विश्व एड्स दिवस : सावधानी ही बचाव का एकमात्र उपाय
आज विश्व एड्स दिवस है। एड्स का पूरा नाम है 'एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिशिएंसी सिंड्रोम।' ए यानी एक्वायर्ड यानी यह रोग किसी दूसरे व्यक्ति से लगता है। आईडी यानी इम्यूनो डिफिशिएंसी यानी यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता समाप्त कर देता है। एस यानी सिण्ड्रोम यानी यह बीमारी कई तरह के लक्षणों से पहचानी जाती है।
न्यूयॉर्क में 1981 में इसके बारे में पहली बार पता चला, जब कुछ ''समलिंगी यौन क्रिया'' के शौकीन अपना इलाज कराने डॉक्टर के पास गए। इलाज के बाद भी रोग ज्यों का त्यों रहा और रोगी बच नहीं पाए, तो डॉक्टरों ने परीक्षण कर देखा कि इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता खत्म हो चुकी थी। फिर इसके ऊपर शोध हुए, तब तक यह कई देशों में जबरदस्त रूप से फैल चुकी थी।
हर साल इस बीमारी से करीब 2 करोड़ लोग जिंदगी की जंग हार जाते हैं। करोड़ों अभी इसके प्रभाव में हैं। अफ्रीका पहले नम्बर पर है, जहां एड्स रोगी सबसे ज्यादा हैं। भारत दूसरे स्थान पर है और प्रतिदिन इनकी संख्या बढ़ती जा रही है। भारत में पहला एड्स मरीज 1986 में मद्रास में पाया गया। यदि कहीं पता चलता है कि फलाँ व्यक्ति एड्स रोगी है तो उससे परहेज करते हैं, भेदभाव करते हैं।
भारत में यह बीमारी असुरक्षित यौन संबंधों के कारण फैल रही है। भारत में गाड़ियों के ड्राइवर इसे तेजी से फैलाने का काम कर रहे हैं। अमेरिका में समलैंगिकता के कारण यह तेजी से फैली।
कई लोगों को इसकी जानकारी नहीं है कि यह किस तरह फैलती है और इससे बचने के लिए क्या उपाय करना चाहिए। पुरुष की अपेक्षा स्त्री में 20 गुना ज्यादा संक्रमण होने की आशंका होती है। योनि मैथुन की बनिस्बत गुदा मैथुन इसे फैलाने में ज्यादा सहायक होता है। इसका कारण यह है कि गुदा की म्यूकोजा यानी झिल्ली अत्यंत नाजुक होती है और झिल्ली क्षतिग्रस्त होने पर वायरस खून में शीघ्र पहुँच जाते हैं।
* यह रेट्रो वायरस ग्रुप का एक विचित्र वायरस है, यह आरएनए के दो स्टैंडों से युक्त होता है, जो रिवर्स टासक्रिपटेज की सहायता है डबल स्टैंड डीएनए में परिवर्तित हो जाता है और फिर कोशिकाओं के डीएनए में हमेशा के लिए सुप्तावस्था में पड़ा रहता है।
