कंजक पूजन से मिलते हैं राजयोग, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि
नवरात्र में कंजक पूजन के लिए जिन कन्याओं का चयन करें, उनकी आयु दो वर्ष से कम और दस वर्ष से ज्यादा न हो। एक वर्ष या उससे छोटी कन्याओं की पूजा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वे प्रसाद नहीं खा सकतीं। इसका धार्मिक कारण यह है कि दो वर्ष से लेकर दस वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती हैं और उन्हें माता के समान ही पवित्र और पूजनीय माना जाता है। कन्याओं के साथ एक लांगूर यानी लड़के को भी जिमाते है। ऐसा कहा जाता है कि लांगूर के बिना पूजन अधूरा रहता है।
दो वर्ष की कन्या (कुमारी) के पूजन से दुख और दरिद्रता मां दूर करती हैं। तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति रूप में मानी जाती है। त्रिमूर्ति कन्या के पूजन से धन-धान्य आता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है। चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है। इसकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है। पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है। रोहिणी को पूजने से व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है। छह वर्ष की कन्या को कालिका रूप कहा गया है। कालिका रूप से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है। सात वर्ष की कन्या का रूप चंडिका का है। चंडिका रूप का पूजन करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी कहलाती है। इसका पूजन करने से वाद-विवाद में विजय प्राप्त होती है। नौ वर्ष की कन्या दुर्गा कहलाती है। इसका पूजन करने से शत्रुओं का नाश होता है तथा असाध्य कार्यपूर्ण होते हैं।दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है। सुभद्रा अपने भक्तों के सारे मनोरथ पूर्ण करती है।
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