Thursday, September 18, 2014

गरबा के मौज-मस्ती वाले रंग

गरबा के मौज-मस्ती वाले रंग



नवरात्र के नौ दिन के उत्सव के दौरान हर तरफ गरबा और डांडिया डांस की धूम होती है। गरबा सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। गुजरात का यह पारंपरिक लोक नृत्य कभी सिर्फ गुजरात तक ही सीमित था, लेकिन अब यह देश के कई हिस्सों में अपनी धूम मचा रहा है। इसकी बड़ी वजह है, धार्मिक महत्व के अलावा इसके मौज-मस्ती वाले रंग। इसलिए इससे जुड़े आयोजनों में सभी आयु वर्ग के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। युवाओं के लिए अपने संस्कृति से जुड़ने का सुनहरा अवसर होता है।  वे पूरी रात डांडिया और गरबे की मस्ती में झूमते हैं। चौतरफा सिर्फ उत्सव का माहौल रहता है।

शक्ति की साधना और आराधना के पर्व शारदीय नवरात्रों को गरबा नृत्योत्सव के रूप में मनाया जाता है। गरबा और डांडिया नृत्य दुनिया भर के बड़े नृत्य त्योहारों में से एक हैं। नवरात्रों में शाम को डांडिया और गरबा नृत्य के जरिए मां दुर्गा की पूजा की जाती है। नवरात्रों की पहली रात्रि को कच्चे मिट्टी के सछिद्र घड़े, जिसे 'गरबो' कहते हैं, की स्थापना होती है। फिर उसके अंदर दीपक को प्रज्वलित किया जाता है, जो ज्ञान रूपी प्रकाश का अज्ञान रूपी अंधेरे के भीतर फैलाने प्रतीक माना जाता है।

महिलाएं कलश के चारों ओर एक लय व ताल के साथ गोलाकार में घूमते हुए झुकती, मुड़ती, तालियां या  चुटकियां बजाती हुई नृत्य करती हैं। इस नृत्य के साथ देवी की स्तुति की जाती है और कृष्णलीला संबंधी गीत भी गाए जाते हैं। साथ में ढोलक या तबला बजाने वाले संगीत देते हैं। आरती से पहले सभी रसिक-जन गरबा के रंग में रंग जाते हैं। देवी के सम्मान में भक्ति प्रदर्शन के रूप में गरबा, 'आरती' से पहले किया जाता है और डांडिया समारोह उसके बाद। यह रात भर चलता है।

आरंभ में देवी के निकट सछिद्र घट में दीप ले जाने के क्रम में गरबा नृत्य होता था। यह घट दीपगर्भ कहलाता था। वर्णलोप से यही शब्द गरबा बन गया। डांडिया रास की शुरूआत के संबंध में एक किंवदंती प्रसिद्ध है। वर्षों पहले गुजरात में महिषासुर नामक राक्षस राज करता था। उसने अपने क्रूर व्यवहार से सारी जनता की नाक में दम कर रखा  था। उसके आतंक से त्रस्त होकर आखिर सभी लोगों ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश की सामूहिक आराधना की। देवताओं के प्रकोप से तब देवी जगदंबा प्रकट हुर्इं और उन्होंने उस राक्षस का वध किया। तभी से नवरात्रि के दौरान भक्तगण नौ दिन तक उपवास करने लगे और देवी के सम्मान में गरबा करने लगे। समय के साथ इसमें डांडिया भी जुड़ा और डांडिया-रास के रूप में इस लोकप्रिय नृत्य का उदय हुआ।

नौ दिन तक माता का पंडाल सजाया जाता है। युवक- युवतियां पारंपरिक वेशभूषा में गानों पर थिरकते हैं औरव डांडिया व  गरबा खेलते है। गरबा में पहने जाने वाली इस पारंपरिक पोशाक को केडिया (बड़ा कुर्ता) कहते हैं। इसे सिर्फ लड़के पहनते हैं। केडिया के साथ पहने जाने वाले आभूषण को हसदी कहा जाता हैं। गरबा खेलने आईं लड़कियां पारंपरिक चनिया चोली पहनती हैं। इस विशेष परिधान का वज़न क़रीब पांच किलो होता है और यह पोशाक कई सजावटी चीज़ों से बनती हैं। इस कारण आधुनिक युवतियां चनिया चोली की जगह जींस के साथ शार्ट कुर्ती, डिजाइनर साड़ियां और लड़के जींस के साथ शार्ट कुर्ता, लॉग कुर्ते के साथ चूड़ीदार या पाजामा-कुर्ता ज्यादा पसंद कर रहे हैं।

