Thursday, September 18, 2014

गरबा के मौज-मस्ती वाले रंग

गरबा के मौज-मस्ती वाले रंग



नवरात्र के नौ दिन के उत्सव के दौरान हर तरफ गरबा और डांडिया डांस की धूम होती है। गरबा सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। गुजरात का यह पारंपरिक लोक नृत्य कभी सिर्फ गुजरात तक ही सीमित था, लेकिन अब यह देश के कई हिस्सों में अपनी धूम मचा रहा है। इसकी बड़ी वजह है, धार्मिक महत्व के अलावा इसके मौज-मस्ती वाले रंग। इसलिए इससे जुड़े आयोजनों में सभी आयु वर्ग के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। युवाओं के लिए अपने संस्कृति से जुड़ने का सुनहरा अवसर होता है।  वे पूरी रात डांडिया और गरबे की मस्ती में झूमते हैं। चौतरफा सिर्फ उत्सव का माहौल रहता है।

शक्ति की साधना और आराधना के पर्व शारदीय नवरात्रों को गरबा नृत्योत्सव के रूप में मनाया जाता है। गरबा और डांडिया नृत्य दुनिया भर के बड़े नृत्य त्योहारों में से एक हैं। नवरात्रों में शाम को डांडिया और गरबा नृत्य के जरिए मां दुर्गा की पूजा की जाती है। नवरात्रों की पहली रात्रि को कच्चे मिट्टी के सछिद्र घड़े, जिसे 'गरबो' कहते हैं, की स्थापना होती है। फिर उसके अंदर दीपक को प्रज्वलित किया जाता है, जो ज्ञान रूपी प्रकाश का अज्ञान रूपी अंधेरे के भीतर फैलाने प्रतीक माना जाता है।

महिलाएं कलश के चारों ओर एक लय व ताल के साथ गोलाकार में घूमते हुए झुकती, मुड़ती, तालियां या  चुटकियां बजाती हुई नृत्य करती हैं। इस नृत्य के साथ देवी की स्तुति की जाती है और कृष्णलीला संबंधी गीत भी गाए जाते हैं। साथ में ढोलक या तबला बजाने वाले संगीत देते हैं। आरती से पहले सभी रसिक-जन गरबा के रंग में रंग जाते हैं। देवी के सम्मान में भक्ति प्रदर्शन के रूप में गरबा, 'आरती' से पहले किया जाता है और डांडिया समारोह उसके बाद। यह रात भर चलता है।

आरंभ में देवी के निकट सछिद्र घट में दीप ले जाने के क्रम में गरबा नृत्य होता था। यह घट दीपगर्भ कहलाता था। वर्णलोप से यही शब्द गरबा बन गया। डांडिया रास की शुरूआत के संबंध में एक किंवदंती प्रसिद्ध है। वर्षों पहले गुजरात में महिषासुर नामक राक्षस राज करता था। उसने अपने क्रूर व्यवहार से सारी जनता की नाक में दम कर रखा  था। उसके आतंक से त्रस्त होकर आखिर सभी लोगों ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश की सामूहिक आराधना की। देवताओं के प्रकोप से तब देवी जगदंबा प्रकट हुर्इं और उन्होंने उस राक्षस का वध किया। तभी से नवरात्रि के दौरान भक्तगण नौ दिन तक उपवास करने लगे और देवी के सम्मान में गरबा करने लगे। समय के साथ इसमें डांडिया भी जुड़ा और डांडिया-रास के रूप में इस लोकप्रिय नृत्य का उदय हुआ।

नौ दिन तक माता का पंडाल सजाया जाता है। युवक- युवतियां पारंपरिक वेशभूषा में गानों पर थिरकते हैं औरव डांडिया व  गरबा खेलते है। गरबा में पहने जाने वाली इस पारंपरिक पोशाक को केडिया (बड़ा कुर्ता) कहते हैं। इसे सिर्फ लड़के पहनते हैं। केडिया के साथ पहने जाने वाले आभूषण को हसदी कहा जाता हैं। गरबा खेलने आईं लड़कियां पारंपरिक चनिया चोली पहनती हैं। इस विशेष परिधान का वज़न क़रीब पांच किलो होता है और यह पोशाक कई सजावटी चीज़ों से बनती हैं। इस कारण आधुनिक युवतियां चनिया चोली की जगह जींस के साथ शार्ट कुर्ती, डिजाइनर साड़ियां और लड़के जींस के साथ शार्ट कुर्ता, लॉग कुर्ते के साथ चूड़ीदार या पाजामा-कुर्ता ज्यादा पसंद कर रहे हैं।

बदलते समय के साथ-साथ गरबे में भी बहुत बदलाव आया है। आज इन नृत्यों के व्यावसायीकरण हो जाने के कारण इस नृत्य की वास्तविकता, पारंपरिकता और नाजुक लय, वैकल्पिक रूपों में गुम होती जा रही है। ढोल के धमाके और ढोलक की थापों का स्थान अब ड्रम और कांगों ने ले लिया है। हारमोनियम की मस्ती, शहनाई की गूंज और बांसुरी की मधुर धुन का स्थान इलेक्ट्रॉनिक सिंथेसाइजर ले चुके हैं। 

हैल्दी लाइफस्टाइल से जुड़ा है नवरात्र का त्योहार

हैल्दी लाइफस्टाइल से जुड़ा है नवरात्र का त्योहार

भारतीय मनीषियों ने वर्ष में दो बार विशेष रूप से नवरात्रियों का पर्व मनाने का विधान बताया है। सर्वप्रथम विक्रम संवत के प्रारंभ के दिन से अर्थात चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहली तिथि) से नौ दिन पर्यन्त अर्थात नवमी तक नवरात्र निश्चित किए गए हैं। इसी प्रकार ठीक छह मास बाद शारदीय नवरात्र आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी अर्थात विजयदशमी से एक दिन पूर्व तक नवरात्रियों का पर्व माना गया है। परन्तु शारदीय नवरात्र ही सभी दृष्टियों से सबसे महत्वपूर्ण नवरात्रियां मानी गई हैं।

इन नवरात्रों में विशेष आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए सभी प्रकार के उपासक ध्यान, व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग साधना आदि करते हैं। विशेष साधक इन रात्रियों में पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर आन्तरिक त्राटक या विशेष योगसाधना या विशेष बीजमंत्रों का निरन्तर जाप करके सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं।

नवरात्र अध्यात्म से जुड़ा होता है जिससे शरीर में अतिरिक्त ऊर्जा का एहसास होता है। नवरात्रों के दौरान घर पर किया जाने वाला विधिवत हवन भी स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद है। हवन से आत्मिक शांति मिलती है, वातावरण की शुद्धि होती है और साथ ही नकारात्मक शक्तियों का नाश होकर सकारात्मक शक्तियों का प्रवेश होता है।

नवरात्र में व्रत रखने की परंपरा भी बहुत पुरानी है। इस समय शक्ति के नव रूपों की उपासना की जाती है। नवरात्र व्रत का वैज्ञानिक महत्व भी है जो स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी लाभदायक है। जब हम हैल्थ की बात करते हैं तो हमारा मतलब हैल्दी लाइफस्टाइल से होता है। नवरात्र का त्योहार इसी हैल्दी लाइफस्टाइल से जुड़ा हुआ है। बदलते मौसम में शरीर को कैसे स्वस्थ रखना है, नवरात्र में वही तरीका अपनाया जाता है।

पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा काल में एक साल की चार संधियां हैं जिनमें से मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियां बढ़ती हैं। अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए तथा शरीर को शुद्ध रखने के लिए और तन-मन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम 'नवरात्र' है। दरअसल, शरीर को सुचारू रखने के लिए विरेचन, सफाई तो हम प्रतिदिन करते ही हैं किन्तु अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई करने के लिए हर छ: माह के अंतर से सफाई अभियान चलाया जाता है और यह काम करता है नवरात्र के व्रत। उपवास शरीर को ऊर्जावान बनाता है, इससे शरीर में चुस्ती-फुर्ती बनी रहती है और पाचन तंत्र को भी व्रत के दिन आराम मिलता है।

नवरात्रों पर महिलाएं अपने परिवार की मंगल कामना के लिए पूरे नौ दिन न केवल पूरे भक्ति-भाव से देवी की पूजा करती हैं बल्कि उपवास भी रखती हैं। नवरात्र के व्रत के समय मांस, शराब, अनाज, गेहूं और प्याज नहीं खाते। नवरात्र और मौसमी परिवर्तन के समय के दौरान अनाज का आमतौर पर परहेज किया जाता है क्योंकि मान्यता है कि अनाज नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है। सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुध्दि, साफ सुथरे शरीर में शुध्द बुद्धि, उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता और क्रमश: मन शुध्द होता है। स्वच्छ मन मंदिर में ही तो ईश्वर की शक्ति का स्थायी निवास होता है।

फास्ट को ना बनाएं फीस्ट

फास्ट को ना बनाएं फीस्ट

नवरात्रों के दौरान ज्यादातर लोग धार्मिक कारणों से उपवास रखते हैं, लेकिन ये स्वास्थ्य के लिए भी बेहद फायदेमंद हैं। व्रत शरीर को ऊर्जावान बनाता है। व्रत करने से शरीर में चुस्ती-फुर्ती बनी रहती है। पाचन तंत्र को भी व्रत के दिन आराम मिलता है। डाइटीशियन भी मानते हैं कि नवरात्रों के दौरान सही तरीके से उपवास रख कर महिलाएं अपनी सेहत को दुरुस्त कर सकती हैं। अगर आप नौ दिन तक उपवास कर रहे हैं, तो अपनी डाइट पर नियंत्रण रखें, ऐसी लौ कैलोरी डाइट लें, जो हैल्दी हो और स्वादिष्ट भी लगे ...


