Thursday, October 10, 2013

कालरात्रि : मां दुर्गा की सातवीं शक्ति

कालरात्रि : मां दुर्गा की सातवीं शक्ति 

देवी सर्वभू‍तेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।


 
अपने महाविनाशक गुणों से शत्रु और दुष्ट लोगों का संहार करने वाली मां दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि हैं। अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली शक्ति हैं कालरात्रि। वर्ण और वेश में अर्द्धनारीश्वर शिव की तांडव मुद्रा में नजर आती हैं। मां कालरात्रि के शरीर का रंग अंधकार की तरह गहरा काला है, इनके केश बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत सदृश चचमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं जो ब्रह्मांड की तरह गोल हैं, इनकी आंखों से अग्नि की वर्षा होती है। इनकी नासिका से श्वास, निःश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालायें निकलती रहती हैं।

इनका वाहन 'गर्दभ' (गधा) है। जो समस्त जीव जंतुओं में सबसे ज्यादा परिश्रमी और निर्भय होकर अपनी अधिष्ठात्री देवी कालरात्रि को लेकर इस संसार में विचरण कर रहा है। चार भुजाओं वाली दुर्गा हैं। ऊपर का दाहिना हाथ वरद मुद्रा में है जिससे यह सबको वरदान देती हैं, दाहिना नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है जिससे अपने सेवकों को अभयदान करती हैं और भक्तों को सभी कष्टों से मुक्त करती हैं। बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा और निचले हाथ में खड्ग है।

मां का यह स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है किन्तु सदैव शुभ फलदायक है। इसीलिए यह शुभंकरी कहलाईं। यह देवी अपने भक्तों पर असीम कृपा करती हैं और उनकी हर तरह से रक्षा करती हैं। इसलिए इनसे भक्तों को भयभीत होने की कतई आवश्यकता नहीं। मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं। दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं। यह ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं। इनके उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते। इनकी कृपा से वह सर्वथा भय-मुक्त हो जाता है।

दुर्गा पूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है। कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं। इस दिन साधक का मन सहस्त्रारचक्र में अवस्थित होता है। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णत: मां कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है, उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य का वह अधिकारी होता है, उसकी समस्त विघ्न बाधाओं और पापों का नाश हो जाता है और उसे अक्षय पुण्य लोक की प्राप्ति होती है। इनकी पूजा-अर्चना करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है व दुश्मनों का नाश होता है, तेज बढ़ता है। जो व्यक्ति देवी कालरात्रि की एकाग्रचित्त होकर पूजा करता है देवी उसकी सभी बाधाएं दूर करती हैं। भगवती कालरात्रि का ध्यान, कवच, स्तोत्र का जाप करने से 'भानुचक्र' जागृत होता है। अगर आप परेशानियों का सामना कर रहें है तो नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि के मंत्र का देवी पूजा के दौरान जरूर जप करें।

उपासना मंत्र

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्मा खरास्थिता |
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी ||
वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा |
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिभयंकरी ||

ध्यान

करालवंदना धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।
कालरात्रिं करालिंका दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम॥
दिव्यं लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्।
अभयं वरदां चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम॥
महामेघ प्रभां श्यामां तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा।
घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥
सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्।
एवं सचियन्तयेत् कालरात्रिं सर्वकाम् समृध्दिदाम्॥

स्तोत्र पाठ

हीं कालरात्रि श्री कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।
कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥
कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥
क्लीं हीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥

कवच

ऊँ क्लीं मे हृदयं पातु पादौ श्रीकालरात्रि।
ललाटे सततं पातु तुष्टग्रह निवारिणी॥
रसनां पातु कौमारी, भैरवी चक्षुषोर्भम।
कटौ पृष्ठे महेशानी, कर्णोशंकरभामिनी॥
वर्जितानी तु स्थानाभि यानि च कवचेन हि।
तानि सर्वाणि मे देवीसततंपातु स्तम्भिनी॥



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