कच्चे धागे का मजबूत रिश्ता
राखी बहन के पवित्र प्रेम और रक्षा की डोरी है। रक्षाबंधन स्नेह का वह अमूल्य बंधन है जिसका बदला धन तो क्या सर्वस्व देकर भी नहीं चुकाया जा सकता। यह त्यौहार भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है। राखी के जरिये बहनें भाई की सलामती की दुआ मांगती हैं तो भाई ताउम्र बहन की हिफाजत का बीड़ा उठाते हैं, फिर चाहे रिश्ता खून का हो या सिर्फ कच्चे धागे का।
राखी पर बहनें थाली में फल, फूल, मिठाइयां, रोली, चावल तथा राखियां रखकर भाई का स्वागत करती हैं। रोली-चावल से भाई का तिलक करती हैं तथा उसकी दाहिने कलाई पर राखी बांधती हैं। राखी बांधते समय सौ-सौ मनौतियां मनाती हैं। इसके पश्चात भाइयों को कुछ मीठा खिलाया जाता है। भाई अपनी हैसियत के हिसाब से अपनी बहन को शगुन के तौर पर भेंट देता है।
एक वक्त था जब राखी के धागे कच्चे होते थे और प्यार के रिश्ते मजबूत, लेकिन समय बदलने के साथ-साथ भाई-बहन के इस प्यार भरे त्यौहार में दिखावा भारी पड़ने लगा है। पहले बहनें मिठाई का छोटा-सा डिब्बा और राखी का धागा लेकर मायके अपने भाई को राखी बांधने जाती थीं, पर अब यह रस्म भी बदल गई है।
समाज की रीत कुछ ऐसी बन गई है कि बहनें अब भाई के घर जाते समय मिठाई और राखी के साथ-साथ कई गिफ्ट्स भी ले जाती हैं। इसके पीछे उसकी सोच होती है कि कहीं भाभी के दिमाग में यह न आए कि हर साल बहन थोड़ी-सी मिठाई देकर राखी पर महंगा गिफ्ट ले जाती है। राखी पर भाई के लिए गिफ्ट खरीदते समय उनके मन में एक ही चिंता रहती है कि कहां उनका गिफ्ट भाई या उनकी दूसरी बहनों के गिफ्ट्स की तुलना में सस्ता न हो।
हालांकि बहनों को ऐसा सोचना नहीं चाहिए और भाई के प्यार को पैसे के तराजू पर तोलना नहीं चाहिए। सामाजिक रीति रिवाज़ों का निर्वाह उसी सीमा तक ठीक रहता है जब तक कि वो बोझ न बन जाएं। भाई-बहन के निश्छल प्यार के रिश्ते में भावनाएं ज्यादा अहम हैं नाकि समाजिक रीति-रिवाज। गिफ्ट के महंगे या सस्ते होने से उनके रिश्ते पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए।
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