* एचआईवी वायरस के शरीर में प्रवेश करने, शरीर में सुप्तावस्था में रहने की क्रिया, एचआईवी संक्रमण कहलाती है, इस अवस्था में इंफेक्शन तो होता है, किन्तु बीमारी के लक्षण नहीं होते। संक्रमण को बीमारी की अवस्था में पहुंचने में 15 से 20 वर्ष लगते हैं।
* कई वर्षों तक यह मानव शरीर में पड़ा रहता है और अपनी संख्या बढ़ाता रहता है, दूसरी ओर मावन शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति खत्म करता जाता है।
* जब रोग प्रतिरोधक शक्ति खत्म हो जाती है तो फिर यह जागता है और अपना आक्रमण शुरू करता है। साथ ही शुरू होता है वह समय, जब मरीज धीरे-धीरे मौत की ओर जाने लगता है। मरीज की मौत के साथ ही यह संबंधित के शरीर से समाप्त होता है।
* असुरक्षित यौन संबंध इसका सबसे प्रमुख कारण है, इससे एड्स के वायरस एड्स ग्रस्त व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में तुरंत प्रवेश कर जाते हैं।
* बिना जांच का खून मरीज को देना भी एड्स फैलाने का माध्य होता है। खून के द्वारा इसके वायरस सीधे खून में पहुंच जाते हैं और बीमारी जल्दी घेर लेती है।
* नशीले पदार्थ लेने वाले लोग भी एड्स ग्रस्त होते हैं, वे एक-दूसरे की सिरींज-निडिल इस्तेमाल करते हैं, उनमें कई एड्स पीड़ित होते हैं और बीमारी फैलाते हैं।
* यदि मां एड्स से संक्रमित है, तो होने वाला शिशु भी संक्रमित ही पैदा होता है। इस प्रकार ट्रांसप्लांटेशन संक्रमण से भी एड्स लगभग 60 प्रतिशत तक फैलता है। बाकी बचा 40 प्रतिशत मां के दूध से शिशु में पहुंच जाता है।
एड्स के कोई खास लक्षण नहीं होते, सामान्यतः अन्य बीमारियों में होने वाले लक्षण ही होते हैं, जैसे- वजन में कमी होना, 30-35 दिन से ज्यादा डायरिया रहना, लगातार बुखार बना रहना।
एचआईवी नामक विषाणु सीधे श्वेत कोशिकाओं पर आक्रमण कर शरीर के अंतस्थ में उपस्थित आनुवंशिक तत्व डीएनए में प्रवेश कर जाता है, जहाँ इनमें गुणात्मक वृद्धि होती है। इन विषाणुओं की बढ़ी हुई संख्या दूसरी श्वेत कणिकाओं पर आक्रमण करती है। इससे धीरे-धीरे इन श्वेत कोशिकाओं की संख्या घटती जाती है। इसके फलस्वरूप शरीर का प्रतिरोधी तंत्र नष्ट हो जाता है और दूसरे संक्रामक रोगों से बचाव की क्षमता भी क्षीण हो जाती है।
* वेस्टर्न ब्लॉट टेस्ट
* एचआईवी पी-24 ऐंटीजेन (पी.सी.आर.)
* सीडी-4 काउंट
* एच.ए.ए.आर.टी. (हाइली एक्टिव ऐंटी रेट्रो वायरस थेरैपी) एड्स सेंटर पर नि:शुल्क उपलब्ध है। यह एक नया साधारण व सुरक्षित उपचार है।
* हाथ मिलाने से.
* कमोड, फोन या किसी के कपड़े से.
* मच्छर के काटने से.
