन्होंने हर कदम पर हमारा साथ दिया।
एक ऐसे दौर में जहां फिल्म के फर्स्ट लुक के लॉन्च के कुछ ही महीनों के भीतर फिल्म रिलीज़ कर दी जाती है, इस फिल्म ने अलग रणनीति अपनाई। इसकी रिलीज़ के तीन साल पहले इसकी घोषणा कर दी गई। सितंबर 2010 में जब चंडीगढ़ में फिल्म की घोषणा हुई, इसकी कोई स्टार कास्ट नहीं थी, न स्टूडियो था और न ही बजट। रुद्ररूप दत्ता कहते हैं, ‘हमने नंवबर 2012 में फिल्म का पहला टीज़र जारी किया। तभी से हमने लोगों के दिमाग में इस फिल्म के लिए उत्सुकता पैदा करनी शुरू कर दी। और जब हम फिल्म को रिलीज़ करने वाले थे, तब हमने मीडिया में एक बहुत बड़ी मुहिम चलाई। जिस तरह गाने बनाए गए, फिल्म के प्रोमोस और पारम्परिक मार्किटिंग में कमर्शियलाइज़ेशन के एलिमेंट्स थे उन्हें आज की जनरेशन बहुत पसंद करती है।’
रणनीति के बारे में बात को आगे बढ़ाते हुए प्रभात कहते हैं, ‘मिल्खा के बारे में सब कुछ बहुत विश्वसनीय था। दर्शकों का विश्वास जीतना बहुत महत्वपूर्ण होता है। बहुत बार देखा गया है कि जब एक फिल्म को प्रोमोट किया जाता है तो दर्शक उसके कंटेट को अस्वीकार कर देते हैं क्योंकि उसमें बहुत कुछ ‘नौटंकी’ होता है और लोग फिल्म पर विश्वास नहीं कर पाते। लेकिन जब मिल्खा की बात हुई तो लोगों ने इसकी विश्वसनीयता के चलते इसे खूब पसंद किया और इसे इतनी बड़ी हिट भी बनाया।’
रुद्ररूप दत्ता कहते हैं, ‘हमने फिल्म के लिए किसी खबर को सनसनीखेज नहीं बनाया और न ही पब्लिसिटी के सस्ते हथकंडे ही अपनाए। लोगों में उत्सुकता बनाए रखने के लिए हम लगातार खबरें बनाते रहे। फिर बात चाहे मिल्खा जी के जूतों की नीलामी की हो। इसके चलते फिल्म लोगों के बीच काफी चर्चित हो गई। पब्लिसिटी को वास्तविक रखने की अनेक कोशिशों के बावजूद ‘भाग मिल्खा भाग’ पाकिस्तान में प्रतिबंध लगने की अफवाह का शिकार हो गई। यह हमारे लिए काफी चिंताजनक था क्योंकि वास्तविकता यह थी कि फिल्म में किसी धर्म या समुदाय का अपमान नहीं किया गया था। रेबेका ब्रीड्स के साथ फरहान के रोमांटिक सींस पर भी कुछ लोगों की भवें तान गईं। हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण था मिल्खा सिंह की मंजूरी।
लगभग सभी बायोपिक विवादों में घिर जाती हैं, लेकिन यहां मिल्खा जी ने फिल्म को विश्वसनीय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके परिवार ने भी इस काम में काफी मदद की। 'बैंडिड क्वीन' भी एक बायोपिक ही थी जो तब बनी जब फूलन देवी जिंदा थी। पर उन्होंने फिल्म को प्रोमोट नहीं किया, बल्कि फिल्ममेकर के साथ उनके मतभेद हो गए। लेकिन मिल्खा सिंह ने खुद सरकारी तौर पर अपनी बोयोपिक की पुष्टि कर दी और उनके बारे में गलत जानकारी देने के लिए दूसरों की तरह हमें अदालत में नहीं घसीटा। इसके चलते वह फिल्म के असली मार्किटिंग हीरो बन गए।
बायोपिक्स को समानांतर सिनेमा की श्रेणी में रखा जाता है, खासकर तब जब इसमें ग्लैमर न हो। इसका एक उदाहरण है ‘पान सिंह तोमर’ जो एक एथलीट बनाम डाकू की जिंदगी पर आधारित फिल्म है। फिर ‘भाग मिल्खा भाग’ को कमर्शियल सक्सैस कैसे मिल गई, इस बाबत पूछने पर दत्ता बताते हैं, ‘इसका मुख्य कारण था दर्शकों को फिल्म पेश करने का तरीका। बायोपिक को समकालीन समाज के अनुरूप बनाना एक बड़ी चुनौती थी। हमारा आइडिया था इसे एक मनोरंजक फिल्म बनाना नाकि एक ऐतिहासिक फिल्म। दृश्यों और संगीत ने भी अपना रोल बखूबी निभाया। सब कुछ समकालीन था, कुछ भी सामयिक नहीं था। यह एक प्रेरणात्मक फिल्म थी नाकि एक स्पोर्ट्स फिल्म। हमारा फोकस इस तथ्य पर ज्यादा था कि सभी मुश्किलों के बावजूद एक आदमी कैसे इतनी सफलता हासिल करता है नाकि एक सफल एथलीट की कहानी को प्रोमोट करना।