व्रत के दौरान दिनभर कुछ-न-कुछ खाते रहने से परहेज रखना चाहिए। उपवास का भी यही अर्थ है। उतना ही खाओ, जितना शरीर के लिए उपयोगी है। बहुत से लोग, उपवास इसीलिए रखते हैं ताकि अच्छा और सुस्वाद भोजन कर सकें, पर उपवास संयम सिखाता है। संयम इसलिए क्योंकि शरीर को स्वस्थ रखना है। डाइट की अनियमितता की वजह से अक्सर व्रत के दौरान कमजोरी, गैस्ट्रिक आदि समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

नवरात्र का नौ जड़ी बूटियों या ख़ास व्रत की चीजों से भी संबंध है, जिन्हें नवरात्र के व्रत में प्रयोग किया जाता है :

1. कुट्टू (शैलपुत्री)
2. दूध-दही (ब्रह्मचारिणी)
3. चौलाई (चंद्रघंटा)
4. पेठा (कूष्माण्डा)
5. श्यामक चावल (स्कन्दमाता)
6. हरी तरकारी (कात्यायनी)
7. काली मिर्च व तुलसी (कालरात्रि)
8. साबूदाना (महागौरी)
9. आंवला (सिध्दीदात्री)

यह आदत है खतरनाक

पहले जमाने में महिलाएं खूब शारीरिक श्रम करती थीं तब व्रत के दिन बनने वाले पकवान खाने के बावजूद अतिरिक्त कैलोरी की खपत हो जाया करती थी। लेकिन आज के दौर में ऐसा नहीं है। आज भी महिलाएं नवरात्र के उपवास में परंपरागत व्यंजन खाने का मोह नहीं त्याग पातीं, जबकि उनका शारीरिक श्रम काफी कम हो गया है।  नतीजा, व्रत का जैसा असर महिलाएं अपने शरीर में चाहती हैं, वैसा नहीं हो पाता। नौ दिनों में वे दोगुनी कैलोरी ले लेती हैं और पेट पर मोटापे का टायर पहले की तुलना में ज्यादा स्पष्ट दिखने लगता है।

महिलाएं व्रत में कम खाने और शरीर को डिटॉक्स करने यानी विषैले तत्वों से मुक्त करने के बजाय इसका उल्टा करती हैं। भले ही वे एक वक्त खाती हैं, लेकिन आहार जरूरत से ज्यादा कैलोरी युक्त होता है। यह शरीर में तत्काल ऊर्जा में नहीं बदलता, बल्कि शरीर में चर्बी के रूप में जमता चला जाता है।

व्रत में अन्न का सेवन वर्जित है, जिस कारण आमतौर पर महिलाओं में यह धारणा है कि व्रत के दिनों में बहुत ऊर्जा की जरूरत होती है, इसलिए वे व्रत के दौरान चाय, काफी का सेवन ज्यादा करने लगती हैं, इस पर नियंत्रण रखें।

व्रत के दौरान कैसा हो खानपान?

उपवास में डाइट ऐसी हो, जो तुरंत ऊर्जा दे और कैलोरी भी कंट्रोल में रहे। जो महिलाएं नवरात्र में पूरे नौ दिन का व्रत रखती हैं, वे कम मात्रा में और नियमित अंतराल पर फलों का सेवन करती रहें, ताकि शरीर को जरूरी ऊर्जा मिलती रहे। फलाहार में संतरा, अंगूर, केला, सेब, अनार आदि फल लिया जा सकता है। इससे शाम तक आप निढाल महसूस नहीं करेंगे।

व्रत में पकाए जाने वाले व्यंजनों में टेस्ट के साथ समझौता किए बिना सेहत की दृष्टि से थोड़ा-बहुत फेरबदल किया जाए।  तले भोजन पर टूटने से पहले दूसरे सेहतमंद विकल्प तलाश लें। कुट्टू के आटे के पकौड़ों व पूरियों की जगह कुट्टू की रोटी खाई जा सकती है। फ्राई किए हुए आलू की चाट की जगह उबले आलू की चाट और खीर की जगह दही व कटे फलों का रायता और सलाद खाया जा सकता है।

‘डीटॉक्सीफिकेशन’ के लिए एक दिन सिर्फ फलों का जूस और पानी पिया जाए। जूस में फ्रुक्टोस शुगर, खनिज और विटामिन होते हैं, लेकिन इनकी मात्रा उतनी नहीं होती, जितनी हमारे शरीर को इनकी जरूरत होती है। इसलिए आपको थोड़े-थोड़े अंतराल पर हल्का और सुपाच्य भोजन लेते रहना चाहिए।

व्रत करते समय पेय पदार्थों पर अधिक ध्यान देना चाहिए। इससे शरीर में पानी का संतुलन सही रहता है, ऊर्जा बनी रहती है। एक साथ खूब सारा पानी पीने की बजाय दिन में कई बार नींबू पानी पिएं। मिश्रीयुक्त नींबू पानी, लस्सी, जूस इस मामले में बढिय़ा है। दही, छाछ, लस्सी या दूध कम से कम एक टाइम जरूर लें। सुबह एक गिलास दूध पिएं, दोपहर के समय जूस लें और शाम को चाय पी सकती हैं।

व्रत के दौरान सुबह के समय हम जो डाइट लेते हैं, उसका बहुत महत्व है। सुबह की शुरूआत फल, फलों के जूस, पनीर, ड्राइ फ्रूट्स आदि से करें। ध्यान रखें कि आपकी डाइट में न तो बहुत अधिक मीठा हो और न ही अधिक नमक। सुबह के समय आलू के पकवान खाए जा सकते हैं। आलू में कार्बोहाइड्रेट प्रचुर मात्रा में होता है। इनसे शरीर को एनर्जी मिलती है। रात के भोजन में सिंघाड़े के आटे से बने पकवान खा सकती हैं। ड्राई फ्रूट्स इंस्टेट एनर्जी के लिए लाभदायक होतेे हैं। बादाम और अखरोट इंस्टेंट एनर्जी व अच्छे कोलेस्ट्रॉल के लिए उत्तम माने जाते हैं।

इन बातों का रखें ध्यान


  • कई लोग व्रत के दौरान एक ही बार भोजन करते हैं। पूरे दिन भूखा रहने और रात में हैवी खाना खाने से बेहोशी आना, चक्कर आना, सिरदर्द होना, कमजोरी महसूस करना आदि समस्याएं शुरू हो जाती हैं। ऐसे में पूरे दिन निश्चित अंतराल पर फल, सलाद, दही, श्रीखंड, फ्रूट चाट, खट्टे आलू लेने चाहिए।
  • जहां तक संभव हो निर्जला उपवास न करें। इससे सरीर में पानी की कमी हो जती है और अपशिष्ट पदार्थ शरीर के बाहर नहीं आ पाते। इससे पेट में जलन, कब्ज, संक्रमण और पेशाब में जलन जैसी कई समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
  • व्रत की शुरूआत में भूख काफी लगती है ऐसे में नींबू- पानी पिया जा सकता है। इससे भूख को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। कच्चे नारियल का पानी भी उपवास की दृष्टि के फायदेमंद है। 
  • ज्यादातर लोगों को उपवास में कब्ज की शिकायत हो जाती है। इसलिए व्रत करने से पहले त्रिफला, आंवला, पालक का सूप या करेले के रस इत्यादि का सेवन करें। इससे पेट साफ रहता है।
  • व्रत के दौरान अधिक बातचीत न करें। अधिक समय मौन धारण करें।

डॉक्टर की लें सलाह

बीमार लोगों को डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही उपवास रखना चाहिए। गर्भवती महिलाओं को भी उपवास के दौरान अपेक्षाकृत अधिक सावधानियां बरतनी चाहिए।अगर सेहतमंद तरीके से व्रत करेंगे तो व्रत के दौरान व व्रत के बाद तकलीफ नहीं होगी। डायबिटीज के रोगी को अधिक मीठे फल, आलू, मिठाइयां आदि खाने से परहेज करना चाहिए। दरअसल, इन सभी चीजों में शूगर की मात्रा अधिक होती है। वे भूखे भी न रहें, क्योंकि शरीर में ग्लूकोज की मात्रा घटने से भी परेशानियां पैदा होने लगती हैं। उन्हें दिन में कई बार थोड़ी मात्रा में हल्की डाइट लेनी चाहिए। वे व्रत के दौरान सिंघाड़े के आटे या साबूदाने के बजाय लौकी, कद्दू, फल आदि लें जिससे उनका शुगर लेवल न बढ़े। 

जानिए, क्यों जलाते हैं नवरात्र में अखंड ज्योति?

जानिए, क्यों जलाते हैं नवरात्र में अखंड ज्योति?


नवरात्र के नौ दिन माता के सामने अखंड ज्योति प्रज्जवलित की जाती है। अखंड ज्योति पूरे नौ दिनों तक अखंड रहनी चाहिए यानी जलती रहनी चाहिए। यह अखंड ज्योति माता के प्रति हमारी अखंड आस्था का प्रतीक मानी जाती है। कहा जाता है कि घी युक्त ज्योति देवी के दाहिनी ओर तथा तेल युक्त ज्योति देवी के बाईं ओर रखनी चाहिए।

मान्यता है कि दीपक या अग्नि के समक्ष किए गए जप का साधक को हजार गुना फल प्राप्त होता है। यह अखंड ज्योति इसलिए भी जलाई जाती है कि नवरात्रों के अवसर पर अखंड दीप जलाकर मन में छाये हुए अंधकार के ऊपर विजय प्राप्त की जा सकती है। जिस तरह विपरीत परिस्थितियों में भी छोटा सा दीपक अपनी लौ से अंधेरे को दूर भगाता है उसी तरह हम भी माता की आस्था के सहारे अपने जीवन का अंधकार को दूर कर सकते हैं।

दुर्गा के नौ रूपों की आराधना से शांत हो जाते हैं नवग्रहों के प्रकोप

दुर्गा के नौ रूपों की आराधना से शांत हो जाते हैं नवग्रहों के प्रकोप 


आश्विन माह में आने वाले इन नवरात्रों को ‘शारदीय नवरात्र’ कहा जाता है। शारदीय नवरात्र की महिमा सर्वोपरि है। शरदकाले महापूजा क्रियते या च वाष्रेकी। दुर्गा सप्तशती के इस वचन के अनुसार शारदीय नवरात्र की पूजा वार्षिक पूजा होने के कारण महापूजा कहलाती है। यह भक्तों की आस्था और विश्वास का प्रतीक है। नौ दिनों तक चलने नवरात्र पर्व में मां दुर्गा के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री देवी की पूजा का विधान है। 