बदलते समय के साथ-साथ गरबे में भी बहुत बदलाव आया है। आज इन नृत्यों के व्यावसायीकरण हो जाने के कारण इस नृत्य की वास्तविकता, पारंपरिकता और नाजुक लय, वैकल्पिक रूपों में गुम होती जा रही है। ढोल के धमाके और ढोलक की थापों का स्थान अब ड्रम और कांगों ने ले लिया है। हारमोनियम की मस्ती, शहनाई की गूंज और बांसुरी की मधुर धुन का स्थान इलेक्ट्रॉनिक सिंथेसाइजर ले चुके हैं। 

हैल्दी लाइफस्टाइल से जुड़ा है नवरात्र का त्योहार

हैल्दी लाइफस्टाइल से जुड़ा है नवरात्र का त्योहार

भारतीय मनीषियों ने वर्ष में दो बार विशेष रूप से नवरात्रियों का पर्व मनाने का विधान बताया है। सर्वप्रथम विक्रम संवत के प्रारंभ के दिन से अर्थात चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहली तिथि) से नौ दिन पर्यन्त अर्थात नवमी तक नवरात्र निश्चित किए गए हैं। इसी प्रकार ठीक छह मास बाद शारदीय नवरात्र आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी अर्थात विजयदशमी से एक दिन पूर्व तक नवरात्रियों का पर्व माना गया है। परन्तु शारदीय नवरात्र ही सभी दृष्टियों से सबसे महत्वपूर्ण नवरात्रियां मानी गई हैं।

इन नवरात्रों में विशेष आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए सभी प्रकार के उपासक ध्यान, व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग साधना आदि करते हैं। विशेष साधक इन रात्रियों में पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर आन्तरिक त्राटक या विशेष योगसाधना या विशेष बीजमंत्रों का निरन्तर जाप करके सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं।

नवरात्र अध्यात्म से जुड़ा होता है जिससे शरीर में अतिरिक्त ऊर्जा का एहसास होता है। नवरात्रों के दौरान घर पर किया जाने वाला विधिवत हवन भी स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद है। हवन से आत्मिक शांति मिलती है, वातावरण की शुद्धि होती है और साथ ही नकारात्मक शक्तियों का नाश होकर सकारात्मक शक्तियों का प्रवेश होता है।

नवरात्र में व्रत रखने की परंपरा भी बहुत पुरानी है। इस समय शक्ति के नव रूपों की उपासना की जाती है। नवरात्र व्रत का वैज्ञानिक महत्व भी है जो स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी लाभदायक है। जब हम हैल्थ की बात करते हैं तो हमारा मतलब हैल्दी लाइफस्टाइल से होता है। नवरात्र का त्योहार इसी हैल्दी लाइफस्टाइल से जुड़ा हुआ है। बदलते मौसम में शरीर को कैसे स्वस्थ रखना है, नवरात्र में वही तरीका अपनाया जाता है।

पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा काल में एक साल की चार संधियां हैं जिनमें से मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियां बढ़ती हैं। अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए तथा शरीर को शुद्ध रखने के लिए और तन-मन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम 'नवरात्र' है। दरअसल, शरीर को सुचारू रखने के लिए विरेचन, सफाई तो हम प्रतिदिन करते ही हैं किन्तु अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई करने के लिए हर छ: माह के अंतर से सफाई अभियान चलाया जाता है और यह काम करता है नवरात्र के व्रत। उपवास शरीर को ऊर्जावान बनाता है, इससे शरीर में चुस्ती-फुर्ती बनी रहती है और पाचन तंत्र को भी व्रत के दिन आराम मिलता है।

नवरात्रों पर महिलाएं अपने परिवार की मंगल कामना के लिए पूरे नौ दिन न केवल पूरे भक्ति-भाव से देवी की पूजा करती हैं बल्कि उपवास भी रखती हैं। नवरात्र के व्रत के समय मांस, शराब, अनाज, गेहूं और प्याज नहीं खाते। नवरात्र और मौसमी परिवर्तन के समय के दौरान अनाज का आमतौर पर परहेज किया जाता है क्योंकि मान्यता है कि अनाज नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है। सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुध्दि, साफ सुथरे शरीर में शुध्द बुद्धि, उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता और क्रमश: मन शुध्द होता है। स्वच्छ मन मंदिर में ही तो ईश्वर की शक्ति का स्थायी निवास होता है।