हालांकि फिल्म को सभी तरह की कठिनाईयां जैसे, एक भूले हुए लीजेंड को रिवाइव करना, निर्देशक द्वारा फिल्म को बेचने में परेशानियां, लेकिन इन सबके बावजूद यह इस साल की सबसे बड़ी फिल्मों में से एक बन गई है और सौ करोड़ के क्लब में शामिल हो गई है। इसकी अपार सफलता के पीछे जो सबसे बड़ा कारण है वह है इसकी योजनाबद्ध मार्किटिंग रणनीति। फिल्म ने साबित कर दिया कि सच्ची और ईमानदार मार्किटिंग तकनीक बॉलीवुड में सफलता का सबसे बड़ा मंत्र हैं।
http://bollywood.punjabkesari.in/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%97-%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%96%E0%A4%BE-%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%97-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%AB%E0%A4%B2%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%BE/4594/
इस प्रोजैक्ट को स्वीकार किया, तो उन्होंने कहा, ‘हम एक ऐसा स्टूडियो हैं जो लकीर से हटकर काम करना पसंद करता है। हम जानते थे कि ‘भाग मिल्खा भाग’ एक बड़ा बदलाव साबित होगी। इसकी स्क्रिप्ट और कंसैप्ट बहुत बढिय़ा थे। इतनी बढिय़ा स्क्रिप्ट लिखने के लिए राकेश और प्रसून्न दोनों बधाई के पात्र हैं। हालांकि यह एक सच्चाई है कि यह कहानी भारत-पाक विभाजन के दौर की है, पर आज की पीढि़ में भी यह पूरी तरह प्रासंगिक है। इन सब बातों ने हमें यह कहानी लेने और इस पर फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया।’
जैसा कि रुद्ररूप दत्ता ने बताया कि ‘भाग मिल्खा भाग’ वाकई एक बड़ी गेम चेंजर साबित हुई है। आलोचकों ने भी इस फिल्म की काफी प्रशंसा की है और साथ ही दर्शकों को भी फरहान अख्तर की शानदार परर्फोमेंस बेहद पसंद आई है। यह फिल्म न सिर्फ एक बहुत बड़ी ब्लॉकबस्टर साबित हुई है, बल्कि देश के कई राज्यों में इसे मनोरंजन कर से मुक्त भी कर दिया गया।
एक एथलीट के कथानक पर आधारित इस बायोपिक में ऐसा क्या खास था कि यह साल की सबसे बेहतरीन फिल्म साबित हुई, इस बारे में पूछने पर स्पाइस पीआर के प्रभात चौधरी बताते हैं, ‘नि:संदेह फिल्म में कुछ बेहद आकर्षक कंटेंट है, कलाकारों की बढिय़ा परर्फोमेंस और पिचिंग तकनीक ने ‘भाग मिल्खा भाग’ की सफलता में बड़ा योगदान डाला है। हमने बॉलीवुड हंगामा में फिल्म की मार्किटिंग प्लानिंग का विश्लेषण किया, जिसके चलते दर्शकों और आलोचकों ने इसे भरपूर समर्थन दिया। हमारी मार्किटिंग टीम के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी एक ऐसे नायक को रिवाइव करना जो पिछले कई दशकों से मीडिया के सामने नहीं आया था। मिल्खा सिंह मार्किटिंग के मकैनिज़्म और पीआर के महत्व को समझते थे, इसलिए ज्यादा परेशानी नहीं हुई। उन्होंने हर कदम पर हमारा साथ दिया।
एक ऐसे दौर में जहां फिल्म के फर्स्ट लुक के लॉन्च के कुछ ही महीनों के भीतर फिल्म रिलीज़ कर दी जाती है, इस फिल्म ने अलग रणनीति अपनाई। इसकी रिलीज़ के तीन साल पहले इसकी घोषणा कर दी गई। सितंबर 2010 में जब चंडीगढ़ में फिल्म की घोषणा हुई, इसकी कोई स्टार कास्ट नहीं थी, न स्टूडियो था और न ही बजट। रुद्ररूप दत्ता कहते हैं, ‘हमने नंवबर 2012 में फिल्म का पहला टीज़र जारी किया। तभी से हमने लोगों के दिमाग में इस फिल्म के लिए उत्सुकता पैदा करनी शुरू कर दी। और जब हम फिल्म को रिलीज़ करने वाले थे, तब हमने मीडिया में एक बहुत बड़ी मुहिम चलाई। जिस तरह गाने बनाए गए, फिल्म के प्रोमोस और पारम्परिक मार्किटिंग में कमर्शियलाइज़ेशन के एलिमेंट्स थे उन्हें आज की जनरेशन बहुत पसंद करती है।’