नवरात्र के इन प्रमुख नौ दिनों में लोग नियमित रूप से पूजा-पाठ और व्रत का पालन करते हैं। अनेक पौराणिक कथाओं में शक्ति की अराधना का महत्व व्यक्त किया गया है। एक पौराणिक कथानुसार महाराक्षस रावण का वध करने के लिए भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने शारदीय नवरात्र का व्रत किया था और तभी जाकर उन्हें विजयश्री की प्राप्ति हुई थी। दुर्गा पूजा के नौ दिन तक देवी दुर्गा का पूजन, दुर्गा सप्तशती का पाठ इत्यादि धार्मिक क्रिया कलाप संपन्न किए जाते हैं।

मां दुर्गा की उपासना करने से स्वर्ग जैसे भोग और मोक्ष जैसी शान्ति मिलती है। भगवती दुर्गा अपने भक्तों का वात्सल्य भाव से कल्याण करती है।  नवरात्र के दिनों में चोरी, झूठ, क्रोध, ईष्र्या, राग, द्वेष एवं किसी भी प्रकार का छल नहीं करना चाहिए। तात्पर्य यह है कि मन, वचन एवं कर्म से किसी का दिल दु:खाना नहीं चाहिए। जहां तक सम्भव हो, दूसरों का भला करना चाहिए। मान्यता है कि नवरात्री में नौ दिनों तक माता दुर्गा के नौ रूपों की आराधना करने वाले पर से नवग्रहों के प्रकोप शांत हो जाते हैं और जीवन में सुख, शांति, यश और समृद्धि की प्राप्ति होती है।


शैलपुत्री – सूर्य
चंद्रघंटा – केतु
कुष्माण्डा – चंद्रमा
स्कन्दमाता – मंगल
कात्यायनी – बुध
महागौरी – गुरु
सिद्धिदात्री – शुक्र
कालरात्रि – शनि
ब्रह्मचारिणी – राहु

नवरात्र तिथि

पहला नवरात्र, प्रथमा तिथि, 25 सितंबर 2014, दिन बृहस्पतिवार
दूसरा नवरात्र, द्वितीया तिथि, 26 सितंबर 2014, दिन शुक्रवार.
तीसरा नवरात्र, तृतीया तिथि, 27 सितंबर 2014, दिन शनिवार.
चौथा नवरात्र, चतुर्थी तिथि, 28 सितंबर 2014, रविवार.
पांचवां नवरात्र , पंचमी तिथि , 29 सितंबर 2014, सोमवार.
छठा नवरात्र, षष्ठी तिथि, 30 सितंबर 2014, मंगलवार.
सातवां नवरात्र, सप्तमी तिथि, 1 अक्तूबर 2014, बुधवार
आठवां नवरात्र, अष्टमी तिथि, 2 अक्तूबर 2014, गुरूवार,
नौवां नवरात्र, नवमी तिथि, 3 अक्तूबर 2014, शुक्रवार
दशहरा, दशमी तिथि, 3 अक्तूबर 2014, शुक्रवार से प्रारंभ होकर शनिवार प्रात:काल तक रहेगी.


नवरात्र के नौ रंग

नवरात्र के नौ रंग

रंगों में तीन रंग सबसे प्रमुख हैं- लाल, हरा और नीला। इस जगत में मौजूद बाकी सारे रंग इन्हीं तीन रंगों से पैदा किए जा सकते हैं। हर रंग का आपके ऊपर एक खास प्रभाव होता है। नौ देवियों को समर्पित नवरात्र के पर्व में हर दिन के लिए एक रंग है। जानें किस दिन का है कौन सा रंग ताकि उस दिन उसी रंग के कपड़े पहन कर मां की पूजा करें और जानें उस रंग का अर्थ...


25 सितंबर (वीरवार) पीला : पहले दिन की शुरुआत करें चटकीले पीले रंग से। पीला रंग ऊर्जा का संवाहक है। यह रंग हमें गर्माहट का अहसास देता है। पीला सुकून  देने वाला रंग है। जिन्हें पीला रंग आकर्षित करता है, उनको सूझ-बूझ और जिज्ञासुवृत्ति से सम्पन्न व्यक्ति माना जाता है।

26 सितंबर (शुक्रवार) हरा: हरा रंग इन दिनों काफी चलन में भी है। हरा रंग शांत और संतुलित माना जाता है। यह मन की शान्ति दर्शाता है। हरा रंग पसन्द करने वाले आत्मविश्वासी और शान्त स्वभाव के होते हैं।

27 सितंबर (शनिवार) ग्रे:  ग्रे डल शेड है, इसलिए इसे आप ब्राइट शेड्स के कांबिनेशन में पहन सकती हैं। अगर आप किसी ऐसी जगह हैं, जहां एक विशेष कंपन और शुभ ऊर्जा है तो आपके पहनने के लिए सबसे अच्छा रंग काला और ग्रे है क्योंकि ऐसी जगह से आप शुभ ऊर्जा ज्यादा से ज्यादा आत्मसात करना चाहेंगे।

28 सितंबर (रविवार) केसरियाफेस्टिव सीजन के मूड के हिसाब से नारंगी बेहतरीन रंग है। यह रंग लाल और पीले रंग के समन्वय से बनता है। सुबह-सुबह जब सूर्य निकलता है, तो उसकी किरणों का रंग केसरिया होता है।  केसरिया रंग का मतलब है कि आपके जीवन में एक नया सवेरा हो गया है। केसरिया रंग पसन्द करने वाले कल्पनाशील होते हैं।

29 सितंबर (सोमवार) सफेदव्हाइट या ऑफ व्हाइट बेहद ग्रेसफुल दिखता है।  सफेद यानी श्वेत दरअसल कोई रंग ही नहीं है। कह सकते हैं कि अगर कोई रंग नहीं है तो वह श्वेत है, लेकिन साथ ही श्वेत रंग में सभी रंग होते हैं। श्वेत रंग सुख समृद्धि का प्रतीक है, यह मानसिक शांन्ति प्रदान करता है। सफेद रंग पसन्द करने वाले शान्तिप्रिय होते हैं।

30 सितंबर (मंगलवार) लाल: त्योहारों की चमक-दमक और भी बढ़ जाएगी जब आप लाल लहंगा, सूट या साड़ी पहनेंगे। रक्त का रंग लाल होता है। उगते सूरज का रंग भी लाल होता है। मानवीय चेतना में अधिकतम कंपन लाल रंग ही पैदा करता है। जोश और उल्लास का रंग लाल ही है। लाल को गतिशील, ताकतवर और उत्तेजक रंग माना जाता है। लाल रंग पसन्द करने वाला व्यक्ति दृढ़ स्वभाव का होता है।

1 अक्तूबर (बुधवार) नीला : नीला रंग नवरात्र में आपके लुक को स्टाइलिश और सेक्सी बना देगा। नीला रंग सब को शामिल करने का आधार है। भगवान श्री कृष्ण के शरीर का रंग नीला माना जाता है, उनका स्वभाव सभी को साथ लेकर चलने वाला था। नीला रंग शांति और सुकून का परिचायक है। सरल स्वभाव वाले सौम्य व एकान्त प्रिय लोग नीला रंग पसन्द करते हैं। गहरे नीले रंग में तनाव दूर करने की ताकत होती है।

2 अक्तूबर (वीरवार) गुलाबी: गुलाबी रंग फेस्टीव सीजन में हिट है। खूबसूरती और एलीगेंस का प्रतीक है गुलाबी रंग। गुलाबी रंग हमें सुकून देता है तथा परिवारजनों में आत्मीयता बढ़ाता है। गुलाबी रंग भावनात्मक प्यार का सूचक है।

3 अक्तूबर (शुक्रवार) बैंगनीः पर्पल और वॉयलेट जैसे रंग आपको भीड़ में सबसे अलग कर देंगे। यह रंग धर्म और अध्यात्म का प्रतीक है। नाजुक मिजाज, संवेदनशील और भावुक व्यक्ति बैंगनी रंग पसंद करने वाले होते हैं। इसका हल्का शेड मन में ताजगी जगाता है।

कंजक पूजन से मिलते हैं राजयोग, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि

कंजक पूजन से मिलते हैं राजयोग, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि


नवरात्र के दौरान आठवें दिन सुबह कन्या .यानी कंजक पूजन का विधान है। कुछ लोग नवमी के दिन भी कन्या पूजन करते हैं। मान्यता है कि होम, जप और दान से देवी इतनी प्रसन्न नहीं होतीं, जितनी कन्या पूजन से।  ऐसा कहा जाता है कि विधिवत, सम्मानपूर्वक कन्या पूजन से व्यक्ति के हृदय से भय दूर हो जाता है। साथ ही उसके मार्ग में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। उस पर मां की कृपा से कोई संकट नहीं आता। मां दुर्गा उस पर अपनी कृपा बरसाती हैं।

नवरात्र में कंजक पूजन के लिए जिन कन्याओं का चयन करें, उनकी आयु दो वर्ष से कम और दस वर्ष से ज्यादा न हो। एक वर्ष या उससे छोटी कन्याओं की पूजा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वे प्रसाद नहीं खा सकतीं। इसका धार्मिक कारण यह है कि दो वर्ष से लेकर दस वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती हैं और उन्हें माता के समान ही पवित्र और पूजनीय माना जाता है। कन्याओं के साथ एक लांगूर यानी लड़के को भी जिमाते है। ऐसा कहा जाता है कि लांगूर के बिना पूजन अधूरा रहता है।

दो वर्ष की कन्या (कुमारी) के पूजन से दुख और दरिद्रता मां दूर करती हैं। तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति रूप में मानी जाती है। त्रिमूर्ति कन्या के पूजन से धन-धान्‍य आता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है। चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है। इसकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है। पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है। रोहिणी को पूजने से व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है। छह वर्ष की कन्या को कालिका रूप कहा गया है। कालिका रूप से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है। सात वर्ष की कन्या का रूप चंडिका का है। चंडिका रूप का पूजन करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। आठ वर्ष की कन्या शाम्‍भवी कहलाती है। इसका पूजन करने से वाद-विवाद में विजय प्राप्त होती है। नौ वर्ष की कन्या दुर्गा कहलाती है। इसका पूजन करने से शत्रुओं का नाश होता है तथा असाध्य कार्यपूर्ण होते हैं।दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है। सुभद्रा अपने भक्तों के सारे मनोरथ पूर्ण करती है।