फास्ट को ना बनाएं फीस्ट

फास्ट को ना बनाएं फीस्ट

नवरात्रों के दौरान ज्यादातर लोग धार्मिक कारणों से उपवास रखते हैं, लेकिन ये स्वास्थ्य के लिए भी बेहद फायदेमंद हैं। व्रत शरीर को ऊर्जावान बनाता है। व्रत करने से शरीर में चुस्ती-फुर्ती बनी रहती है। पाचन तंत्र को भी व्रत के दिन आराम मिलता है। डाइटीशियन भी मानते हैं कि नवरात्रों के दौरान सही तरीके से उपवास रख कर महिलाएं अपनी सेहत को दुरुस्त कर सकती हैं। अगर आप नौ दिन तक उपवास कर रहे हैं, तो अपनी डाइट पर नियंत्रण रखें, ऐसी लौ कैलोरी डाइट लें, जो हैल्दी हो और स्वादिष्ट भी लगे ...


व्रत के दौरान दिनभर कुछ-न-कुछ खाते रहने से परहेज रखना चाहिए। उपवास का भी यही अर्थ है। उतना ही खाओ, जितना शरीर के लिए उपयोगी है। बहुत से लोग, उपवास इसीलिए रखते हैं ताकि अच्छा और सुस्वाद भोजन कर सकें, पर उपवास संयम सिखाता है। संयम इसलिए क्योंकि शरीर को स्वस्थ रखना है। डाइट की अनियमितता की वजह से अक्सर व्रत के दौरान कमजोरी, गैस्ट्रिक आदि समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

नवरात्र का नौ जड़ी बूटियों या ख़ास व्रत की चीजों से भी संबंध है, जिन्हें नवरात्र के व्रत में प्रयोग किया जाता है :

1. कुट्टू (शैलपुत्री)
2. दूध-दही (ब्रह्मचारिणी)
3. चौलाई (चंद्रघंटा)
4. पेठा (कूष्माण्डा)
5. श्यामक चावल (स्कन्दमाता)
6. हरी तरकारी (कात्यायनी)
7. काली मिर्च व तुलसी (कालरात्रि)
8. साबूदाना (महागौरी)
9. आंवला (सिध्दीदात्री)

यह आदत है खतरनाक

पहले जमाने में महिलाएं खूब शारीरिक श्रम करती थीं तब व्रत के दिन बनने वाले पकवान खाने के बावजूद अतिरिक्त कैलोरी की खपत हो जाया करती थी। लेकिन आज के दौर में ऐसा नहीं है। आज भी महिलाएं नवरात्र के उपवास में परंपरागत व्यंजन खाने का मोह नहीं त्याग पातीं, जबकि उनका शारीरिक श्रम काफी कम हो गया है।  नतीजा, व्रत का जैसा असर महिलाएं अपने शरीर में चाहती हैं, वैसा नहीं हो पाता। नौ दिनों में वे दोगुनी कैलोरी ले लेती हैं और पेट पर मोटापे का टायर पहले की तुलना में ज्यादा स्पष्ट दिखने लगता है।

महिलाएं व्रत में कम खाने और शरीर को डिटॉक्स करने यानी विषैले तत्वों से मुक्त करने के बजाय इसका उल्टा करती हैं। भले ही वे एक वक्त खाती हैं, लेकिन आहार जरूरत से ज्यादा कैलोरी युक्त होता है। यह शरीर में तत्काल ऊर्जा में नहीं बदलता, बल्कि शरीर में चर्बी के रूप में जमता चला जाता है।

व्रत में अन्न का सेवन वर्जित है, जिस कारण आमतौर पर महिलाओं में यह धारणा है कि व्रत के दिनों में बहुत ऊर्जा की जरूरत होती है, इसलिए वे व्रत के दौरान चाय, काफी का सेवन ज्यादा करने लगती हैं, इस पर नियंत्रण रखें।

व्रत के दौरान कैसा हो खानपान?

