Friday, February 22, 2013

प्रेम की ऋतु बसंत


माघ महीने की शुक्ल पंचमी से बसंत ऋतु का आरंभ होता है। बसंत का उत्सव प्रकृति का उत्सव है। सतत सुंदर लगने वाली प्रकृति बसंत ऋतु में सोलह कलाओं से खिल उठती है। यौवन हमारे जीवन का बसंत है तो बसंत इस सृष्टि का यौवन है...

भारत में पूरे साल को छह मौसमों में बांटा जाता है, उनमें बसंत सबका मनपसंद मौसम है। बसंत को ऋतुओं का राजा माना जाता है। बसंत पर मौसम बेहद सुहाना हो जाता है। सर्दी अपनी सफेद चादर समेटने लगती है, मौसम खुशनुमा हो जाता है, न अधिक गर्मी होती है और न ही अधिक ठंड, जो कार्यक्षमता बढ़ाता है। आयुर्वेद में भी बसंत पंचमी को स्वास्थ्य के लिए बेहतर बताया गया है। बसंत ऋतु के स्वागत के लिए माघ महीने के पांचवे दिन जश्न मनाया जाता था। इस दिन सरस्वती, विष्णु और कामदेव की पूजा होती है।

बसंत ऋतु का आगमन बसंत पंचमी पर्व से होता है। बसंत पंचमी अपने साथ कई परिवर्तन लेकर आती है। बसंत पंचमी के दिन से शरद ऋतु की विदाई शुरू हो जाती है। बसंत आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है, पेड़-पौधे  अपनी पुरानी पत्तियों को त्यागकर नई कोंपलों से आच्छादित दिखाई देते हैं, फूलों पर बहार आ जाती है, समूचा वातावरण फूलों की सुगंध और भौंरों की गूंज से भर जाता है, खेतों मे सरसों का सोना चमकने लगता है, जौ और गेहूं की बालियां खिलने लगती हैं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता और हर तरफ रंग-बिरंगी तितलियां मंडराने लगती हैं।

माना जाता है कि बसंत पंचमी को ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का अवतार हुआ था। इस दिन देवी सरस्वती की पूजा करने के पीछे भी पौराणिक कथा है। इनकी सबसे पहले पूजा श्रीकृष्ण और ब्रह्माजी ने की थी। सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने वरदान दिया कि विद्या की इच्छा रखने वाला हर व्यक्ति माघ मास की शुक्ल पंचमी को पूजन करेगा। इस वरदान के बाद स्वयं श्रीकृष्ण जी ने पहले देवी की पूजा की। इसीलिए इसलिए इस दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है। गायन और वादन सहित अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं जो सरस्वती मां को अर्पित किए जाते हैं। ऋग्वेद में सरस्वती देवी के असीम प्रभाव व महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है- प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु। अर्थात् ये परम चेतना हैं।

विद्या की अभिलाषा रखने वाले व्यक्ति के लिए यह दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है। मां सरस्वती की पूजा के बाद ही विद्यारंभ करते हैं। ऐसा करने पर विद्या की देवी प्रसन्न होती है और बुद्घि तथा विवेकशील बनने का आशीर्वाद देती है। विद्यार्थी के लिए मां सरस्वती का स्थान सबसे पहले होता है। इसीलिए इस दिन बच्चों को पहला अक्षर लिखना सिखाया जाता है। इस दौरान रचनात्मक, कलात्मक कार्य अधिक होते हैं। सृजन क्षमता बढ़ जाती है। सृजनकर्ताओं की लेखनी भी बासंती यौवन पर खूब चली है। कवियों ने भी किसी और मौसम की अपेक्षा बसंत ऋतु पर ही सबसे ज्यादा कविताएं लिखी हैं।

बसंत ऋतु को प्रेम की ऋतु माना जाता रहा है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन काम के देवता कामदेव का भी आविर्भाव हुआ था। बसंत ऋतु कामदेव की ऋतु है। यौवन इसमें अंगड़ाई लेता है। बसंत कामदेव का मित्र है, इसलिए कामदेव का धनुष फूलों का बना हुआ है। इस धनुष की कमान स्वरविहीन होती है। यानी कामदेव जब कमान से तीर छोड़ते हैं तो उसकी आवाज नहीं होती है। इसमें फूलों के बाणों से आहत हृदय प्रेम से सराबोर हो जाता है। दरअसल बसंत ऋतु एक भाव है जो प्रेम में समाहित हो जाता है। मौसम का सुहाना होना इस मौके को और रूमानी बना देता है। इसलिए इस माह को मधुमास भी कहा जाता है। बसंत पर  प्रकृति काममय हो जाती है। इसीलिए रति-काम महोत्सव की यह अवधि कामो-द्दीपक होती है।

बसंत ऋतु का आगमन प्रकृति को बासंती रंग से सराबोर कर जाता है। बसंत पंचमी पर सब कुछ पीला दिखाई देता है। पीला रंग हिन्दुओं में शुभ माना जाता है।लोग पीले रंग के वस्त्र पहनते हैं, खाद्य पदार्थों में भी पीले चावल, पीले लड्डू व केसर युक्त खीर का उपयोग किया जाता है, प्रकृति खेतों को पीले-सुनहरे रंग से सजा देती है। मन्दिरों में बसंती भोग रखे जाते हैं और बसंत के राग गाए जाते हैं। बसंत ऋतु में मुख्य रूप से रंगों का त्योहार होली मनाया जाता है। बसंत पंचमी से ही होली गाना भी शुरू हो जाता है। इस दिन पितृ तर्पण किया जाता है।

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