ऐसे करें कंजक पूजन

नवरात्र में सभी तिथियों को एक-एक और अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा होती है। कन्याओं के पैर धो कर उन्हें आसन पर बैठाया जाता है। हाथों में मौली बांधी जाती है और माथे पर रोली से टीका लगाया जाता है। भगवती दुर्गा को उबले हुए चने, हलवा, पूरी, खीर, पूआ व फल आदि का भोग लगाया जाता है। यही प्रसाद कन्याओं को भी दिया जाता है। कन्याओं को कुछ न कुछ दक्षिणा भी दी जाती है। कन्याओं को लाल चुन्नी और चूडि़यां भी चढ़ाई जाती हैं। कन्याओं को घर से विदा करते समय उनसे आशीर्वाद के रूप में थपकी लेने की भी मान्यता है। इस प्रकार महामाया भगवती प्रसन्न होकर मनोरथ पूर्ण करती हैं।

दूरियों को बदलें नजदीकियों में

दूरियों को बदलें नजदीकियों में


वैवाहिक जीवन में मधुरता की कामना कौन नहीं करता, लेकिन किसी भी रिश्ते को  परफैक्ट बनाने के लिए कोशिश करनी पड़ती है। हर रिश्ता उतार-चढ़ाव के दौर से गुजरता है। जब ज़िंदगी में खुशियां रहती हैं तब तो सबकुछ ठीक रहता है लेकिन जब जीवन में मुश्किलों भरे पल आते हैं तो कई बार रिश्ते बिखर भी सकते हैं। यदि आपके रिश्तों में भी दूरियां बन रही हैं या फिर खटपट शुरू हो गई है तो आप फेंगशुई के कुछ टिप्स आजमा कर अपने साथी के साथ खुशियों के पल बिता सकती  हैं...


  • आपका बेड खिड़की से सटा हुआ न हो। कहा जाता है कि इससे पति-पत्नी के रिश्तों में तनाव और दूरियां बढ़ती हैं। लेकिन यदि  आपके पास कोई और आप्शन न हो, और आपको अपना सिराहना खिड़की की तरफ ही रखना पड़ता है तो ध्यान रखें कि खिड़की और सिराहने के बीच पर्दा जरूर लगा हो।

  • छत पर बीम का दिखना भी रिश्तों के बीच दूरियों को बढ़ाता है। यदि इसे हटाना मुश्किल हो तो आप फॉल्स सीलिंग लगवा सकते हैं।

  • अगर आपकी नई-नई शादी हुई है तो कोशिश करें कि आपका बेड भी नया हो। बेहतर होगा अगर बेड की  चादर भी नई हो, लेकिन अगर आप पुरानी चादर इस्तेमाल कर रही हैं  तो ऐसी चादर का इस्तेमाल बिल्कुल भी न करें, जिनमें छेद हो।

  • बेड के नीचे की जगह का खाली होना जरूरी है। आपके बेड के नीचे सामान की मौजूदगी नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करती है, जो आखिरकार आप तक ही पहुंचती है।

  • आपको अगर यह एहसास हो रहा हो कि आपका प्यार आपसे दूर होता जा रहा है तो सिरामिक की विंड चाइम्स को बेडरूम में रखना आपसी रिश्तों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।

  • अपने बेडरूम में एक खूबसूरत प्लेट में शंख रखें, इससे आपकी दूरियां जल्द ही नजदीकियों में बदल जाएंगी और प्यार भी पनपता हुआ नजर आने लगेगा।

  • यदि आपकी आर्थिक स्थिति की वजह से आपके रिश्तों में खटास आ रही हो तो एक खूबसूरत बाऊल में चावल के दानों के साथ क्रिस्टल रखें। इससे आर्थिक समस्याएं तो दूर होंगी ही आपके रिश्तों में दोबारा प्यार का अंकुर भी फूटेगा।

Tuesday, May 13, 2014

ब्‍यूटी सीक्रेट्स जो रखें आपकी स्किन खूबसूरत

अधिकतर स्किन प्रॉब्लम्स गर्मी में ही होती हैं। दरअसल, गर्मी के मौसम में आपकी त्‍वचा को कुछ एक्‍सट्रा चाहिए होता है। डीहाइड्रेशन, ऑयली स्किन, चेहरे पर पिंपल, एक्ने, पिग्मेंटेशन, पसीने के कारण फंगल इंफेक्शन  सन टैनिंग और सिर में खुजली जैसी समस्‍याओं की संभावना इस मौसम में बढ़ जाती है। अगर आपकी स्किन लंबे समय तक धूप के संपर्क में रहती है, तो इसे एज स्पॉट्स, रिंकल, स्किन कैंसर जैसी प्रॉब्लम्स का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही, अल्ट्रा वायलेट किरणों से सनबर्न, सन टैन और सन डैमेज जैसी तमाम समस्याएं हो जाती हैं। 

पर धूप की वजह से हम बाहर आना-जाना भी तो नहीं छोड़ सकते। तेज धूप  के नकारात्मक असर से आप बिल्‍कुल भी चिंतित न हों क्‍योंकि गर्मी को भगाने के लिए हम आपको बहुत से अच्‍छे तरीके बता रहे हैं। इन्हें आप ब्‍यूटी सीक्रेट भी कह सकती हैं। इन्हें अपनाएंगी, तो आपकी बॉडी कूल और आपकी स्किन खूबसूरत बन जाएगी...


स्किन टाइप चाहे कोई भी हो, अगर क्लींजिंग, टोनिंग और मॉइश्चराइजिंग के प्रॉसेस को रोजाना फॉलो किया जाए तो काफी सारी स्किन प्रॉब्लम्स से बचा जा सकता है। जानिए  क्या है इसका सही प्रॉसेस। 

क्लींजिंग : पहले चेहरे को फेस वॉश से अच्छे से क्लीन करें। जब चेहरा पूरी तरह से ड्राई हो जाए तब फ्रेश मिल्क या फिर क्लेंजिंग मिल्क से कॉटन की मदद से चेहरे को साफ करें। कुछ मिनट्स के बाद चेहरे को पानी से धो लें और अच्छे से सुखा लें।

टोनिंग : अब एक अल्कोहल फ्री टोनर चेहरे पर लगाएं और कॉटन की हेल्प से वाइप करें ताकि स्किन बिल्कुल क्लीन हो जाए। टोनर यूज करने से बची हुई डर्ट साफ हो जाती है। साथ ही टोनर आपकी स्किन के नेचुरल पीएच लेवेल को भी मेंटेन रखता है। आप चाहें तो रोज वॉटर भी यूज कर सकती हैंं।

मॉइश्चराइजिंग :  सबसे लास्ट में एक अच्छा और नरिशिंग मॉइश्चराइजर यूज करें। ड्रॉई स्किन के लिए क्रीम बेस्ड मॉइश्चराइजर और ऑयली स्किन के लिए वॉटर बेस्ट मॉइश्चराइजर सूटेबल रहते हैं।


सनस्‍क्रीन

सूर्य की हानिकारक अल्‍ट्रावॉयलेट (पराबैंगनी) किरणें त्‍वचा पर विपरीत प्रभाव डालती हैं। गर्मियों में इनका असर और भी अधिक बढ़ जाता है। आप जितना अधिक समय सूरज की रोशनी में बिताते हैं आपकी त्‍वचा को उसकी उतनी ही कीमत चुकानी पड़ती है। सूर्य की हानिकारक किरणों के प्रभाव के कारण त्‍वचा समय से पहले ही बूढ़ी लगने लगती है। त्‍वचा पर झुर्रियां, गहरे निशान, और रूखापन आने लगता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अधिकतर मामलों में प्री-मेच्योर एजिंग धूप में ओवर एक्सपोजर के कारण होती है। इससे बचने के लिए घर से बाहर निकलने से आधे घंटे पहले सन स्क्रीन लगाना जरूरी है। कम से कम एसपीएफ 15 या उससे ज्यादा एसपीएफ वाला सनस्क्रीन यूज करना बेहतर होगा।यदि आप सोचते हैं कि सुबह के वक्‍त सनस्‍क्रीन लगाना ही काफी है, तो आप गलत हैं। आपको इसका नियमित और अच्‍छी मात्रा में इस्‍तेमाल करना चाहिए। आपको कम से कम टी-स्‍पून सनस्‍क्रीन हर दो घंटे बाद लगानी चाहिए।


हर्बल पैक

गर्मियों में स्किन प्रॉब्लम से छुटकारा पाने के लिए हर्बल फेस पैक अपनाएं। गर्मियों में धूप की वजह से चेहरे पर रूखापन आ जाता है, अधिक समय तक रूखापन बने रहने से स्किन संबंधी रोगों की संभावनाएं बढ़ जाती हैं और इससे एलर्जी की आशंका सबसे ज्यादा रहती है। ऐसे में हर्बल फेस पैक रूखापन हटाने के साथ ही पोषण भी प्रदान करते हैं। 
  • चेहरे पर ताजगी लाने के लिए दो चम्मच बेसन, हल्दी पावडर, गुलाब जल व शहद मिलाकर लेप बनाएं। इसे चेहरे व हाथ-पैरों और गर्दन पर लगाएं व 10 मिनट बाद धो लें। इससे स्किन सुंदर व स्वस्थ बनी रहेगी। 
  • कच्चे दूध में हल्दी डालकर पेस्ट बनाएं। इसे चेहरे और हाथ-पैरों पर लगाएं। 10 मिनट बाद धो लें।स्किन निखर उठेगी। 
  • गर्मियों में पपीता, खीरा जैसे खूब सारे रिफ्रेशिंग फ्रूट्स अवेलेबल होते हैं जिन्हें आप डायरेक्टली फेस पर अप्लाई कर नेचुरल ग्लो पा सकती हैं। साथ ही दही, बेसन, हनी और लेमन से बने फेस पैक्स भी ट्राई कर सकती हैं।
  • एक टीस्पून बेसन में आधा टीस्पून टमाटर का पेस्ट, आधा टीस्पून खीरे का पेस्ट और थोड़ा दही मिक्स करें इस पेस्ट को चेहरे पर 10-15 मिनट के लिए लगाएं और फिर पानी से धो लें
  • पपीते को मैश करके उसमें थोड़ा मिल्क पाउडर और थोड़ा हनी मिक्स करें इसे डार्क स्पॉट्स पर अप्लाई करें और 10-15 मिनट बाद धो लें.
  • अगर आपकी स्किन ऑयली है या फिर आपको एक्ने और पिंपल्स की प्रॉब्लम है तो ताजे गुलाब की पत्तियों को पानी में भिगोएं फिर इस पानी को आइस ट्रे में डालकर फ्रीज करें। जब इसके आइस क्यूब्स बन जाएं, उन्हे चेहरे पर कुछ देर के लिए रब करें. आपको काफी आराम मिलेगा
  • स्किन को पोषण देने के लिए सप्‍ताह में एक या दो बार एंटी-ऑक्‍सीडेंट्स मास्‍क लगायें।  

