Tuesday, January 20, 2015

खतरनाक है शुगर की मिठास

खतरनाक है शुगर की मिठास


डायबिटीज एक गंभीर बीमारी है जिसे धीमी मौत (साइलेंट किलर ) भी कहा जाता है। संसार भर में डायबिटीज के रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है विशेष रूप से भारत में, लेकिन इसके बावजूद अब भी इसके ज्यादातर मरीजों को ठंड में डायबिटीज के कारण होने वाली परेशानियों से बचने के तरीके नहीं पता। यही कारण है कि सर्दियों में मरीजों के लिए अपने शुगर लेवल पर कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है और उनकी बीमारी बढ़ती चली जाती है। दरअसल, डायबिटीज के मरीजों के लिए सर्दियों में ग्लूकोज स्तर को नियंत्रित रखना अधिक जरूरी हो जाता है, क्योंकि सर्दियों में व्यायाम की कमी और मेटाबॉलिक प्रक्रिया बदलने की वजह से ग्लूकोज अनियंत्रित हो जाता है। डायबिटीज में ब्लड शुगर लेवल बढ़ने के कारण पूरे शरीर को नुकसान पहुंचता है। यही नहीं सर्दियों में डायबिटीज के मरीजों में हार्ट अटैक और दूसरी दिल की बीमारियां होने की संभावना चार गुणा तक बढ़ जाती है।  

डायबिटीज को पूरी तरह से खत्म तो नहीं किया जा सकता, लेकिन इसे कंट्रोल में रखा जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि मौसम बदलने से पहले डॉक्टर से सलाह लें और सर्दियों में डायबिटीज के किसी भी लक्षण को नजरअंदाज न करें। समय-समय पर शुगर लेवल का चेकअप करवाते रहें। नहीं तो यह जिंदगी से खिलवाड़ करने जैसा साबित हो सकता है। रक्त में ग्लूकोज की मात्रा सामान्य से ज्यादा तथा सामान्य से कम होना दोनों ही स्थितियां घातक सिद्ध होती हैं। सर्दियों में  थोड़ी सी सावधानी आपको डायबिटीज की पीड़ा से दूर रख सकती है।

कैसे करें बचाव: 


डायबिटीज के कारण पाचन तंत्र कमजोर हो जाता है। पाचन तंत्र कमजोर होने से यह भोजन को भी नहीं पचा पाता है। पाचन शक्ति नहीं होने से रोगी को कब्ज, गैसइटिस और कमजोरी की समस्या हो जाती है। इस मौसम में खान-पान में जरा सी लापरवाही परेशानी का सबब बन सकती है। इसलिए खान-पान का तो बहुत ही ध्यान रखें। हरी सब्जियां, फाइबर और एंटी ऑक्सीडेंट का सेवन अधिक करें। तीन बार भारी भोजन करने की बजाय 4-5 बार हल्का खाना खाएं। कैलोरी पर ध्यान रखें। जंक फूड बिल्कुल न खाएं। सोने से करीब दो घंटे पहले कुछ न खाएं।

डायबिटीज रोगियों का इम्यून सिस्टम भी कमजोर होता है। मौसम बदलते ही बार-बार बीमार होना, चोट-घाव ठीक न होना जैसी समस्याएं भी होती हैं। इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए सर्दी के मौसम में आंवला, हल्दी, काली मिर्च, तुलसी जैसी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली वस्तुओं का उपयोग लाभकारी है।
  
ग्लूकोज से ही शरीर को ऊर्जा मिलती है. लेकिन डायबिटीज रोगियों के शरीर में ग्लूकोज का पाचन नहीं होता है, बल्कि इसकी जगह प्रोटीन का पाचन होने लगता है। इससे रोगी दुबला हो जाता है। इसी कारण डायबिटीज के रोगियों में प्रोटीन की जरूरत अधिक होती है। डायबिटीज के मरीज ठंड के मौसम में प्रोटीन की कमी को आसानी से पूरा कर सकते हैं। इस मौसम में प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थो के सेवन से विशेष लाभ प्राप्त होते हैं। इसके लिए सभी प्रकार की दालें, सूखे मेवे जैसे- काजू, बादाम, अखरोट, मूंगफली, मौसमी फल और सब्जियां आदि कई पदार्थ हैं। इनके ठंड में उचित सेवन से शरीर को अनेक लाभ होते हैं।