उपवास में डाइट ऐसी हो, जो तुरंत ऊर्जा दे और कैलोरी भी कंट्रोल में रहे। जो महिलाएं नवरात्र में पूरे नौ दिन का व्रत रखती हैं, वे कम मात्रा में और नियमित अंतराल पर फलों का सेवन करती रहें, ताकि शरीर को जरूरी ऊर्जा मिलती रहे। फलाहार में संतरा, अंगूर, केला, सेब, अनार आदि फल लिया जा सकता है। इससे शाम तक आप निढाल महसूस नहीं करेंगे।

व्रत में पकाए जाने वाले व्यंजनों में टेस्ट के साथ समझौता किए बिना सेहत की दृष्टि से थोड़ा-बहुत फेरबदल किया जाए।  तले भोजन पर टूटने से पहले दूसरे सेहतमंद विकल्प तलाश लें। कुट्टू के आटे के पकौड़ों व पूरियों की जगह कुट्टू की रोटी खाई जा सकती है। फ्राई किए हुए आलू की चाट की जगह उबले आलू की चाट और खीर की जगह दही व कटे फलों का रायता और सलाद खाया जा सकता है।

‘डीटॉक्सीफिकेशन’ के लिए एक दिन सिर्फ फलों का जूस और पानी पिया जाए। जूस में फ्रुक्टोस शुगर, खनिज और विटामिन होते हैं, लेकिन इनकी मात्रा उतनी नहीं होती, जितनी हमारे शरीर को इनकी जरूरत होती है। इसलिए आपको थोड़े-थोड़े अंतराल पर हल्का और सुपाच्य भोजन लेते रहना चाहिए।

व्रत करते समय पेय पदार्थों पर अधिक ध्यान देना चाहिए। इससे शरीर में पानी का संतुलन सही रहता है, ऊर्जा बनी रहती है। एक साथ खूब सारा पानी पीने की बजाय दिन में कई बार नींबू पानी पिएं। मिश्रीयुक्त नींबू पानी, लस्सी, जूस इस मामले में बढिय़ा है। दही, छाछ, लस्सी या दूध कम से कम एक टाइम जरूर लें। सुबह एक गिलास दूध पिएं, दोपहर के समय जूस लें और शाम को चाय पी सकती हैं।

व्रत के दौरान सुबह के समय हम जो डाइट लेते हैं, उसका बहुत महत्व है। सुबह की शुरूआत फल, फलों के जूस, पनीर, ड्राइ फ्रूट्स आदि से करें। ध्यान रखें कि आपकी डाइट में न तो बहुत अधिक मीठा हो और न ही अधिक नमक। सुबह के समय आलू के पकवान खाए जा सकते हैं। आलू में कार्बोहाइड्रेट प्रचुर मात्रा में होता है। इनसे शरीर को एनर्जी मिलती है। रात के भोजन में सिंघाड़े के आटे से बने पकवान खा सकती हैं। ड्राई फ्रूट्स इंस्टेट एनर्जी के लिए लाभदायक होतेे हैं। बादाम और अखरोट इंस्टेंट एनर्जी व अच्छे कोलेस्ट्रॉल के लिए उत्तम माने जाते हैं।

इन बातों का रखें ध्यान


  • कई लोग व्रत के दौरान एक ही बार भोजन करते हैं। पूरे दिन भूखा रहने और रात में हैवी खाना खाने से बेहोशी आना, चक्कर आना, सिरदर्द होना, कमजोरी महसूस करना आदि समस्याएं शुरू हो जाती हैं। ऐसे में पूरे दिन निश्चित अंतराल पर फल, सलाद, दही, श्रीखंड, फ्रूट चाट, खट्टे आलू लेने चाहिए।
  • जहां तक संभव हो निर्जला उपवास न करें। इससे सरीर में पानी की कमी हो जती है और अपशिष्ट पदार्थ शरीर के बाहर नहीं आ पाते। इससे पेट में जलन, कब्ज, संक्रमण और पेशाब में जलन जैसी कई समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
  • व्रत की शुरूआत में भूख काफी लगती है ऐसे में नींबू- पानी पिया जा सकता है। इससे भूख को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। कच्चे नारियल का पानी भी उपवास की दृष्टि के फायदेमंद है। 
  • ज्यादातर लोगों को उपवास में कब्ज की शिकायत हो जाती है। इसलिए व्रत करने से पहले त्रिफला, आंवला, पालक का सूप या करेले के रस इत्यादि का सेवन करें। इससे पेट साफ रहता है।
  • व्रत के दौरान अधिक बातचीत न करें। अधिक समय मौन धारण करें।

