थायरॉइड दे सकता है बीमारियों को न्यौता
बदलती जीवनशैली के चलते अब कई लोगों की दिन की शुरुआत चाय की मीठी चुस्की की बजाय एक कड़वी गोली से होने लगी है। हर दसवें परिवार के किसी न किसी सदस्य को इस परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। रोज सुबह उठने ही एक गोली खाना अब उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया है। जिस दिन गोली में चूक हुई, उसी दिन से फिर तबीयत बिगडऩा शुरू हो जाती है...
अगर किसी का वज़न कुछ दिन में तेजी से बढ़ता या घटता जा रहा हो, कभी अचानक से ज्यादा ऊर्जा महसूस होती हो, तो कभी एकदम अवसाद का शिकार हो जाती हों, थकावट महसूस होती हो, काम करने में मन न लगता हो और वह उदास-सा रहता हो, ये सभी बातें बताती हैं कि आपका शरीर थायरॉइड असंतुलन का शिकार है। थायरॉइड को ‘खामोश मर्ज’ यानी साइलेंट डिसीज कहा जाता है क्योंकि इसके शुरुआती लक्षण इतने हल्के होते हैं कि मरीज को पता ही नहीं लगता कि कुछ गड़बड़ है।
क्या होता है थायरॉइड डिस्ऑर्डर
हमारी बॉडी में बहुत-से एंडोक्राइन ग्लैंड्स (अंत: स्रावी ग्रंथियां) होते हैं, जिनका काम हॉर्मोंस बनाना होता है। इनमें से थायरॉइड भी एक है, जोकि गले के बीच वाले हिस्से में स्थित एक छोटी सी ग्रंथि होती है। थायरॉइड से दो तरह के हॉर्मोंस निकलते हैं : टी 3 और टी 4, जो हमारी बॉडी के मेटाबॉलिज्म को रैग्युलेट करते हैं। टी3 10 से 30 माइक्रोग्राम और टी4 60 से 90 माइक्रोग्राम निकलता रहता है। एक तंदुरुस्त आदमी के शरीर में थायरॉइड इन दोनों हॉर्मोंस को सही मात्रा में बनाता है, जब इस ग्रंथि में कोई गड़बड़ी होती है तो इसमें से बहुत अधिक मात्रा में या कुछ कम मात्रा में हार्मोंस निकलने लगते हैं, जिसकी वजह से थायरॉइड की समस्या शुरू होती है। थायरॉइड डिस्ऑर्डर को दो भागों में बांटा जाता है:
1. हाइपोथायरॉइडिज्म: थायरॉइड में जब टी3 और टी4 हॉर्मोन लैवल कम हो जाए तो उसे हाइपोथायरॉइडिज्म कहते है। इसमें टीएसएच बढ़ जाता है।
2. हाइपरथायरॉइडिज्म: थायरॉइड में जब टी3 और टी4 हॉर्मोन लेवल अगर बढ़ जाए तो हाइपरथायरॉइडिज्म कहते है। इसमें टीएसएच घट जाता है।
आम तौर पर लोगों को हाइपोथायरॉइड की समस्या होती है। दवाओं से इसे नियंत्रित किया जा सकता है लेकिन इसका समय रहते पता चलना अत्यंत महत्वपूर्ण है। वरना यह बीमारी खतरनाक हो सकती है।
कैसे होता है थायरॉइड डिस्ऑर्डर
- अधिकतर मामलों में यह खानदानी होता है।
- खाने में आयोडीन के कम या ज्यादा होने से।
- ज्यादा चिंता करने, अव्यवस्थित खानपान और देर रात तक जागने से।
- गले की रेडिएशन थेरेपी से, जो कि ब्लड और गले का कैंसर होने पर दी जाती है।
- अगर पैदाइशी रूप से थायरॉइड ग्लैंड में हॉर्मोन बनने में गड़बड़ी हो या फिर थायरॉइड ग्लैंड हो ही न।
- अगर कोई पहले से ही थायरॉइड का ट्रीटमेंट ले रहा हो और उसे अचानक बंद कर दे।
- टीएसएच की कमी से।
- अगर किसी को हाइपोथैलमिक बीमारी हो। हाइपोथैलमस ब्रेन का ही एक पार्ट होता है, जिसमें किसी भी तरह की बीमारी जैसे ट्यूमर, रेडिएशन आदि होने से हाइपोथैलमिक बीमारी होती है, जिससे हाइपोथायरॉइडिज्म हो जाता है।
- कुछ दवाइयों का साइड इफैक्ट भी थायरॉइड डिस्ऑर्डर का कारण बन सकता है। लंबे समय तक इन दवाइयों को लेने से हॉर्मोंस का लैवल कम-ज्यादा हो जाता है, जिससे थायरॉइड डिस्ऑर्डर हो जाता है।
थायरॉइड डिस्ऑर्डर के लक्षण
- मरीज की कार्यक्षमता कम हो जाती है। हर काम में आलस जैसा लगने लगता है, थकावट जल्दी हो जाती है और कमजोरी आ जाती है।
- रोगी को डिप्रैशन महसूस होता है। वह बात-बात में भावुक हो उठते हैं।
- बालों का झडऩा और हल्का होना।
- चेहरा सूजा हुआ लगना।
- रूखी आवाज, बहुत धीरे-धीरे और वक्त लगाकर बात करना।
- कब्ज की शिकायत, नींद अधिक आना, लो ब्लड प्रैशर होना भी इसके कारण हैं।
- सांस लेने में तकलीफ, दिल की धड़कन कम होना, हाथों में कंपन।
