‘मैं पापा की बेटी हूं’

बच्चों का पेरैंट्स के लिए लगाव होता ही है पर जब यह लगाव एक पेरैंट के साथ ज्यादा हो, तो कई बार दूसरे पेरैंट को दिक्कत हो सकती है। हालांकि इसके लिए कहीं न कहीं वही दोषी होता है। छोटे बच्चों से अक्सर पूछा जाता है कि वह मम्मी का बच्चा है या पापा का तब बेटी कहती है ‘मैं पापा की बेटी हूं’ और कभी-कभार बेटा कहते है ‘मैं मम्मी का बेटा हूं।’ कई बार बच्चे अपने फायदे के लिए एक पेरैंट के साथ ज्यादा अटैचमैंट बना लेते हैं। कई एक पेरैंट का उपेक्षात्मक  रवैया भी इसका कारण हो सकता है।

♦  बच्चे को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ऐसे तरीके न अपनाएं, जिनसे बच्चे को गलत संदेश जाए। पेरैंट्स को आपस में बातचीत करके तय करना चाहिए कि बच्चे के लिए क्या सही है और क्या गलत, न कि एक-दूसरे को गलत कहना चाहिए।
♦  यदि बच्चे की डिमांड सही हो, तो दोनों पेरैंट्स मिलकर उसे पूरा करें। इससे बच्चे को यह मैसेज जाता है कि वे दोनों ही उसे बहुत प्यार करते हैं।
♦  जब एक पेरैंट बच्चे को किसी बात से रोकता है, तो दूसरे को भी वही करना चाहिए। इससे बच्चा महसूस करता है कि वह जो कर रहा है, वह गलत है।
♦ बच्चे से पढ़ाई, खेल, मनोरंजन, कार्टून की बात करें। हमेशा पढऩे पर ही जोर न दें। केवल पढऩे से ही बच्चे की डिवैल्पमैंट नहीं हो सकती।
♦   बच्चों के सामने फैमिली प्रॉब्लम डिसकस न करें। बच्चे पेरैंट्स को देख कर व्यवहार सीखते हैं। आपकी बातों से वे परिवार के अन्य सदस्यों के बारे में इम्प्रैशन बना लेते हैं।
♦  अपने व्यवहार और घर के माहौल पर जरूर नजऱ डालें। बच्चे के सामने वाद-विवाद से बचें क्योंकि यदि घर कलह का माहौल होगा, तो कई बार बच्चा हमदर्दी के चलते एक पेरैंट के कयादा नकादीक हो जाता है।
♦  पेरैंट्स बच्चों का मनोभाव समझें। कई बार डर के कारण बच्चे किसी एक पेरैंट से सवाल करते घबराते हैं। ऐसे तनावपूर्ण वातावरण में वे अपने प्रिय पेरैंट के पास राहत तलाशते हैं।
♦  बच्चा घर पर कयादा सीखता है। इसलिए घर का माहौल हैल्दी रखें और अपना व्यवहार पॉजीटिव। उसे उपदेश नहीं, सलाह दें।
♦  पेरैंट्स बच्चों के लिए रोल मॉडल बनें। जैसी अपेक्षाएं वे बच्चों से रखते हैं, उन्हें भी वैसा ही व्यवहार आपस में और बच्चों के साथ करना चाहिए।
♦  बच्चों में तुलना न करें, खास कर जिन परिवारों में लड़का और लड़की दोनों हैं, ताकि लड़की के मन में इंफीरियारिटी काम्प्लैक्स न आए।
♦  दोस्तों से मिलने, साथ घूमने पर नकार हो, पाबंदी नहीं।
♦  अक्सर ग्रैंड पेरैंट्स बच्चों को प्रोटैक्ट करते हैं। वे चाहते हैं कि बच्चों की हर जिद पूरी हो, लेकिन यदि पेरैंट्स बच्चे को किसी बात के लिए रोक रहे हैं, तो वे यह जान लें कि वे ऐसा बच्चे के फायदे के लिए ही कर रहे हैं।

बच्चों के साथ प्यार भरा व्यवहार करें। उनके मन में यह कभी न आए कि माता या पिता में से कोई एक उनसे प्यार नहीं करता। यदि फिर भी बच्चा अपनी अटैचमैंट किसी एक के साथ दिखाए, तो भी घबराने की कारूरत नहीं है। बच्चे जब बड़े हो जाते हैं, तब उनका व्यवहार दोनों के साथ बराबर हो जाता है।
- मीनाक्षी गांधी
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