Thursday, October 31, 2013

हर रंग की अपनी जुबां

 हर रंग की अपनी जुबां

रंगों का हमारी जिंदगी से बेहद गहरा संबंध है। रंग हमारी विचारधारा व व्यक्तित्व को भी प्रभावित करते हैं। दीवारों के रंग आपके मूड को तय करते हैं। कुछ अपवादों को छोड़कर अकसर हम उन्हीं रंगों की ओर आकर्षित होते हैं, जिन्हें हम अधिक पसंद करते हैं। आजकल लोग कमरों की दीवारों पर दो या दो से अधिक रंगों के लुक को अपना रहे हैं। कमरे की एक दीवार पर ऑरेंज तो दूसरी पर ब्लू और तीसरी अन्य रंगों से पुतवाने के प्रति रुचि ले रहे हैं। यदि दो रंगों का इस्तेमाल किया है तो वे अलग प्रभाव डालते हैं।

याद रखें कमरे में तीन से ज्यादा रंग कभी इस्तेमाल नहीं करने चाहिए वरना उसमें भटकाव का अहसास होगा। रंगों को दो भागों में बांटा जा सकता है। एक होते हैं गहरे और गर्म, दूसरे होते हैं शीतल या हल्के। गरम रंग ऊष्मा प्रदान करते हैं और हल्के रंग शांति। रंगों का गहरा या हल्का होना कमरे या घर के तापमान को भी प्रभावित कर सकता है। घर के आकार और कमरों के स्थान को देखकर रंग पसंद करना जरूरी है। कमरे का समूचा प्रभाव रंग के वजन पर निर्भर करता है।

हल्के रंगों का वजन हल्का होता है, जबकि गहरे रंग बहुत भारी होते हैं यानी गहरे रंग जगह घेरते हैं और हल्के रंग जगह बनाते हैं। हल्के रंग कमरे का आकार बड़ा होने का फील देते हैं जबकि डार्क कलर कमरे का आकार छोटा होने का अहसास कराते हैं। अगर आप चाहती हैं कि कमरा बड़ा दिखाई दे तो इसके लिए हल्के रंग का प्रयोग करें और अगर जगह बहुत बड़ी है उसको छोटा दिखाना है तो गहरे रंगों का प्रयोग करें। छत के लिए रंगों का चयन उसकी ऊंचाई को ध्यान में रख कर करना चाहिए। कमरे की ऊंचाई कम हो तो हल्के रंगों का प्रयोग सही रहता है। कमरे की दीवारें सफेद हैं तो कमरे की छत को दूसरा रंग दिया जा सकता है।

हर रंग कुछ कहता है

जानकार मानते हैं कि हर रंग हर कमरे पर फिट नही बैठता इसीलिए कुछ रंगों को तो बडी सूझबूझ से ही इस्तेमाल करना चाहिए। रंगों का मनोविज्ञान और रंगों की भाषा को यदि हम गहराई से पढऩे की कोशिश करेंगे तो हम पाएंगे कि हर रंग हमसे कुछ कहता है। हरे रंग को शांत, लाल को उत्तेजक और पीले रंग को दिमागी गतिविधियां बढाने वाला माना जाता है।

सफेद: सफेद रंग सुख समृद्धि तथा शांति का प्रतीक है यह मानसिक शांन्ति प्रदान करता है। किचन के लिए यह रंग सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

काला: काला, ग्रे, बादली आदि रंग नकारात्मक प्रभाव छोडते हैं। अत: घर की दिवारों पर इनका प्रयोग यथा संभव कम करना चाहिए।

चटख लाल: लाल को गतिशील, ताकतवर और उत्तेजक रंग माना जाता है। लाल रंग रक्तचाप को बढ़ाने वाला रंग कहा जाता है, जबकि नीले रंग का प्रभाव इससे ठीक उलटा होता है।

नारंगी: यह रंग लाल और पीले रंग के समन्वय से बनता है। यह रंग हमारे मन में भावनाओं और ऊर्जा का संचार करता है। इस रंग के प्रभाव से जगह थोड़ी संकरी लगती है परंतु यह रंग हमारे घर को एक पांरपरिक लुक देता है। दीवारों पर सजा नारंगी रंग आपकी भूख को बढ़ाता है जबकि बैंगनी रंग आपकी भूख कम करता है।

गुलाबी: गुलाबी रंग हमें सुकून देता है तथा परिवारजनों में आत्मीयता बढ़ाता है। बेडरूम के लिए यह रंग बहुत ही अच्छा है। रसोईघर में, ड्राईंग रूम में, डायनिंग रूम और मेकअप रूम में गुलाबी रंग का अधिक प्रयोग करना चाहिए। पीला : यह रंग हमें गर्माहट का अहसास देता है। जिस कमरे में सूर्य की रोशनी कम आती हो, वहां दीवारों पर पीले रंग का प्रयोग करना चाहिए। पीला रंग सुकून व रोशनी देने वाला रंग है। ऑफिस में अक्सर पीला रंग इस्तेमाल किया जाता है ताकि लोगों को ऊर्जा का अहसास हो।

हरा: हरा रंग शांत और संतुलित माना जाता है। नीला : नीला रंग शांति और सुकून का परिचायक है। यह घर में आरामदायक माहौल पैदा करता है। बेड रूम में नीला रंग करवाएं या नीले रंग का बल्व लगाएं। नीला रंग अधिक शांतिमय निद्रा प्रदान करता है। विशेष कर अनिद्रा के रोगी के लिये तो यह वरदान स्वरूप है। यह रंग डिप्रेशन को दूर करने में भी मदद करता है।

बैंगनी: यह रंग धर्म और अध्यात्म का प्रतीक है। इसका हल्का शेड मन में ताजगी जगाता है।

वास्तु के अनुसार कैसा हो रंग?

वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की हर वस्तु हमें पूरी तरह प्रभावित करती है। घर की दीवारों का रंग भी हमारे विचारों और कार्यप्रणाली को प्रभावित करता है। हमारे घर का जैसा रंग होता है, उसी रंग के स्वभाव जैसा हमारा स्वभाव भी हो जाता है। इसी वजह से घर की दीवारों पर वास्तु के अनुसार बताए गए रंग ही रखना चाहिए।

  • भवन में उत्तर का भाग जल तत्व का माना जाता है। इसे धन यानी लक्ष्मी का स्थान भी कहा जाता है। अत: इस स्थान को अत्यंत पवित्र व स्वच्छ रखना चाहिए और इसकी साज-सजा में हरे रंग का प्रयोग किया जाना चाहिए।
  •   उत्तर-पूर्वी कक्ष, जिसे घर का सबसे पवित्र कक्ष माना जाता है, में सफेद या बैंगनी रंग का प्रयोग करना चाहिए। इसमें अन्य गाढ़े रंगों का प्रयोग कतई न करें। उत्तर पश्चिम कक्ष के लिए सफेद रंग को छोड़कर कोई भी रंग चुन सकते हैं। दक्षिण-पूर्वी कक्ष में पीले या नारंगी रंग का प्रयोग करना चाहिए, जबकि दक्षिण-पश्चिम कक्ष में भूरे, ऑफ व्हाइट या भूरा या पीला मिश्रित रंग प्रयोग करना चाहिए। यदि बेड दक्षिण-पूर्वी दिशा में हो, तो कमरे में हरे रंग का प्रयोग करें।
  •   अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए आपको अपने कमरे की उत्तरी दीवार पर हरा रंग करवाना चाहिए।
  •   आसमानी रंग जल तत्व को इंगित करता है। घर की उत्तरी दीवार को इस रंग से रंगवाना चाहिए।
  • घर की खिड़कियां और दरवाजे हमेशा गहरे रंगों से रंगवाएं। बेहतर होगा कि आप इन्हें डार्क ब्राउन रंग से पेंट करवाएं।
  • रंगों का भी रिश्तों पर खासा असर होता है। जहां तक संभव हो घर के अंदर की दीवारों पर हल्के रंगों जैसे हल्का गुलाबी, हल्का नीला, ब्राउनिश ग्रे या ग्रेइश येलो रंग का ही प्रयोग करें। ये रंग शांत, स्थिर और प्यार को बढ़ाने वाले हैं। इनसे व्यवहार में उग्रता नहीं आती।
  • जिन लोगों के एक ही घर में दो गृहस्वामी होते हैं उन्हें अपने घर की भीतरी दीवारों को दो रंगों से पुतवाना चाहिए।
  • घर के ड्राइंग रूम, ऑफिस आदि की दीवारों पर यदि आप पीला रंग करवाते हैं तो वास्तु के अनुसार यह शुभ होता है।
  • घर के बाहर की दीवारों को वेदरप्रूफ यानी मौसम से बेअसर रहने वाले रंग से पुतवा सकते हैं। घर के अंदर प्लास्टिक पेंट लगवा सकते हैं।

किस कमरे में करवाएं कौन-सा रंग?

बेडरूम: पिंक, लाइट ब्लू, क्रीम, येलो और लाइट ग्रीन कलर बेडरूम के लिए काफी अच्छा होता है। बेडरूम में रेड कलर का यूज बिल्कुल नहीं करना चाहिए. क्योंकि वह टेंशन देता है।

डायनिंग रूम: डायनिंग रूम में लाइट कलर काफी अच्छे माने जाते हैं। पिंक, लाइट ग्रीन, आसमानी, ऑरेंज, क्रीमी रंग ताजगी का अहसास कराते हैं।

गेस्ट रूम: गेस्ट रूम को हमेशा अलग-अलग विचार वाले लोग इस्तेमाल करते है. इसलिए गेस्ट रूम में हमेशा हल्के कलर का यूज करना चाहिए।

किचन: किचन में लाइट कलर ही यूज किए जाते हैं। किचन के लिए सफेद रंग सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। फिर भी आप येलो, पिंक, ऑरेंज कलर का यूज कर सकते है, हालांकि मॉड्यूलर किचन में कलर के लिए जगह बहुत नहीं मिलती है।

राशिनुसार दीवारों के रंग कैसे हों

अपनी राशि के अनुरूप रंग का चयन कर आप अपने मकान को पेंट करवा सकते हैं।


मेष: लाल, मेहरून, ईंट जैसा

वृषभ:
सफेद, चमकीला, हरा, बादामी

मिथुन :
गहरा हरा, गहरा नीला, पीच, फिरोजी

कर्क :
चांदी, सफेद, आसमानी, परपल

सिंह :
पीले रंग के हर शेड्स, जामुनी, नारंगी

कन्या :
गुलाबी, हल्का हरा, रामा ग्रीन, सी ग्रीन

तुला :
सफेद, बेबी पिंक, ब्राउन, मरीन ब्लू

वृश्चिक:
हल्का लाल, लाइट मेजेंटा, पिकॉक ब्लू

धनु :
लाइट येलो, हल्दी जैसा पीला, पीच

मकर :
ग्रे, डार्क ऑरेंज, ब्राऊन, लाइट ब्लू

कुंभ:
ब्लू के सभी शेड्स, खिलता पिंक, मेटल शेड

मीन :
ऑरेंज के सभी शेड्स, हल्का बैंगनी, डार्क बादामी

कुबेर के इस मंत्र के जप से बनते हैं धन प्राप्ति के योग

कुबेर के इस मंत्र के जप से बनते हैं धन प्राप्ति के योग

कुबेर धन के अधिपति हैं यानी कुबेर देव को धन का देवता माना जाता है। वह देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं। पृथ्वीलोक की समस्त धन संपदा के भी एकमात्र वही स्वामी हैं। कुबेर भगवान शिव के भी परमप्रिय सेवक हैं। इनकी कृपा से किसी को भी धन प्राप्ति के योग बन जाते हैं। धन के अधिपति होने के कारण इन्हें मंत्र साधना द्वारा प्रसन्न करके आप भी अपार धन सम्पदा के मालिक बन सकते हैं।