डायबिटीज में नर्वस सिस्टम को भी नुकसान पहुंचता है। डायबिटीज में पैरों की नसों पर असर होता है, जिससे पैरों की संवेदना खत्म हो जाती है। इससे हाथ-पैर की उंगलियों में सूनेपन का आभास होता है। ऐसे में मरीज को दर्द, चुभन, सर्द - गर्म का पता नहीं लगता। यही कारण है कि जब भी कोई चोट लगती है, गर्म पानी की बोतल या आग से सेंकते हैं, तो फफोला हो जाता है, जो आगे चलकर गैंगरीन में बदल सकता है और कई मामलों में पैर काटने की नौबत आ सकती है। कई मरीजों के पैरों में सुन्नपन इस कदर होता है कि उन्हें चप्पल पैर से बाहर निकल जाने या चप्पल के साथ सो जाने का भी एहसास नहीं होता। ऐसे लोग अक्सर नहाने जाने पर गर्म पानी सीधे पैरों पर डाल लेते हैं या ब्लोअर के सामने सीधे पैर रख लेते हैं और जल जाते हैं। अत: हाथ पैर में डायरेक्ट वूलन न पहनें। डायरेक्ट हीटर के सामने न जाएं। गुनगुना पानी इस्तेमाल करें।  हाथों व पैरों की उंगलियों को हिलाने या उंगलियों का व्यायाम करने से नर्व्स में शक्ति आती है, इससे ब्लड सरकुलेशन भी सुधरता है।

ठंड में चिल ब्लेन की सबसे ज्यादा दिक्कत डायबिटीज के मरीजों को होती है। सर्दी में डायबिटीज मरीजों को एक बड़ी दिक्कत पैरों की सूजन की भी होती है। यदि खून में ग्लूकोज की मात्रा 250 एमजीडीएल से अधिक आ रही है तो पेशाब में कीटोन्स की जांच अवश्य कराएं, इस स्थिति में तेजी से पैरों में सूजन बढ़ती है। इसलिए पैरों का ज्यादा ध्यान रखना चाहिए। ऐसे में पैरों की सफाई रखें। पैर धोने के बाद उंगलियां अच्छी तरह सुखाएं,  रूखे पैरों पर मॉइश्चराइजर लगाएं। थोड़े लूज जूते व जुराबें पहनें। नंगे पैर न घूमें। पैरों की रेग्युलर एक्सरसाइज जरूर करें। कीटोन्स आने पर दवाओं के साथ ही डाइट पर भी ध्यान दें। हरी सब्जियां और रेशेदार फल फायदेमंद हो सकते हैं। पैरों का ध्यान रखें। 

डायबिटीज के मरीज कंधों के जोड़ों में जकड़न की वजह से  भी परेशान रहते हैं। ब्लड ग्लूकोज लेवल को सामान्य रखकर और रेग्युलर एक्सरसाइज से ठीक हो सकने वाली इस समस्या के लिए कई लोग स्टेरॉयड का इंजेक्शन भी लगवा लेते हैं , जो दिक्कतों और बढ़ा रहा है। जॉइंट के कोलेजन टिश्यू में प्रोटीन जमा होने से ऐसी दिक्कतें आती हैं, क्योंकि ठंड के कारण लोग एक्सरसाइज आदि बंद कर देते हैं। दर्द की वजह से बढ़े तनाव के कारण ब्लड शुगर लेवल भी गड़बड़ हो जाता है, जो दूसरी परेशानियां खड़ी कर सकता है। ऐसे में डायबिटीज के मरीज खान-पान का ध्यान रखें और रेग्युलर एक्सरसाइज करें। नियमित व्यायाम और टहलने से शरीर पुष्ट होता है और कमजोरी दूर होती है। सर्दियों में सैर पर अवश्य जाएं, लेकिन अत्यधिक ठंड में न जाएं और धुंध हटने के बाद ही घऱ से जाएं। 