डॉक्टर की लें सलाह

बीमार लोगों को डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही उपवास रखना चाहिए। गर्भवती महिलाओं को भी उपवास के दौरान अपेक्षाकृत अधिक सावधानियां बरतनी चाहिए।अगर सेहतमंद तरीके से व्रत करेंगे तो व्रत के दौरान व व्रत के बाद तकलीफ नहीं होगी। डायबिटीज के रोगी को अधिक मीठे फल, आलू, मिठाइयां आदि खाने से परहेज करना चाहिए। दरअसल, इन सभी चीजों में शूगर की मात्रा अधिक होती है। वे भूखे भी न रहें, क्योंकि शरीर में ग्लूकोज की मात्रा घटने से भी परेशानियां पैदा होने लगती हैं। उन्हें दिन में कई बार थोड़ी मात्रा में हल्की डाइट लेनी चाहिए। वे व्रत के दौरान सिंघाड़े के आटे या साबूदाने के बजाय लौकी, कद्दू, फल आदि लें जिससे उनका शुगर लेवल न बढ़े। 

जानिए, क्यों जलाते हैं नवरात्र में अखंड ज्योति?

जानिए, क्यों जलाते हैं नवरात्र में अखंड ज्योति?


नवरात्र के नौ दिन माता के सामने अखंड ज्योति प्रज्जवलित की जाती है। अखंड ज्योति पूरे नौ दिनों तक अखंड रहनी चाहिए यानी जलती रहनी चाहिए। यह अखंड ज्योति माता के प्रति हमारी अखंड आस्था का प्रतीक मानी जाती है। कहा जाता है कि घी युक्त ज्योति देवी के दाहिनी ओर तथा तेल युक्त ज्योति देवी के बाईं ओर रखनी चाहिए।

मान्यता है कि दीपक या अग्नि के समक्ष किए गए जप का साधक को हजार गुना फल प्राप्त होता है। यह अखंड ज्योति इसलिए भी जलाई जाती है कि नवरात्रों के अवसर पर अखंड दीप जलाकर मन में छाये हुए अंधकार के ऊपर विजय प्राप्त की जा सकती है। जिस तरह विपरीत परिस्थितियों में भी छोटा सा दीपक अपनी लौ से अंधेरे को दूर भगाता है उसी तरह हम भी माता की आस्था के सहारे अपने जीवन का अंधकार को दूर कर सकते हैं।

दुर्गा के नौ रूपों की आराधना से शांत हो जाते हैं नवग्रहों के प्रकोप

दुर्गा के नौ रूपों की आराधना से शांत हो जाते हैं नवग्रहों के प्रकोप 


आश्विन माह में आने वाले इन नवरात्रों को ‘शारदीय नवरात्र’ कहा जाता है। शारदीय नवरात्र की महिमा सर्वोपरि है। शरदकाले महापूजा क्रियते या च वाष्रेकी। दुर्गा सप्तशती के इस वचन के अनुसार शारदीय नवरात्र की पूजा वार्षिक पूजा होने के कारण महापूजा कहलाती है। यह भक्तों की आस्था और विश्वास का प्रतीक है। नौ दिनों तक चलने नवरात्र पर्व में मां दुर्गा के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री देवी की पूजा का विधान है। 


नवरात्र के इन प्रमुख नौ दिनों में लोग नियमित रूप से पूजा-पाठ और व्रत का पालन करते हैं। अनेक पौराणिक कथाओं में शक्ति की अराधना का महत्व व्यक्त किया गया है। एक पौराणिक कथानुसार महाराक्षस रावण का वध करने के लिए भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने शारदीय नवरात्र का व्रत किया था और तभी जाकर उन्हें विजयश्री की प्राप्ति हुई थी। दुर्गा पूजा के नौ दिन तक देवी दुर्गा का पूजन, दुर्गा सप्तशती का पाठ इत्यादि धार्मिक क्रिया कलाप संपन्न किए जाते हैं।

मां दुर्गा की उपासना करने से स्वर्ग जैसे भोग और मोक्ष जैसी शान्ति मिलती है। भगवती दुर्गा अपने भक्तों का वात्सल्य भाव से कल्याण करती है।  नवरात्र के दिनों में चोरी, झूठ, क्रोध, ईष्र्या, राग, द्वेष एवं किसी भी प्रकार का छल नहीं करना चाहिए। तात्पर्य यह है कि मन, वचन एवं कर्म से किसी का दिल दु:खाना नहीं चाहिए। जहां तक सम्भव हो, दूसरों का भला करना चाहिए। मान्यता है कि नवरात्री में नौ दिनों तक माता दुर्गा के नौ रूपों की आराधना करने वाले पर से नवग्रहों के प्रकोप शांत हो जाते हैं और जीवन में सुख, शांति, यश और समृद्धि की प्राप्ति होती है।