कुबेर को प्रसन्न करने का सुप्रसिद्ध मंत्र इस प्रकार है-  ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय, धन धन्याधिपतये धन धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहाकुबेर मंत्र को दक्षिण की ओर मुख करके ही सिद्ध किया जाता है। यह देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर देव का अमोघ मंत्र है। इस मंत्र का तीन माह तक रोज 108 बार जप करें।

मंत्र का जप करते समय अपने सामने धनलक्ष्मी कौड़ी रखें। तीन माह के बाद प्रयोग पूरा होने पर इस कौड़ी को अपनी तिजोरी या लॉकर में रख दें। ऐसा करने पर कुबेर देव की कृपा से आपका लॉकर कभी खाली नहीं होगा। हमेशा उसमें धन भरा रहेगा।

कुबेर देव का अति दर्लभ मंत्र इस प्रकार है-  
मंत्र- ॐ श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय: नम:।

मन को एकाग्र करके हनुमान चालीसा का पाठ करें। यदि हनुमान चालीसा का पूर्ण पाठ नहीं कर पा रहे हों तो इन पंक्तियों का पाठ करें-

जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कवि कोबिद कहि सके कहां ते।।


इन पंक्तियों के निरंतर जप से हनुमानजी को प्रसन्न होंगे ही साथ ही यम, कुबेर आदि देवी-देवताओं की कृपा भी प्राप्त होगी।

Tuesday, October 29, 2013

मेहरबानी नहीं तुम्हारा प्यार मांगा है: शाहरुख खान

 मेहरबानी नहीं तुम्हारा प्यार मांगा है: शाहरुख खान

शाहरुख खान और दीपिका पादुकोण अपनी फिल्म ‘चेन्नई एक्सप्रैस’ को बड़ी हिट बनाने के लिए उसकी प्रोमोशन के लिए जालंधर आए। फिल्म में कॉमेडी के साथ-साथ ज़बरदस्त एक्शन भी है।

यह पहला मौका है जब आप रोहित शेट्टी के साथ काम कर रहे हैं। रोहित इससे पहले ‘गोलमाल सीरिज’ की तीन फिल्में अजय देवगन के साथ कर चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने अजय देवगन की सुपरहिट फिल्में ‘सिंघम’ और ‘बोल बच्चन’ का निर्देशन भी किया। आपने इससे पहले रोहित के साथ काम क्यों नहीं किया?
शाहरुख खान: रोहित शैट्टी जिस तरह की फिल्में बनाते हैं, वो अपने आप में ही यूनीक हैं। उनमें एक्शन भी होता है और कॉमेडी भी। मैंने और भी कई दिग्गज डायरैक्टर्स के साथ काम किया है और भगवान की दया से वे फिल्में काफी हिट भी रही हैं। दरअसल, रोहित ने मुझे एक फिल्म की कहानी सुनाई, जो मुझे काफी अच्छी लगी और उसके बाद उन्होंने मुझे ‘चेन्नई एक्सप्रैस’ की कहानी मेरे सामने रख दी। यह भूमिका मुझे इतनी पसंद आई कि मैंने तुरंत हां कह दी। वह कागज पर फिल्म की कहानी और उसका प्रस्तुतिकरण कैसा हो, यह बहुत अच्छे तरीके से लिख लेते हैं। उससे कलाकारों को बहुत आसानी हो जाती है।

दीपिका के साथ आपकी यह दूसरी फिल्म है, आपको इस फिल्म में काम करते हुए दीपिका में क्या फर्क दिखाई दिया?
शाहरुख खान: दीपिका पहले से ज़्यादा परिपक्व हो गई हैं। मैंने दीपिका के साथ फिल्म चाहे पांच साल के बाद की है, पर इस बीच हमारी अच्छी दोस्ती रही। मैंने दीपिका की बहुत सी फिल्में देखी हैं जिनमें ‘ये जवानी है दीवानी’, ‘कॉकटेल’ और ‘लव आज कल’ में उनका काम काफी अच्छा लगा।

चेन्नई एक्सप्रैस में साउथ के सिनेमा का टेस्ट नजर आता है, इसकी कोई खास वजह? क्या बॉलीवुड अब साउथ सिनेमा से इंस्पायर होकर चल रहा है?
शाहरुख खान: ऐसा नहीं है। हां, वो अलग बात है कि इस फिल्म के अंदर आपको साउथ की झलकियां जरूर मिलेंगी। जैसे कि वहां का डांस तपनकुड्डु, दीपिका का ड्रैसअप और चेन्नई एक्सप्रैस की 99 फीसदी टीम साउथ की ही थी। फिल्म चेन्नई एक्सप्रैस क्रॉस कल्चल क यूनिकेशन के रूप में नकार आएगी।

फिल्म के एक गीत में रजनीकांत का पोस्टर दिखाया गया है। इसकी फिल्म में क्या प्रासंगिकता है?
शाहरुख खान: रजनीकांत एक बहुत ही महान नायक हैं। हमारी तुलना उनके साथ नहीं की जा सकती है, परंतु इस के जरिए चेन्नई एक्सप्रैस की टीम ने उन्हें ट्रिब्यूट दी है। हम चाहते तो थे कि रजनीकांत इस फिल्म में हमारे साथ होते, पर इतने बड़े कलाकार की डेट्स मिलना भी इतना आसान नहीं होता है।

फिल्म का नाम और टेस्ट साउथ को दर्शाता है जबकि आप इसकी प्रोमोशन के लिए पंजाब आए हैं। इसकी खास वजह क्या रही?
शाहरुख खान:  हंसते हुए, पंजाबी प्यार ही बहुत करते हैं, इसलिए पंजाब आना तो बनता था। (फिर थोड़ा भावुक होते हुए) पंजाब में अमृतसर में मैंने दो फिल्मों ‘वीर-जारा’ और ‘रब्ब ने बना दी जोड़ी’ की शूटिंग की थी। तब मुझे यहां प्यार और अपनापन मिला कि उसे आज भी नहीं भूल पाया हूं। मैं जालंधर से यश चोपड़ा जी के कारण भी जुड़ा हुआ हूं। मैं रास्ते में दीपिका के साथ इसी बारे में बात कर रहा था। तीसरा कारण है, फिल्म चेन्नई एक्सप्रैस का एक गीत भी पंजाब बेस्ड है जिसे हनी सिंह ने गाया है और मुझे कुछ समय पहले भी जालंधर की लवली प्रोफैशनल यूनिवर्सिटी से बुलावा आया था, पर तब किसी कारण मैं आ नहीं सका, पर इस बार यह मौका मैंने अपने हाथ से जाने नहीं दिया। मैंने सुना है कि यहां 32,000 से ज्यादा स्टूडैंट्स हैं और करीब 500 कोर्सिस हैं। जहां इतने सारे छात्र हों, वहां मुझे बुलाया जाए यह मेरी खुशकिस्मती है।

आपकी रूटीन कैसी रहती है?
शाहरुख खान: जब मैं मुंबई में होता हूं तो कोशिश रहती है कि बच्चों और परिवार के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिता सकूं। उनके साथ खेलने और मस्ती करने में समय बहुत अच्छा बीत जाता है। सुबह जल्दी उठ जाऊं तो बच्चों के स्कूल जाने से पहले उनके साथ ही नाश्ता करके शूटिंग पर निकल जाता हूं। सारा दिन खूब मेहनत करता हूं और रात को नौ-दस बजे तक घर वापस आकर नहाता हूं और फिर परिवार के साथ ही समय बीतता है।

47 की उम्र में भी इतने एक्टिव और स्मार्ट हैं। इसका क्या राज है?
शाहरुख खान: गलत बातें न तो सोचता हूं और न ही करता हूं। नैगेटिव चीजों से दूर ही रहता हूं। कम खाता हूं और अपने काम को खूब मेहनत से करता हूं। वैसे भी जब आप अपने काम को इंजॉय करते हैं तो उसे करने में मजा आता है। मैं भी अपना काम खूब इंजॉय करता हूं, तभी तो कंधे में दर्द के बावजूद भी अपने सारे सटंट्स मैंने खुद ही किए हैं। हालांकि मैं चाहता थो डुप्लीकेट की मदद ली जा सकती थी। जब यही एक्शन सीन मैं वीडियो में देखता था कि मुझे ऐसे करना है, तो कई बार मुझे लगता था कि मैं ऐसा नहीं कर पाऊंगा, पर रोहित की टीम इतनी अच्छी है कि 47 साल का होने के बावजूद मुझे ऐक्शन करने में कोई दिक्कत नहीं हुई।

फिल्म से जुड़ी कोई खास बात जो आपने काम करते हुए इंजॉय की?
शाहरुख खान: फिल्म की शूटिंग कई दुर्गम लोकेशंस पर हुई है। जहां क्रू के 200 सदस्यों के लिए खाने की व्यवस्था टेड़ी खीर साबित हो रही थी। फिल्म की काफी शूटिंग दूधसागर में हुई जहां लोकेशन पर ट्रेन के दृश्य लिए जाने थे। हमें लोकेशन पर सुबह 6 बजे ट्रेन को शूट करने पहुंचना पड़ता था। वहां ट्रेन सिर्फ पांच मिनट के लिए ही रुकती थी और इस दौरान इतने लोगों का खाना ट्रेन में रखना संभव नहीं था। तब दीपिका ने सजैस्ट किया कि बिस्किट रख लिए जाएं और हमने बिस्किट खाकर ही बिताए।

आप पंजाब में अपनी फिल्म की प्रोमोशन के लिए आते हैं, पंजाब से आपका लगाव भी है तो क्या समझा जाए कि आपको हम कभी पंजाबी फिल्म में भी देखेंगे?
शाहरुख खान: यशराज फिल्में पंजाबी स याचार पर ही आधारित होती थीं। कुछ दिन पहले मेरी सास पंजाबी फिल्म जट्ट एंड जूलियट 2 देख रही थीं। मुझे फिल्म इतनी अच्छी लगी कि मैंने भी उनके साथ पूरी फिल्म देखी। लेकिन फिलहाल मैं किसी पंजाबी फिल्म का हिस्सा नहीं हूं।

जनसंचार एवं पत्रकारिता के बच्चों को आप क्या संदेश देंगे?
शाहरुख खान: मैं खुद जनसंचार एवं पत्रकारिता का स्टूडैंट रहा हूं। अगर किसी भी काम को ईमानदारी से और पूरी मेहनत से किया जाए, तो उसमें सफलता जरूर मिलती है। हम सबको शॉर्ट कट्स पता होते हैं, लेकिन हम सबको यह भी पता होना चाहिए कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता।

दिवाली की हमजोली रंगोली

रंगोली से करें खुशियों का स्वागत

भारतीय संस्कृति में शुभ कामों एवं रंगोली का अनन्य संबंध है। होली हो या दीवाली, रंगोली के बिना अधूरी ही मानी जाती हैं। रंगोली संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है ’रंगों के द्वारा अभिव्यक्ति।’ रंगों से सजी रंगोली वास्तव में खुशियों की अभिव्यक्ति है...


