आया खुशियों का त्यौहार ‘क्रिसमस’
क्रिसमस शब्द का जन्म क्राईस्टेस माइसे अथवा ‘क्राइस्टस् मास’ शब्द से हुआ है। क्रिसमस या बड़ा दिन प्रभु के पुत्र ईसा मसीह या यीशु के जन्म की खुशी में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है और आमतौर पर इस दिन लगभग पूरी दुनिया में छुट्टी रहती है। यूं तो 25 दिसंबर को यीशु का जन्मदिन होने का कोई तथ्यपूर्ण प्रमाण उपलब्ध नहीं है, लेकिन समूची दुनिया इसी तिथि को यह रोमन पर्व सदियों से मनाती चली आ रही है। ऐसा अनुमान है कि पहला क्रिसमस रोम में 336 ईस्वी में मनाया गया था।परम्परागत रूप से क्रिसमस 12 दिन तक चलने वाला उत्सव है। प्रभु ईसा मसीह का जन्मदिन संपूर्ण विश्व में सभी समुदाय के लोग अपनी-अपनी परंपराओं एवं रीति-रिवाजों के अनुसार श्रद्धा, भक्ति, निष्ठा और उल्लास के साथ एक धर्मनिरपेक्ष, सांस्कृतिक उत्सव के रूप मे मनाते हैं। क्रिसमस की पूर्व संध्या यानि 24 दिसंबर को ही इससे जुड़े समारोह शुरु हो जाते हैं। गिरजाघरों को बिजली की लडिय़ों से आकर्षक ढंग से सजाया जाता है। यहां यीशु के जन्म से संबंधित झांकियां तैयार की जाती हैं। कैरोल (Carols) गाए जाते हैं।
क्रिसमस की पूर्व रात्रि, गिरिजाघरों में रात्रिकालीन प्रार्थना सभा की जाती है जो रात के 12 बजे तक चलती है क्योंकि 24 दिसंबर की आधी रात यीशु का जन्म होना माना जाता है। ठीक 12 बजे लोग अपने प्रियजनों को क्रिसमस की बधाइयां देते हैं, खुशियां मनाते हैं और एक-दूसरे को उपहार देते हैं। अगले दिन धूमधाम से त्योहार मनाया जाता है। क्रिसमस की सुबह गिरिजाघरों में विशेष प्रार्थना सभा होती है। क्रिसमस के दौरान प्रभु की प्रशंसा में लोग कैरोल गाते हैं। वे प्यार व भाई चारे का संदेश देते हुए घर-घर जाते हैं। क्रिसमस का विशेष व्यंजन केक है, केक बिना क्रिसमस अधूरा होता है। भगवान यीशु मसीह के जन्मोत्सव को सेलीब्रेट करने के लिए क्रिसमस केक भी गिरिजाघरों में सजाए जाते हैं।
व्यापक रूप से स्वीकार्य एक ईसाई पौराणिक कथा के अनुसार, प्रभु ने मेरी नामक एक कुंवारी लड़की के पास गैब्रियल नामक देवदूत को भेजा, जिसने मेरी को बताया कि वह प्रभु के पुत्र को जन्म देगी तथा बच्चे का नाम जीसस रखा जाएगा। वह बच्चा बड़ा होकर राजा बनेगा और उसके राज्य की कोई सीमा नहीं होगी।
देवदूत गैब्रियल, एक भक्त जोसफ के पास भी गया और उसे बताया कि मेरी एक बच्चे को जन्म देगी, तथा उसे (जोसफ को) मेरी की देखभाल करनी चाहिए। जिस रात जीसस का जन्म हुआ, उस समय नियमों के अनुसार अपने नाम पंजीकृत कराने के लिए मेरी और जोसफ बेथलेहम जाने के रास्ते में थे। उन्होंने एक अस्तबल में शरण ली, जहां मैरी ने आधी रात को जीसस को जन्म दिया तथा उसे एक नांद में लिटा दिया। इस प्रकार प्रभु के पुत्र जीसस का जन्म हुआ।
सच्चाई, ईमानदारी की राह पर चलने और दीन-दुखियों की भलाई की सीख देने वाले ईसा मसीह के विचार उस समय के क्रूर शासक पर नागवार गुजऱे और उसने प्रभु-पुत्र को सूली पर टांगकर हथेलियों में कीलें ठोंक दीं। इस यातना से यीशु के शरीर से प्राण निकल गए, मगर कुछ दिन बाद वह फिर जीवित हो उठे। ईसा के दोबारा ज़िन्दा हो जाने की खुशी में ईस्टर मनाया जाता है।
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