एड्स पीड़ित व्यक्ति के साथ नम्र व्यवहार जरुरी है ताकि वह आम आदमी का जीवन जी सके। कल एड्स का मतलब था जिंदगी का अंत, पर आज इसे एक स्थाई संक्रमण समझा जाता है, जिसे नियंत्रित किया जा सकता है। भविष्य में हो सकता है एड्स का इलाज संभव हो जाए। फिलहाल सावधानी ही इस रोग से बचाव का एकमात्र उपाय है।
आज विश्व एड्स दिवस है। एड्स का पूरा नाम है 'एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिशिएंसी सिंड्रोम।' ए यानी एक्वायर्ड यानी यह रोग किसी दूसरे व्यक्ति से लगता है। आईडी यानी इम्यूनो डिफिशिएंसी यानी यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता समाप्त कर देता है। एस यानी सिण्ड्रोम यानी यह बीमारी कई तरह के लक्षणों से पहचानी जाती है।
न्यूयॉर्क में 1981 में इसके बारे में पहली बार पता चला, जब कुछ ''समलिंगी यौन क्रिया'' के शौकीन अपना इलाज कराने डॉक्टर के पास गए। इलाज के बाद भी रोग ज्यों का त्यों रहा और रोगी बच नहीं पाए, तो डॉक्टरों ने परीक्षण कर देखा कि इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता खत्म हो चुकी थी। फिर इसके ऊपर शोध हुए, तब तक यह कई देशों में जबरदस्त रूप से फैल चुकी थी।
हर साल इस बीमारी से करीब 2 करोड़ लोग जिंदगी की जंग हार जाते हैं। करोड़ों अभी इसके प्रभाव में हैं। अफ्रीका पहले नम्बर पर है, जहां एड्स रोगी सबसे ज्यादा हैं। भारत दूसरे स्थान पर है और प्रतिदिन इनकी संख्या बढ़ती जा रही है। भारत में पहला एड्स मरीज 1986 में मद्रास में पाया गया। यदि कहीं पता चलता है कि फलाँ व्यक्ति एड्स रोगी है तो उससे परहेज करते हैं, भेदभाव करते हैं।
भारत में यह बीमारी असुरक्षित यौन संबंधों के कारण फैल रही है। भारत में गाड़ियों के ड्राइवर इसे तेजी से फैलाने का काम कर रहे हैं। अमेरिका में समलैंगिकता के कारण यह तेजी से फैली।
कई लोगों को इसकी जानकारी नहीं है कि यह किस तरह फैलती है और इससे बचने के लिए क्या उपाय करना चाहिए। पुरुष की अपेक्षा स्त्री में 20 गुना ज्यादा संक्रमण होने की आशंका होती है। योनि मैथुन की बनिस्बत गुदा मैथुन इसे फैलाने में ज्यादा सहायक होता है। इसका कारण यह है कि गुदा की म्यूकोजा यानी झिल्ली अत्यंत नाजुक होती है और झिल्ली क्षतिग्रस्त होने पर वायरस खून में शीघ्र पहुँच जाते हैं।
क्या है एड्स
* यह रेट्रो वायरस ग्रुप का एक विचित्र वायरस है, यह आरएनए के दो स्टैंडों से युक्त होता है, जो रिवर्स टासक्रिपटेज की सहायता है डबल स्टैंड डीएनए में परिवर्तित हो जाता है और फिर कोशिकाओं के डीएनए में हमेशा के लिए सुप्तावस्था में पड़ा रहता है।
* एचआईवी वायरस के शरीर में प्रवेश करने, शरीर में सुप्तावस्था में रहने की क्रिया, एचआईवी संक्रमण कहलाती है, इस अवस्था में इंफेक्शन तो होता है, किन्तु बीमारी के लक्षण नहीं होते। संक्रमण को बीमारी की अवस्था में पहुंचने में 15 से 20 वर्ष लगते हैं।
* कई वर्षों तक यह मानव शरीर में पड़ा रहता है और अपनी संख्या बढ़ाता रहता है, दूसरी ओर मावन शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति खत्म करता जाता है।
* जब रोग प्रतिरोधक शक्ति खत्म हो जाती है तो फिर यह जागता है और अपना आक्रमण शुरू करता है। साथ ही शुरू होता है वह समय, जब मरीज धीरे-धीरे मौत की ओर जाने लगता है। मरीज की मौत के साथ ही यह संबंधित के शरीर से समाप्त होता है।
