Monday, October 7, 2013

शैलपुत्री : मां दुर्गा की पहली शक्ति

शैलपुत्री : मां दुर्गा की पहली शक्ति

नवरात्र में दुर्गा पूजा के अवसर पर नौ रूपों की पूजा-उपासना बहुत ही विधि विधान से की जाती है। नवरात्रि में पूजा के दौरान सबसे पहले शैलपुत्री की ही उपासना की जाती है। हिमालय के यहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण वह शैलपुत्री कहलाती हैं। वृषभ शैलपुत्री का वाहन है, इसलिए इन्हें वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है।
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌ ।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥


अर्थात् मनोवांछित लाभ के लिए मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करने वाली, वृष पर आरूढ़ होने वाली, शूलधारिणी, यशस्विनी शैलपुत्री दुर्गा जी की मैं वंदना करता हूं। इस प्रकार ध्यान करते हुए शैलपुत्री देवी के मंत्र ‘ऊं’ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ऊं शैलपुत्री देव्यै नम:’ का नित्य एक माला जाप करने से हर प्रकार की शुभता प्राप्त होती है। ऐसा माना जाता है कि सच्चे मन से शैलपुत्री की आराधना करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।

मां शैलपुत्री को लाल फूल, नारियल, सिंदूर, घी का दीपक जलाकर प्रसन्न किया जाता है। मां शैलपुत्री की आराधना से मनोवांछित फल तथा कन्याओं को उत्तम वर की प्राप्ति होती है। साथ ही साधक को मूलाधार चक्र जाग्रत होने से प्राप्त होने वाली सिद्घियां हासिल होती हैं। इससे मन निश्छल होता है और काम-क्रोध आदि शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।

शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से ही हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। उनकी एक मार्मिक कहानी है।

एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को आमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को आमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है।

सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को दुख पहुंचा।

वह अपने पति का अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं।

मंत्र

दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थ साधिके।
मम सिद्घिमसिद्घिं वा स्वप्ने सर्व प्रदर्शय॥

ध्यान

वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रर्धकृत शेखराम्।
वृशारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्री यशस्वनीम्॥
पूणेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्॥
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता॥
प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधरां कातंकपोलां तुग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्॥

स्तोत्र पाठ

प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन।
मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रमनाम्यहम्॥

कवच

ओमकार: में शिर: पातु मूलाधार निवासिनी।
हींकार: पातु ललाटे बीजरूपा महेश्वरी॥
श्रींकार पातु वदने लावाण्या महेश्वरी ।
हुंकार पातु हदयं तारिणी शक्ति स्वघृत।
फट्कार पात सर्वागे सर्व सिद्धि फलप्रदा॥


 " ॐ शैल्पुत्र्ये नमः " इस मन्त्र का 5 माला जाप  रुद्राक्ष या लाल चन्दन की माला से करें

आरती

शैलपुत्री मां बैल असवार | करें देवता जय जय कार ||
शिव-शंकर की प्रिय भवानी | तेरी महिमा किसी ने न जानी ||
पार्वती तूं उमा कहलावे | जो तुझे सुमिरे सो सुख पावें ||
रिद्धि सिद्धि परवान करे तू || दया करे धनवान करे तू ||
सोमवार को शिव संग प्यारी | आरती जिसने तेरी उतारी ||
उसकी सगरी आस पुजा दो | सगरे दुःख तकलीफ मिटा दो ||
घी का सुंदर दीप जला के | गोला गरी का भोग लगा के ||
श्रद्धा भाव से मंत्र जपायें | प्रेम सहित फिर शीश झुकायें ||
जय गिरराज किशोरी अम्बे | शिव मुख चन्द्र चकोरी अम्बे ||
मनोकामना पूर्ण कर दो | चमन सदा सुख संम्पति भर दो ||

माता की आरती करने के उपरांत शंख, नगाड़ा बजाए  माता का  जयकारा लगाएं। फिर  देखिये चमत्कार, कैसे दूर होंगे आपके सारे कष्ट।

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