रेग्युलर स्क्रब

समर में स्किन को एक्सफॉइलेट करना और भी इंपॉर्टेंट होता है क्योंकि पसीने की वजह से डर्ट आसानी से आ जाती है। हफ्ते में एक बार चेहरे से डेड सेल्स को हटाने के लिए स्क्रब जरूर करें। इससे आप स्किन की मृत कोशिकाओं से छुटकारा पा लेते हैं और ब्लड सर्कुलेशन इंप्रूव होता है। इससे स्किन टोन होती है और उसे पोषण मिलता है। गर्मियों के लिए जोजोबा बीड्स युक्त स्क्रब लगाएं, जो बेहतरीन नतीजे देता है और रोम छिद्रों को नुकसान भी नहीं पहुंचाता है। रेडीमेड स्क्रब्स के अलावा हेाम मेड स्क्रब्स भी ट्राई किए जा सकते हैं। 

मेकअप हो लाइट  

मेकअप से भी कूल रहा जा सकता है। गर्मियों में वाटरप्रूफ मेकअप करें ताकि पसीने के साथ बहकर वह आपके चेहरे का नक्शा न बिगाड़ दे। क्लीजिंग मिल्क से चेहरा साफ करने के बाद पूरे चेहरे पर आइस क्यूब मलें, इससे मेकअप देर तक टिका रहेगा। कूल रहने के लिए मेकअप को हल्का और सौम्य रखें। पर्स में कॉम्पेक्ट हमेशा साथ रखें, ताकि कहीं भी जरूरत पड़ने पर टचिंग की जा सके।

बांधें स्कार्फ

गर्मी चाहे कितनी भी हो, अपनी स्किन और बालों की सेहत की चिंता भी क्यों न सता रही हो, पर बाहर निकले बिना तो रहा नहीं जा सकता है। धूप तेज होने के कारण शरीर के खुले हिस्से और बाल सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। गर्म हवाओं से बचने का एक तरीका स्कार्फ भी है। धूप में बिना स्कार्फ पहने निकलना अवॉयड करें। इसको बांधने से आप अपने बालों और चेहरे को भी धूप से बचा सकती हैं। जब आप इस स्कार्फ को खोलेंगी तो तरोताजा दिखेंगी।  स्कार्फ बांधने से कानों से गर्म हवा शरीर के अंदर प्रवेश नहीं करेगी। हाथों व पैरों को भी खुला न रखें, धूप से स्किन खराब होने के साथ ही धूल की वजह से एलर्जी प्रॉब्लम हो सकती है।

नमी रखें बरकरार 

धूप और धूल भरी हवाएं आपकी त्वचा की नमी चुरा लेती हैं, जिससे आपकी त्वचा बेजान हो जाती है।धूप मे अधिक वक्‍त बिताने से शरीर में पानी की कमी हो जाती है। वैसे भी गर्मियों में बॉडी बहुत सारा मॉइश्चर लूज करती है इसलिए जरूरी है कि आप खूब सारा पानी और रिफ्रेशिंग लिक्विड्स पीते रहें और हाइड्रेटेड रहें। इससे ना सिर्फ आपकी बॉडी को फायदा होगा बल्कि आपकी स्किन ऑटोमैटिकली मॉइश्चराइज्ड रहेगी। 

टैनिंग से पाएं छुटकारा

टैनिंग भले ही आपको सामान्‍य लगे, लेकिन इसका अर्थ होता है कि आपकी त्‍वचा को नुकसान पहुंचा है। अगर ज्‍यादा धूप में निकलने से सन टैनिंग हो गई है, तो चदंन पाउडर में रोजवॉटर मिला कर पेस्‍ट तैयार कर के लगाएं। इससे शरीर को ठंडक तो मिलती ही है, साथ में सन बर्न जैसी समस्‍या भी दूर हो जाती है। फ्रेश एलोवेरा लीफ को काटकर उसका जूस निकालें। उसमें कुछ ड्रॉप्स लेमन जूस एड करें और टैन्ड एरिया पर अप्लाई करें। कच्चे आलू को अच्छे से पीस लें। अब इस पेस्ट में भी लेमन जूस मिलाकर चेहरे पर अप्लाई करें। खीरे को घिस कर उसका जूस निकालें, उसमें थोड़ा सा दूध मिलाएं और इस मिक्सचर को चेहरे पर लगाएं।

डैमेज्ड स्किन केयर

यदि आप बिना किसी सुरक्षा कवच के धूप में घूमते हैं, तो इससे आपकी स्किन को काफी नुकसान होता है, बल्कि इसके साथ ही यह गहरे निशान, झुर्रियां, जलन और लालिमा का भी कारण बनती हैं। अपनी स्किन के नुकसान को कम करने के लिए एंटी-एजिंग और त्‍वचा उपयोगी उत्‍पादों का इस्‍तेमाल करें और अपनी स्किन को सूर्य की हानिकारक यूवी किरणों से बचायें। 

  • तेज धूप से आपकी स्किन का रंग सांवला हो गया है तो कच्चे टमाटर को कुचलकर छाछ मिलाकर चेहरे और स्किन पर मलने से त्वचा को ठंडक मिलेगी। 
  • अलसी का तेल व नींबू का रस बराबर मात्रा में मिलाकर झुलसी हुई स्किन पर लगाने से काफी फायदा होता है। 
  • चिरौंजी कच्चे दूध में पीसकर मलाई एवं नींबू का रस मिलाकर चेहरे और शरीर में लगाना गर्मियों में बहुत लाभदायक होता है।
  • गर्मी से राहत पाने का असर उपाय है, मुल्‍तानी मिट्टी का फेस पैक लगाना। मिट्टी आपकी स्किन को एक ठंडक के एहसास से भर देगी। सिर्फ यही नहीं, ये आपको पिंपल और तमाम त्‍वचा समस्‍याओं से राहत भी दिलाएगी। आप चाहें तो सिर्फ अपने चेहरे पर या फिर पूरी बॉडी पर इसका पैक लगा सकती हैं।
  • दिन में दो बार जरूर नहाएं। चेहरे की दमक को बरकरार रखने के लिए दिन में 3 बार ठंडे पानी और माइल्ड क्लींजर से चेहरा धोएं।
  • रात को सोने से पहले क्लेंजिंग, टोनिंग, मॉइश्चराइजिंग करना ना भूलें।
  • स्किन को हाइड्रेटेड रखने के लिए मॉइश्चराइजर यूज करना बहुत जरूरी है। गर्मियों में क्रीम बेस्ड मॉइश्चराइजर्स से बेहतर होगा वॉटर बेस मॉइश्चराइजर, स्पेशली तब जब आपकी स्किन बहुत ऑयली हो। 

बीट द हीट: इनका सेवन गर्मी में रखेगा आपको कूल

बीट द हीट: इनका सेवन गर्मी में रखेगा आपको कूल

गर्मी यानी कड़कड़ाती धूप, प्यास, पसीना और थका हुआ शरीर। पसीने के कारण हमारे शरीर से प्राणरक्षक लवण बह जाते हैं। इसलिए जानिए कि गर्मी के मौसम में डाइट में ऐसे कौन से खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए जो आपको ठंडा और कूल रखें ...


खाएं कम, पिएं ज्यादा

गर्मियों में भूख कम हो जाती है और शरीर को ज्यादा से ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है। इसलिए गर्मियों में हमेशा हल्का भोजन करें, भूख से कम खाएं और पानी ज्यादा पिएं। पेय पदार्थ गर्मी के प्रकोप को शांत करने में बेहद कारगर होते हैं। नारियल पानी, में सोडियम जैसे कई इलैक्ट्रोलाइट्स मौजूद होते हैं जो पसीने के कारण शरीर से निकल जाते हैं। इसके अलावा लस्सी, छाछ, जलजीरा, फ्रूट जूस, आम पना, ठंडाई, गुलाब व बेल का शर्बत, लीची व तरबूज का जूस, नींबू-पानी आदि का खूब सेवन करें। ये पानी की पूर्ति तो करते ही हैं, पर्याप्त सोडियम भी देते हैं। ये प्यास, स्वाद व एनर्जी तीनों की पूर्ति करते हैं।

ताजे फलों को आहार में करें शामिल

गर्मियों के लिए केला एक आदर्श चुनाव है। इसमें प्राकृतिक एंटीबायोटिक गुण होते हैं और यह अत्यधिक पसीने के कारण शरीर से निकल गए तरलों को नियंत्रित करने में सहायक होता है। तरबूज और खरबूजा आप दिन में कभी भी खा सकते हैं। इनसे पेट भी भरेगा और ये शरीर में पानी की जरूरत की पूर्ति भी होगी। तरबूज में मौजूद पोटाशियम हमारी मांसपेशियों तथा नाड़ियों की कार्यप्रणाली को कुशल रखने में  सहायक होता है। गर्मी में सत्तू का सेवन शरीर को ठंडक देता है। ग्रीन टी, पुदीना, धनिया इत्यादि खाना पचाने की क्षमता को बढ़ाते हैं।

हरी पत्‍तेदार सब्जियों का करें सेवन

हरी और पत्‍तेदार सब्जियां लें। इनमें पानी की मात्रा ज्यादा होती है, जिसके कारण इनको पचाना आसान होता है। ये आपको हाइड्रेटेड रखती हैं, साथ ही बीमारियों से भी बचाती हैं। पालक, शिमला मिर्च, फूलगोभी, ब्रॉक्‍कोली इसके लिए बेहतर विकल्‍प हैं। कच्चे प्याज को भोजन में शामिल करें। टमाटर खायें, इसमें पानी की मात्रा काफी अधिक होती है। ये शरीर को हाइड्रेटेड रखते हैं और पोषण भी प्रदान करते हैं। खीरे में लगभग 97 प्रतिशत पानी होता है। यह आपकी त्वचा को ताजा रखता है। इसमें कार्बोहाइड्रेट्स तथा कैलोरीज भी बहुत कम होती हैं। इसका प्रयोग सलाद के रूप में किया जा सकता है। मूली में एंटीऑक्सीडेंट होते हैं तथा लंबे समय तक आपको हाइड्रेटेड रखते हुए रोगों से बचाते हैं।

