सातवें नवरात्र में सरस्वती पूजन
नवरात्रि के 9 दिनों में दुर्गा के 9 रूपों की पूजा की जाती है, जिन्हें शास्त्रों में नवदुर्गा कहा गया है। नवरात्रि के पहले तीन दिन शक्ति की देवी मां पार्वती की पूजा होती है जिसके जरिए हमारे सारे कष्टों और पापों का नाश होता है। अगले दिन दिन धन की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है और धन-धान्य की कृपा अपने पर बनाए रखने के लिए देवी का आशीर्वाद मांगा जाता है। नवरात्रि के आखिरी तीन दिन विद्या, ज्ञान और बुद्धि की देवी मां सरस्वती के तीन रूपों की पूजा की जाती है। इस तरह नवरात्रि के 9 दिनों की पूजा सम्पन्न होती है।नवरात्रों का सातवां दिन वीणावादिनी, शुभ्रवसना, मंद-मंद मुस्कुराती हंस पर विराजमान मां सरस्वती के आह्वान का होता है। सरस्वती का जन्म ब्रह्मा जी के मुंह से हुआ था। मां सरस्वती विद्या, बुद्धि, ज्ञान व विवेक की अधिष्ठात्री देवी हैं। इस अंधकारमय जीवन से इंसान को सही राह पर ले जाने का सारा बीड़ा वीणा वादिनी सरस्वती मां के कंधों पर ही है। यह देवी मनुष्य समाज को महानतम सम्पत्ति-ज्ञानसम्पदा प्रदान करती है।
वेदों में सरस्वती का वर्णन श्वेत वस्त्रा के रूप में किया गया है। यानी वह श्वेत वस्त्र धारण किए हुए हैं जो हमें प्रेरणा देते हैं कि हम अपने भीतर सत्य अहिंसा, क्षमा, सहनशीलता, करुणा, प्रेम व परोपकार आदि सद्गुणों को बढाएं और काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, अहंकार आदि दुर्गुणों से स्वयं को बचाएं। श्वेत पुष्प व मोती इनके आभूषण हैं। उनके चार हाथ हैं, जिनमें वीणा, पुस्तक और अक्षरमाला है। उनका वाहन हंस है तथा श्वेत कमल गुच्छ पर यह विराजमान हैं। वेद इन्हें जलदेवी के रूप में महत्ता देते हैं, एक नदी का नाम भी सरस्वती है।
पुराणों में मां सरस्वती को कमल पर बैठा दिखाया जाता है। कीचड़ में खिलने वाले कमल को कीचड़ स्पर्श नहीं कर पाता। इसीलिए कमल पर विराजमान मां सरस्वती हमें यह संदेश देना चाहती हैं कि हमें चाहे कितने ही दूषित वातावरण में रहना पड़े, परंतु हमें खुद को इस तरह बनाकर रखना चाहिए कि बुराई हम पर प्रभाव न डाल सके। मां सरस्वती की पूजा-अर्चना इस बात की द्योतक है कि उल्लास में बुद्धि व विवेक का संबल बना रहे।
मां सरस्वती के पूजन से मानव जीवन का अज्ञान रूप दूर होकर ज्ञान का प्रकाश प्राप्त होता है। मां सरस्वती की कृपा मनुष्य में कला, विद्या, ज्ञान तथा प्रतिभा का प्रकाश करती है। इनकी उपासना करने से मूर्ख भी विद्वान् बन सकता है। सत्वगुण से उत्पन्न होने के कारण इनकी पूजा में प्रयुक्त होने वाली सामग्रियों में अधिकांश श्वेत वर्ण की होती हैं। जैसे- श्वेत चंदन, पुष्प, परिधान, दही-मक्खन, धान का लावा, सफेद तिल का लड्डू, अदरक, श्वेत धान, अक्षत, शुक्ल मोदक, घृत, नारियल और इसका जल, श्रीफल, बदरीफल आदि। सभी सामाजिक कार्यक्रमों का आरंभ भी इसीलिए सरस्वती वंदना से होती है ताकि कार्य सर्वोत्तम तरीके से पूर्ण हो।
सरस्वती शुक्ल वर्णासस्मितांसुमनोहराम।
कोटिचन्द्रप्रभामुष्टश्री युक्त विग्रहाम।
कोटिचन्द्रप्रभामुष्टश्री युक्त विग्रहाम।
वह्निशुद्धांशुकाधानांवीणा पुस्तक धारिणीम्।
रत्नसारेन्द्रनिर्माण नव भूषण भूषिताम।
सुपूजितांसुरगणैब्रह्म विष्णु शिवादिभि:।
वन्दे भक्त्यावन्दितांचमुनीन्द्रमनुमानवै:।
मां सरस्वती का मूल मंत्र
'शारदा शारदाभौम्वदना। वदनाम्बुजे।सर्वदा सर्वदास्माकमं सन्निधिमं सन्निधिमं क्रिया तू।'
मां सरस्वती का श्र्लोक
ॐ श्री सरस्वती शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम्।।कोटिचंद्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्।
वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकमधारिणीम्।।
रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिताम्।
सुपूजितां सुरगणैब्रह्मविष्णुशिवादिभि:।।
वन्दे भक्तया वन्दिता च मुनीन्द्रमनुमानवै:।
मां सरस्वती की आरती
कज्जल पुरित लोचन भारे, स्तन युग शोभित मुक्त हारे |वीणा पुस्तक रंजित हस्ते, भगवती भारती देवी नमस्ते ॥
जय सरस्वती माता जय जय हे सरस्वती माता |
सदगुण वैभव शालिनी त्रिभुवन विख्याता ॥ जय.....
चंद्रवदनि पदमासिनी घुति मंगलकारी |
सोहें शुभ हंस सवारी अतुल तेजधारी ॥ जय.....
बायेँ कर में वीणा दायें कर में माला |
शीश मुकुट मणी सोहें गल मोतियन माला ॥ जय.....
देवी शरण जो आयें उनका उद्धार किया |
पैठी मंथरा दासी रावण संहार किया ॥ जय.....
विद्या ज्ञान प्रदायिनी ज्ञान प्रकाश भरो |
मोह और अज्ञान तिमिर का जग से नाश करो ॥ जय.....
धुप दिप फल मेवा माँ स्वीकार करो |
ज्ञानचक्षु दे माता भव से उद्धार करो ॥ जय.....
माँ सरस्वती जी की आरती जो कोई नर गावें |
हितकारी सुखकारी ग्यान भक्ती पावें ॥ जय.....
जय सरस्वती माता जय जय हे सरस्वती माता |
सदगुण वैभव शालिनी त्रिभुवन विख्याता ॥ जय.....
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