एड्स फैलने के कारण
* असुरक्षित यौन संबंध इसका सबसे प्रमुख कारण है, इससे एड्स के वायरस एड्स ग्रस्त व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में तुरंत प्रवेश कर जाते हैं।
* बिना जांच का खून मरीज को देना भी एड्स फैलाने का माध्य होता है। खून के द्वारा इसके वायरस सीधे खून में पहुंच जाते हैं और बीमारी जल्दी घेर लेती है।
* नशीले पदार्थ लेने वाले लोग भी एड्स ग्रस्त होते हैं, वे एक-दूसरे की सिरींज-निडिल इस्तेमाल करते हैं, उनमें कई एड्स पीड़ित होते हैं और बीमारी फैलाते हैं।
* यदि मां एड्स से संक्रमित है, तो होने वाला शिशु भी संक्रमित ही पैदा होता है। इस प्रकार ट्रांसप्लांटेशन संक्रमण से भी एड्स लगभग 60 प्रतिशत तक फैलता है। बाकी बचा 40 प्रतिशत मां के दूध से शिशु में पहुंच जाता है।
एड्स के लक्षण
एड्स के कोई खास लक्षण नहीं होते, सामान्यतः अन्य बीमारियों में होने वाले लक्षण ही होते हैं, जैसे- वजन में कमी होना, 30-35 दिन से ज्यादा डायरिया रहना, लगातार बुखार बना रहना।
एचआईवी नामक विषाणु सीधे श्वेत कोशिकाओं पर आक्रमण कर शरीर के अंतस्थ में उपस्थित आनुवंशिक तत्व डीएनए में प्रवेश कर जाता है, जहाँ इनमें गुणात्मक वृद्धि होती है। इन विषाणुओं की बढ़ी हुई संख्या दूसरी श्वेत कणिकाओं पर आक्रमण करती है। इससे धीरे-धीरे इन श्वेत कोशिकाओं की संख्या घटती जाती है। इसके फलस्वरूप शरीर का प्रतिरोधी तंत्र नष्ट हो जाता है और दूसरे संक्रामक रोगों से बचाव की क्षमता भी क्षीण हो जाती है।
एड्स की जांच
* एलीसा टेस्ट* वेस्टर्न ब्लॉट टेस्ट
* एचआईवी पी-24 ऐंटीजेन (पी.सी.आर.)
* सीडी-4 काउंट
एड्स का उपचार
* एचआईवी संक्रमित लोगों के लिए आशावान होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। ऐसे भी लोग हैं जो एचआईवी/एड्स से पीड़ित होने के बावजूद पिछले 10 सालों से जी रहे हैं। अपने डॉक्टरों के निर्देशों पर पूरा अमल करें। दवाओं को सही तरीके से लेते रहना और एक स्वस्थ जीवनचर्या बनाए रखने से आप इस रोग को नियंत्रित कर सकते हैं।* एच.ए.ए.आर.टी. (हाइली एक्टिव ऐंटी रेट्रो वायरस थेरैपी) एड्स सेंटर पर नि:शुल्क उपलब्ध है। यह एक नया साधारण व सुरक्षित उपचार है।
एड्स को लेकर भ्रम
कई लोग सोचते हैं कि एड्स रोगी के साथ उठने बैठने से यह रोग फैलता है तो यह गलत है। यह बीमारी छुआछूत की नहीं है। एड्स का फैलाव छूने, हाथ से हाथ का स्पर्श, साथ-साथ खाने, उठने और बैठने, एक-दूसरे का कपड़ा इस्तेमाल करने से नहीं होता है। एड्स एक रोग नहीं बल्कि एक अवस्था है। इस बीमारी को लेकर समाज में कई भ्रम हैं जिन्हें दूर करना बहुत जरूरी है. जैसे:एड्स इन सब कारणों से नहीं फैलता
* घर या ऑफिस में साथ-साथ रहने से.* हाथ मिलाने से.
* कमोड, फोन या किसी के कपड़े से.
* मच्छर के काटने से.
एड्स पीड़ित व्यक्ति के साथ नम्र व्यवहार जरुरी है ताकि वह आम आदमी का जीवन जी सके। कल एड्स का मतलब था जिंदगी का अंत, पर आज इसे एक स्थाई संक्रमण समझा जाता है, जिसे नियंत्रित किया जा सकता है। भविष्य में हो सकता है एड्स का इलाज संभव हो जाए। फिलहाल सावधानी ही इस रोग से बचाव का एकमात्र उपाय है।