रणनीति के बारे में बात को आगे बढ़ाते हुए प्रभात कहते हैं, ‘मिल्खा के बारे में सब कुछ बहुत विश्वसनीय था। दर्शकों का विश्वास जीतना बहुत महत्वपूर्ण होता है। बहुत बार देखा गया है कि जब एक फिल्म को प्रोमोट किया जाता है तो दर्शक उसके कंटेट को अस्वीकार कर देते हैं क्योंकि उसमें बहुत कुछ ‘नौटंकी’ होता है और लोग फिल्म पर विश्वास नहीं कर पाते। लेकिन जब मिल्खा की बात हुई तो लोगों ने इसकी विश्वसनीयता के चलते इसे खूब पसंद किया और इसे इतनी बड़ी हिट भी बनाया।’
रुद्ररूप दत्ता कहते हैं, ‘हमने फिल्म के लिए किसी खबर को सनसनीखेज नहीं बनाया और न ही पब्लिसिटी के सस्ते हथकंडे ही अपनाए। लोगों में उत्सुकता बनाए रखने के लिए हम लगातार खबरें बनाते रहे। फिर बात चाहे मिल्खा जी के जूतों की नीलामी की हो। इसके चलते फिल्म लोगों के बीच काफी चर्चित हो गई। पब्लिसिटी को वास्तविक रखने की अनेक कोशिशों के बावजूद ‘भाग मिल्खा भाग’ पाकिस्तान में प्रतिबंध लगने की अफवाह का शिकार हो गई। यह हमारे लिए काफी चिंताजनक था क्योंकि वास्तविकता यह थी कि फिल्म में किसी धर्म या समुदाय का अपमान नहीं किया गया था। रेबेका ब्रीड्स के साथ फरहान के रोमांटिक सींस पर भी कुछ लोगों की भवें तान गईं। हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण था मिल्खा सिंह की मंजूरी।
लगभग सभी बायोपिक विवादों में घिर जाती हैं, लेकिन यहां मिल्खा जी ने फिल्म को विश्वसनीय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके परिवार ने भी इस काम में काफी मदद की। 'बैंडिड क्वीन' भी एक बायोपिक ही थी जो तब बनी जब फूलन देवी जिंदा थी। पर उन्होंने फिल्म को प्रोमोट नहीं किया, बल्कि फिल्ममेकर के साथ उनके मतभेद हो गए। लेकिन मिल्खा सिंह ने खुद सरकारी तौर पर अपनी बोयोपिक की पुष्टि कर दी और उनके बारे में गलत जानकारी देने के लिए दूसरों की तरह हमें अदालत में नहीं घसीटा। इसके चलते वह फिल्म के असली मार्किटिंग हीरो बन गए।
बायोपिक्स को समानांतर सिनेमा की श्रेणी में रखा जाता है, खासकर तब जब इसमें ग्लैमर न हो। इसका एक उदाहरण है ‘पान सिंह तोमर’ जो एक एथलीट बनाम डाकू की जिंदगी पर आधारित फिल्म है। फिर ‘भाग मिल्खा भाग’ को कमर्शियल सक्सैस कैसे मिल गई, इस बाबत पूछने पर दत्ता बताते हैं, ‘इसका मुख्य कारण था दर्शकों को फिल्म पेश करने का तरीका। बायोपिक को समकालीन समाज के अनुरूप बनाना एक बड़ी चुनौती थी। हमारा आइडिया था इसे एक मनोरंजक फिल्म बनाना नाकि एक ऐतिहासिक फिल्म। दृश्यों और संगीत ने भी अपना रोल बखूबी निभाया। सब कुछ समकालीन था, कुछ भी सामयिक नहीं था। यह एक प्रेरणात्मक फिल्म थी नाकि एक स्पोर्ट्स फिल्म। हमारा फोकस इस तथ्य पर ज्यादा था कि सभी मुश्किलों के बावजूद एक आदमी कैसे इतनी सफलता हासिल करता है नाकि एक सफल एथलीट की कहानी को प्रोमोट करना।
हालांकि फिल्म को सभी तरह की कठिनाईयां जैसे, एक भूले हुए लीजेंड को रिवाइव करना, निर्देशक द्वारा फिल्म को बेचने में परेशानियां, लेकिन इन सबके बावजूद यह इस साल की सबसे बड़ी फिल्मों में से एक बन गई है और सौ करोड़ के क्लब में शामिल हो गई है। इसकी अपार सफलता के पीछे जो सबसे बड़ा कारण है वह है इसकी योजनाबद्ध मार्किटिंग रणनीति। फिल्म ने साबित कर दिया कि सच्ची और ईमानदार मार्किटिंग तकनीक बॉलीवुड में सफलता का सबसे बड़ा मंत्र हैं।
http://bollywood.punjabkesari.in/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%97-%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%96%E0%A4%BE-%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%97-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%AB%E0%A4%B2%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%BE/4594/