शैलपुत्री – सूर्य
चंद्रघंटा – केतु
कुष्माण्डा – चंद्रमा
स्कन्दमाता – मंगल
कात्यायनी – बुध
महागौरी – गुरु
सिद्धिदात्री – शुक्र
कालरात्रि – शनि
ब्रह्मचारिणी – राहु

नवरात्र तिथि

पहला नवरात्र, प्रथमा तिथि, 25 सितंबर 2014, दिन बृहस्पतिवार
दूसरा नवरात्र, द्वितीया तिथि, 26 सितंबर 2014, दिन शुक्रवार.
तीसरा नवरात्र, तृतीया तिथि, 27 सितंबर 2014, दिन शनिवार.
चौथा नवरात्र, चतुर्थी तिथि, 28 सितंबर 2014, रविवार.
पांचवां नवरात्र , पंचमी तिथि , 29 सितंबर 2014, सोमवार.
छठा नवरात्र, षष्ठी तिथि, 30 सितंबर 2014, मंगलवार.
सातवां नवरात्र, सप्तमी तिथि, 1 अक्तूबर 2014, बुधवार
आठवां नवरात्र, अष्टमी तिथि, 2 अक्तूबर 2014, गुरूवार,
नौवां नवरात्र, नवमी तिथि, 3 अक्तूबर 2014, शुक्रवार
दशहरा, दशमी तिथि, 3 अक्तूबर 2014, शुक्रवार से प्रारंभ होकर शनिवार प्रात:काल तक रहेगी.


नवरात्र के नौ रंग

नवरात्र के नौ रंग

रंगों में तीन रंग सबसे प्रमुख हैं- लाल, हरा और नीला। इस जगत में मौजूद बाकी सारे रंग इन्हीं तीन रंगों से पैदा किए जा सकते हैं। हर रंग का आपके ऊपर एक खास प्रभाव होता है। नौ देवियों को समर्पित नवरात्र के पर्व में हर दिन के लिए एक रंग है। जानें किस दिन का है कौन सा रंग ताकि उस दिन उसी रंग के कपड़े पहन कर मां की पूजा करें और जानें उस रंग का अर्थ...


25 सितंबर (वीरवार) पीला : पहले दिन की शुरुआत करें चटकीले पीले रंग से। पीला रंग ऊर्जा का संवाहक है। यह रंग हमें गर्माहट का अहसास देता है। पीला सुकून  देने वाला रंग है। जिन्हें पीला रंग आकर्षित करता है, उनको सूझ-बूझ और जिज्ञासुवृत्ति से सम्पन्न व्यक्ति माना जाता है।

26 सितंबर (शुक्रवार) हरा: हरा रंग इन दिनों काफी चलन में भी है। हरा रंग शांत और संतुलित माना जाता है। यह मन की शान्ति दर्शाता है। हरा रंग पसन्द करने वाले आत्मविश्वासी और शान्त स्वभाव के होते हैं।

27 सितंबर (शनिवार) ग्रे:  ग्रे डल शेड है, इसलिए इसे आप ब्राइट शेड्स के कांबिनेशन में पहन सकती हैं। अगर आप किसी ऐसी जगह हैं, जहां एक विशेष कंपन और शुभ ऊर्जा है तो आपके पहनने के लिए सबसे अच्छा रंग काला और ग्रे है क्योंकि ऐसी जगह से आप शुभ ऊर्जा ज्यादा से ज्यादा आत्मसात करना चाहेंगे।

28 सितंबर (रविवार) केसरियाफेस्टिव सीजन के मूड के हिसाब से नारंगी बेहतरीन रंग है। यह रंग लाल और पीले रंग के समन्वय से बनता है। सुबह-सुबह जब सूर्य निकलता है, तो उसकी किरणों का रंग केसरिया होता है।  केसरिया रंग का मतलब है कि आपके जीवन में एक नया सवेरा हो गया है। केसरिया रंग पसन्द करने वाले कल्पनाशील होते हैं।