घर का खाना खाएं

गर्मी के कारण  भोजन में कीटाणुओं की संख्या बढ़ जाती है, जिससे फूड इंफैक्शन व फूड प्वॉइजनिंग बहुत जल्दी हो जाते हैंं, इसलिए बाहर का खाना न खाएं।  हल्का, ताजा और जल्दी पचने वाला भोजन करें। फ्राइड, स्पाइसी, फैटी फूड और चाय, कॉफी का सेवन न करें। चीनी की जगह गुड़ व शक्कर का इस्तेमाल करना बेहतर रहेगा।

बाहर जाने से पहले

गर्मी की मार को झेलना बहुत मुश्किल होता है और ऐसे में अगर दिन के समय आपको घर के बाहर जाना पड़े, तो यह काम बहुत बड़ी मुसीबत की तरह है, क्योंकि पसीना ज्यादा आने के कारण शरीर भी डीहाइड्रेशन हो सकता है। इसलिए बाहर जाने से पहले नींबू-पानी, फ्रूट जूस या स्कवैश पीकर जाएं, ताकि स्वेटिंग के कारण जो लॉस हो, वह बैलेंस हो जाए। गर्मी में बाहर से आने के तुरंत बाद ठंडा पानी न पिएं।

ध्यान रखें

गर्मियों में एल्कोहल का सेवन न करें, क्योंकि इससे शरीर में पानी का लैवल तेजी से कम होता है और इसका पता काफी देर से चलता है, जो आपको नुकसान पहुंचा सकता है। कोक जैसे कोल्ड ड्रिंक्स से बचें, क्योंकि इनमें पाए जाने वाले रंग और फॉस्फोरिक एसिड आपकी हड्डियों में से कैल्शियम निकाल देते हैं और पेट की अंदर की पर्त को खराब कर देते हैं।

खाद्य पदार्थ को गर्म- ठंडे के आधार पर नहीं बल्कि उनकी तासीर के आधार पर पहचानें, जैसे आइसक्रीम, कोल्डड्रिंक और बर्फ का गोला ठंडा होने पर भी शरीर की गर्मी बढ़ाते हैं। 

Tuesday, February 25, 2014

अर्द्धनारीश्वर काठगढ़ महादेवः शिवलिंग के दो भागों का शिवरात्रि पर हो जाता है ‘मिलन’

अर्द्धनारीश्वर काठगढ़ महादेवः

शिवलिंग के दो भागों का शिवरात्रि पर हो जाता है ‘मिलन’ 


धार्मिक दृष्टि से पूरा संसार ही शिव का रूप है। इसलिए शिव के अलग-अलग अद्भुत स्वरूपों के मंदिर और देवालय हर जगह पाए जाते हैं। ऐसा ही एक मंदिर स्थित है - हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित काठगढ़ महादेव। इस मंदिर का शिवलिंग ऐसे स्वरूप के लिए प्रसिद्ध है, जो संभवत: किसी अन्य शिव मंदिर में नहीं दिखाई देता। काठगढ़ महादेव संसार में एकमात्र शिवलिंग माने जाते हैं, जो आधा शंकर और आधा पार्वती का रूप लिए हुए हैं, यानि एक शिवलिंग में दो भाग हैं। शिव और शक्ति के अर्द्धनारीश्वर स्वरुप श्री संगम के दर्शन से मानव जीवन में आने वाले सभी पारिवारिक और मानसिक दु:खों का अंत हो जाता है।

ईशान संहिता के अनुसार इस शिवलिंग का प्रादुर्भाव फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात्रि को हुआ था। यह पावन शिवलिंग अष्टकोणीय है तथा काले-भूरे रंग का है। लगभग 7-8 फुट ऊंचा भगवान शिव आशुतोष का प्रतिमा स्वरूप व लगभग 6-7 फुट ऊंचा इसी के साथ सटा हुआ माता पार्वती का प्रतिमा स्वरूप विराजमान है। दो भागों में विभाजित आदि शिवलिंग का अंतर ग्रहों एवं नक्षत्रों के अनुसार घटता-बढ़ता रहता है और शिवरात्रि पर दोनों का ‘मिलन’ हो जाता है। शिवरात्रि के अवसर पर हर साल यहां पर तीन दिवसीय भारी मेला लगता है। इस दिन भगवान शिव की शादी माता पार्वती के साथ हुई थी। उनकी शादी का उत्सव मनाने के लिए रात में शिव जी की बारात निकाली जाती है। रात में पूजा कर फलाहार किया जाता है। अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेल पत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है।

काठगढ़ महादेव मंदिर के दक्षिण में ब्यास नदी है। इस धर्मस्थल से दो नदियों का मिलन स्थान है। इस मंदिर के साथ कई पौराणिक किंवदंतियां जुड़ी हुई है। लोगों के कथनानुसार मंदिर में स्थापित शिवलिंग स्वयंभू प्रकट है। कहा जाता है कि व्यास नदी के किनारे स्थित इस मंदिर के बारे में शिव पुराण में भी व्याख्या मिलती है। ब्रह्मा जी और विष्णु जी के बीच श्रेष्ठता का विवाद उत्पन्न हो गया और दोनों महेश्वर और पाशुपात अस्त्रों जैसे दिव्यास्त्र लेकर युद्ध हेतु उन्मुख हो उठे। इससे तीनों लोकों में नाश की आशंका होने लगी और भगवान शिव शंकर महाअग्नि तुल्य स्तंभ के रूप में ब्रह्मा जी और विष्णु जी के बीच में प्रकट हो गए। इससे दोनों देवताओं के दिव्यास्त्र स्वत: ही शांत हो गए और युद्ध खत्म हो गया। यही अग्नि तुल्य स्तंभ, काठगढ़ के रूप में जाना जाने लगा।

कहा जाता है कि त्रेता युग में जब महाराज दशरथ की शादी हुई थी तो उनकी बारात पानी पीने के लिए यहां रुकी थी और यहां एक कुएं का निर्माण किया गया था। यह कुआं आज भी यहां स्थापित हैं। जब भी भरत व शत्रुघ्न अपने ननिहाल कैकेय देश (वर्तमान कश्मीर) जाते थे तो वे व्यास नदी के पवित्र जल से स्नान करके राजपुरोहित व मंत्रियों सहित यहां स्थापित शिवलिंग की पूजा-अर्चना कर आगे बढ़ते थे।

एक किंवदंती में कहा गया है कि सिकंदर महान का विजयी अभियान यहीं आकर रुका था। विश्वविजेता सिकंदर ईसा से 326 वर्ष पूर्व जब पंजाब पहुंचा, तो प्रवेश से पूर्व मीरथल नामक गांव में अपने सैनिकों को खुले मैदान में विश्राम की सलाह दी। इस स्थान पर उसने देखा कि एक फ़कीर शिवलिंग की पूजा में व्यस्त था। उसने फ़कीर से कहा- ‘आप मेरे साथ यूनान चलें। मैं आपको दुनिया का हर ऐश्वर्य दूंगा।’ फ़कीर ने सिकंदर की बात को अनसुना करते हुए कहा- ‘आप थोड़ा पीछे हट जाएं और सूर्य का प्रकाश मेरे तक आने दें।’ फ़कीर की इस बात से प्रभावित होकर सिकंदर ने भोले नाथ के इस अलौकिक स्वरूप की पूजा-अर्चना की और यहां यूनानी सभ्यता की पहचान छोड़ते हुए शिवलिंग के चारों ओर अष्टकोणिय चबूतरों का निर्माण करवाया था। शिवालय की ऐतिहासिक चारदीवारी में यूनानी शिल्पकला का प्रतीक व प्रमाण आज भी मौजूद हैं।

बताया जाता है कि इस मंदिर ने महाराजा रणजीत सिंह के कार्यकाल में सबसे ज्यादा प्रसिद्धि प्राप्त की थी। कहते हैं, महाराजा रणजीत सिंह ने जब गद्दी संभाली, तो पूरे राज्य के धार्मिक स्थलों का भ्रमण किया। वह जब काठगढ़ पहुंचे, तो इतना आनंदित हुए कि उन्होंने आदि शिवलिंग पर सुंदर मंदिर का निर्माण करवाया और शिवलिंग की इस महिमा का गुणगान भी चारों ओर करवाया। मंदिर के पास ही बने एक कुएं का जल उन्हें इतना पसंद था कि वह हर शुभकार्य के लिए यहीं से जल मंगवाते थे।  

Thursday, January 16, 2014

ऐसे पाएं धन के लिए लक्ष्मीजी की कृपा

ऐसे पाएं धन के लिए लक्ष्मीजी की कृपा ...