रंगोली बनाना आज भले ही घर की सुन्दरता को बढ़ाने का एक जरिया हो, लेकिन गुजरे वक्त में खुशियों के स्वागत के लिए घर के दरवाजे या आंगन में इसे प्राकृतिक फूलों और रंगों से बनाया जाता था। घर के प्रवेशद्वार पर रंगोली बनाने की परंपरा भारत में सदियों से चली आ रही है। दिवाली पर मुख्य द्वार की देहरी पर आकर्षक रंगोली बनाने का रिवाज़ है। यदि घर के सामने खूबसूरत और रंग-बिरंगी रंगोली सजी हो तो मां लक्ष्‍मी सबसे पहले आपके ही घर पर पधारेंगी।

किंवदंतियों के अनुसार रंगोली का उद्भव भगवान ब्रह्मा के एक वचन से जोड़ा जाता है। इसके अनुसार एक राज्य के प्रमुख पुरोहित के पुत्र की मृत्यु से दुखी राजा व प्रजा ने भगवान ब्रह्मा से प्रार्थना की कि वह उसे जीवित कर दें। ब्रह्मा जी ने कहा कि यदि फर्श पर कच्चे रंगों से मुख्य पुरोहित के पुत्र की आकृति बनाई जाएगी तो वह उसमें प्राण डाल देंगे और ऐसा ही हुआ। इस मान्यता के अनुसार तब से ही आटे, चावल, प्राकृतिक रंगों एवं फूलों की पंखुड़ियों के द्वारा ब्रह्मा जी को धन्यवाद स्वरूप रंगोली बनाने की परंपरा आरम्भ हो गई।

वक्त बदला तो तरीका भी बदला है। आजकल रंगोली कई तरीकों से बनाई जाती है, इसमें कई तरह के इनोवेशन भी किए जा रहे हैं। कहीं फूलों से रंगोली बनाई जा रही है, कहीं पानी पर रंगोली बनाई जा रही है तो कहीं पारंपरिक ढंग से रंगोली बनाई जा रही है। आज रंगोली बनाने में बालू, फूल, चावल से लेकर अबीर तक का इस्तेमाल किया जाता हे। यही नहीं बल्कि बाजार में बनी बनाई कागज या प्लास्टिक की रंगोली भी मौजूद है। आइए, जाने के आज कौन-कौन सी रंगोली चलन में है और इसे कैसे बनाया जा सकता है। आप रंगोली चाहे जैसे बनाइये लेकिन उसके बीच में दिया सजाना बिल्‍कुल मत भूलियेगा वरना वह अधूरी रह जाएगी।

अगर आपको रंगोली बनानी नहीं आती तो उदास होने की कोई जरूरत नहीं है।  बाजार में रंगोली के रंगों के साथ - साथ विभिन्न प्रकार के डिजाइन भी उपलब्ध हैं , जिसकी मदद से चंद मिनटों में मन को लुभा लेने वाली रंगोली बनाई जा सकती है।

स्प्रे पेंट की रंगोली

बाजार में सभी रंगों के स्प्रे पेंट उपलब्ध हैं। आप कोई भी स्टेंसिल लेकर उसे चाहें तो मल्टी कलर स्प्रे पेंट से या फिर एक ही फैमिली के अलग-अलग रंगों से डिजाइन क्रिएट कर सकते हैं। इससे आप चुटकियों में बड़े से बड़ा डिजाइन बना सकती हैं।

क्ले की रंगोली

क्ले की रंगोली को किसी भी सतह पर उभारकर बनाया जाता है। इसमें पेपर मैश क्ले का यूज़ होता है। इससे फूल, पत्तियां या फिर किसी भी तरह का आकार बनाया जा सकता है। क्ले के काम के बाद इसे मनचाहे रंगों से पेंट कर सकते हैं।

फ्लोटिंग रंगोली

इस रंगोली को ओएचपी शीट पर बनाया जाता है। शीट को मनचाहे आकार में काट लें, फिर उस पर गिलटर और कुंदन व मोती से सजाएं। ये रंगोली पानी पर तैरती रहती है।

पानी पर रंगोली

घर छोटा है तो छोटे बाउल में पानी में रंगोली बना सकती हैं। पानी की रंगोली के लिए बाउल में पानी लें। पानी ठहर जाने पर इसमें चारकोल पाउडर बुरक दें। अब रंगोली के रंग बिखेरें। फूलों की पंखुडियों और फ्लोटेड कैंडल्स से इसे खूबसूरत बनाएं। पानी की सतह पर रंगों को रोकने के लिए चारकोल की जगह डिस्टेंपर या पिघले हुए मोम का भी प्रयोग किया जाता है।

फूलों की रंगोली

सिर्फ फूलों से भी रंगोली बना सकती हैं। आप चाहें तो फूलों की पंखुडियों का प्रयोग कर सकती हैं या छोटे व बड़े आकार के अलग अलग फूलों का भी इस्तेमाल कर सकती हैं। तो क्यों न इस दिवाली अपने घर-द्वार को रंगबिरंगी फूलों की डिजाइन से सजाएं और त्योहार का लुत्फ उठाएं।

सैंड की रंगोली

सैंड की मल्टी कलर रंगोली आप चाहें तो हाथ से या फिर स्टेंसिल से बना सकती हैं। चाहे तो कार्बन से फ्लोर पर डिज़ाइन ट्रेस करके भी यह रंगोली बना सकती हैं। इसमें आप ब्राइट कलर्स और कन्ट्रासट कलर्स का यूज़ कर सकती हैं। स्टे्ंसिल से यदि सैंड डालनी हो तो स्प्रे कलर्स का यूज़ करें और आउटलाइन बनाने के लिए व्हाइट सैंड को रंगोली पैन से भरें और किसी भी बड़ी रंगोली में डिटेल वर्क कर सकते हैं।

धनतेरस पर करें समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए पूजा ...

धनतेरस पर समृद्धि देते हैं कुबेर...

दीवाली का त्योहार पांच दिन तक चलता है। इसकी शुरुआत होती है धनतेरस से। दीवाली से दो दिन पहले से ही यानी धनतेरस से ही दीपामालाएं सजने लगती हैं। धनतेरस धन-सम्पत्ति और अच्छी स्वास्थ्य के लिए मनाया जाता है। देवताओं को अमर करने के लिए भगवान विष्णु धनवंतरि के अवतार इसी दिन समुद्र से अमृत का कलश लेकर निकले थे। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनवंतरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। निरोग रहने के लिए धनवंतरि की पूजा की जाती है। धनतेरस पर धनवंतरि की पूजा करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होकर दीपावली में धन-वर्षा करती हैं।

परम्परा

देवी लक्ष्मी की तरह ही भगवान धनवंतरि भी सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। धनवंतरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथ में अमृत से भरा कलश था। इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। धनतेरस के दिन सोने और चांदी के बर्तन, सिक्के और आभूषण खरीदने की परम्परा रही है। सोना सौंदर्य में वृद्धि तो करता ही है, मुश्किल घड़ी में संचित धन के रूप में भी काम आता है। कुछ लोग शगुन के रूप में सोने या चांदी के सिक्के भी खरीदते हैं। यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है। लोग इस दिन ही दीवाली की रात पूजा करने के लिए लक्ष्मी व गणेश जी की मूर्ति भी खरीदते हैं।

मान्यता

इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सूखे धनिया के बीज खरीद कर घर में रखना भी परिवार की धन संपदा में वृद्धि करता है। दीवाली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों या खेतों में बोते हैं। ये बीज उन्नति व धन वृद्धि के प्रतीक होते हैं। बदलते दौर के साथ लोगों की पसंद और जरूरत भी बदली है। कुछ लोग धनतेरस के दिन विलासिता से भरपूर वस्तुएं खरीदते हैं तो कुछ जरूरत की वस्तुएं खरीद कर धनतेरस का पर्व मनाते हैं।

वैश्वीकरण के इस दौर में भी लोग अपनी परम्परा को नहीं भूले हैं और अपने सामथ्र्य के अनुसार यह पर्व मनाते हैं। धनतेरस के दिन वाहन खरीदने का फैशन सा बन गया है। लोग इस दिन लोग गाड़ी खरीदना शुभ मानते हैं। कुछ लोग मोबाइल, कम्प्यूटर और बिजली के उपकरण इत्यादि भी धनतेरस पर ही खरीदते हैं।

धनवंतरि की पूजा

धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरि की मूर्ति या चित्र साफ स्थान पर स्थापित करें और पूर्व की ओर मुखकर बैठ जाएं। उसके बाद भगवान धनवंतरि का आह्वान निम्न मंत्र से करें-

सत्यं च येन निरतं रोगं विधूतं,अन्वेषित च सविधिं आरोग्यमस्य।
गूढं निगूढं औषध्यरूपं, धनवंतरिं च सततं प्रणमामि नित्यं।।


इसके बाद पूजन स्थल पर चावल चढ़ाएं और आचमन के लिए जल छोड़े। भगवान धनवंतरि के चित्र पर गंध, अबीर, गुलाल पुष्प, रोली, आदि चढ़ाएं। चांदी के पात्र में खीर का नैवेद्य लगाएं। अब दोबारा आचमन के लिए जल छोड़ें। मुख शुद्धि के लिए पान, लौंग, सुपारी चढ़ाएं। धनवंतरि को वस्त्र (मौली) अर्पण करें। शंखपुष्पी, तुलसी, ब्राह्मी आदि पूजनीय औषधियां भी अर्पित करें।

रोगनाश की कामना के लिए इस मंत्र का जाप करें-
ऊँ रं रूद्र रोगनाशाय धन्वन्तर्ये फट्।।