डायबिटीज आंखों के लिए भी नुकसानदेह है। डायबिटिक रैटिनोपैथी के मरीजों में  आंख के पर्दे की रक्त कोशिकाओं पर भी असर पड़ता है। डायबिटीज से पर्दे में सूजन, रक्त का रिसाव, पर्दे पर खिंचाव आदि हो सकता है। आंखों का यह रोग होने की आशंका उस समय और भी बढ़ जाती है, जब रक्त में शुगर की मात्रा नियंत्रण में न रहे या उसे कम उम्र में शुरू होने वाला डायबिटीज (इंसुलिन डिपेंडेंट डायबिटीज) हो। हालांकि शुरूआत में पर्दे में सूजन, खिंचाव जैसे कारणों से आंखों की रोशनी पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता, लेकिन धीरे-धीरे डायबिटीज बढ़ने से रोशनी प्रभावित होने लगती है और आगे चलकर यह लाइलाज हो जाती है। इसके मरीज साल में दो बार पुतली फैलाने की दवा डालकर फंडोस्कोपी कराएं। खून की नसों में होने वाले परिवर्तनों का पता लगाने के लिए एंजियोग्राफी व ओसीटी कराएं। आंख में खून भरने या खिंचाव से पर्दा फटने पर सर्जरी ही एकमात्र उपाय है। इसके अलावा अपने ब्लड शुगर को कंट्रोल में रखें। 

Monday, January 19, 2015

दिल पर भारी कड़ाके की ठंड

दिल पर भारी कड़ाके की ठंड


सर्दी का मौसम अपने साथ सेहत से जुड़ी कई समस्याएं भी साथ लेकर आता है। सर्दी के दिनों में शरीर के तापमान को सामान्य बनाने के लिए दिल को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ती है। दरअसल, सर्दियों के मौसम में शरीर को गर्मी देने के लिए नसें सिकुड़ने लगती हैं, जिससे ब्लड सर्कुलेशन कम हो जाता है और पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाने के कारण हार्ट को आम दिनों की तुलना में कहीं ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। यही कारण है कि सर्दी में दिल की बीमारी के 40% मरीजों को दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। सर्दियों में दिल का दौरा पड़ने की प्रमुख वजह गर्मियों की अपेक्षा सर्दी में वसा का इस्तेमाल अधिक और व्यायाम की कमी को भी माना जाता है।

अगर आप डायबीटीज या हाई ब्लड प्रेशर के मरीज हैं, तब तो इस मौसम में आपको अपने दिल का और भी खास ध्यान रखना होगा। डायबिटीज के मरीजों के लिए सर्दियों में ग्लूकोज स्तर को नियंत्रित रखना अधिक जरूरी हो जाता है। गर्मी की अपेक्षा सर्दी में डायबीटीज मरीजों को आंख और पैरों का ज्यादा ध्यान रखना चाहिए। सर्दियों के दौरान डायबीटीज के मरीजों में दिल और मस्तिष्क आघात का खतरा बढ़ जाता है। डायबीटीज  के मरीज में घुटन और सीने में दर्द जैसे चेतावनी संकेतों को गंभीरता से लेना चाहिए, क्योंकि ये दिल के दौरे के लक्षण हो सकते हैं।

यह मौसम स्वस्थ लोगों के लिए भी चेतावनी लेकर आता है। हर किसी को दिल की बीमारी के लक्षणों के लिए चौकन्ना रहना चाहिए। सांस फूलना और सीने के बीच के हिस्से में दर्द - दिल की बीमारी के दो महत्वपूर्ण लक्षण होते हैं। लेकिन इन दोनों की सही पहचान करना ज़रूरी है।

सांस फूलना अक्सर अस्थमा या दमे की बीमारी का सूचक होता है। इसलिए ध्यान रखें अगर आपकी सांस तेज़ चलने और एक्सरसाइज़ करते समय फूलती है तो यह दिल की बीमारी की वजह से है। इसी तरह गैस होने की वजह से लोगों को पेट के ऊपरी हिस्से में अक्सर दर्द होता है और वो उसे एन्जाइना का दर्द समझ लेते हैं। या फिर एन्जाइना के दर्द को गैस की वजह से होने वाला दर्द समझ कर नज़रअंदाज़ कर देते हैं। इसलिए आपको सतर्क रहना चाहिए ताकि सीने के दर्द और पेट के दर्द की पहचान और उपचार में आप गलती ना कर दें। अगर ऐसा कोई भी दर्द आपको पहली बार हुआ हो तो फौरन डॉक्टरी जांच करवाएं।