शुक्रवार मां लक्ष्मी का प्रिय दिन माना गया है। इस दिन धन, ऐश्वर्य, भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए मां की पूजा और उपाय दोहरा लाभ दिलाते हैं। देवी लक्ष्मी जी को धन-सम्पत्ति की अधिष्ठात्री देवी के रूप में पूजा जाता है। सुख, समृद्घि और शांति की मंगल कामना के लिए वैभव की देवी माता लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। मां लक्ष्मी जिस पर भी अपनी कृपा दृष्टि डालतीं हैं वह दरिद्र, दुर्बल, कृपण, के रूपों से मुक्त हो जाता है। आप भी मां लक्ष्मी की कृपा पा सकते हैं। मां को प्रसन्न करना बहुत आसान है, आपकी भावना सच्ची होनी चाहिए।

लक्ष्मी जी की पूजा घर-घर होती है लेकिन मां हर घर में विराजमान नहीं होतीं, इसका कारण यह भी है कि कई हम अज्ञानतावश उन्हें नाराज कर देते हैं, उनकी पूजा अर्चना  विधि-विधान से नहीं करते हैं। इसलिए यह सुनिश्चित करें कि इनकी पूजा में कोई गलती न करें। जिस कक्ष में पूजा स्थल बनाएं, वहां ताजा हवा व रोशनी का पर्याप्त प्रबंध होना चाहिए। पूजन कक्ष में चमडे़ का सामान, जूते-चप्पल आदि न ले जाएं। प्रतिदिन सच्चे ह्रदय से लक्ष्मी पूजा करने से कोई भी इन्हें अपने पास स्थायी रूप से रख सकता है। जिस घर में प्रतिदिन श्रीसूक्त का पाठ होता है, वहां लक्ष्मी अवश्य निवास करती हैं।

धन के लिए आप तमाम उपाय आजमाने पर भी यदि कोई फायदा ना हो रहा हो तो अपने घर के नलों व टूटियों की जांच कर लें। किसी भी नल से पानी बहना या टपकना नहीं चाहिए। इससे लक्ष्मी जी रूठ जाती हैं। अगर आप चाहते हैं कि आपके घर पर मां लक्ष्मी की दया हमेशा बनी रहे, तो तुरंत अपने घर के सभी नल ठीक करवा लें।

महाभारत में लिखित है कि आलस और परिश्रम न करने वाले से महालक्ष्मी रूष्ट हो जाती हैं। इसलिए आलस का त्याग करें और मेहनत से काम करें, लक्ष्मी मैय्या आप पर हमेशा प्रसन्न रहेंगी तथा धन की वृद्धि होगी।

जहां भी स्वच्छता एवं सुव्यवस्था के गुण होंगे, वहां दरिद्रता का कोई स्थान नहीं होता, लेकिन यदि आसपास का वातावरण साफ सुथरा नहीं हो तो लक्ष्मी मां अपने पीछे दरिद्रता छोड़ व्यक्ति के जीवन से सदैव के लिए विदा ले लेती हैं। इसलिए लक्ष्मी जी की असीम कृपा पाने के लिए साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें। घर से अवांछित सामान, पुराने कपड़े, जूते, डिब्बे आदि तुरंत हटा दें। ये सामान नकारात्मक ऊर्जा के स्त्रोत होते हैं।

जिस घर में स्नेह, वात्सल्य, आत्मीयता और शांति का वास होता है वहीं लक्ष्मी जी का वास होता है। इसलिए अपने परिवार के सदस्यों के साथ प्रेम पूर्वक संबंध बना कर रखें और उन्हें पूरा सम्मान दें। अगर आप लक्ष्मी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो सबसे पहले घर की महिलाओं का आदर-मान करना सीखें।

जहां शंखध्वनि नहीं होती, तुलसी का निवास नहीं रहता, शंकरजी की पूजा नहीं होती, वहां लक्ष्मी नहीं रहतीं। जिस स्थान पर शंखध्वनि होती है, तुलसी का निवास रहता है व इनकी सेवा, वंदना होती है, वहां लक्ष्मी सदा विद्यमान रहती हैं। पूजन के दौरान शंख व घंटनाद न सिर्फ देवों को प्रिय है, इससे वातावरण भी शुद्घ होता है। यह वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हो चुका है कि शंख की ध्वनि से बैक्टीरिया नष्ट होते हैं।

जो व्यक्ति भगवान विष्णु की उपासना नहीं करता तथा एकादशी और जन्माष्टमी के दिन अन्न खाता है, उसके घर से भी लक्ष्मी चली जाती हैं। जहां भगवान श्रीहरि के गुणों का कीर्तन होता है, वहीं पर सम्पूर्ण मंगलों को भी मंगल प्रदान करने वाली भगवती लक्ष्मी निवास करती है।

दीपावली के दिन पीपल का एक अखंडित पत्ता प्रार्थना करके वृक्ष से तोड़ लाएं और इसे पूजाघर में रख दें। फिर प्रत्येक शनिवार को नया पत्ता तोड़कर पूजाघर में रखें और पुराने पत्ते को पेड़ के नीचे रख आएं। इससे घर में लक्ष्मी का स्थायी वास होगा और मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी।

Tuesday, January 7, 2014

मोदक का भोग लगाने वाले की मनोकामना पूरी करते हैं भगवान गणपति

शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान गणेश को प्रसन्न करने का सबसे आसान तरीका है मोदक का भोग। चित्रों में उनके साथ उनका वाहन चूहा और उनका प्रिय भोजन मोदक जरूर होता है। हिन्दू धर्मशास्त्रों के मुताबिक कलियुग में भगवान गणेश के धूम्रकेतु रूप की पूजा की जाती है। जिनकी दो भुजाएं हैं। किंतु मनोकामना सिद्धि के लिये बड़ी आस्था से भगवान गणेश का चार भुजाधारी स्वरूप पूजनीय है, जिनमें से एक हाथ में अंकुश, दूसरे हाथ में पाश, तीसरे हाथ में मोदक व चौथे में आशीर्वाद है।

पद्म पुराण के सृष्टि खंड में गणेश जी को मोदक प्रिय होने की जो कथा मिलती है उसके अनुसार मोदक का निर्माण अमृत से हुआ है। देवताओं ने एक दिव्य मोदक माता पार्वती को दिया। गणेश जी ने मोदक के गुणों का वर्णन माता पार्वती से सुना तो मोदक खाने की इच्छा बढ़ गयी।

अपनी चतुराई से गणेश जी ने माता से मोदक प्राप्त कर लिया। गणेश जी को मोदक इतना पसंद आया कि उस दिन से गणेश मोदक प्रिय बन गये। गणपत्यथर्वशीर्ष में लिखा है, "यो मोदकसहस्त्रेण यजति स वांछितफलमवाप्नोति।" इसका अर्थ है जो व्यक्ति गणेश जी को मोदक अर्पित करके प्रसन्न करता है उसे गणपति मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।

गणेश जी का एक दांत परशुराम जी से युद्ध में टूट गया था। इससे अन्य चीजों को खाने में गणेश जी को तकलीफ होती है, क्योंकि उन्हें चबाना पड़ता है। मोदक काफी मुलायम होता है जिससे इसे चबाना नहीं पड़ता है। यह मुंह में जाते ही घुल जाता है और इसका मीठा स्वाद मन को आनंदित कर देता है। गणपति अथर्वशीर्ष में लिखा है कि जो व्यक्ति गणेश जी को मोदक का भोग लगाता है गणपति उनका मंगल करते हैं। मोदक का भोग लगाने वाले की मनोकामना पूरी होती है।

भगवान गणेश को मोदक इसलिए भी पसंद हो सकता है कि मोदक प्रसन्नता प्रदान करने वाला मिष्टान है। मोदक के शब्दों पर गौर करें तो 'मोद' का अर्थ होता है हर्ष यानी खुशी। भगवान गणेश को शास्त्रों में मंगलकारी एवं सदैव प्रसन्न रहने वाला देवता कहा गया है। वह कभी किसी चिंता में नहीं पड़ते और भक्तों की सभी चिंताओं और बाधाओं को दूर करते हैं। इसका कारण संभवतः मोदक है क्योंकि यह गणेश जी को हमेशा प्रसन्न रखता है। मोदक के इसी गुण के कारण गणेश जी सभी मिष्टानों में मोदक को अधिक पसंद करते हैं।

यजुर्वेद के अनुसार गणेश जी परब्रह्म स्वरूप हैं। मोदक को गौर से देखेंगे तो उसका आकार ब्रह्मांड के समान है। गणेश जी के हाथों में मोदक का होना यह भी दर्शाता है कि गणेश जी ने ब्रह्मांड को धारण कर रखा है। सृष्टि के समय गणेश जी ब्रह्मांड को प्रलय रूपी मुख में रखा लेते हैं और सृष्टि के आरंभ में इसकी रचना करते हैं।

इन उपायों से करें विघ्नहर्ता गणेश जी को प्रसन्न

इन उपायों से करें विघ्नहर्ता गणेश जी को प्रसन्न



“वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटी समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।”

अर्थात हे भव्य शरीर, वक्र सूंड, दश लक्ष सूर्यों की चमक वाले गणेशजी, मेरे सारे कर्मों को विघ्नों से हमेशा मुक्त करते रहना।

गणेश जी विघ्नहर्ता हैं। कहा जाता है कि जिस पर गणेश जी की कृपा हो जाए उसके जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। गणेश जी अपने भक्तों की श्रद्धा और भक्ति देखते हैं। जो भक्त इनके प्रति जितनी श्रद्धा रखता है गणेश जी उस पर उतने ही कृपालु बने रहते हैं। गणेशजी की साधना शीघ्र फलदायी है। गणेश जी जितनी जल्दी अपने भक्तों से गुस्सा होते हैं उतनी ही जल्दी मान भी जाते हैं। शास्त्रों में कुछ आसान उपाय बताए गए हैं जिनसे आप गणेश जी को जल्दी खुश कर सकते हैं।

  दूर्वा अर्पित करें

गणेश जी को खुश करने का सबसे सस्ता और आसान उपाय है दूर्वा से गणेश जी की पूजा करना। उनको प्रिय दूर्वा के चढ़ाने की पूजा शीघ्र फलदायी और सरलतम है। हर दिन सुबह स्नान पूजा करके गणेश जी को पांच दूर्वा यानी हरी घास अर्पित करें।  दुर्वा गणेश जी के मस्तक पर रखना चाहिए। चरणों में दुर्वा नहीं रखें।दुर्वा अर्पित करते हुए मंत्र बोलें 'इदं दुर्वादलं ऊं गं गणपतये नमः'। दूर्वा गणेश जी को इसलिए प्रिय है क्योंकि दूर्वा में अमृत मौजूद होता है। गणपति अथर्वशीर्ष में कहा गया गया है कि जो व्यक्ति गणेश जी की पूजा दुर्वांकुर से करता है वह कुबेर के समान हो जाता है। दुर्वा अर्पण करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है, आर्थिक उन्नति होती है और संतान का सुख मिलता है।