अब भगवान धनवंतरि को श्रीफल व दक्षिणा चढ़ाएं। पूजन के अंत में कर्पूर आरती करें।

कुबेर की पूजा

धनतेरस पर आप धन के देवता कुबेर को प्रसन्न करके अपनी दरिद्रता दूर कर धनवान बन सकते हैं। धन के देवता कुबेर को प्रसन्न करने का यह सबसे अच्छा मौका है। यदि कुबेर आप पर प्रसन्न हो गए तो आप के जीवन में धन-वैभव की कोई कमी नहीं रहेगी। कुबेर को प्रसन्न करना बेहद आसान है। कुबेर की पूजा से मनुष्य की आंतरिक ऊर्जा जागृत होती है और धन अर्जन का मार्ग प्रशस्त होता है। धन-सम्पति की प्राप्ति हेतु घर के पूजास्थल में एक दीया जलाएं। समस्त धन सम्पदा और ऐश्वर्य के स्वामी कुबेर के लिए धनतेरस के दिन शाम को 13 दीप समर्पित किए जाते हैं। मंत्रो‘चार के द्वारा आप कुबेर को प्रसन्न कर सकते हैं। इसके लिए पारद कुबेर यंत्र के सामने मंत्रो‘चार करें। यह उपासना धनतेरस से लेकर दीवाली तक की जाती है। ऐसा करने से जीवन में किसी भी प्रकार का अभाव नहीं रहता, दरिद्रता का नाश होता है और व्यापार में वृद्धि होती है।  कुबेर भूगर्भ के स्वामी हैं।

ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्यादिपतये धनधान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा।।

यम की पूजा

माना जाता है कि धनतेरस की शाम जो व्यक्ति यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है। इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम लोग आंगन में यम देवता के नाम पर दीप जलाकर रखते हैं और उनकी पूजा करके प्रार्थना करते हैं कि वह घर में प्रवेश नहीं करें और किसी को कष्ट नहीं पहुंचाएं। इस दिन लोग यम देवता के नाम पर व्रत भी रखते हैं।

लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए

लक्ष्मी जी की कृपा पाने के लिए अष्टदल कमल बनाकर कुबेर, लक्ष्मी एवं गणेश जी की स्थापना कर उपासना की जाती है। इस अनुष्ठान में पांच घी के दीपक जलाकर और कमल, गुलाब आदि पुष्पों से उत्तर दिशा की ओर मुख करके पूजन करना लाभप्रद होता है। इसके अलावा ओम् श्रीं श्रीयै नम: का जाप करना चाहिए।

कथा

धनतेरस की शाम घर के आंगन में दीप जलाने की प्रथा है। इस प्रथा के पीछे एक लोक कथा है, जिसके अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। ईश्वर की कृपा से उन्हें पुत्र हुआ। ’योतिषियों ने जब बालक की कुंडली बनाई तो पता चला कि बालक के विवाह के ठीक चार दिन बाद उसकी अकाल मृत्यु हो जाएगी। राजा यह जानकर बहुत दुखी हुआ। उसने राजकुमार को ऐसी जगह भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गए और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।

विवाह के बाद विधि का विधान सामने आया और यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। राजकुमारी मां लक्ष्मी की बड़ी भक्त थीं। उसको भी अपने पति पर आने वाली विपत्ति के बारे में पता चल गया। राजकुमारी ने चौथे दिन का इंतजार पूरी तैयारी के साथ किया। जिस रास्ते से सांप के आने की आशंका थी, उसने वहां सोने-चांदी के सिक्के और हीरे-जवाहरात आदि बिछा दिए। पूरे घर को रोशनी से जगमगा दिया गया, यानी सांप के आने के लिए कमरे में कोई रास्ता अंधेरा नहीं छोड़ा गया। इतना ही नहीं, राजकुमारी ने अपने पति को जगाए रखने के लिए उसे पहले कहानी सुनाई और फिर गीत गाने लगी।

इसी दौरान जब मृत्यु के देवता यमराज ने सांप का रूप धारण करके कमरे में प्रवेश करने की कोशिश की, तो रोशनी की वजह से उनकी आंखें चुंधिया गईं। इस कारण सांप दूसरा रास्ता खोजने लगा और रेंगते हुए उस जगह पहुंच गया, जहां सोने तथा चांदी के सिक्के रखे हुए थे। डसने का मौका न मिलता देख, विषधर भी वहीं कुंडली लगाकर बैठ गया और राजकुमारी के गाने सुनने लगा। इसी बीच सूर्य देव ने दस्तक दी यानी सुबह हो गई। यम देवता वापस जा चुके थे। इस तरह राजकुमारी ने अपनी पति को मौत के पंजे में पहुंचने से पहले ही छुड़ा लिया। यह घटना जिस दिन घटी थी, वह धनतेरस का दिन था, इसलिए इस दिन को ‘यम दीपदान’ भी कहते हैं।  इसी कारण धनतेरस की पूरी रात रोशनी की जाती है।

धनतेरस पर जब आप करें गोल्ड की शॉपिंग...

धनतेरस पर जब आप करें गोल्ड की शॉपिंग...

पूरे भारत में धनतेरस को शुभ दिन माना जाता है और इस दिन लोग सोने की खरीददारी को शुभ मानते हैं। अगर आप भी धनतेरस के शुभ अवसर पर गोल्ड ज्वेलरी खरीदने जा रही हैं तो आपको गोल्ड की क्वालिटी और प्योरिटी का ख्याल जरूर रखना चाहिए, वरना आप ठगी जा सकती हैं। गोल्ड की खरीदारी करते वक्त धोखाधड़ी और ठगी से बचने के लिए आपको कुछ बातों का ध्यान रखना होगा। इससे आसमान छूती महंगाई में आपको राहत भी मिलेगी और साथ ही आपकी जेब भी नहीं कटेगी। गोल्ड की शुद्धता जांचने के कई तरीके हैं। इनका ध्यान रखकर आप अच्छी क्वालिटी का गोल्ड सही कीमत पर खरीद सकती हैं...

कैरट रेटिंग चेक करें
गोल्ड की प्योरिटी कैरट में मापी जाती है। कैरट के मुताबिक ही गोल्ड का प्राइस भी तय होता है। प्योर गोल्ड 24 कैरट में आता है लेकिन चूंकि यह बेहद सॉफ्ट होता है इसलिए ज्वेलरी बनाने के लिए इसमें इसमें कुछ इम्प्योरिटी डाली जाती है। कई बार ज्वेलर 24 कैरट गोल्ड के ही पैसे लगा लेते हैं लेकिन याद रखें 22 कैरट गोल्ड के लिए रेट अलग होगा और 18 कैरट के लिए अलग। इसलिए ज्वेलरी खरीदते समय इस बात का पूरा ख्याल रखें कि आप कितने कैरट की गोल्ड ज्वेलरी ले रहे हैं और उसी के हिसाब से पेमेंट करें।

हॉलमार्क चेक कर लें
आप जो ज्वेलरी खरीद रही हैं, उसके कैरट की पक्की गारंटी के लिए आप ज्वेलरी पर हॉलमार्क की स्टैंप जरूर चेक करें। गोल्ड की प्राइसिंग और क्वालिटी में यूनिफॉर्मिटी बनाए रखने के लिए गोल्ड ट्रेडिंग में हॉलमार्क सिस्टम लागू किया गया। अलग-अलग कैरट के लिए हॉलमार्क के अलग-अलग कोड हैं। हॉलमार्क का मतलब है कि हम गोल्ड खरीदने के लिए सही राशि खर्च कर रहे हैं। जब आप हॉलमार्क वाली गोल्ड ज्वेलरी खरीदने जाती हैं, तो सबसे पहले आपको ज्वेलरी में लगे हुए हॉलमार्क्स का स्टाम्प देखना होगा। इसे आप मैगनिफाइंग ग्लास के जरिए आसानी से देख सकती हैं।

गोल्ड रेट जरूर चेक करें
जब आप गोल्ड की शॉपिंग करने जाएं, तो गोल्ड रेट जरूर चेक कर लें। जिस वक्त आप पेमेंट करें, ज्वेलर से सोने-चांदी का रेट जरूर पूछ लें, क्योंकि सोने-चांदी का रेट हर पल बदलता रहता है। इसलिए पेमेंट बाजार के ‘हाजिर भाव’ के हिसाब से ही करें, वरना ज्वेलर आपसे ज्यादा रेट पर ज्वेलरी बेचकर आपकी मेहनत की कमाई पर अपना हाथ साफ कर सकता है।

रिटन में लें सारे फैक्ट्स
अगर आप अपनी पसंद का कोई गोल्ड सेट या बैंगल्स बनवा रही हैं, तो गोल्ड का रेट और डिलिवरी की डेट रिटन में ले लें, नहीं तो बाद में परेशानी हो सकती है।

रिटर्न पॉलिसी जान लें
ज्वेलरी खरीदते समय ज्वेलर या सेल्सपर्सन से रिटर्न पॉलिसी और प्रमाणिकता के सर्टिफिकेट के बारे में जानकारी जरूर ले लें। हो सकता है कल को आपका अपनी ज्वेलरी बेचने या उसकी जगह कोई और डिजाइन लेने का मन बन जाए, तब यह सर्टिफिकेट आपके काम आएगा। दूसरे, इस सर्टिफिकेट से यह विश्वसनीय बन जाएगा कि आपने सॉलिड गोल्ड ज्वेलरी ही खरीदी है। याद रखें प्योर गोल्ड-रिटर्न के दौरान लेबर चार्जिस के अलावा कुछ और नहीं काटा जाता।

...तभी ज्लेवरी की चमक बनी रहेगी

अब जब आप इतनी कीमती गोल्ड ज्वेलरी खरीद रही हैं तो इसकी देखभाल भी उतनी ही जरूरी हो जाती है। गोल्ड की चमक सालों तक यूं ही बनी रहे इसके लिए आपको कुछ सावधानियां तो बरतनी ही होंगी। 
  • जब आप हेयर कलर या डाई लगाएं, तो सारी ज्वेलरी उतार दें।
  • साबुन या तेल के इस्तेमाल से ज्वेलरी की चमक फीकी पड़ जाती है। इसलिए नहाते समय ज्वेलरी निकाल दें।
  • इस्तेमाल के बाद ज्वेलरी को जब रखें, तो उसे मलमल या कॉटन में लपेट कर रखें। इससे इसकी चमक फीकी नहीं पड़ती।
  • ज्वेलरी को अगर पोंछना हो तो भी सिर्फ सॉफ्ट कपड़े का ही इस्तेमाल करना चाहिए और हल्के हाथ से ही साफ करना चाहिए। रगड़-रगड़कर साफ करने से वह टूट सकती है।

डायमंड

हीरे को महिलाओं का बेस्ट फ्रेंड कहा जाता है। डायमंड ज्वेलरी इन्वेस्टमेंट के साथ-साथ स्टाइल स्टेटमेंट भी है। डायमंड्स पहनते ही युवतियों का हुस्न दमक उठता है। हीरे की परख उसकी चमक पर निर्भर होती है। डायमंड क्लैरिटी इसमें मौजूद इम्प्योरिटीज की टर्म्स पर आंकी जाती है। इसमें वीवीएस (वेरी वेरी स्लाइटली इम्परफेक्ट), वीएस (वेरी स्लाइटली इम्परफेक्ट), एसआई (स्लाइटली इम्परफेक्ट), आईएफ (इंटरनली फ्लालेस) और एफ (फ्लालेस)। इसी तरह डायमंड के कलर्स भी डी से जेड के बीच में लेबल किए जाते हैं। डायमंड का आईजीआई सर्टिफिकेट भी देखें, क्योंकि देखने में आया है कि अपने यहां अक्सर लोग इस पर समझौता कर जाते हैं। दुनिया में हीरे की ज्यूलरी की शुद्धता के दो ही प्रमाण पत्र सर्वमान्य हैं। ये जैमोलॉजिकल इंस्टीच्यूट ऑफ अमेरिका (जी.आई.ए.) और इंटरनेशनल जैमोलॉजिकल इंस्टीच्यूट (आई.जी.आई.) द्वारा जारी होते हैं।