29 सितंबर (सोमवार) सफेदव्हाइट या ऑफ व्हाइट बेहद ग्रेसफुल दिखता है।  सफेद यानी श्वेत दरअसल कोई रंग ही नहीं है। कह सकते हैं कि अगर कोई रंग नहीं है तो वह श्वेत है, लेकिन साथ ही श्वेत रंग में सभी रंग होते हैं। श्वेत रंग सुख समृद्धि का प्रतीक है, यह मानसिक शांन्ति प्रदान करता है। सफेद रंग पसन्द करने वाले शान्तिप्रिय होते हैं।

30 सितंबर (मंगलवार) लाल: त्योहारों की चमक-दमक और भी बढ़ जाएगी जब आप लाल लहंगा, सूट या साड़ी पहनेंगे। रक्त का रंग लाल होता है। उगते सूरज का रंग भी लाल होता है। मानवीय चेतना में अधिकतम कंपन लाल रंग ही पैदा करता है। जोश और उल्लास का रंग लाल ही है। लाल को गतिशील, ताकतवर और उत्तेजक रंग माना जाता है। लाल रंग पसन्द करने वाला व्यक्ति दृढ़ स्वभाव का होता है।

1 अक्तूबर (बुधवार) नीला : नीला रंग नवरात्र में आपके लुक को स्टाइलिश और सेक्सी बना देगा। नीला रंग सब को शामिल करने का आधार है। भगवान श्री कृष्ण के शरीर का रंग नीला माना जाता है, उनका स्वभाव सभी को साथ लेकर चलने वाला था। नीला रंग शांति और सुकून का परिचायक है। सरल स्वभाव वाले सौम्य व एकान्त प्रिय लोग नीला रंग पसन्द करते हैं। गहरे नीले रंग में तनाव दूर करने की ताकत होती है।

2 अक्तूबर (वीरवार) गुलाबी: गुलाबी रंग फेस्टीव सीजन में हिट है। खूबसूरती और एलीगेंस का प्रतीक है गुलाबी रंग। गुलाबी रंग हमें सुकून देता है तथा परिवारजनों में आत्मीयता बढ़ाता है। गुलाबी रंग भावनात्मक प्यार का सूचक है।

3 अक्तूबर (शुक्रवार) बैंगनीः पर्पल और वॉयलेट जैसे रंग आपको भीड़ में सबसे अलग कर देंगे। यह रंग धर्म और अध्यात्म का प्रतीक है। नाजुक मिजाज, संवेदनशील और भावुक व्यक्ति बैंगनी रंग पसंद करने वाले होते हैं। इसका हल्का शेड मन में ताजगी जगाता है।

कंजक पूजन से मिलते हैं राजयोग, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि

कंजक पूजन से मिलते हैं राजयोग, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि


नवरात्र के दौरान आठवें दिन सुबह कन्या .यानी कंजक पूजन का विधान है। कुछ लोग नवमी के दिन भी कन्या पूजन करते हैं। मान्यता है कि होम, जप और दान से देवी इतनी प्रसन्न नहीं होतीं, जितनी कन्या पूजन से।  ऐसा कहा जाता है कि विधिवत, सम्मानपूर्वक कन्या पूजन से व्यक्ति के हृदय से भय दूर हो जाता है। साथ ही उसके मार्ग में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। उस पर मां की कृपा से कोई संकट नहीं आता। मां दुर्गा उस पर अपनी कृपा बरसाती हैं।

नवरात्र में कंजक पूजन के लिए जिन कन्याओं का चयन करें, उनकी आयु दो वर्ष से कम और दस वर्ष से ज्यादा न हो। एक वर्ष या उससे छोटी कन्याओं की पूजा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वे प्रसाद नहीं खा सकतीं। इसका धार्मिक कारण यह है कि दो वर्ष से लेकर दस वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती हैं और उन्हें माता के समान ही पवित्र और पूजनीय माना जाता है। कन्याओं के साथ एक लांगूर यानी लड़के को भी जिमाते है। ऐसा कहा जाता है कि लांगूर के बिना पूजन अधूरा रहता है।