  मोदक का भोग लगाएं

शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए दूसरा सबसे आसान तरीका है मोदक का भोग। पद्म पुराण में गणेश जी को मोदक प्रिय होने की जो कथा मिलती है उसके अनुसार  देवताओं ने एक दिव्य मोदक माता पार्वती को दिया। गणेश जी ने मोदक के गुणों का वर्णन माता पार्वती से सुना तो मोदक खाने की इच्छा बढ़ गयी। अपनी चतुराई से गणेश जी ने माता से मोदक प्राप्त कर लिया। गणेश जी को मोदक इतना पसंद आया कि उस दिन से गणेश मोदक प्रिय बन गये। गणपत्यथर्वशीर्ष में लिखा है, "यो मोदकसहस्त्रेण यजति स वांछितफलमवाप्नोति।" इसका अर्थ है जो व्यक्ति गणेश जी को मोदक अर्पित करके प्रसन्न करता है उसे गणपति मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।

  सिंदूर चढ़ाएं

सिंदूर की लाली गणेश जी को बहुत पसंद है। गणेश जी की प्रसन्नता के लिए लाल सिंदूर का तिलक लगाएं। गणेश जी को तिलक लगाने के बाद अपने माथे पर सिंदूर का तिलक लगाएं। इससे गणेश जी की कृपा प्राप्त होती है। सिंदूर अर्पण करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।इससे आर्थिक क्षेत्र में आने वाली परेशानी और विघ्न से गणेश जी रक्षा करते हैं। गणेश जी को सिंदूर चढ़ाते समय मंत्र बोलें, 'सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्। शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्॥ ओम गं गणपतये नमः'।

  घी से पूजा करें

पंचामृत में एक अमृत घी होता है। घी को पुष्टिवर्धक और रोगनाशक कहा जाता है। भगवान गणेश को घी काफी पसंद है। गणपति अथर्वशीर्ष में घी से गणेश की पूजा का बड़ा महात्म्य बताया गया है। जो व्यक्ति गणेश जी की पूजा घी से करता है उसकी बुद्धि प्रखर होती है। घी से गणेश की पूजा करने वाला व्यक्ति अपनी योग्यता और ज्ञान से संसार में सब कुछ हासिल कर लेता है। 

  शमी के पत्ते अर्पित करें

शमी का पौधा गणेश जी को अत्यंत प्रिय है। शमी के कुछ पत्ते नियमित गणेश जी को अर्पित करें तो घर में धन एवं सुख की वृद्घि होती है। माना जाता है कि भगवान श्री राम ने भी रावण पर विजय पाने के लिए शमी की पूजा की थी।

  पवित्र चावल का भोग लगाएं

भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए पवित्र चावल अर्पित करें। पवित्र चावल उसे कहा जाता है जो टूटा हुआ नहीं हो। पूजा में उबले हुए धान से तैयार चावल का प्रयोग नहीं करें। सूखा चावल गणेश जी को नहीं चढ़ाएं। चावल को गीला करें फिर, 'इदं अक्षतम् ऊं गं गणपतये नमः' मंत्र बोलते हुए तीन बार गणेश जी को चावल चढ़ाएं।

Monday, January 6, 2014

मंगलवार को करें ये काम, हनुमान जी चमका देंगे आपकी किस्मत

मंगलवार को करें ये काम, हनुमान जी चमका देंगे आपकी किस्मत

हनुमान जी को भगवान शिव का ग्यारहवां अवतार माना जाता है। इस अवतार में वे मां अंजनी के गर्भ से वायु देव के पुत्र के रूप में अवतरित हुए। हनुमान जी चारों युग में अजर अमर रहने वाले देवता हैं। हनुमान जी को कलयुग का जीवंत देवता माना गया है। धर्म ग्रंथों के अनुसार हनुमान जी एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर इस पृथ्वी पर विचरण करते हैं और अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं। हनुमान जी को संकट मोचन कहा गया है। हनुमान जी का नाम स्मरण करने मात्र से ही भक्तो के सारे संकट दूर हो जाते हैं।

ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी का जन्म मंगलवार को हुआ। अत: मंगलवार के दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व है। इसके अतिरिक्त शनिवार को भी हनुमान पूजा का विधान है। हनुमान जी को प्रसन्न करना बहुत सरल है। राह चलते उनका नाम स्मरण करने मात्र से ही सारे संकट दूर हो जाते हैं। मानव जीवन का सबसे बड़ा दुख ''भय'' है और जो साधक श्री हनुमान जी का नाम स्मरण कर लेता है वह भय से मुक्ति प्राप्त कर लेता है। हनुमान जी की उपासना से बुद्धि, यश, शौर्य, साहस और आरोग्यता में वृद्धि होती है।

हनुमान जी की कृपा पाने और सभी परेशानियों से छुटकारा पाने का एक अचूक उपाय है हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का पाठ। प्रतिदिन हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का पाठ करने वाले भक्तों को सभी सुख मिलते हैं और धन की प्राप्ति होती है। ऐसे लोगों को किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होती और उनकी किस्मत का सितारा चमक जाता है।

अगर शांति चाहिए तो सुंदरकांड पढ़िए। सुंदरकांड श्रीरामचरितमानस का चौथा अध्याय है। यह श्रीरामचरितमानस का सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला भाग है क्योंकि इसमें हनुमान जी के बल, बुद्धि, पराक्रम व शौर्य का वर्णन किया गया है। सुंदरकांड के पढऩे व सुनने से मन में एक अद्भुत ऊर्जा का संचार होता है। सुंदरकांड के हर दोहा, चौपाई व शब्द में गहन अध्यात्म छुपा है, जिससे मनुष्य जीवन की हर समस्या का सामना कर सकता है। सुंदरकांड के पाठ से बहुत ही जल्द हनुमान जी प्रसन्न हो जाएंगे और आपको मालामाल कर देंगे।

जिस प्रकार विवाहित स्त्रियां अपने पति या स्वामी की लंबी उम्र के लिए मांग में सिंदूर लगाती हैं, ठीक उसी प्रकार हनुमानजी भी अपने स्वामी श्रीराम के लिए पूरे शरीर पर सिंदूर लगाते हैं। इसलिए मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर उन्हें सिंदूर व चमेली का तेल अर्पित करें और अपनी मनोकामना कहें।  जो भी व्यक्ति हनुमानजी को सिंदूर अर्पित करता है उससे हनुमान जी प्रसन्न होते हैं और भक्त की सभी इच्छाएं पूरी करते हैं।

अपनी श्रद्धा के अनुसार हनुमान मंदिर में बजरंग बली की प्रतिमा पर चोला चढ़वाएं। ऐसा करने पर हनुमान जी अति प्रसन्न होते हैं और साधक की हर मनोकामना पूरी करते हैं।

राम  हनुमान जी के आदर्श देवता हैं। हनुमानजी जहां राम के अनन्यभक्त हैं, वहां रामभक्तों की सेवा में भी सदैव तत्पर रहते हैं। जहां-जहां श्रीराम का नाम पूरी श्रद्धा से लिया जाता है हनुमान जी वहां किसी ना किसी रूप में अवश्य प्रकट होते हैं। ऐसी कई कथाएं हैं जहां हनुमान जी ने श्रीराम के भक्तों का पूर्ण कल्याण किया है।

Wednesday, January 1, 2014

समृद्धि और सौभाग्य के लिए गुरुवार को इस मंत्र से करें गुरु पूजा

देवगुरु बृहस्पति की उपासना ज्ञान, बुद्धि, सौभाग्य, दाम्पत्य सुख देने वाली ही मानी गई है। गुरु बृहस्पति की उपासना के लिए गुरुवार का दिन बहुत ही शुभ होता है। ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक भी गुरु ग्रह शुभ ग्रह होता है। इसके अच्छे प्रभाव से व्यक्ति वैवाहिक सुख, धनलाभ और संतान सुख पाता है। देवगुरु बृहस्पति के ‍तंत्रोक्त मंत्र ना सिर्फ धन और वैभव की दृष्टि से चमत्कारी है बल्कि तुरंत असर करने वाले हैं। आप किसी भी एक गुरु मंत्र का गुरुवार के दिन जप कर सकते हैं। इन चमत्कारी पांचों मंत्रों की जप संख्या 19 हजार है।

ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:।
 
ॐ ऐं श्रीं बृहस्पतये नम:।

ॐ गुं गुरवे नम:।

ॐ बृं बृहस्पतये नम:।

ॐ क्लीं बृहस्पतये नम:।


गुरु मंत्र का यथाशक्ति स्मरण करें -
पीताम्बर: पीतवपु: किरीटी चतुर्भुजो देवगुरु प्रशान्त:।
यथाक्षसूत्रं च कमण्डलुञ्च दण्ड च विभ्रद्वरदोस्तु।।


गुरू, पुरोहित और शिक्षक में बृहस्पति जी का प्रतिरूप होता है। सच्चे मन से इनकी  सेवा करने से बृहस्पति के अशुभ प्रभावों में कमी आती है। पिता, दादा और गुरु का आदर करने से गुरु अपना शुभ प्रभाव स्वयं ही देने लगते हैं। जिन व्यक्तियों पर बृहस्पतिदेव की कृपा एवं प्रभाव होता है, वे  धार्मिक, आस्थावान, दर्शनिक, विज्ञान में रूचि रखने वाले, सत्यनिष्ठ, परोपकारी, कर्तव्यपरायण, संतुष्ट एवं कानून का पालन करने वाले होते हैं। अगर आप भी समृद्धि और सौभाग्य की कामना करते हैं तो इस प्रकार गुरु उपासना करें -
  • सुबह नहाकर नवग्रह मंदिर में गुरु बृहस्पति की प्रतिमा को यथासंभव केसर के दूध या गंगाजल से स्नान कराएं।
  • देवगुरु की केसरिया गंध, अक्षत, पीली पूजा सामग्री, जिनमें पीले फूल, पीला वस्त्र, नैवेद्य में पीले पकवान शामिल हों, अर्पित करें।
  • पूजा व मंत्र जप के बाद पीली वस्तुओं जैसे चने की दाल का दान करें। सक्षम होने पर सोने की वस्तु का भी दान कर सकते हैं।
  • केला और पीले रंग की मिठाईयां गरीबों, पक्षियों विशेषकर कौओं को खिलाएं।
  • केले के पौधे पर गौघृत का दीपक जलाएं।
  • धूप व घी के दीप से गुरु बृहस्पति की आरती कर मनोवांछित इच्छाओं को पूरा करने की कामना करें।
  • सफेद चन्दन और केसर मिलाकर मस्तक पर टीका लगाएं।
  •  बृहस्पतिवार को व्रत रखने से बृहस्पति देव की अनुकम्पा बनी रहती है।