दिवाली पर दिखें सबसे खास

दिवाली पर दिखें सबसे खास

दिवाली पर आपका लुक कुछ खास हो और आप सबसे खास दिखें ऐसी चाहत हर महिला की होती है। इस मौके को और खास बनाने के लिए महिलाएं जितने चाव से अपने घर को सजाती-संवारती हैं उतने ही चाव से वे अपने सजने-संवरने पर भी ध्यान देती हैं। यकीनन इस दीवाली पर आप की भी इच्छा नए और स्टाइलिश कपड़े पहनने की होगी। दिवाली के अवसर पर पार्टी या गेट-टुगेदर के दौरान महिलाओं में सजने-संवरने और खूबसूरत दिखने की होड़ सी रहती है।

यह सोच गलत है कि महंगी पोशाकों से ही लुक आता है। आप किसी भी पोशाक में खूबसूरत दिख सकती हैं। आपको जो सूट करता है, वहीं पहनें।यह भी जरूरी नहीं कि दिवाली पर आप कोई नई ड्रेस या नई ज्वेलरी ही पहनें, आप अपनी पुरानी कलेक्शन को भी समझदारी से मिक्स एंड मैच कर सकती हैं।  याद रखें आप चाहे जो भी पहनें, अगर आईने ने आपको पास कर दिया, तो सब ठीक है। दूसरों के कहे पर कतई ना जाएं। लेकिन रोशनी के इस त्योहार पर आप जो भी पहनें, इतना ध्यान जरूर रखें कि उनसे आपकी सुरक्षा खतरे में न पड़े यानी पहने जाने वाले कपड़ों का चयन सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए करें।

 

ऐसे करें कपड़ों का चुनाव

आप कितने भी खुले माहौल में पली-बढ़ी हों, लेकिन कपड़े और मेकअप अवसर के अनुकूल ही होने चाहिए। इससे खूबसूरती में तो निखार आता ही है, एक खास किस्म की गरिमा भी मिलती है। अगर आप ऑफिस की दिवाली पार्टी में जा रही हैं तो आपका लुक कुछ अलग होना चाहिए जबकि कि थीम पार्टी या घर पर गैदरिंग के समय आप खुद को अलग तरह से कैरी करेंगी। लेटेस्ट ट्रेंड की जानकारी रखें जिससे आप त्योहार के खास मौके पर अलग-थलग न महसूस करें।

घर में दिवाली की पूजा है, तो आप एथनिक पोशाक में अच्छी लगेंगी। ऐसे में कॉटन का शॉर्ट कुर्ता और पटियाला सलवार सबसे बढ़िया बढ़िया च्वाइस रहेगी। इससे आपका लुक बहुत ही शानदार और लुभावना दिखता है। आप परंपरानुसार चूड़ीदार पर फैशनेबल कुर्त्ता भी पहन सकती हैं। प्लीटेड पैंट के साथ कढ़ाई वाली चोली या स्मार्ट टीशर्ट भी स्टाइलिश विकल्प हैं। भारतीय महिलाओं का त्योहारों पर साड़ी पहनना तय है, उनके लिए प्री-प्लेटेड साड़ी अच्छा विकल्प है।

दीवाली पर ढीलेढाले और लहराने वाले कपड़ों से एकदम दूर रहें। चुस्त और आरामदायक कपड़ों का चयन करें। रेशम, सॉटन और पॉलिएस्टर जैसे फैब्रिक से बने कपड़े यानी जल्दी आग पकड़ने वाले कपड़ेन ही पहनें। ये आग बहुत जल्दी पकड़ लेते हैं। जॉर्जट और सूती कपड़े सबसे बेहतरीन रहेंगे। अगर आप दीवाली की रात अनारकली सूट या लॉन्ग स्कर्ट पहनने का प्लान कर रही हैं, तो याद रखें ये आपको मुश्किल में डाल सकते हैं। पटाखे चलाते समय लंबीं पोशाकें जल्दी आग पकड़ लेती हैं। 

चटक रंग दिवाली को रंगीन बना देंगे

दिवाली के दिनों में चटक रंग यानी ब्राइट कलर्स अच्छे लगते हैं। जगमगाते ‍दीयों में ब्राइट कलर की ड्रेस और मेकअप से आपके आसपास का माहौल खूबसूर‍‍त हो जाएगा। ड्रेस का कलर हमेशा अपने बॉडी टाइप और कलर टोन के अनुसार ही तय करें। लेकिन ध्यान रखें डार्क कलर की ड्रेस के साथ लाइट कलर्स को भी शामिल कर लिया जाए, तो आप बेहद आकर्षक दिखेंगी। लाइट और डार्क कलर कॉम्बीनेशन से बनी आपकी ड्रेस आपकी लुक को चार चांद लगा देगी। पीच कलर के साथ रॉयल ब्ल्यू, रेड के साथ वाइन, पीच के साथ नियोन आरेंज कलर इंडियन ड्रेसेज के लिए एकदम परफेक्ट हैं। अगर आप ब्राइट कलर की ड्रेस पहन रही हैं तो ध्यान रखें उसमें कढ़ाई कम होनी चाहिए। और अगर आप लाइट कलर चुन रही हैं तो एम्ब्रॉयड्री हैवी होनी चाहिए।

एक्सेसरीज और ज्वेलरी से बनेगी बात

  • ड्रेस की खूबसूरती तब तक अधूरी रहती है जब तक कि इसके साथ मैचिंग ज्वेलरी का कॉम्बीनेशन न हो। लेकिन यह सोच भी गलत है कि बहुत सारे एक्सेसरीज पहनने पर आपकी ड्रेस की लुक खिल उठेगी या आप अच्छी लगेगी। एक्सेसरी अपनी ड्रेस के मुताबिक चुनें।
  • एथनिक परिधानों के साथ ओल्ड स्टाइल की ज्वेलरी ज्यादा फबती है। कानों में एक कुंडल या हैवी लुक वाले ईयरिंग सुंदर दिखते हैं। अगर आपने गले में कुछ भारी सा पहना है, तो कान के टॉप्स छोटे रखिए। हाथों में हल्की सी चूड़ियां ही काफी हैं।
  • अगर आप वेस्टर्न पोशाक पहन रही हैं, तो कानों में हल्की एक्सेसरीज काफी हैं। हाथों में ब्रेसलेट पहन सकती हैं और गले में चेन लॉकेट ही पर्याप्त है।

मेकअप और हेयर स्टाइल हो ज़रा हटके

  • दीवाली रात का फेस्टिवल है, इसलिए मेकअप भी आप थोड़ा डार्क ही करें। लेकिन याद रखें बहुत हेवी मेकअप का मतलब खूबसूरती नहीं है। आपकी स्किन और पहनावे के अनुसार मेकअप ट्राइ करें। आंखों को हाईलाइट करने के लिए उन्हें आकर्षक मेक-अप से सजाएं। ब्राइट कलर की लिपस्टिक लगाएं और एथनिक ड्रेस के साथ बिंदी लगाना न भूलें।
  • बालों को जूड़ा तब तक ना बनाएं, जब तक कि आप पर फबे नहीं। बालों का आगे पफ बना कर बाल खुले छोड़ सकती हैं। इससे आपको पटाखे चलाने में परेशानी भी नहीं होगी और आप कम्फर्टेबल भी रहेंगी।

फुटवियर भी हो खास

अब बात आती है जूतों की, तो दीवाली पर वेस्टर्न ड्रेस के साथ फॉर्मल जूते और सैंडल अच्छा विकल्प हैं। हर तरह के परिधान के साथ हाई हील्स खूब सूट करती हैं। इनमें अगर ऐनिमल और फ्लोरल प्रिंट्स के फुटवेयर्स हों तो वे आपकी ड्रेस को और भी खूबसूरत बना देंगे। आप प्लैटफॉर्म के साथ टी स्ट्रैप में सैंडल ट्राई कर सकती हैं। क्रॉस स्टैप और मल्टी स्टैप का ऑप्शन भी बढि़या हो सकता है। एथनिक ड्रेस पहन रही हों तो पंजाबी जुती आप पर ज्यादा फबेगी।

Thursday, October 10, 2013

सातवें नवरात्र में सरस्वती पूजन


सातवें नवरात्र में सरस्वती पूजन

नवरात्रि के 9 दिनों में दुर्गा के 9 रूपों की पूजा की जाती है, जिन्हें शास्त्रों में नवदुर्गा कहा गया है। नवरात्रि के पहले तीन दिन शक्ति की देवी मां पार्वती की पूजा होती है जिसके जरिए हमारे सारे कष्टों और पापों का नाश होता है। अगले दिन दिन धन की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है और धन-धान्य की कृपा अपने पर बनाए रखने के लिए देवी का आशीर्वाद मांगा जाता है। नवरात्रि के आखिरी तीन दिन विद्या, ज्ञान और बुद्धि की देवी मां सरस्वती के तीन रूपों की पूजा की जाती है। इस तरह नवरात्रि के 9 दिनों की पूजा सम्पन्न होती है।
नवरात्रों का सातवां दिन वीणावादिनी, शुभ्रवसना, मंद-मंद मुस्कुराती हंस पर विराजमान मां सरस्वती के आह्वान का होता है। सरस्वती का जन्म ब्रह्मा जी के मुंह से हुआ था। मां सरस्वती विद्या, बुद्धि, ज्ञान व विवेक की अधिष्ठात्री देवी हैं। इस अंधकारमय जीवन से इंसान को सही राह पर ले जाने का सारा बीड़ा वीणा वादिनी सरस्वती मां के कंधों पर ही है। यह देवी मनुष्य समाज को महानतम सम्पत्ति-ज्ञानसम्पदा प्रदान करती है।  
वेदों में सरस्वती का वर्णन श्वेत वस्त्रा के रूप में किया गया है। यानी वह श्वेत वस्त्र धारण किए हुए हैं जो हमें प्रेरणा देते हैं कि हम अपने भीतर सत्य अहिंसा, क्षमा, सहनशीलता, करुणा, प्रेम व परोपकार आदि सद्गुणों को बढाएं और काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, अहंकार आदि दुर्गुणों से स्वयं को बचाएं। श्वेत पुष्प व मोती इनके आभूषण हैं। उनके चार हाथ हैं, जिनमें वीणा, पुस्तक और अक्षरमाला है। उनका वाहन हंस है तथा श्वेत कमल गुच्छ पर यह विराजमान हैं। वेद इन्हें जलदेवी के रूप में महत्ता देते हैं, एक नदी का नाम भी सरस्वती है।
पुराणों में मां सरस्वती को कमल पर बैठा दिखाया जाता है। कीचड़ में खिलने वाले कमल को कीचड़ स्पर्श नहीं कर पाता। इसीलिए कमल पर विराजमान मां सरस्वती हमें यह संदेश देना चाहती हैं कि हमें चाहे कितने ही दूषित वातावरण में रहना पड़े, परंतु हमें खुद को इस तरह बनाकर रखना चाहिए कि बुराई हम पर प्रभाव न डाल सके। मां सरस्वती की पूजा-अर्चना इस बात की द्योतक है कि उल्लास में बुद्धि व विवेक का संबल बना रहे।
मां सरस्वती के पूजन से मानव जीवन का अज्ञान रूप दूर होकर ज्ञान का प्रकाश प्राप्त होता है। मां सरस्वती की कृपा मनुष्य में कला, विद्या, ज्ञान तथा प्रतिभा का प्रकाश करती है। इनकी उपासना करने से मूर्ख भी विद्वान् बन सकता है। सत्वगुण से उत्पन्न होने के कारण इनकी पूजा में प्रयुक्त होने वाली सामग्रियों में अधिकांश श्वेत वर्ण की होती हैं। जैसे- श्वेत चंदन, पुष्प, परिधान, दही-मक्खन, धान का लावा, सफेद तिल का लड्डू, अदरक, श्वेत धान, अक्षत, शुक्ल मोदक, घृत, नारियल और इसका जल, श्रीफल, बदरीफल आदि। सभी सामाजिक कार्यक्रमों का आरंभ भी इसीलिए सरस्वती वंदना से होती है ताकि कार्य सर्वोत्तम तरीके से पूर्ण हो।