- महिलाओं के पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं। कुछ मामलों में पहले पीरियड्स कम होते हैं, फिर धीरे-धीरे बंद हो जाते हैं। मासिक धर्म के दौरान अधिक खून जाता है। खून के थक्के अधिक आते हैं।
- प्रजनन क्षमता पर फर्क पड़ता है।
- कुछ लोगों में सुनने की शक्ति भी कम हो जाती है।
थायरॉइड डिस्ऑर्डर का निदान
किसी को थायरॉइड डिस्ऑर्डर है या नहीं, इसके लिए यह चैक किया जाता है कि बॉडी में टी3, टी4 और टीएसएच लैवल नॉर्मल है या नहीं। पहले लक्षणों और फिर जांच (थायरॉइड प्रोफाइल टैस्ट) से इसका पता चलता है।
खतरनाक हो सकता है
आम तौर पर लोग थायरॉइड की समस्या को गंभीरता से नहीं लेते, लेकिन इसके कारण शरीर में कोलेस्ट्रॉल और लिपोप्रोटीन का स्तर अनियमित हो जाता है जिससे दिल की बीमारियां, हृदयाघात, अवसाद और आर्थरोस्क्लेरोसिस का खतरा बढ़ जाता है। जिन बच्चों को हाइपोथायरॉइड की समस्या होती है उनका मानसिक विकास बाधित होने की आशंका अधिक होती है क्योंकि थायरॉक्सिन हार्मोन दिमाग के विकास के लिए बहुत जरूरी है।
क्या अपनाएं परहेज
हाइपोथायरॉइड में हारमोन का बहुत कम स्रव होता है जिसकी वजह से रोगी को कमजोरी, सुस्ती, मोटापा, कब्ज, थकावट, भूख न लगना आदि की शिकायत शुरू हो जाती है पर कुछ बातों का ध्यान रखकर आप इस बीमारी से निजात पा सकती हैं।
- मिर्च-मसालेदार, तली-भुनी, डिब्बाबंद चीज, मैदे की बनी चीजें, फास्ट फूड इत्यादि से दूर रहें।
- थायरॉइड के इलाज के लिए दवाएं ले रहे हैं, तो सोयाबीन, शलजम, पत्तागोभी आदि के सेवन से बचना चाहिए। इनमें थायरॉइड हार्मोन के उत्पादन में अवरोध पैदा करने वाले तत्व होते हैं।
- दवा को कभी सॉफ्ट ड्रिंक, चाय, कॉफी या फलों के रस के साथ न लें। दवा सादे पानी से ही लेनी चाहिए।
- मद्यपान, धूम्रपान, गुटका, तंबाकू, चाय, कॉफी, चॉकलेट आदि चीजों को छोड़कर ही इस रोग से स्थाई छुटकारा मिल सकता है।
- गेहूं, चना, सोयाबीन तथा जौ की मिश्रित आटे की रोटी का सेवन करें। इस रोग में बहुत ज्यादा प्रोटीनयुक्त आहार न लें। छिलके वाली दालों का सेवन भी बहुत लाभकारी रहेगा।
- सभी फल (केला छोड़कर), हरी सब्जी और थोड़ी मात्रा में ड्राई फ्रूट को अपने भोजन में शामिल करें। अनाजों का सेवन कम करें।
- अंकुरित अनाज, छाछ, सलाद रोजाना लें। दिन भर कुछ न कुछ खाते रहने की आदत से बचें।
- निठल्ले बैठने रहने की आदत को छोड़ कर काम में व्यस्त रहने की आदत बनाएं।
- इस रोग में तनाव, कंठा व क्रोध को अपने सिर पर लादे नहीं बल्कि इनका सूझबूझ तथा सामान्य बुद्धि से हल निकालें।
- अपनी दिनचर्या में योग को शामिल करें। इस रोग में भस्त्रिका, कपालभाति एवं अग्निसार प्राणायाम काफी कारगर है। इनसे चयापचय गति बढ़ती है तथा सुस्ती, आलस्य तथा थकावट को दूर करने में उपयोगी सिद्ध होता है।
- चिंता, तनाव, भय, असुरक्षा, संवेदनशीलता तथा निराशा आदि जैसे कारण जो इस रोग के लिए प्रमुख उत्तरदायी है, को ध्यान, योगनिद्रा एवं शिथिलीकरण से स्थायी रूप से दूर किया जा सकता है।
ऐसा कर लें
इस साइलेंट डिसीज को छुप-छुप कर शरीर में घर बनाने से रोकने का सबसे बढिय़ा और कारगर उपाय यह है कि जब भी ऐसे लक्षण महसूस हों तो तुरंत डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए और रोग की पुष्टि होने पर हार्मोन संतुलन के यथासंभव उपाय अपनाएं, समयानुसार व्यायाम और परहेज जरूर करें।
गौरतलब है कि मोटापे से पीड़ित अधिकतर रोगियों को मालूम नहीं होता कि बहुत हद तक उनके मोटापे का जिम्मेदार थाइरॉइड हार्मोन डिस्ऑर्डर है। वक्त पर इसका इलाज करा लिया जाए तो मोटापे और कोलेस्ट्रॉल पर नियंत्रण किया जा सकता है और शरीर को बाकी दुष्प्रभावों से भी बचाया जा सकता है।
गौरतलब है कि मोटापे से पीड़ित अधिकतर रोगियों को मालूम नहीं होता कि बहुत हद तक उनके मोटापे का जिम्मेदार थाइरॉइड हार्मोन डिस्ऑर्डर है। वक्त पर इसका इलाज करा लिया जाए तो मोटापे और कोलेस्ट्रॉल पर नियंत्रण किया जा सकता है और शरीर को बाकी दुष्प्रभावों से भी बचाया जा सकता है।
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