जुदा होकर भी ना भूले, यह दोस्ती की जीत है
दोस्ती सच्ची प्रीत है; जुदाई जिसकी रीत है; जुदा होकर भी ना भूले; यह दोस्ती की जीत है। इस बात को गूगल की भारत-पाक विभाजन के दौरान बिछड़े दो दोस्तों की कहानी पर आधारित ऑनलाइन पोस्ट ने साबित कर दिया है। यह विभाजन सिर्फ दो मुल्कों की सीमा का ही नहीं था, बल्कि यह वहां रहने वाले लोगों की भावनाओं का भी था।इस पोस्ट में दिखाया गया है कि बचपन के दो दोस्त जो कि रोजाना शाम को बाग में पतंग उड़ाते थे और फिर झझरिया चुरा कर खाते थे, एक दिन अचानक बंटवारे के चलते जुदा हो गए। एक भारत आ गया तो दूसरे को पाकिस्तान में ही रहना पड़। कई साल बीत जाने पर भी बचपन की वो यादें आज भी उन्हें वैसे ही गुदगुदाती हैं। बचपन के दोस्त की तस्वीर देखकर बूढ़ी आंखों में एक चमक आ जाती है, जैसे दोस्त को मिलने, उसे देखने की हसरत हो इन आंखों में।
मुंबई से आई अपनी पोती को अपने बचपन के दोस्त युसूफ के किस्से ऐसे सुनाते हैं, जैसे कोई बुजुर्ग सालों का सहेजा अपना खजाना अपने बच्चों को सौंपता है। दोस्त के लिए दादा की खुशी को देखते हुए वह पोती कैसे गूगल की मदद से उनके बचपन के दोस्त से उनकी मुलाकात करवाती है, यह इस विज्ञापन के माध्यम से बेहद भावुक ढंग से फिल्माया गया है।
विभाजन का दर्द कितना भयानक था यह वो ही शख्स जान सकता है जिसने इसे सहा है, जिसे इस बंटवारे में अपना घर बार छोड़ना पड़ा, अपने बचपन के दोस्तों से अलग होना पड़ा, लेकिन इस दर्द को तीन मिनट की फिल्म में इतने भावुक अंदाज में फिल्माया गया है कि देखने वालों की आंखों से भी आंसू बहने लगते हैं। जो शायद बरसों से बिछुड़े दो दोस्तों के मिलने की खुशी में होते हैं या फिर उस प्यार के लिए निकलते हैं जो बरसों बाद आज भी उनके दिलों में वैसे ही जिंदा है, या जिस दोस्ती के लिए जिसे दो मुल्कों की सीमाएं बांध नहीं सकीं, जिसे दो मुल्कों का बंटवारा बांट नहीं सका।
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