Thursday, September 18, 2014

कंजक पूजन से मिलते हैं राजयोग, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि

कंजक पूजन से मिलते हैं राजयोग, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि


नवरात्र के दौरान आठवें दिन सुबह कन्या .यानी कंजक पूजन का विधान है। कुछ लोग नवमी के दिन भी कन्या पूजन करते हैं। मान्यता है कि होम, जप और दान से देवी इतनी प्रसन्न नहीं होतीं, जितनी कन्या पूजन से।  ऐसा कहा जाता है कि विधिवत, सम्मानपूर्वक कन्या पूजन से व्यक्ति के हृदय से भय दूर हो जाता है। साथ ही उसके मार्ग में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। उस पर मां की कृपा से कोई संकट नहीं आता। मां दुर्गा उस पर अपनी कृपा बरसाती हैं।

नवरात्र में कंजक पूजन के लिए जिन कन्याओं का चयन करें, उनकी आयु दो वर्ष से कम और दस वर्ष से ज्यादा न हो। एक वर्ष या उससे छोटी कन्याओं की पूजा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वे प्रसाद नहीं खा सकतीं। इसका धार्मिक कारण यह है कि दो वर्ष से लेकर दस वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती हैं और उन्हें माता के समान ही पवित्र और पूजनीय माना जाता है। कन्याओं के साथ एक लांगूर यानी लड़के को भी जिमाते है। ऐसा कहा जाता है कि लांगूर के बिना पूजन अधूरा रहता है।

दो वर्ष की कन्या (कुमारी) के पूजन से दुख और दरिद्रता मां दूर करती हैं। तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति रूप में मानी जाती है। त्रिमूर्ति कन्या के पूजन से धन-धान्‍य आता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है। चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है। इसकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है। पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है। रोहिणी को पूजने से व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है। छह वर्ष की कन्या को कालिका रूप कहा गया है। कालिका रूप से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है। सात वर्ष की कन्या का रूप चंडिका का है। चंडिका रूप का पूजन करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। आठ वर्ष की कन्या शाम्‍भवी कहलाती है। इसका पूजन करने से वाद-विवाद में विजय प्राप्त होती है। नौ वर्ष की कन्या दुर्गा कहलाती है। इसका पूजन करने से शत्रुओं का नाश होता है तथा असाध्य कार्यपूर्ण होते हैं।दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है। सुभद्रा अपने भक्तों के सारे मनोरथ पूर्ण करती है।

ऐसे करें कंजक पूजन

नवरात्र में सभी तिथियों को एक-एक और अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा होती है। कन्याओं के पैर धो कर उन्हें आसन पर बैठाया जाता है। हाथों में मौली बांधी जाती है और माथे पर रोली से टीका लगाया जाता है। भगवती दुर्गा को उबले हुए चने, हलवा, पूरी, खीर, पूआ व फल आदि का भोग लगाया जाता है। यही प्रसाद कन्याओं को भी दिया जाता है। कन्याओं को कुछ न कुछ दक्षिणा भी दी जाती है। कन्याओं को लाल चुन्नी और चूडि़यां भी चढ़ाई जाती हैं। कन्याओं को घर से विदा करते समय उनसे आशीर्वाद के रूप में थपकी लेने की भी मान्यता है। इस प्रकार महामाया भगवती प्रसन्न होकर मनोरथ पूर्ण करती हैं।

No comments:

Post a Comment