दो वर्ष की कन्या (कुमारी) के पूजन से दुख और दरिद्रता मां दूर करती हैं। तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति रूप में मानी जाती है। त्रिमूर्ति कन्या के पूजन से धन-धान्‍य आता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है। चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है। इसकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है। पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है। रोहिणी को पूजने से व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है। छह वर्ष की कन्या को कालिका रूप कहा गया है। कालिका रूप से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है। सात वर्ष की कन्या का रूप चंडिका का है। चंडिका रूप का पूजन करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। आठ वर्ष की कन्या शाम्‍भवी कहलाती है। इसका पूजन करने से वाद-विवाद में विजय प्राप्त होती है। नौ वर्ष की कन्या दुर्गा कहलाती है। इसका पूजन करने से शत्रुओं का नाश होता है तथा असाध्य कार्यपूर्ण होते हैं।दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है। सुभद्रा अपने भक्तों के सारे मनोरथ पूर्ण करती है।

ऐसे करें कंजक पूजन

नवरात्र में सभी तिथियों को एक-एक और अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा होती है। कन्याओं के पैर धो कर उन्हें आसन पर बैठाया जाता है। हाथों में मौली बांधी जाती है और माथे पर रोली से टीका लगाया जाता है। भगवती दुर्गा को उबले हुए चने, हलवा, पूरी, खीर, पूआ व फल आदि का भोग लगाया जाता है। यही प्रसाद कन्याओं को भी दिया जाता है। कन्याओं को कुछ न कुछ दक्षिणा भी दी जाती है। कन्याओं को लाल चुन्नी और चूडि़यां भी चढ़ाई जाती हैं। कन्याओं को घर से विदा करते समय उनसे आशीर्वाद के रूप में थपकी लेने की भी मान्यता है। इस प्रकार महामाया भगवती प्रसन्न होकर मनोरथ पूर्ण करती हैं।

दूरियों को बदलें नजदीकियों में

दूरियों को बदलें नजदीकियों में


वैवाहिक जीवन में मधुरता की कामना कौन नहीं करता, लेकिन किसी भी रिश्ते को  परफैक्ट बनाने के लिए कोशिश करनी पड़ती है। हर रिश्ता उतार-चढ़ाव के दौर से गुजरता है। जब ज़िंदगी में खुशियां रहती हैं तब तो सबकुछ ठीक रहता है लेकिन जब जीवन में मुश्किलों भरे पल आते हैं तो कई बार रिश्ते बिखर भी सकते हैं। यदि आपके रिश्तों में भी दूरियां बन रही हैं या फिर खटपट शुरू हो गई है तो आप फेंगशुई के कुछ टिप्स आजमा कर अपने साथी के साथ खुशियों के पल बिता सकती  हैं...


  • आपका बेड खिड़की से सटा हुआ न हो। कहा जाता है कि इससे पति-पत्नी के रिश्तों में तनाव और दूरियां बढ़ती हैं। लेकिन यदि  आपके पास कोई और आप्शन न हो, और आपको अपना सिराहना खिड़की की तरफ ही रखना पड़ता है तो ध्यान रखें कि खिड़की और सिराहने के बीच पर्दा जरूर लगा हो।

  • छत पर बीम का दिखना भी रिश्तों के बीच दूरियों को बढ़ाता है। यदि इसे हटाना मुश्किल हो तो आप फॉल्स सीलिंग लगवा सकते हैं।

  • अगर आपकी नई-नई शादी हुई है तो कोशिश करें कि आपका बेड भी नया हो। बेहतर होगा अगर बेड की  चादर भी नई हो, लेकिन अगर आप पुरानी चादर इस्तेमाल कर रही हैं  तो ऐसी चादर का इस्तेमाल बिल्कुल भी न करें, जिनमें छेद हो।

  • बेड के नीचे की जगह का खाली होना जरूरी है। आपके बेड के नीचे सामान की मौजूदगी नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करती है, जो आखिरकार आप तक ही पहुंचती है।

  • आपको अगर यह एहसास हो रहा हो कि आपका प्यार आपसे दूर होता जा रहा है तो सिरामिक की विंड चाइम्स को बेडरूम में रखना आपसी रिश्तों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।

  • अपने बेडरूम में एक खूबसूरत प्लेट में शंख रखें, इससे आपकी दूरियां जल्द ही नजदीकियों में बदल जाएंगी और प्यार भी पनपता हुआ नजर आने लगेगा।

  • यदि आपकी आर्थिक स्थिति की वजह से आपके रिश्तों में खटास आ रही हो तो एक खूबसूरत बाऊल में चावल के दानों के साथ क्रिस्टल रखें। इससे आर्थिक समस्याएं तो दूर होंगी ही आपके रिश्तों में दोबारा प्यार का अंकुर भी फूटेगा।