फैशन स्टेटमैंट बन रही हैं गलत आदतें
किशोरावस्था उम्र का ऐसा पड़ाव होता है जिसमें आगामी जीवन की नींव तो पड़ती ही है, साथ ही इस आयु वर्ग के बच्चे बहुत जल्दी भटक भी जाते हैं। यही वह उम्र होती है जब बच्चे गलत आदतों का शिकार हो जाते हैं। किशोरियों को अपने परिवार से ज्यादा दोस्त अच्छे लगने लगते हैं, क्योंकि परिवार से उन्हें बंधन का अहसास होता है और दोस्त उन्हें आजादी महसूस करवाते हैं। इसलिए इन एज ग्रुप्स के बच्चों के पेरैंट्स का यह दायित्व बन जाता है कि वे उनकी हर छोटी बात, उनके व्यवहार पर पूरी तरह से नजर रखें, ताकि उनका बच्चा गलत आदतों का शिकार न हो जाए। संतान के बेहतर भविष्य के लिए उसके चरित्र और आचरण की पूरी जिम्मेदारी पेरैंट्स की ही होती है। देखा गया है कि जिन किशोरों और बच्चों के अपने पेरैंट्स से अच्छे संबंध होते हैं उनका व्यवहार भी अच्छा होता है और उनका मानसिक और सामाजिक विकास भी बेहतर होता है, लेकिन ऐसा न होने पर इसके गलत परिणाम देखने को मिलते हैं।
स्मोकिंग
‘दम मारो दम, मिट जाए गम’। लड़कियों में अब स्मोकिंग का चस्का बढ़ रहा है। कई लड़कियां अपना गम मिटाने के लिए स्मोकिंग करती हैं लेकिन एक समय के बाद धुएं में गम नहीं सेहत भी उडऩे लग जाती है। कुछ लड़कियों को स्मोकिंग की एडिक्शन हो जाती है तो कुछ स्टेटस ङ्क्षसबल के चलते इसे अपनी ङ्क्षजदगी में शामिल कर लेती हैं। तंबाकू का कोई भी रूप ब्रैस्ट कैंसर, सर्वाइकल कैंसर और गर्भावस्था से संबंधित जटिलताएं पैदा कर सकता है।
एल्कोहल
एल्कोहल का सेवन यूथ कल्चर का अहम हिस्सा बन चुका है। महिलाओं में एल्कोहल का सेवन आम हो गया है। नैटवर्क बनाने के लिए, डेट पर या किसी पार्टी में महिलाएं भी अक्सर पुरुषों की तरह ड्रिंक्स लेती हैं। इतना ही नहीं हाई स्कूल की किशोर लड़कियों में शराब का इस्तेमाल कभी इतनी सहजता से नहीं हुआ था जितना कि आज है। घर से दूर रहने वाली लड़कियां ज्यादा आजाद हो जाती हैं और नशे अपनाने लगती हैं। शरीर में मौजूद पानी की मात्रा ही एल्कोहल को डायल्यूट करती है। महिलाओं के शरीर में पुरुषों की अपेक्षा पानी की मात्रा कम पानी होने के कारण उन पर एल्कोहल का असर जल्दी और कयादा होता है।
ड्रग्स
किशोरियों में ड्रग्स का सेवन बढ़ता जा रहा है। युवा लड़कियों में नशे की आदत पूरे समाज के लिए खतरनाक साबित हो रही है। यूनिवर्सिटी में पढऩे वाली लड़कियों में तो यह फैशन स्टेटमैंट बन चुका है। खुद को हाई-फाई दिखाने के लिए लड़कियां इसकी गिरफ्त में आ रही हैं। यह ऐसी आदत है जिसे अपनाना जितना आसान है इससे छुटकारा पाना उतना ही मुश्किल है। ड्रग्स लेने पर किशोर बच्चों में डिप्रैशन, शिजोफ्रेनिया जैसी मानसिक बीमारियों और सांस, दिल व फेफड़े से जुड़े रोगों की संभावना बढ़ जाती है।
शॉर्ट ड्रैसेज
लड़कियां सुंदर और स्मार्ट दिखने के लिए काफी शॉर्ट ड्रैसेज पहनती हैं। इन कपड़ों में शरीर जितना ढकता नहीं है, उतना उघड़ता है, जो देखने में शालीन नहीं लगता। फिल्मों की हीरोइनों और मॉडल्स को कॉपी करते वक्त वे यह भूल जाती हैं कि वे भी इन कपड़ों को अपनी रियल लाइफ में नहीं पहनती हैं, सिर्फ रैंप पर या शूटिंग के दौरान ही पहनती हैं। कपड़े ऐसे होने चाहिएं जो आपकी पर्सनैलिटी को एनहांस करें न कि आपको दूसरों के सामने शर्मिंदा करें। आप अपनी पर्सनैलिटी के अनुसार इंडियन, वैस्टर्न या फ्यूजन किसी भी तरह की ड्रैसेज पहन सकती हैं।
ग्रुप सैक्स
उचित आयु से पहले ही किशोरियां शारीरिक संबंधों और अनैतिक चीजों के विषय में जिज्ञासा रखने लगी हैं और इनका अनुभव करने का वे कोई भी मौका गंवाना नहीं चाहतीं। कम उम्र की लड़कियों की एक बड़ी संख्या ग्रुप सैक्स कर रही है। ग्रुप सैक्स करने वाली अधिकतर लड़कियां सेहत संबंधी समस्याओं से जूझ रही हैं क्योंकि ग्रुप सैक्स करते समय वे अपनी सुरक्षा का ध्यान नहीं रखती जिसके चलते अपने किसी पार्टनर के द्वारा संक्रमित हो
जाती हैं।
सोशल नैटवर्किंग
कंप्यूटर और सोशल नैटवर्किंग साइट्स के कारण किशोरियों और युवाओं में भटकाव की स्थिति देखी जा रही है। वर्तमान में युवा वर्ग ड्रग एडिक्शन के बाद दूसरे नंबर पर इंटरनैट एडिक्शन का शिकार हो रहा है। यह सब सही मार्गदर्शन न मिलने के कारण ही होता है। सोशल नैटवर्किंग साइट्स और यंगस्टर्स की गलत आदतों का गहरा कनैक्शन है। नैटवर्किंग साइट या इंटरनैट पर जब किशोर कुछ आपत्तिजनक देखते हैं, तो उन्हें वह बेहद कूल लगता है और इसके चलते वे छोटी उम्र में ही गलत आदतों के शिकार हो जाते हैं।
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