Tuesday, January 7, 2014

मोदक का भोग लगाने वाले की मनोकामना पूरी करते हैं भगवान गणपति

शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान गणेश को प्रसन्न करने का सबसे आसान तरीका है मोदक का भोग। चित्रों में उनके साथ उनका वाहन चूहा और उनका प्रिय भोजन मोदक जरूर होता है। हिन्दू धर्मशास्त्रों के मुताबिक कलियुग में भगवान गणेश के धूम्रकेतु रूप की पूजा की जाती है। जिनकी दो भुजाएं हैं। किंतु मनोकामना सिद्धि के लिये बड़ी आस्था से भगवान गणेश का चार भुजाधारी स्वरूप पूजनीय है, जिनमें से एक हाथ में अंकुश, दूसरे हाथ में पाश, तीसरे हाथ में मोदक व चौथे में आशीर्वाद है।

पद्म पुराण के सृष्टि खंड में गणेश जी को मोदक प्रिय होने की जो कथा मिलती है उसके अनुसार मोदक का निर्माण अमृत से हुआ है। देवताओं ने एक दिव्य मोदक माता पार्वती को दिया। गणेश जी ने मोदक के गुणों का वर्णन माता पार्वती से सुना तो मोदक खाने की इच्छा बढ़ गयी।

अपनी चतुराई से गणेश जी ने माता से मोदक प्राप्त कर लिया। गणेश जी को मोदक इतना पसंद आया कि उस दिन से गणेश मोदक प्रिय बन गये। गणपत्यथर्वशीर्ष में लिखा है, "यो मोदकसहस्त्रेण यजति स वांछितफलमवाप्नोति।" इसका अर्थ है जो व्यक्ति गणेश जी को मोदक अर्पित करके प्रसन्न करता है उसे गणपति मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।

गणेश जी का एक दांत परशुराम जी से युद्ध में टूट गया था। इससे अन्य चीजों को खाने में गणेश जी को तकलीफ होती है, क्योंकि उन्हें चबाना पड़ता है। मोदक काफी मुलायम होता है जिससे इसे चबाना नहीं पड़ता है। यह मुंह में जाते ही घुल जाता है और इसका मीठा स्वाद मन को आनंदित कर देता है। गणपति अथर्वशीर्ष में लिखा है कि जो व्यक्ति गणेश जी को मोदक का भोग लगाता है गणपति उनका मंगल करते हैं। मोदक का भोग लगाने वाले की मनोकामना पूरी होती है।

भगवान गणेश को मोदक इसलिए भी पसंद हो सकता है कि मोदक प्रसन्नता प्रदान करने वाला मिष्टान है। मोदक के शब्दों पर गौर करें तो 'मोद' का अर्थ होता है हर्ष यानी खुशी। भगवान गणेश को शास्त्रों में मंगलकारी एवं सदैव प्रसन्न रहने वाला देवता कहा गया है। वह कभी किसी चिंता में नहीं पड़ते और भक्तों की सभी चिंताओं और बाधाओं को दूर करते हैं। इसका कारण संभवतः मोदक है क्योंकि यह गणेश जी को हमेशा प्रसन्न रखता है। मोदक के इसी गुण के कारण गणेश जी सभी मिष्टानों में मोदक को अधिक पसंद करते हैं।

यजुर्वेद के अनुसार गणेश जी परब्रह्म स्वरूप हैं। मोदक को गौर से देखेंगे तो उसका आकार ब्रह्मांड के समान है। गणेश जी के हाथों में मोदक का होना यह भी दर्शाता है कि गणेश जी ने ब्रह्मांड को धारण कर रखा है। सृष्टि के समय गणेश जी ब्रह्मांड को प्रलय रूपी मुख में रखा लेते हैं और सृष्टि के आरंभ में इसकी रचना करते हैं।

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