इसलिए बढ़ता है दिल के दौरे का जोखिम

सर्दी में हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिये सबसे बड़ी परेशानी यह है कि ठंड की वजह से पसीना नहीं निकलता है और शरीर में नमक का स्तर बढ़ जाता है जिससे ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। सर्दियों में रक्तवाहिनी सिकुड़ जाती हैं इसलिए खून की सामान्य आपूर्ति बाधित होती है और ब्लड प्रेशर भी बढ़ जाता है। सर्दी में शारीरिक गतिविधियां कम होने के कारण अतिरिक्त कैलोरी बर्न नहीं हो पाती और कोलेस्ट्राल तेजी से धमनियों में जमने लगता है। इससे भी ब्लड प्रेशर बढ़ने की आशंका बढ़ जाती है और ब्लड प्रेशर बढ़ने से दिल के दौरे का जोखिम बढ़ जाता है। कड़ाके की ठंड दिल की सेहत के लिए भारी हो सकती है, ऐसे में दिल के मरीजों को अपने दिल को सेहतमंद बनाए रखने के लिए खास एहतियात बरतने की जरूरत होती है।

मिथ है यह

लोगों के मन में एक गलतफहमी है कि सर्दी के दिनों में गर्म चीजें जैसे गुड़ से बनी गजक, तिल के लडडू आदि खाने से या व्हिस्की या रम के दो पैग गुनगुने पानी से लेने से सर्दी भाग जाएगी, लेकिन दरअसल ऐसा नहीं है क्योंकि ऐसा करने से आपको फौरी तौर पर भले ही सर्दी से राहत मिले, लेकिन बाद में ब्लड प्रेशर और ब्लड शूगर बढ़ सकता है, जो नुकसानदेह साबित हो सकता है। शराब का सेवन करने के बाद ठंड में बाहर न निकलें। इससे आपकी रक्तवाहिनी सिकुड़ सकती हैं, जिससे फेफड़ों की समस्या हो सकती है।  दिल के मरीज़ों को सिगरेट से दूर रहना चाहिए।

ऎसा हो खानपान

खान पान पर भी ध्यान दें। पौष्टिक खाना खाकर रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाएं।  खाने में फाइबर और एंटी ऑक्सीडेंट की मात्रा बढ़ाएं। खाने में ओमेगा थ्री की मात्रा बढ़ाएं। तेल और मक्खन से बने खाद्य पदार्थों से पूरी तरह बचें। सर्दी की शुरुआत से ही बाजरे का सेवन शुरू कर लें। बाजरा न केवल शरीर को ऊष्मा देता है बल्कि पौष्टिक आहार भी है। बाजरे की खिचड़ी, रोटी, उत्पम, ढोकला इत्यादि आप कई डिशिज़ बना सकते हैं। जौ में घुलनशील फाइबर काफी मात्रा में पाया जाता है। यह रक्त में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करता है। इसके अलावा यह रक्त में ग्लूकोज के स्तर को भी संतुलित रखता है। इसमें वसा की मात्रा न के बराबर होती है। जौ से बने बिस्किट और बेकरी की अन्य चीजों का प्रयोग करें। ज्वार में विटामिन बी और विटामिन ई, मैगनीशियम, फाइबर, आयरन काफी मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा इसमें कई प्रकार के एंटीऑक्सीडेंट भी पाए जाते हैं। यह दिल की बीमारियों से भी बचाता है। ज्वार की रोटी सर्दी में फायदा देती है। डायबिटीज में मक्का भी फायदेमंद होता है। इसमें विटामिन ए, विटामिन बी व अन्य पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में होते हैं। मक्के की रोटी, ढोकला, सब्जी खा सकते हैं। स्वीट कॉर्न भी स्नैक्स के रूप में ले सकते हैं।

