Monday, October 7, 2013

चंद्रघंटा : मां दुर्गा की तीसरी शक्ति

चंद्रघंटा : मां दुर्गा की तीसरी शक्ति 

नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है। नवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गा के तीसरे स्वरुप यानी मां चंद्रघंटा की उपासना होती है। मां का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र है इसलिए इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है।

मां चंद्रघंटा के शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनकी पूजा-अर्चना भक्तों को जन्म-जन्मांतर के कष्टों से मुक्त कर इहलोक और परलोक में कल्याण प्रदान करती है। देवी स्वरूप चंद्रघंटा बाघ की सवारी करती हैं।  इनके दस हाथ हैं। इनके दसों हाथों में कमल, धनुष-बाण, कमंडल, तलवार, त्रिशूल और गदा जैसे अस्त्र हैं। इनके कंठ में श्वेत पुष्प की माला और रत्नजड़ित मुकुट शीर्ष पर विराजमान है। अपने दो हाथों से यह साधकों को चिरायु आरोग्य और सुख-संपदा का वरदान देती हैं। इनका वाहन सिंह है। इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्यत रहने की होती है। इसके घंटे सी भयानक ध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य और राक्षस कांपते रहते हैं।

मां चंद्रघंटा की कृपा से साधक के समस्त पाप और बाधाएं खत्म हो जाती हैं। इनकी आराधना सर्वफलदायी है। इनकी उपासना से हम समस्त सांसारिक कष्टों से छूटकर सहज ही परम पद के अधिकारी बन सकते हैं। मां भक्तों के कष्ट का निवारण शीघ्र ही कर देती हैं। इनका उपासक सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है। इस देवी की आराधना से साधक में वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का विकास होता है।

पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥

 ॐ चन्द्रघण्टायै नमः

इस मंत्र की 5 माला जाप रुद्राक्ष या लाल चन्दन की माला से नवरात्र के तीसरे दिन करें। हम आपको मणिपूरक चक्र के बारे में इतना बता देना आवश्यक समझते हैं कि इस चक्र पर मंगल ग्रह का आधिपत्य होता है।  मां चन्द्रघण्टा आपकी मनोकामना पुरी करे इसी कामना के साथ।

मां भगवती चन्द्रघंटा का ध्यान

वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥

मां भगवती चन्द्रघंटा का स्तोत्र पाठ

आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।
अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥

मां भगवती चन्द्रघंटा का कवच मंत्र

रहस्यं श्रुणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।
श्री चन्द्रघन्टास्य कवचं सर्वसिध्दिदायकम्॥
बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोध्दा बिना होमं।
स्नानं शौचादि नास्ति श्रध्दामात्रेण सिध्दिदाम॥
कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च न दातव्यं न दातव्यं न दातव्यं कदाचितम्॥
                                                                                                                      
 

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