सरस्वती शुक्ल वर्णासस्मितांसुमनोहराम। 
कोटिचन्द्रप्रभामुष्टश्री युक्त विग्रहाम।
वह्निशुद्धांशुकाधानांवीणा पुस्तक धारिणीम्।
रत्नसारेन्द्रनिर्माण नव भूषण भूषिताम।
सुपूजितांसुरगणैब्रह्म विष्णु शिवादिभि:।
वन्दे भक्त्यावन्दितांचमुनीन्द्रमनुमानवै:।


मां सरस्वती का मूल मंत्र

'शारदा शारदाभौम्वदना। वदनाम्बुजे।
सर्वदा सर्वदास्माकमं सन्निधिमं सन्निधिमं क्रिया तू।'

मां सरस्वती का श्र्लोक

ॐ श्री सरस्वती शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम्।।
कोटिचंद्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्।
वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकमधारिणीम्।।
रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिताम्।
सुपूजितां सुरगणैब्रह्मविष्णुशिवादिभि:।।
वन्दे भक्तया वन्दिता च मुनीन्द्रमनुमानवै:।

मां सरस्वती की आरती

कज्जल पुरित लोचन भारे, स्तन युग शोभित मुक्त हारे |
वीणा पुस्तक रंजित हस्ते, भगवती भारती देवी नमस्ते ॥

जय सरस्वती माता जय जय हे सरस्वती माता |

सदगुण वैभव शालिनी त्रिभुवन विख्याता ॥ जय.....

चंद्रवदनि पदमासिनी घुति मंगलकारी |
सोहें शुभ हंस सवारी अतुल तेजधारी ॥ जय.....

बायेँ कर में वीणा दायें कर में माला |
 शीश मुकुट मणी सोहें गल मोतियन माला ॥ जय.....

देवी शरण जो आयें उनका उद्धार किया |
पैठी मंथरा दासी रावण संहार किया ॥ जय.....

विद्या ज्ञान प्रदायिनी ज्ञान प्रकाश भरो |
 मोह और अज्ञान तिमिर का जग से नाश करो ॥ जय.....

धुप दिप फल मेवा माँ स्वीकार करो |

ज्ञानचक्षु दे माता भव से उद्धार करो ॥ जय.....
 

माँ सरस्वती जी की आरती जो कोई नर गावें |
हितकारी सुखकारी ग्यान भक्ती पावें ॥ जय.....

जय सरस्वती माता जय जय हे सरस्वती माता |
सदगुण वैभव शालिनी त्रिभुवन विख्याता ॥ जय.....

मां सिद्धिदात्री : मां दुर्गा की नौवीं शक्ति

मां सिद्धिदात्री : मां दुर्गा की नौवीं शक्ति


या देवी सर्वभू‍तेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।


दुर्गा मां ने जगत के कल्याण हेतु नौ रूपों में प्रकट हुई और इन रूपों में अंतिम रूप है देवी सिद्धिदात्री का। नवरात्रि-पूजन के नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है। नवमी के दिन सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिद्धियां होती हैं। देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव ने इन्हीं की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था। इन्हीं की अनुकम्पा से भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वह संसार में अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए।

देवी सिद्धिदात्री का रूप अत्यंत सौम्य है। माता सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। मां कमल आसन पर विराजमान रहती हैं। इनकी दाहिनी नीचे वाली भुजा में चक्र, ऊपर वाली भुजा में गदा और बांयी तरफ नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है। देवी ने सिद्धिदात्री का यह रूप भक्तों पर अनुकम्पा बरसाने के लिए धारण किया है। देवी जी की भक्ति जो भी सच्चे मन से करता है मां उसी पर अपना स्नेह लुटाती हैं। मां का ध्यान करने के लिए आप “सिद्धगन्धर्वयक्षाघरसुरैरमरैरपि सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी..” इस मंत्र से स्तवन कर सकते हैं।

सिद्धिदात्री की पूजा विधि

देवी सिद्धिदात्री सभी सिद्धियों की स्वामिनी हैं। देवी प्रसन्न होने पर सम्पूर्ण जगत की रिद्धि सिद्धि अपने भक्तों को प्रदान करती हैं। सिद्धियां हासिल करने के उद्देश्य से जो साधक भगवती सिद्धिदात्री की पूजा कर रहे हैं उन्हें नवमी के दिन निर्वाण चक्र का भेदन करना चाहिए। दुर्गा पूजा में इस तिथि को विशेष हवन किया जाता है। हवन से पूर्व सभी देवी दवाताओं एवं माता की पूजा कर लेनी चाहिए। हवन करते वक्त सभी देवी दवताओं के नाम से हवि यानी अहुति देनी चाहिए। बाद में माता के नाम से अहुति देनी चाहिए। दुर्गा सप्तशती के सभी श्लोक मंत्र रूप हैं अत:सप्तशती के सभी श्लोक के साथ आहुति दी जा सकती है। देवी के बीज मंत्र “ऊँ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो नम:” से कम से कम 108 बार हवि दें। भगवान शंकर और ब्रह्मा जी की पूजा पश्चात अंत में इनके नाम से हवि देकर आरती और क्षमा प्रार्थना करें। हवन में जो भी प्रसाद चढ़ाया है उसे बाटें और हवन की अग्नि ठंडी को पवित्र जल में विसर्जित कर दें अथवा भक्तों के में बांट दें। यह भस्म- रोग, संताप एवं ग्रह बाधा से आपकी रक्षा करती है एवं मन से भय को दूर रखती है।

ध्यान

वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदना पल्लवाधरां कातं कपोला पीनपयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

स्तोत्र पाठ

कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता।
नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोअस्तुते॥
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भव सागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥

कवच

ओंकारपातु शीर्षो मां ऐं बीजं मां हृदयो।
हीं बीजं सदापातु नभो, गुहो च पादयो॥
ललाट कर्णो श्रीं बीजपातु क्लीं बीजं मां नेत्र घ्राणो।
कपोल चिबुको हसौ पातु जगत्प्रसूत्यै मां सर्व वदनो॥

आरती

जै सिद्धि दात्री मां तूं है सिद्धि की दाता|
तूं भक्तों की रक्षक तूं दासों की माता||

तेरा नाम लेटे ही मिलती है सिद्धि|
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि||

कठिन काम सिद्ध करती हो तुम|
जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम||

तेरी पूजा में तो न कोई विधि है|
तूं जगदम्बे दाती तूं सर्व सिद्धि है||

रविवार को तेरा सुमिरन करे जो|
तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो||

तूं सब काज उसके करती हो पूरे|
कभी काम उसके रहे न अधूरे||

तुम्हारी दया और तुम्हारी है माया|
रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया||

सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्य शाली|
जो है तेरे दर का ही अम्बे सवाली||

हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा|
महा नन्दा मंदिर में है वास तेरा||

मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता|
चमन है सवाली तूं जिसकी दाता||

महागौरी : मां दुर्गा की आठवीं शक्ति

महागौरी : मां दुर्गा की आठवीं शक्ति

श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोदया॥


 
मां दुर्गा की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। मां गौरी को शिव की अर्धागनी और गणेश की माता के रुप में जाना जाता है। इनका वर्ण पूर्णतः गौर है। इस गौरता की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। अष्टवर्षा भवेद् गौरी यानी इनकी आयु आठ साल की मानी गई है। इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं। इसीलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा कहा गया है।  इनका वाहन वृषभ है। इसीलिए वृषारूढ़ा भी कहा गया है इनको। महागौरी की चार भुजाएं हैं। इनका दाहिना ऊपरी हाथ अभय मुद्रा में है और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपर वाले बाएं हाथ में डमरू और नीचे का बायां हाथ वर-मुद्रा में है। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है।

पार्वती रूप में इन्होंने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। शिव जी की प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या करते हुए मां गौरी का शरीर धूल मिट्टी से ढंककर मलिन यानि काला पड़ गया था। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर जब शिव जी ने इनके शरीर को पवित्र गंगाजल से मलकर धोया तब वह विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर हो गया, तभी से इनका नाम गौरी पड़ा।

यह अमोघ फलदायिनी हैं और इनकी पूजा से भक्तों के तमाम कल्मष धुल जाते हैं। पूर्वसंचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं। मां महागौरी का ध्यान, स्मरण, पूजन-अर्चन, उपासना-आराधना भक्तों के लिए सर्वविध कल्याणकारी है। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। महागौरी भक्तों का कष्ट अवश्य ही दूर करती हैं। इनकी उपासना से आर्तजनों के असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। महागौरी की उपासना से मनपसंद जीवन साथी एवं शीघ्र विवाह संपन्न होता है। मां कुंवारी कन्याओं से शीघ्र प्रसन्न होकर उन्हें मनचाहा जीवन साथी प्राप्त होने का वरदान देती हैं। यदि किसी के विवाह में विलंब हो रहा हो तो वह भगवती महागौरी की साधना करें, 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ' मंत्र की तथा 'ॐ महा गौरी देव्यै नम:' मंत्र की इक्कीस माला जाप करें। मनोरथ पूर्ण होगा। देवी महागौरी का ध्यान, स्रोत पाठ और कवच का पाठ करने से 'सोमचक्र' जाग्रत होता है जिससे संकट से मुक्ति मिलती है और धन, सम्पत्ति और श्री की वृध्दि होती है।

आज के दिन ही अन्नकूट पूजा यानी कन्या पूजन का भी विधान है। कुछ लोग नवमी के दिन भी कन्या पूजन करते हैं लेकिन अष्टमी के दिन कन्या पूजन करना श्रेष्ठ रहता है। इस पूजन में 9 कन्याओं को भोजन कराया जाता है। अगर 9 कन्याएं ना मिलें तो दो से भी काम चल जाता है। भोजन कराने के बाद कन्याओं को दक्षिणा देनी चाहिए। इस प्रकार महामाया भगवती प्रसन्नता से हमारे मनोरथ पूर्ण करती हैं।

मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।


अर्थ : हे मा! सर्वत्र विराजमान और मां गौरी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। हे मां, मुझे सुख-समृद्धि प्रदान करो।

धयान

वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा महागौरी यशस्वनीम्॥
पूर्णन्दु निभां गौरी सोमचक्रस्थितां अष्टमं महागौरी त्रिनेत्राम्।
वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर किंकिणी रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वाधरां कातं कपोलां त्रैलोक्य मोहनम्।
कमनीया लावण्यां मृणांल चंदनगंधलिप्ताम्॥

स्तोत्र पाठ

सर्वसंकट हंत्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदीयनीम्।
डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।
वददं चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥

कवच

ओंकारः पातु शीर्षो मां, हीं बीजं मां, हृदयो।
क्लीं बीजं सदापातु नभो गृहो च पादयो॥
ललाटं कर्णो हुं बीजं पातु महागौरी मां नेत्रं घ्राणो।
कपोत चिबुको फट् पातु स्वाहा मा सर्ववदनो॥

कालरात्रि : मां दुर्गा की सातवीं शक्ति

कालरात्रि : मां दुर्गा की सातवीं शक्ति 

देवी सर्वभू‍तेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।


 
अपने महाविनाशक गुणों से शत्रु और दुष्ट लोगों का संहार करने वाली मां दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि हैं। अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली शक्ति हैं कालरात्रि। वर्ण और वेश में अर्द्धनारीश्वर शिव की तांडव मुद्रा में नजर आती हैं। मां कालरात्रि के शरीर का रंग अंधकार की तरह गहरा काला है, इनके केश बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत सदृश चचमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं जो ब्रह्मांड की तरह गोल हैं, इनकी आंखों से अग्नि की वर्षा होती है। इनकी नासिका से श्वास, निःश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालायें निकलती रहती हैं।

इनका वाहन 'गर्दभ' (गधा) है। जो समस्त जीव जंतुओं में सबसे ज्यादा परिश्रमी और निर्भय होकर अपनी अधिष्ठात्री देवी कालरात्रि को लेकर इस संसार में विचरण कर रहा है। चार भुजाओं वाली दुर्गा हैं। ऊपर का दाहिना हाथ वरद मुद्रा में है जिससे यह सबको वरदान देती हैं, दाहिना नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है जिससे अपने सेवकों को अभयदान करती हैं और भक्तों को सभी कष्टों से मुक्त करती हैं। बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा और निचले हाथ में खड्ग है।

मां का यह स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है किन्तु सदैव शुभ फलदायक है। इसीलिए यह शुभंकरी कहलाईं। यह देवी अपने भक्तों पर असीम कृपा करती हैं और उनकी हर तरह से रक्षा करती हैं। इसलिए इनसे भक्तों को भयभीत होने की कतई आवश्यकता नहीं। मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं। दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं। यह ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं। इनके उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते। इनकी कृपा से वह सर्वथा भय-मुक्त हो जाता है।

दुर्गा पूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है। कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं। इस दिन साधक का मन सहस्त्रारचक्र में अवस्थित होता है। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णत: मां कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है, उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य का वह अधिकारी होता है, उसकी समस्त विघ्न बाधाओं और पापों का नाश हो जाता है और उसे अक्षय पुण्य लोक की प्राप्ति होती है। इनकी पूजा-अर्चना करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है व दुश्मनों का नाश होता है, तेज बढ़ता है। जो व्यक्ति देवी कालरात्रि की एकाग्रचित्त होकर पूजा करता है देवी उसकी सभी बाधाएं दूर करती हैं। भगवती कालरात्रि का ध्यान, कवच, स्तोत्र का जाप करने से 'भानुचक्र' जागृत होता है। अगर आप परेशानियों का सामना कर रहें है तो नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि के मंत्र का देवी पूजा के दौरान जरूर जप करें।

उपासना मंत्र

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्मा खरास्थिता |
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी ||
वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा |
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिभयंकरी ||

ध्यान

करालवंदना धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।
कालरात्रिं करालिंका दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम॥
दिव्यं लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्।
अभयं वरदां चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम॥
महामेघ प्रभां श्यामां तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा।
घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥
सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्।
एवं सचियन्तयेत् कालरात्रिं सर्वकाम् समृध्दिदाम्॥

स्तोत्र पाठ

हीं कालरात्रि श्री कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।
कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥
कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥
क्लीं हीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥

कवच

ऊँ क्लीं मे हृदयं पातु पादौ श्रीकालरात्रि।
ललाटे सततं पातु तुष्टग्रह निवारिणी॥
रसनां पातु कौमारी, भैरवी चक्षुषोर्भम।
कटौ पृष्ठे महेशानी, कर्णोशंकरभामिनी॥
वर्जितानी तु स्थानाभि यानि च कवचेन हि।
तानि सर्वाणि मे देवीसततंपातु स्तम्भिनी॥



Monday, October 7, 2013

कात्यायनी : मां दुर्गा की छट्टी शक्ति

कात्यायनी : मां दुर्गा की छट्टी शक्ति


चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥


नवरात्रि में छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। देवी कात्यायनी की उपासना करने से परम पद की प्राप्ति होती है। यह अमोद्य फलदायिनी हैं। इनकी पूजा अर्चना द्वारा सभी संकटों का नाश होता है। मां कात्यायनी दानवों तथा पापियों का नाश करने वाली हैं। भक्त के भीतर अद्भुत शक्ति का संचार होता है। इसलिए कहा जाता है कि इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं।

इस दिन साधक का मन 'आज्ञा चक्र' में स्थित रहता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। श्री कात्यायनी की उपासना से आज्ञा चक्र जाग्रति की सिद्धियां साधक को स्वयंमेव प्राप्त हो जाती हैं। साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होने पर उसे सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त होते हैं। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौलिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है तथा उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं।

इनका गुण शोध कार्य है। इसीलिए इस वैज्ञानिक युग में कात्यायनी का महत्व सर्वाधिक हो जाता है। इनकी कृपा से ही सारे कार्य पूरे जो जाते हैं। ये वैद्यनाथ नामक स्थान पर प्रकट होकर पूजी गईं। मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा की थी। यह पूजा कालिंदी यमुना के तट पर की गई थी।इसीलिए ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इनका स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है।

मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यन्त दिव्य और स्वर्ण के समान चमकीला है। यह अपनी प्रिय सवारी सिंह पर विराजमान रहती हैं। इनकी चार भुजायें भक्तों को वरदान देती हैं, इनका एक हाथ अभय मुद्रा में है, तो दूसरा हाथ वरद मुद्रा में है अन्य हाथों में तलवार तथा कमल का फूल है।

कहा जाता है महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिए यह देवी कात्यायनी कहलाईं। दूसरी कथा यह है कि जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बहुत बढ़ गया, तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सबसे पहले इनकी पूजा की.इस कारण से भी यह कात्यायनी कहलायीं।

मां कात्यायनी की पूजा विधि

जो साधक कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा से देवी अराधना में समर्पित हैं उन्हें दुर्गा पूजा के छठे दिन मां कात्यायनी जी की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए फिर मन को आज्ञा चक्र में स्थापित करने हेतु मां का आशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए। इस प्रकार जो साधक प्रयास करते हैं उन्हें भगवती कात्यायनी सभी प्रकार के भय से मुक्त करती हैं।

दुर्गा पूजा के छठे दिन भी सर्वप्रथम कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करें फिर माता के परिवार में शामिल देवी देवता की पूजा करें जो देवी की प्रतिमा के दोनों तरफ विरजामन हैं। इनकी पूजा के पश्चात देवी कात्यायनी जी की पूजा कि जाती है। पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान किया जाता है। देवी की पूजा के पश्चात महादेव और परम पिता की पूजा करनी चाहिए। श्री हरि की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ ही करनी चाहिए।

मंत्र

चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

ध्यान

वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥

स्तोत्र पाठ

कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥

कवच

कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥

स्कन्दमाता : मां दुर्गा की पांचवी शक्ति

स्कन्दमाता :  मां दुर्गा की पांचवी शक्ति

भगवती दुर्गा के पांचवे स्वरुप को स्कन्दमाता के रूप में जाना जाता है। भगवान स्कन्द की माता होने के कारण इन्हें स्कन्द माता कहते हैं। स्कन्द का एक नाम कार्तिकेय भी है। यह प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। उन्होंने देवताओं के शत्रु ताड़कासुर का वध किया था। इनके विग्रह में स्कन्द जी बालरूप में माता की गोद में बैठे हैं।

स्कन्दमातृ स्वरुपिणी देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाहिनी तरफ की ऊपर वाली भुजा से भगवान स्कन्द को गोद में पकड़े हुए हैं। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है, उसमें कमल-पुष्प लिए हुए हैं। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। मां का वर्ण पूर्णतः शुभ्र है। सिंह इनका वाहन है।

शेर पर सवार होकर माता दुर्गा अपने पांचवें स्वरुप स्कन्दमाता के रुप में भक्तजनों के कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहती हैं। इन्हें कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री कहा जाता है। कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री देवी स्कन्दमाता की नवरात्रि में पूजा अर्चना करने का विशेष विधान है। नवरात्रि पूजन के पांचवे दिन इन्हीं माता की उपासना की जाती है।शास्त्रों के अनुसार स्कन्दमाता की पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है और उसे इस मृत्युलोक में परम शांति का अनुभव होने लगता है। माता की कृपा से उसके लिए मोक्ष का द्वार स्वमेव सुलभ हो जाता है। इस दिन साधक का मन विशुध्द चक्र में होता है।

पौराणिक कथानुसार भगवती स्कन्दमाता ही पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती हैं। महादेव की पत्नी होने के कारण माहेश्वरी और अपने गौर वर्ण के कारण गौरी के नाम से भी माता का पूजन किया जाता है। माता को अपने पुत्र से अधिक स्नेह है और इसी कारण इन्हें इनके पुत्र स्कन्द के नाम से जोड़कर पुकारा जाता है। स्कन्द माता की उपासना से बालरूप स्कन्द भगवान की उपासना स्वयं हो जाती है। मां स्कन्द माता की उपासना से उपासक की समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं।

उपासना मंत्र

सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया |
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ||

ध्यान

वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्वनीम्।।
धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्।
अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वांधरा कांत कपोला पीन पयोधराम्।
कमनीया लावण्या चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥

स्तोत्र पाठ

नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम्।
समग्रतत्वसागररमपारपार गहराम्॥
शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रीन्तिभास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपार्चिता सनंतकुमाररसस्तुताम्।
सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलादभुताम्॥
अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम्।
मुमुक्षुभिर्विचिन्तता विशेषतत्वमुचिताम्॥
नानालंकार भूषितां मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्।
सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेन्दमारभुषताम्॥
सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्रकौरिघातिनीम्।
शुभां पुष्पमालिनी सुकर्णकल्पशाखिनीम्॥
तमोन्धकारयामिनी शिवस्वभाव कामिनीम्।
सहस्त्र्सूर्यराजिका धनज्ज्योगकारिकाम्॥
सुशुध्द काल कन्दला सुभडवृन्दमजुल्लाम्।
प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरं सतीम्॥
स्वकर्मकारिणी गति हरिप्रयाच पार्वतीम्।
अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्॥
पुनःपुनर्जगद्वितां नमाम्यहं सुरार्चिताम्।
जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवीपाहिमाम्॥

कवच

ऐं बीजालिंका देवी पदयुग्मघरापरा।
हृदयं पातु सा देवी कार्तिकेययुता॥
श्री हीं हुं देवी पर्वस्या पातु सर्वदा।
सर्वांग में सदा पातु स्कन्धमाता पुत्रप्रदा॥
वाणंवपणमृते हुं फ्ट बीज समन्विता।
उत्तरस्या तथाग्नेव वारुणे नैॠतेअवतु॥
इन्द्राणां भैरवी चैवासितांगी च संहारिणी।
सर्वदा पातु मां देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै॥


भगवती स्कन्दमाता का ध्यान स्तोत्र व कवच का पाठ करने से विशुद्ध चक्र जागृत होता है। इससे मनुष्य की समस्त इच्छाओं की पूर्ति होती है। परम शांति व सुख का अनुभव होने लगता है।

शैलपुत्री : मां दुर्गा की पहली शक्ति

शैलपुत्री : मां दुर्गा की पहली शक्ति

नवरात्र में दुर्गा पूजा के अवसर पर नौ रूपों की पूजा-उपासना बहुत ही विधि विधान से की जाती है। नवरात्रि में पूजा के दौरान सबसे पहले शैलपुत्री की ही उपासना की जाती है। हिमालय के यहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण वह शैलपुत्री कहलाती हैं। वृषभ शैलपुत्री का वाहन है, इसलिए इन्हें वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है।
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌ ।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥


अर्थात् मनोवांछित लाभ के लिए मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करने वाली, वृष पर आरूढ़ होने वाली, शूलधारिणी, यशस्विनी शैलपुत्री दुर्गा जी की मैं वंदना करता हूं। इस प्रकार ध्यान करते हुए शैलपुत्री देवी के मंत्र ‘ऊं’ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ऊं शैलपुत्री देव्यै नम:’ का नित्य एक माला जाप करने से हर प्रकार की शुभता प्राप्त होती है। ऐसा माना जाता है कि सच्चे मन से शैलपुत्री की आराधना करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।

मां शैलपुत्री को लाल फूल, नारियल, सिंदूर, घी का दीपक जलाकर प्रसन्न किया जाता है। मां शैलपुत्री की आराधना से मनोवांछित फल तथा कन्याओं को उत्तम वर की प्राप्ति होती है। साथ ही साधक को मूलाधार चक्र जाग्रत होने से प्राप्त होने वाली सिद्घियां हासिल होती हैं। इससे मन निश्छल होता है और काम-क्रोध आदि शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।

शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से ही हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। उनकी एक मार्मिक कहानी है।

एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को आमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को आमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है।

सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को दुख पहुंचा।

वह अपने पति का अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं।

मंत्र

दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थ साधिके।
मम सिद्घिमसिद्घिं वा स्वप्ने सर्व प्रदर्शय॥

ध्यान

वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रर्धकृत शेखराम्।
वृशारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्री यशस्वनीम्॥
पूणेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्॥
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता॥
प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधरां कातंकपोलां तुग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्॥

स्तोत्र पाठ

प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन।
मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रमनाम्यहम्॥

कवच

ओमकार: में शिर: पातु मूलाधार निवासिनी।
हींकार: पातु ललाटे बीजरूपा महेश्वरी॥
श्रींकार पातु वदने लावाण्या महेश्वरी ।
हुंकार पातु हदयं तारिणी शक्ति स्वघृत।
फट्कार पात सर्वागे सर्व सिद्धि फलप्रदा॥


 " ॐ शैल्पुत्र्ये नमः " इस मन्त्र का 5 माला जाप  रुद्राक्ष या लाल चन्दन की माला से करें

आरती

शैलपुत्री मां बैल असवार | करें देवता जय जय कार ||
शिव-शंकर की प्रिय भवानी | तेरी महिमा किसी ने न जानी ||
पार्वती तूं उमा कहलावे | जो तुझे सुमिरे सो सुख पावें ||
रिद्धि सिद्धि परवान करे तू || दया करे धनवान करे तू ||
सोमवार को शिव संग प्यारी | आरती जिसने तेरी उतारी ||
उसकी सगरी आस पुजा दो | सगरे दुःख तकलीफ मिटा दो ||
घी का सुंदर दीप जला के | गोला गरी का भोग लगा के ||
श्रद्धा भाव से मंत्र जपायें | प्रेम सहित फिर शीश झुकायें ||
जय गिरराज किशोरी अम्बे | शिव मुख चन्द्र चकोरी अम्बे ||
मनोकामना पूर्ण कर दो | चमन सदा सुख संम्पति भर दो ||

माता की आरती करने के उपरांत शंख, नगाड़ा बजाए  माता का  जयकारा लगाएं। फिर  देखिये चमत्कार, कैसे दूर होंगे आपके सारे कष्ट।

ब्रह्मचारिणी : मां दुर्गा की दूसरी शक्ति

ब्रह्मचारिणी : मां दुर्गा की दूसरी शक्ति

नवरात्र के दूसरे दिन माता के ब्रह्मचारिणी स्वरुप की पूजा की जाती है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली अर्थात तप का आचरण करने वाली मां ब्रह्मचारिणी। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है। यह देवी शांत और निमग्न होकर तप में लीन हैं। मुख पर कठोर तपस्या के कारण तेज और कांति का ऐसा अनूठा संगम है जो तीनों लोको को उजागर कर रहा है। यह स्वरूप श्वेत वस्त्र पहने दाहिने हाथ में जप की माला एवं बायें हाथ में कमंडल लिए हुए सुशोभित है।

ब्रह्मचारिणी देवी के कई अन्य नाम हैं जैसे तपश्चारिणी, अपर्णा और उमा। कहा जाता है कि देवी ब्रह्मचारिणी अपने पूर्व जन्म में राजा हिमालय के घर पार्वती स्वरूप में थीं। इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप से प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। वह भगवान शिव को पाने के लिए 1000 साल तक सिर्फ फल खाकर रहीं और 3000 साल तक शिव की तपस्या सिर्फ पेड़ों से गिरी पत्तियां खाकर की। कड़ी तपस्या के कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया।

देवी दुर्गा का यह दूसरा रूप भक्तों एवं सिद्धों को अमोघ फल देने वाला है। देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। माता ब्रह्मचारिणी की पूजा और साधना करने से कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है। ऐसा भक्त इसलिए करते हैं ताकि मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से उनका जीवन सफल हो सके और अपने सामने आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा का सामना आसानी से कर सकें।

मां जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र कंठस्थ कर नवरात्रि में द्वितीय दिन इसका जाप करना चाहिए।

मंत्र 

या देवी सर्वभू‍तेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।


अर्थ: हे मां! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।

ध्यान मंत्र

वन्दे वांच्छितलाभायचन्द्रर्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलुधराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णास्वाधिष्ठानास्थितांद्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल परिधानांब्रह्मरूपांपुष्पालंकारभूषिताम्॥
पद्मवंदनापल्लवाराधराकातंकपोलांपीन पयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीनिम्न नाभि नितम्बनीम्॥

स्तोत्र मंत्र 

तपश्चारिणीत्वंहितापत्रयनिवारिणीम्।
ब्रह्मरूपधराब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
नवचक्रभेदनी त्वंहिनवऐश्वर्यप्रदायनीम्।
धनदासुखदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रियात्वंहिभुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदामानदा,ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्।

कवच मंत्र 

त्रिपुरा में हृदयेपातुललाटेपातुशंकरभामिनी।
अर्पणासदापातुनेत्रोअर्धरोचकपोलो॥
पंचदशीकण्ठेपातुमध्यदेशेपातुमहेश्वरी॥
षोडशीसदापातुनाभोगृहोचपादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातुब्रह्मचारिणी॥

चंद्रघंटा : मां दुर्गा की तीसरी शक्ति

चंद्रघंटा : मां दुर्गा की तीसरी शक्ति 

नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है। नवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गा के तीसरे स्वरुप यानी मां चंद्रघंटा की उपासना होती है। मां का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र है इसलिए इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है।

मां चंद्रघंटा के शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनकी पूजा-अर्चना भक्तों को जन्म-जन्मांतर के कष्टों से मुक्त कर इहलोक और परलोक में कल्याण प्रदान करती है। देवी स्वरूप चंद्रघंटा बाघ की सवारी करती हैं।  इनके दस हाथ हैं। इनके दसों हाथों में कमल, धनुष-बाण, कमंडल, तलवार, त्रिशूल और गदा जैसे अस्त्र हैं। इनके कंठ में श्वेत पुष्प की माला और रत्नजड़ित मुकुट शीर्ष पर विराजमान है। अपने दो हाथों से यह साधकों को चिरायु आरोग्य और सुख-संपदा का वरदान देती हैं। इनका वाहन सिंह है। इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्यत रहने की होती है। इसके घंटे सी भयानक ध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य और राक्षस कांपते रहते हैं।

मां चंद्रघंटा की कृपा से साधक के समस्त पाप और बाधाएं खत्म हो जाती हैं। इनकी आराधना सर्वफलदायी है। इनकी उपासना से हम समस्त सांसारिक कष्टों से छूटकर सहज ही परम पद के अधिकारी बन सकते हैं। मां भक्तों के कष्ट का निवारण शीघ्र ही कर देती हैं। इनका उपासक सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है। इस देवी की आराधना से साधक में वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का विकास होता है।

पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥

 ॐ चन्द्रघण्टायै नमः

इस मंत्र की 5 माला जाप रुद्राक्ष या लाल चन्दन की माला से नवरात्र के तीसरे दिन करें। हम आपको मणिपूरक चक्र के बारे में इतना बता देना आवश्यक समझते हैं कि इस चक्र पर मंगल ग्रह का आधिपत्य होता है।  मां चन्द्रघण्टा आपकी मनोकामना पुरी करे इसी कामना के साथ।

मां भगवती चन्द्रघंटा का ध्यान

वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥

मां भगवती चन्द्रघंटा का स्तोत्र पाठ

आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।
अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥

मां भगवती चन्द्रघंटा का कवच मंत्र

रहस्यं श्रुणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।
श्री चन्द्रघन्टास्य कवचं सर्वसिध्दिदायकम्॥
बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोध्दा बिना होमं।
स्नानं शौचादि नास्ति श्रध्दामात्रेण सिध्दिदाम॥
कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च न दातव्यं न दातव्यं न दातव्यं कदाचितम्॥