सर्दियों में अक्सर लोग कम पानी पीने लगते हैं, जिससे डिहाइड्रेशन की समस्या तो होती ही है, साथ ही त्वचा भी रूखी होने लगती है। रोजाना 8-10 गिलास पानी पीना चाहिए। चाय के स्थान पर लौंग, इलायची, अदरक, तुलसी, काली मिर्च का काढ़ा पीएं, चीनी के स्थान पर गुड़ लें।  विटामिन ‘सी’ युक्त फल सहित जूस, पानी, सूप का ज्यादा प्रयोग करें।


दिल की सेहत के लिए इन्हें आजमाएं  


  • सुबह के वक्त गर्म बिस्तर से उठकर एकदम खुली हवा में न जाएं, बल्कि थोड़ा इंतजार करें। सर्दी सबसे ज्यादा सिर, कान और पैरों के जरिए शरीर में प्रवेश करती है। इसलिए अपने शरीर के इन हिस्सों को ठंडी हवाओं से बचाकर रखें। 

  • खुद को ठंड के प्रकोप से बचाने के लिए पर्याप्त गर्म कपड़े जरूर पहनें। अगर शरीर का कोई हिस्सा सुन्न पड़ जाए, तो उसे कुछ देर तक गुनगुने पानी में रखने से आराम हो सकता है।

  • शरीर के रक्त संचार को सही स्तर पर रखने के लिए हर रोज व्यायाम करें। व्यायाम की गर्मी आपको सेहतमंद बनाए रखती है, लेकिन धुंध हटने के बाद। ठंड में हाई ब्लड प्रेशर और दिल के मरीज सुबह की सैर से बचें और हो सके तो शाम को टहल लें या व्यायाम कर लें जिन्हें करने पर शरीर से थोड़ा-बहुत पसीना जरूर निकले। इसके लिये खुले मैदान में जाना जरूरी नहीं, किसी हेल्थ क्लब या घर में ही व्यायाम कर अपने को चुस्त दुरूस्त रखा जा सकता है।

  • यदि हल्की सी भी धूप हो तो उसमें बैठना फायदेमंद हो सकता है। रोजाना कुछ देर धूप सेकने से दिल के रोगियों में हार्ट अटैक का खतरा कम होता है और ब्लड प्रेशर भी काबू में रहता है। मधुमेह रोगियों और हड्डी के लिए भी धूप से विटामिन डी की कमी पूरी होती है।

  • सफाई पर विशेष ध्यान दें, डिस्पोजल सामान का प्रयोग करें। गुनगुने पानी से ही नहाएं। ठंडे पानी से नहाने पर हार्ट अटैक का खतरा रहता है। 

  • सबसे ज़रूरी है तनाव कम करना क्योंकि तनाव दिल की बीमारी को खुला आमंत्रण है। हाई ब्लड प्रेशर और दिल के मरीज सात-आठ घंटे की नींद लें, ताकि तनाव से बचे रहें। 

  • ब्लड प्रेशर पर भी नज़र रखें। नियमित रूप से खून में कोलेस्ट्राल के स्तर की जांच कराएं और हार्ट के मरीज अपनी दवाएं नियमित लें। दिक्कत होने पर डॉक्टर के पास चेकअप को जाएं।

Tuesday, January 13, 2015

रब की मेहर होती हैं बेटियां

रब की मेहर होती हैं बेटियां

हमारे समाज में बेटे की बहुत अहमियत है। उनके जन्म पर ढेरों खुशियां मनाई जाती हैं। यहां तक कि कुछ त्योहार विशेष रूप से लड़कों के सम्मान में ही मनाए जाते हैं। लड़के के जन्म की पहली लोहड़ी हो या बेटे की शादी की पहली लोहड़ी, लोग लोहड़ी का त्यौहार दुगने उत्साह के साथ मनाते हैं जबकि प्रचलित लोककथा के अनुसार यह त्यौहार दो गरीब लड़कियों की शादी से संबंधित है। हमारी रूढ़िवादी मानसिकता देखिये कि हम रिश्तों में मधुरता एवं प्रेम के प्रतीक लोहड़ी के इस त्यौहार को सिर्फ़ लड़को के जन्म और शादी की खुशी में ही मनाते हैं। लड़कियों के जन्म की खुशी यहां नहीं मनाई जाती है, क्योंकि लड़कियों को लड़कों से कम आंका जाता है। हालांकि प्राचीन शास्त्रों में नारी को पूजनीय कहा गया है, मगर समाज ने उसे कभी वो दर्जा नहीं दिया। क्रूरता की हद तो यह कि लड़की को जन्म लेने से पहले कोख में ही खत्म कर दिया जाता है।


बेटे को वंश का वाहक माना जाता है। सदियों से पुत्र ही माता-पिता की देखभाल करता रहा है और आज भी स्थिति लगभग ऐसी ही है। इसी कारण अपने बुढ़ापे को सुरक्षित रखने के लिए लोगों में पुत्र की चाहना रहती है। बेटी के प्रति भेदभाव समाज के विकास को प्रभावित करता है। बेटों की चाहत में कोख में ही कन्या भ्रूण हत्या करने वाले मां बाप से पूछ कर देखें कि क्या उनके सपूत बुढ़ापे में उनका सहारा बनते हैं। क्या मां बाप के बाद सभी बहनों के लिए उनके मायके के दरवाज़े हमेशा खुले रहते हैं? अगर इस बारे में सर्वे कराया जाए तो परिणाम उन महिलाओं के लिए निराशाजनक  ही होंगे जो बेटों के लिए बेटियों को पैदा होने से पहले ही मार देती हैं या उनके जन्म के बाद उन्हें मरने के लिए सड़कों पर या कूड़े के ढ़ेर में फेंक देती हैं। इसके अनेक उदाहरण आप सबके पास भी होंगे जब बूढ़े मां-बाप का साथ बेटियों ने ही दिया जबकि बेहद लाड-प्यार से पाले-पलोसे उनके बेटों ने उन्हें दर-दर भटकने के लिए घर से बाहर कर दिया।


सामाजिक बदलाव और जागरुकता के चलते अब लोगों की सोच में भी बदलाव आ रहा है। वे अब बेटी के महत्व को समझने लगे हैं। बेटियों के बिना घर और समाज अधूरा है। बेटी ना हो केवल बेटे ही हों यह सोच बदल रही है। अब पुत्रियां माता-पिता की सेवा कर रही हैं। पुत्री के रूप में बहू ही सेवा करती है। अब बेटी के जन्म पर भी लोग जश्न मनाने लगे हैं। समाज में भ्रूण हत्या जैसी कुरीति को खत्म करने के मकसद से लोहड़ी को एक अलहदा ढंग से मनाया जाने लगा है। अब धीयां दी लोहड़ी उत्सव के तौर पर मनाई जाने लगी है। आज आलम यह है कि लोग लड़कों की लोहड़ी कम व लड़कियों की लोहड़ी सामूहिक तौर पर ज्यादा मनाने लगे हैं।  इस तरह के प्रयत्न लड़कियों को समाज में बनता सम्मान दिलाने के लिए कारगार सिद्ध होंगे, वहीं दूसरी तरफ कन्या भ्रूण हत्या व दहेज जैसी सामाजिक बुराईयों को भी खत्म करेंगे।


 "धीयां दी लोहड़ी" उन लोगों को शीशा दिखाती है, जो आज भी बेटी और बेटे के जन्म में फर्क समझते हैं। लड़का-लड़की में भेद करना खुद को धोखा देना है, क्योंकि आज लड़कियां  हर क्षेत्र में अपनी काबलियत का लोहा मनवा चुकी हैं, वे लड़कों को हर क्षेत्र में पछाड़ रहीं हैं। भ्रूण हत्या रोकनी है तो कन्यायों को समाज में लड़के से बढ़कर सम्मान देना होगा। बेटे के लिए बहू बन कर किसी दूसरे की बेटी आपके घर में आएगी और आपकी बेटी किसी के घर दुल्हन बन कर जाएगी। इसलिए कन्या भ्रूण की कोख में ही हत्या ना करें उसे दुनिया का उजाला देखने दें, वो आज आपके घर की रौनक तो कल किसी के घर के आंगन की शोभा बनेगी।